Chitthiyan

 न जाने कब, कैसे लिखती होगी ?वह चिट्ठियाँ  !

माना कि मैं उससे दूर, कैसे सहती होगी दूरियां!

डुबो देती होगी, वो अपनी कलम में, मजबूरियां!

हृदय के भावों को सहेजती, लिखती होगी चिट्ठियां !



इसका एक-एक मोती मेरे लिए अनमोल है। 

ढूंढती होगी ,कभी यहां -वहां मुझे न पाने पर,

डूब जाती होगीं, मेरी याद में उसकी अखियां !

कागज पर सोच मुझे, लिखती होगी ,चिट्ठियां !


इक दूजे से दूर हम, हृदय खोलकर रख देती होगी, 

करीब होने का अहसास देतीं ,लिखती जब चिट्ठियां !

मुझको,अपने पास पाती,मुझे  रुलाती हैं , चिट्ठियां  !

सामने तो लड़ती हो ,फिर लिखती हो चिट्ठियाँ !


मिले आज, दिन हुए बहुत, भावों को सहेजे हुए 

आओ ! आज मिलकर दोनों पढ़ते हैं , चिट्ठियां  !

दूर चले जाने पर, साथ निभाती हैं, यही चिट्ठियां !

खोल रख देतीं, हृदय के भाव अनमोल ये चिट्ठियां !


उसके आने पर , महकी सी बयार लगती है। 

धड़कने बढ़ जातीं ,पढ़ने को आतुर लगती हैं। 

 बंद लिफ़ाफे में ,न जाने कितने अनमोल मोती !

बिन बोले ही ,कितना कुछ कह जाती हैं ?चिट्ठियां !

२ -

कितना कुछ ,सहती होगी ?

बिन मेरे, उसकी सूनी रातें ! 

मेरे बिन ,उसके दिन उम्मीदें !

नित नई आशाओं से भर्ती होगी।

तकती होगी ,राह मेरी..... ,

सोच मुझे ,शरमाती होगी।

तब ,'चिट्ठियाँ 'लिखती होगी।   

वो ! कितना कुछ सहती होगी ? 

अपूर्ण स्वप्न ले ,आगे बढ़ती होगी। 

मेरेा प्रेम, अपनी कोख में संभाल ,

कभी तो.......  आहें भरती होगी।   

आऊंगा मैं ,उम्मींदें जगती होगीं। 

दर्द सह  ,सब  जाती होगी। 

कांधा भी, उसके पास नहीं ,

किसके सीने पर सिर रख रोती होगी? 

सिरहाने को, सीने से लगा। 

एहसास मेरा ,वो करती होगी। 

जन्म दिया ,उस नवजीवन  को ,

आखिर पीड़ा, कैसे सही होगी ?

मेरी प्रतीक्षा में पल -पल !

 कैसे, दिन गिनती होगी ?

आऊंगा मैं ,उम्मींदें जगती होगीं।

वो अकेली,कितना कुछ सहती होगी?  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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