दहेज नहीं तो शादी नहीं [3]

भाग 5 -

श्वेता के पिता दीनानाथ जी जानते थे, कि ''दहेज देना और लेना दोनों ही अपराध हैं '' किंतु वह समाज व्यवस्था के कारण अब हताश हो चुके थे।  वह जान चुके थे, कि बिना 'दहेज' के अपने  के लिए दामाद ढूंढना 'भूसे के ढेर में सुई के बराबर है।' किंतु जब उन्होंने लड़के वालों का व्यवहार देखा ,उनकी अन्य बातें सुनी और उनका झूठ देखा ,तब उन्होंने इस रिश्ते को इनकार कर दिया। क्या रिश्ते को इनकार कर देना ? इस समस्या  का हाल था ? इतनी बड़ी रकम देने के पश्चात भी, वह लड़के वाले को संतुष्ट नहीं कर पा रहे थे क्योंकि महंगाई बढ़ रही है, इसलिए लड़के वालों की अपेक्षा उनसे कुछ अधिक ही थी। 

जाने श्वेता की किस्मत थी या दीनानाथ जी का कोई पुण्य कर्म ! श्वेता एक शादी में गई थी। वहीं पर उसने श्वेता को देखा था। श्वेता ने इतना ध्यान नहीं दिया था, किंतु बाद में उसकी चचेरी बहन ने बताया -कि एक लड़का है, जिसे श्वेता बहुत पसंद है, वह उससे शादी करना चाहता है। 


यह सुनकर, श्वेता के परिवार में एक उम्मीद जगी, तभी दहेज की बात सोचकर, उनका मन फिर से उदास हो गया। तब उस लड़की ने बताया-' यह बात उनसे मैंने पहले ही स्पष्ट कर दी थी ,उनसे ज्यादा दहेज की उम्मीद न रखें। 

इससे पहले की ,उसके परिवार वाले कुछ बोलते ,उस लड़के ने स्पष्ट कह दिया -मुझे उस लड़की से विवाह करना है ,दहेज से नहीं, इसलिए मैंने आप लोगों से संपर्क किया है , यह सुनते ही, श्वेता के परिवार वालों में खुशी की लहर दौड़ गई। अभी तक उन लोगों ने उस लड़के को नहीं देखा था, देखा भी हो, तो ध्यान नहीं गया होगा  किंतु अब उस' हस्ती 'को देखने की इच्छा हो रही थी, जो उनकी इतनी बड़ी समस्या हल करने जा रहा था। एक समय तय किया गया और उस दिन लड़के को देखने के लिए उसके घर पहुंचे।

समर , देखने -भालने में बहुत अच्छा था, बड़ों की इज्जत- सम्मान सब समझता था। उसे इस बात की खुशी थी कि श्वेता के पिता आए हैं। समर एक कंपनी में नौकरी करता है, दीनानाथ जी को और क्या चाहिए ? उन्हें जो भी अपनी बेटी को देना है ,वह तो देना ही है। बस इस बात की प्रसन्नता थी कि उनकी कोई मांग नहीं है हालांकि समर की मां का व्यवहार उन्हें ,थोड़ा ठीक नहीं लगा। किंतु इस बात को उन्होंने नजर अंदाज किया, उन्हें एक अच्छा दामाद मिल रहा था और क्या चाहिए ? 

यह बात आकर उन्होंने जब श्वेता की मम्मी को बताई ,तो वो घबरा गयीं बोलीं -कहीं ऐसा तो नहीं ,वो इस रिश्ते से नाराज हों ,बेटे की पसंद के सामने कुछ न कह पा रही हों।कहीं ,हमारी बेटी को परेशान न करें।  

ऐसा हो भी सकता है ,किन्तु हमारी बेटी लड़के को तो पसंद है ,हर किसी की पसंद नहीं हो सकती ,जिन्हे हम पसंद नहीं अपनी सोच और अपने व्यवहार से उनकी सोच  को बदला भी तो जा सकता है।

समर के परिवार वाले, श्वेता को देखने आए और साथ के साथ उसकी गोद भी भर गए। अब तो घर में खुशियां भर गई और विवाह की तैयारी होने लगीं। 

 विवाह की बातें सुनकर उनकी एक रिश्तेदार ने हीं बताया कि मैं समर की मां को अच्छे से जानती हूं। वह बहुत ही कठोर स्वभाव की है, जिसके कारण उसके बेटे का विवाह नहीं हो रहा था। यह अच्छी बात है, कि उनके बेटे को तुम्हारी बेटी पसंद आई है, किंतु उसकी मां से बचकर रहना होगा। यह सुनकर, श्वेता की मम्मी को चिंता होने लगी, किंतु तुरंत ही अपने मन को समझाया -हर जगह, हर चीज नहीं मिलती इसलिए बेटी को समझाया -अपने व्यवहार से मान-सम्मान से, प्यार से उनका दिल जीत लेना !

