तबियत खराब होने के कारण ,अचानक ही प्रेम , घर आ पहुंचा ,जिसकी सरस्वती को उम्मीद ही नहीं थी ,उसने अपने दोस्त को मिलने के लिए, घर पर बुलाया था। प्रेम ने ,अपनी बहन से प्रश्न किया -कि यह कौन है ? सरस्वती उसके प्रश्न से बचना चाह रही थी, किन्तु उसके बार -बार पूछने पर, तब वह अपने दोस्त का परिचय कराने के लिए प्रेम से बोली -यह 'अरशद' है , मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था। 'अरशद 'यह मेरा छोटा भाई है, प्रेम !
हेलो ! कहकर उसने हाथ आगे बढ़ाया किंतु प्रेम ने ,उससे हाथ नहीं मिलाया -मेरी तबीयत ठीक नहीं है, कहकर वह कमरे में चला आया।
'अरशद' सरस्वती से बोला -मुझे भी देर हो रही है, मैं भी चलता हूं।
सरस्वती को जैसे, प्रेम के आने की, उम्मीद ही नहीं थी, कि वह इस तरह अचानक आ जाएगा। प्रेम को भी, सरस्वती से ,इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। प्रेम के आते ही, वहां का वातावरण काफी बोझिल सा हो गया। सरस्वती,अब अपने दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी।
क्यों, अब तो तुम लेट हो गई हो ?चिढ़ते हुए प्रेम बोला।
तो क्या हुआ ? मैंने आधे दिन की छुट्टी ली थी ,कहकर चुपचाप तैयार होने लगी। शायद वह अपने भाई से नजरें नहीं मिला पा रही थी किन्तु अपनी हरकतों से शर्मिंदा भी नहीं थी।
तुम जानती हो, कि तुम शहर में अकेली रहती हो। तुम अब हॉस्टल में भी नहीं हो , क्या तुमने इसीलिए ये कमरा लिया था ?
तुम कहना क्या चाहते हो ?
मैं जो कहना चाहता हूं, वह तुम समझ रही हो। क्या यह उचित है ? मम्मी -पापा को पता चलेगा , तो क्या सोचेंगे ?
क्या सोचेंगे ? तुम अपना ज्यादा दिमाग मत लगाओ !
यह तुम्हारे कॉलेज में पढ़ता था, और तुम्हारी यह दोस्ती अब तक चली आ रही है , क्या तुम्हारी कोई महिला मित्र नहीं है।
बेवकूफों जैसी बातें मत करो ! हम पढ़े-लिखे लोग हैं, सभ्य समाज में रहते हैं। यह व्यर्थ की बातें मुझसे मत करो ! गांव के लोगों की यही छोटी सोच !तो उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है।
तुम कहना क्या चाहती हो ? जिस गांव के लिए तुम, ऐसा बोल रही हो ,तुम भी तो उसी गांव से आई हो। एक लड़की ,जो अपने परिवार से दूर, यहाँ शहर में रह रही है ,वो किसी भी अनजान पुरुष को अकेले में, अपने घर बुलाती है ,क्या यह तुम्हें उचित लग रहा है ?यदि इसे बुलाना ही था ,तो कहती -जब मेरा भाई आ जायेगा ,तब तुम घर आना। क्या लोग अब कुछ नहीं कहेंगे ?भाई के साथ रहने में परेशानी हो रही थी। यह छोटी सोच नहीं है , यह हमारे संस्कार हैं , जो इस तरह की स्वतंत्रता की भर्त्सना करते हैं।तुम्हारे मन में कोई खोट नहीं था ,तो तुमने इसे मेरे सामने क्यों नहीं बुलाया ? इसके कारण आज तुमने छुट्टी ली। ऐसा क्या विशेष रिश्ता है ? कहीं ऐसा तो नहीं, इसी के कारण ,तुम्हें मेरा यहाँ आना सुहाया नहीं।
तुम थोड़े -बहुत पढ़े तो हो, किंतु दिमाग तुम्हारा वहीं का वहीं है , संकीर्ण दिमाग लिए बैठे हो, छोटी सोच है , इससे आगे नहीं बढ़ पा रहे हो।
