'' उस पल ''की कहानी

सुबह जब मधु उठी ,तो घर में, एक बूंद भी पानी नहीं था। उसने टंकी चलाकर देखा लेकिन नल में पानी नहीं आ रहा था, उसने थोड़ी प्रतीक्षा की। केतली में थोड़ा पानी रखा था, वह सुबह उठते ही ,पानी पीती है इसलिए उसने वह पानी पीया और सोचा -थोड़ी देर में तो पानी आ ही जाएगा किंतु तब भी पानी नहीं आया। अब तक उसका बेटा उठ चुका था। उठते ही उसे भी पानी चाहिए , उसे पानी नहीं मिला वह चुपचाप बैठ गया। कुछ देर पश्चात बोला- घर में पानी नहीं है। यह तो वह बहुत देर से सोच रही थी, और प्रतीक्षा करते हुए कम से कम उसे 2 घंटे बीत चुके थे। कब तक प्रतीक्षा करेगी ?यही सोचकर वह अपने बेटे से बोली -जा, मोटर चला कर आजा !

 तभी सुमित बोला -नहीं , बाल्टी लेकर जा , और भरकर ले आना। 


सुमित की बात से मधु चिढ़ गई, और बोली -पानी यहां आएगा तो मैं, कई बर्तनों में भर लूंगी और यह एक बाल्टी को उठाये  घूमता रहेगा। यह बात, कई बार पहले भी हो चुकी है, और इसी बात से मधु भी चिढ  जाती है क्योंकि सुमित नहीं चाहता कि मोटर चलाकर पानी भरा जाए। अपने ऊपर कष्ट ले लेना चाहता है, किंतु जो भाई नीचे रह रहा है, उसको किसी प्रकार की असुविधा न हो। उनकी सुविधा के लिए ही, वह सुबह ही स्वयं उठकर दूध लेने जाता है, और स्वयं पानी भर कर आ जाता है।

 हर वस्तु पर अपना अधिकार तो वह दिखाते हैं, किंतु कर्तव्य नहीं निभाते, मधु चिढ़ते हुए अपने देवर के लिए बोली। सुमित और नमित दो भाई हैं। जैसे-जैसे परिवार बढे, धीरे-धीरे वे भी अलग हो गए। एक ऊपर रहने लगा ,एक नीचे रहने लगा। माँ ने, नमित के छोटा होने के नाते, नमित को बहुत कुछ दिया। सुमित को नहीं, मधु को इस बात क्रोध है। सुमित की माँ ने कभी मधु से उचित व्यवहार नहीं किया ,जब नमित की पत्नी आई, तब उसकी सास का व्यवहार  बदल गया। आज भी जब मधु उन दिनों  को याद करती है, दुखी हो जाती है और जब मधु ,सुमित के इस तरह के व्यवहार को देखती और सुनती है तो उसका क्रोध बढ़ जाता है। वह जानती है ,सभी परिवार में दो भाइयों में प्रेम होता है, किंतु भेदभाव तो नहीं होना चाहिए वह इसका भी विरोध करती है। कोई भी जिम्मेदारी नमित के परिवार को नहीं दी गई। हां, अधिकार पूरा हर चीज पर रहता है। वह नीचे रहने के बावजूद भी, मोटर के लिए एक बटन नहीं दबा सकते। जब उन्हें असुविधा होती है ,पानी की जरूरत होती है तो चला देते हैं वरना इस घर में कोई दूसरा परिवार भी रह रहा है उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है और जब सुमित से भी वह ऐसे शब्द सुनती है। तो उसके  बरसों पुराने, जख्म हरे हो जाते हैं। 

न जाने कहां-कहां की और कब-कब की बातें स्मरण कर उसका क्रोध बढ़ता जाता है ? कभी-कभी उसे लगता है, सुमित यहां तो रहता है किंतु उसका ध्यान अपने भाई की सुख- सुविधाओं पर रहता है। यहां रहकर भी, कभी हमारा नहीं है, जबकि नमित से वह इस तरह की उम्मीद कतई भी नहीं कर सकती थी क्योंकि जब कभी साथ रहे ,उसने उनका विरोध ही किया।  

नमित पहले अपने परिवार के और अपने विषय में सोचता है, ऐसा ही सुमित से मधु भी चाहती है , किंतु उसका व्यवहार हमेशा उनके लिए नरम रहता है। वह समझती है -कि सभी का स्वभाव एक जैसा नहीं होता किंतु धोखा खाकर तो इंसान को अकल आ जाती है, इतने धोखे और परेशानी झेलने के पश्चात भी, सुमित का स्वभाव नहीं बदला। इसी का रोष मधु को रहता है।

