इंस्पेक्टर मृदुल की बात सुनकर, परिणीति तिलमिला गई और क्रोधित होते हुए बोली-मैं कमिश्नर के पास जाऊँगी और आप लोगों की भी शिकायत करुंगी, किसी को भी नहीं छोडूंगी ,तुम लोगों का पर्दाफाश करके रहूंगी, कि कैसे कानून की नाक के नीचे ही अपराध हो रहे हैं ? मैं चुप बैठने वाली नहीं हूं ,कहते हुए क्रोध से उठकर वहां से चली गई।
आज दृष्टि की मेहंदी की रस्म है, उसके छोटे-छोटे हाथों पर छोटे-छोटे बेल -बूंटे सजाए जा रहे हैं और वह भी मन ही मन खुश हो रही है क्योंकि सभी की दृष्टि उसी पर जो है। तब उसकी मां ने उसे, उसका सुंदर लहंगा और उसके जेवर दिखलाए जिनको देखकर वह खुश होने लगी और ताली पीट- पीटकर हंसने लगी। जिसके कारण उसकी मेहंदी खराब हो गई। इस बात के लिए उसकी बुआ ने उसे डाँटा, तो वह रोने लगी।उसे इस बात पर भी दुःख हुआ कि उसकी मेहँदी बिगड़ गयी।
देवयानी ने, झूठा गुस्सा दिखलाते हुए बुआ से कहा -आपने मेरी बिटिया को रुला दिया , मेहंदी तो दोबारा लग जाएगी ,अब देखना मेरी रानी बिटिया कितने सुंदर-सुंदर काम करती है और अपनी मम्मी का कितना कहना मानती है ? अपनी ससुराल में जाकर आपसे बात भी नहीं करेगी ,कहते हुए उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे समझाने लगीं -तुम तो मेरी रानी बिटिया हो ! और रानी बिटिया कभी भी, कोई गलत कार्य नहीं करती है, वह हमेशा मजबूत होकर आगे बढ़ती है। अब अपनी मां को छोड़कर ,मेरी बेटी ससुराल जाएगी, तो समझदारी से कार्य करेगी। अब तुम छोटी नहीं रहीं , अब तुम बड़ी हो गई हो। वहां तुम्हें एक दोस्त मिलेगा , दृष्टि अपनी मां की बातें, सुनते- सुनते सो गई ,तब उसको सोते हुए ही देवयानी ने उसके हाथों पर मेहंदी लगाई, और पैरों में महावर लगाया।
देवयानी ,अपनी बेटी को अलग स्थान पर सुलाकर बाहर आती है , वह जानती है, वह क्या कर रही है? वह अपनी बेटी को पहले ही ,ससुराल की बातें कर -करके बहलाती है ताकि उसे विदाई के समय, ज्यादा परेशानी न हो, बच्ची ही तो है , दिल तो मां का भी दुखता है, बाहर आकर रोने लगी।
तब देवयानी की ननद कहती है - मां के लिए तो, अब छोटी बच्ची क्या ? बड़ी होने पर भी, उसे अपने कलेजे से दूर भेजने के लिए ''कलेजे पर पत्थर रखना ही होगा।'' जितना ज्यादा समय तक साथ रहेगी, उतनी ही ममता बढ़ती चली जाएगी फिर हमारी बिटिया हमसे ज्यादा दूर थोड़े ही जा रही है ,हमारा जब भी मन करेगा , उससे मिलने चले जाया करेंगे या उसे मिलने बुला लिया करेंगे। आती -जाती रहेगी। अब रोना बंद करो ! तुम्हें रोते देखकर, दृष्टि भी रोएगी। मेहमान आ रहे हैं ,कल को बारात आ जाएगी अपना जी कड़ा करके, खुशी-खुशी यह सभी कार्य पूर्ण करो !