तुम्हारी तो जैसे बहुत बड़ी सोच है ,गांव से भाई आता है शहर में पढ़ने के लिए, बहन का माथा ठनक जाता है , और वह चाहती है -'कि यह यहां से शीघ्र से शीघ्र चला जाए और एक अनजान इंसान को , अपने कमरे में बिठाकर , उससे बतिया रही है। हंस -हंसकर बातें कर रही है। यह तुम्हारी सभ्यता है , इसलिए तो मम्मी पापा ने तुम्हें पढ़ाया था क्योंकि हम तो संस्कारहीन व्यक्ति हैं। पिछड़े हुए हैं और तुम पढ़ी-लिखी ! बहन भाई एक साथ रह रहे हैं, तो लोग क्या कहेंगे ? और जब एक अकेली लड़की, किसी को अपने घर पर बुलाती है, उससे बतियाती है, तब लोग कुछ नहीं कहेंगे ! जब प्रेम कमरे के अंदर पहुंचा तो कमरे की हालत देखकर, वह परेशान हो उठा, कुछ समझ नहीं आ रहा। कहीं मैं कुछ ज्यादा ही तो नहीं सोच रहा , अपने आप से ही लड़ने लगा।
प्रेम ने महसूस किया, सरस्वती ने ,आज तक मुझसे हंसकर तो क्या ? ठीक तरह से बात भी नहीं की , और यह इंसान इस घर में ऐसे बैठा है जैसे यह घर इसी का है। आज तक इसके कोई भी दोस्त यहां नहीं आए, और आया भी तो यह अरशद ! क्रोध से, प्रेम का ''खून खौल रहा था'' किंतु बड़ी बहन है, क्या कह सकता है ? यह सब मम्मी -पापा को तो बताना ही होगा। वह अपना सिर दर्द भूल गया किंतु यह दूसरा सर दर्द, न जाने कहां से आ गया ?वह कमरे से बाहर यह पूछने के लिए आया -क्या तुझे पूरी दुनिया यही 'अरशद' मिला था ?किन्तु किससे कहता ?वो तो जा चुकी थी।
प्रेम को शहर में आए अभी एक सप्ताह ही हुआ है, और वह नहीं चाहता था कि माता-पिता को कुछ भी पता चले। किंतु घरवालों से, ऐसी बात छुपाना भी,तो गलत है। यह बात, हम सभी के जीवन पर गहरा असर छोड़ेगी। मुझे घर वालों से बताना ही होगा। तब वह एक टेलीफोन बूथ से, अपने घर फोन लगाता है। वहां उसके पापा ने फोन उठाया था -हेलो !
पापा ! मैं प्रेम बोल रहा हूं। आप लोग कैसे हैं ?
हम दोनों ठीक हैं, तुम दोनों कैसे हो ?
हम भी ठीक ही हैं,
बेटा !अपनी बहन का ख्याल रखना , कोई परेशानी हो तो मुझे फोन करना। कोई दिक्कत तो नहीं है।
नहीं आपके रहते हुए, हमें क्या परेशानी हो सकती है ?
और सरस्वती का काम कैसा चल रहा है ?वो कैसी है ?
वह कोई व्यापार थोड़े ही ना कर रही है, उसकी तो नौकरी है, अब जो भी उसे काम आता होगा उसके आधार पर नौकरी करती है और उसका उसे वेतन मिल जाता है।
और कोई विशेष खबर!
प्रेम उन्हें बता देना चाहता था, कि उनकी बेटी ,अब उनकी नहीं रही है ,वह बहुत बदल गयी है ,किंतु अभी वह उनके रिश्ते को, समझना चाहता था कि बात कहां तक पहुंची ? हो सकता है, घरवालों को बताएं बिना ही ,काम बन जाये। उन्हें बताना न पड़े और परिस्थितियों को वही संभाल ले। यही सोचकर प्रेम बोला -कुछ भी तो नहीं ,ठीक है किंतु आप यह बताइए कि कोई अच्छा सा लड़का आपको मिला या अभी देख ही रहे हैं ।
कोशिश में तो लगे हुए हैं, जैसे भी कहीं भी कहीं कोई बात बनती है तो तुम्हें फोन करते हैं।