भाग ६ -

अच्छा दहेज देने के कारण, कृति के पिता को एक अच्छा दामाद मिल गया था। उन्हें लगता था ,कि वह इस रिश्ते को अच्छे से निभाएगा। कुछ हद तक यह बात सही भी थी, माता-पिता का आज्ञाकारी बेटा है , नहीं भी निभाना चाहेगा, तो माता-पिता निभाने के लिए उसे मजबूर करेंगे क्योंकि कृति  एक पैसे वाले परिवार से की बेटी थी। खूब सारा दहेज भी लाने वाली थी। हर इंसान किसी कार्य को करने से पहले ,अपना लाभ और अच्छा ही सोच कर ही आगे बढ़ता है किंतु उसका परिणाम क्या होता है ,यह तो समय पर निर्भर करता है ? कृति के ससुराल में आते ही, सभी रिश्तेदारों ने बहुत प्रशंसा की सभी खुश हुए। खूब धूमधाम से शादी हुई, खाने वाले खाना खाकर चले गए। बेटियां अपने घर चली गई, नौकरी वाले नौकरी पर चले गए। रह गए तो बस , कृति और कृति के ससुराल वाले। 

कृति के आते ही, घर में कामवाली भी लग गई थी, सब कुछ इसकी सुविधा को देखते हुए हो रहा था। उससे बड़े प्यार से बातें की जा रही थीं । कृति ने भी उस परिवार को स्वीकार कर लिया था।हालाँकि लड़के वालों का भी बहुत खर्चा हुआ था। उनके स्तर के हिसाब से ही सोचकर खर्चा किया था। घर में 'हाथी बांधने 'जो जा रहे थे। कृति के सामान कपड़े बहुत महंगे थे।  अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था जो कृति को अच्छा न लगे। 

उसका पति, कम ही बोलता था शायद उसे हिचक थी कि वह कुछ बोले और कृति को पसंद न आए या कुछ ऐसा बोल दे ! कृति के लिए उपहास का पात्र बन जाए। दोनों का विवाह हो चुका था किंतु एक दूसरे की पसंद, नापसंद के विषय में कुछ नहीं जानते थे। कृति तो यहां भी अधिकार से रहने लगी थी ,उसे लगता था कि उसके पापा ने उसकी खुशियों के लिए इतना पैसा खर्च किया है , इस घर की बहू भी है , अधिकार  से रहने का, उसका हक भी बनता है। हनीमून के लिए दोनों को बाहर भेजा गया ताकि दोनों एक दूसरे को ठीक से समझ सकें। वहां उसके पति को पता चला-कृति को घूमना , दोस्तों के संग रहना पसंद है ,कभी-कभी वह शराब भी पी लेती है।

 घर -गृहस्थी  में फंसना उसे पसंद नहीं है, पति की सेवा करना ,उसके लिए खाना बनाना, इन सब चीजों में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है। उसने बताया -कि इन सबसे ऊपर भी, हमारी  जिंदगी होती है। पति के ही आगे -पीछे घूमने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। यह सब विनय को पता तो चल गया किंतु विनय ने, अपने माता-पिता से कुछ भी नहीं कहा, उसने सोचा -यदि वह कुछ कहता है ,तो उसके माता -पिता  कुछ ना कुछ उसके लिए नया उपाय सोच लेंगे ,उसे ही समझाने का प्रयास करेंगे इसलिए उसने सोचा- समय ही ,उनको यह सब बतायेगा।

 हुआ भी ऐसा ही, विनय की मां ने बड़े प्यार से ही अपनी बहू को समझाया -अब उसे घर गृहस्थी की ओर ध्यान देना चाहिए इस बात से कृति एकदम नाराज हो गई ,उनके रिश्ते बिगड़ने लगे। अब उन्हें दहेज में आया पैसा भी ,व्यर्थ नजर आ रहा था। कुछ दिन ही उसकी रौनक रही, किंतु कृति के जीवनभर के ताने हो गए। मेरे पिता ने तुम्हें यह दिया और वह दिया। तुम्हारे घर में ,था ही क्या ?विनय बहुत निभाना चाहता था-उसने उसे बहुत समझाना भी चाहा, किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। 

 तब विनय ने अपने माता-पिता से कहा -विवाह धन से नहीं, दो लोगों की जिंदगी का सवाल होता है। उनके आचार- विचार ,उनके व्यवहार, उनकी सोच उनका तालमेल होता है। किंतु तुम लोगों ने, धन के लालच में आकर मेरा विवाह एक ऐसी लड़की से करा दिया जिससे मेरी सोच तनिक भी नहीं मिलती है। न ही वह मुझे पसंद करती है,प्यार करना तो दूर की बात है।  मुझे हमेशा ताने और उलहाने सुनाती है। मुझे ऐसी पत्नी चाहिए थी जो मुझसे प्यार करें, मेरा सम्मान करें जितना मैं कमाता हूं , उसकी कीमत समझे ! किन्तु कृति की नजरों में मेरी नौकरी, मेरी कमाई की कोई कीमत नहीं है। ऐसे रिश्ते जुड़ तो जाते हैं, किंतु ढ़ोने पड़ते हैं , निभाने पड़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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