आज हमारा देश कितनी उन्नति कर रहा है ? जहाँ हम लोग ,'मंगल ग्रह' पर जाने का प्रयास कर रहे हैं। अब हर चीजें 'ऑनलाइन 'हो रहीं हैं। गांव की गलियां, शहरों से जुड़ रहीं हैं और गांव भी अब ,इतने पिछड़े नहीं रहे। जहाँ आज की नारी पढ़ -लिखकर आगे बढ़ रही है ,बैंक ,में हो या कोई सरकारी अफ़सर ,पुलिस में हो या फिर हवाई जहाज चलाना ,किसी भी क्षेत्र में आज की नारी किसी से भी कम नहीं है। आज वह पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर उसको चुनौती देती नजर आती है। वहीं उत्तर प्रदेश जिले में आज भी 'पुनिया 'नामक एक गांव ऐसा भी है ,जहाँ के लोग ,आज भी उसी बरसों पुराने ढ़र्रे पर चल रहे हैं। जहाँ ''बाल विवाह ''जैसी कुप्रथा आज भी पनप रही है। जहाँ आज भी नारी की उन्नति पुरुषों के अहम को चोट पहुंचाती नजर आती है इसीलिए वहां के लोग ,अपनी बेटियों को पढ़ाने या उनके जीवन में ज्ञान का दीपक जलाने की अपेक्षा ,उनके सुनहरे सपने देखने से पहले ही ,उन सपनों पर घर -गृहस्थी की कालिख़ पोत देते हैं। उनका कम उम्र में ही विवाह कराकर ,उनके, उन नाजुक कंधों पर बोझ डालकर ,उनके नाजुक पंखों को नोच डालते हैं ,इससे पहले कि उनके पंख मजबूत और बड़े हों ,उनको मसल और कुचल दिया जाता है। इससे पहले कि वो अपने विषय में कुछ सोचें या समझें ,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
जब उनकी उड़ान भरने की उम्र होती है तब ,उस गांव की बच्चियाँ, अपनी ससुराल में ,अपने सास -ससुर की सेवा कर रहीं होती हैं या फिर अपने बेरोजगार पति के अत्याचारों का शिकार हो रहीं होती हैं। बेचारी अबोध बच्चियाँ ! क्या कुछ नहीं झेलती होंगी ? ज़बरन ही पति द्वारा संबंध बना लिए जाने पर ,कम उम्र में ही ,मां बनने के लिए मजबूर हो जाती होगीं। कैसे माता -पिता हैं ?जो अपनी बेटियों पर अत्याचार होते देखते हैं और इन सबका कारण ,स्वयं उन बच्चियों के माता -पिता ही हैं,जो उनके पढ़ने की उम्र में ,उन मासूम बच्चियों का विवाह करा देते हैं।
ऐसे लोगों की सोच के कारण ही ,आज भी हमारा देश कई चीजों में ,अन्य देशों से पिछड़ा हुआ है। मैं चाहती हूँ ,उस गांव की उन छोटी -छोटी बच्चियों को ,उस गांव से बाहर निकालकर ,उन्हें भी उड़ने का मौका मिले, न कि उनके पैरों में पायल रूपी बेड़ी पहना दी जाये। वे अभी इतनी छोटी हैं ,कुछ भी सोच -समझ नहीं सकतीं।
अब आप लोग यह जानना चाहेंगे कि यह सब मुझे क्यों,और कैसे मालूम हुआ ? मैं आपको बताना चाहती हूं कि मैं उस गांव में गई थी ,उस समय उस गांव के चौधरी की बेटी का विवाह था, आप विश्वास नहीं करेंगे, उस बच्ची की उम्र मात्र 8 वर्ष की थी जिसके विवाह की तैयारियाँ चल रही थीं। यह देखकर मेरा ''खून खौल उठा'' मैंने उन लोगों को समझाने का प्रयास भी किया किंतु वहां के लोगों की न जाने, कैसी सोच है ? वहां की महिलाएं ही, जैसे आगे बढ़ना नहीं चाहती हैं ,अपनी बच्चियों को क्या प्रेरित करेंगीं ? मैंने इतने पर भी हार नहीं मानी और मैं वहीं के थाने में रिपोर्ट लिखवाने गई तो वहां के इंस्पेक्टर ने मेरी रिपोर्ट लिखने से ही इनकार कर दिया। वहां के पुलिस वाले भी, उन्हीं की गुलामी करते हैं। खाते सरकार का है, किंतु कार्य चौधरियों का करते हैं।
मैं आप लोगों से विनती करती हूं, और पूछना चाहती हूं कि क्या यह सही हो रहा है ? क्या मेरा उन बच्चियों को गांव से बाहर निकाल, पढ़ने के लिए भेजने का निर्णय गलत है और यदि मैं सही हूं ,तो आप लोग मुझे सहयोग दीजिए ताकि यह अत्याचार आगे आने वाले बच्चों पर न हो। इस मामले में पुलिस भी, मेरी कोई मदद नहीं कर रही है इसीलिए मैंने आप लोगों को यह, बात बताई है। ताकि आप लोग भी जान सकें। हमारे यहाँ बहुत से लोगों की सोच अभी भी, बहुत पिछड़ी हुई है।
मैं कोई ''समाजसेविका ''तो नहीं हूं, किंतु मैं इतना अवश्य चाहती हूं, कि उन बच्चियों को न्याय मिले , उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त हो। न जाने कितनी बच्चियाँ ? उनके बनाये नियमों के कारण ,इस कुप्रथा की बलि चढ़ रही हैं। जो आज कोई योग्य राजनीतिज्ञ बन सकती हैं , योग्य शिक्षक बन सकती हैं , योग्य वैज्ञानिक बन सकती हैं । उनकी यह काबिलियत उन रस्मों की भेंट चढ़ रही है जिनका वे महत्व ही नहीं समझतीं। उस गांव के लोगों की अंधी सोच के कारण, वो जीते जी उनकी दकियानूसी सोच में दफन हो रही हैं ।