 आज भी तो ऐसा ही हुआ, ''नीचे बाल्टी ले जा ! पानी भर ला !'' इस बात से मधु चिढ़ गई। बात बढ़ते -बढ़ते न जाने कहां तक आ गई? सुमित मधु के परिवार वालों को भी जलील इत्यादि कुछ भी कहने से पीछे नहीं हटता है किंतु अपने परिवार वालों के लिए नरम पड़ जाता है, तब मधु को लगता है, कि यह रहता यहां है और बजाता वहां की है। इसे हमारी सुख -सुविधाओं का कोई भी ख्याल नहीं है, इसलिए वर्षों के कष्ट परेशानियां उसे स्मरण हो आती है वह भी उसके परिवार वालों को बहुत कुछ कह देती है। दोनों की नोक झोक बढ़ती चली जाती है, क्रोधित हो , सुमित गमला उठाकर फेंकता है, वह टूट जाता है। 

मधु भी कहती है- कि यह क्रोध अपने परिवार पर क्यों नहीं निकालते हो ? मेरे परिवार को जलील इत्यादि गालियां क्यों दी जाती है ?

किंतु सुमित को लगता है ,उसने कुछ गलत नहीं कहा-मैं कहीं भी गलत नहीं कहा है - उसने तो सिर्फ इतना ही कहा -कि बाल्टी भर कर ले आओ !कहने को तो ये मात्र शब्द थे किंतु उनके पीछे का अर्थ ,मधु समझ रही थी और इस अर्थ के कारण ,उसका क्रोध भी बढ़ गया था। मधु को बड़ा क्रोध आया, मात्र पानी के लिए, उसका इतना कीमती गमला टूट गया। इस घर पर जब भी झगड़ा होता है, उसके भाई और उसके परिवार को लेकर होता है और वह लोग हंसते हैं यह बात, मधु ने कई बार सुमित से प्यार से भी कही थी। किंतु सुमित पर तो जैसे कुछ भी असर ही नहीं होता। 

उसे लगता है ,कि मैं काम करके पैसे इन्हें दे रहा हूं ,इनके लिए कर रहा हूं ,यही बहुत है  किंतु व्यवहार भी तो कुछ होता है, जो हमेशा मधु को चुभता है, जिसे सुमित महसूस नहीं कर पाता या करना नहीं चाहता। किंतु वही 'वो पल'' थे, जिनमें , मधु एकदम शांत हो गई। वह सुमित से डरी नहीं, किंतु उस पल में उसने चुप रहना ही उचित समझा और वह मन में अनेक प्रश्न, बहुत सारी कड़वाहट लिए हुए एकदम खामोश हो गई। 

मधु की जिंदगी में ऐसे बहुत से पल आए हैं, जब सुमित से, उसका सामना हुआ है और उन दोनों में झगड़ा भी हुआ है किंतु कुछ पल ऐसे आ जाते हैं, जहां पर' मधु 'खामोश हो जाती है। उसी '' पल '' उसे लगता है ,इस झगड़े को अब यहीं विराम दे देना चाहिए। वे एक- दूसरे को समझने का मौका देते हैं , शायद समझ नहीं पाते हैं किंतु उन पलों में खामोश रहने पर, घर टूटते -टूटते बच जाता है। कड़वाहट ज्यों  कि त्यों बनी रहती है, उसके प्रश्न भी बराबर अभी तक मन में चल रहे हैं किंतु वह जानती है -वर्षों से उसके उन प्रश्नों का कभी  उसे जवाब नहीं मिला किंतु जिंदगी चल रही है। जिंदगी में सब कुछ स्पष्ट नहीं होता ,न ही, हर सवाल का जवाब मिलता है। ऐसे बहुत से पल आते हैं, जब दो पति-पत्नी में झगड़ा होता है उनके विचारों में विरोध होता है। कई बार झगड़ा इतना बढ़ जाता है, मारपीट तक हो जाती है। घर भी टूट जाते हैं और कई बार, कुछ दंपति मौत को भी गले लगा लेते हैं। ऐसे समय में ही, एक को उस विष को पीना पड़ता है , जो तुम्हारे अंदर घट रहा है। झगड़ा किसमें नहीं होते ? किंतु उस पल को वहीं  रोक देना अच्छा होता है , मोेन रहकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है किंतु न समझने वाला तो बोलने की भाषा भी नहीं समझेगा।

ऐसे ही कुछ पल लोगों की ज़िंदगी में आते हैं ,जहाँ बात आन पर आ जाती है ,ख़ामोशी ''और समय उसका जबाब होते हैं। कभी -कभी तो ताउम्र भी सवालों के जबाब नहीं मिलते किन्तु घर ढ़हने से बच जाते हैं। अलग होकर ,लड़कर भी क्या हो जाता है ? नए सवाल उठ खड़े होते हैं जिनके जबाब बाहरी दुनिया में भी नहीं मिलते। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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