Qabr ki chitthiyan [part 43]

अंशुल अपनी क़ब्र देखकर घबराया और वो अपने कमरे से बाहर भागा ,तब उसे आर्या दिखलाई दी,वो जानता था,आर्या मर चुकी है ,तब वह चिल्लाया -आख़िर तुम क्या चाहती हो ?तब आर्या ने अंशुल से कहा -''तुम ,अब ये लिख दो ! क़ब्र की चिट्ठियां अब ख़त्म हो चुकी हैं।'' आर्या के कहने पर अंशुल ने ऐसा ही किया और एंटर का बटन दबा दिया ,उसके ऐसा करते ही, एक पल को सब रुक गया,हवा स्थिर हो गई,लाइटें बुझ गईं,फिर, एक हल्की सफ़ेद रोशनी ने कमरे को भर दिया।

आर्या मुस्कुराई -“धन्यवाद।”वो धुंध में घुल गई,फाइल अपने आप बंद हो गई,डेस्कटॉप खाली था,कोई फाइल नहीं,अंशुल ने यह देखकर राहत की साँस ली।“चलो !अब ये सब खत्म…हो गया। ”

लेकिन तभी, प्रिंटर अपने आप चल पड़ा,उसमें से एक पन्ना निकला।उस पर सिर्फ़ एक लाइन लिखी थी —“हर अंत… एक नई चिट्ठी है”उसने पन्ना उठाया,और पढ़ने लगा -नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था —“भाग 43 – अंतिम पाठक।”


वो काँप उठा,पीछे दीवार पर एक परछाई बनी —अब सिर्फ़ एक नहीं,बल्कि कई…चेहरे नजर आ रहे थे ,हर वो चेहरा जो कहानी में कभी था।काव्या… आर्या… विराज… नलिनी… और अब अंशुल,सभी एक साथ बोले —“कहानी कभी खत्म नहीं होती,बस लेखक बदलता है। ''

यह वही हिस्सा है जहाँ हर रहस्य खुलता है,जहाँ यह कहानी तय करती है कि वह मर जाएगी या अमर हो जाएगी। अब इस भाग में “कहानी” और “वास्तविकता” की सीमाएँ एक-दूसरे में विलीन होंगी।अब सिर्फ़ एक प्रश्न शेष रहेगा —क्या पाठक ही असली लेखक है ? रात्रि  के 3:00 बजे थे “इनसाइट पब्लिकेशन” की इमारत खाली थी ,अंधेरे में बस एक मॉनिटर चमक रहा था —उस पर फाइल खुली थी:-क़ब्र की चिट्ठियाँ .डॉक्स ''

अंशुल के कमरे में, अंशुल के सिस्टम का कर्सर झपक रहा था ,पन्ना खाली था किन्तु वहां अंशुल नहीं था।उसकी कुर्सी खाली थी, लेकिन उसकी जैकेट अभी भी उसकी कुर्सी के पीछे लटकी हुई थी।कप में आधी कॉफी ठंडी पड़ी थी और स्क्रीन पर एक लाइन धीरे-धीरे अपने आप उभर रही थी —“अब कौन पढ़ रहा है?”

उस पल, कोई और मौजूद था,कोई जो अभी-अभी इस कहानी को पढ़ रहा था,शायद-'' तुम।''

फाइल की चमक में जैसे स्क्रीन ने एक नया चेहरा पकड़ लिया था।एक ऐसा चेहरा जो न कैमरे में था, न ऑफिस में,बल्कि उस पाठक के दिमाग में —जो “कब्र की चिट्ठियाँ” के अंतिम हिस्से तक पहुँचा था,स्क्रीन ने हल्का कंपन किया,कर्सर की जगह अब एक शब्द लिखा था —“पाठक जुड़ें ”

कहीं से एक ठंडी फुसफुसाहट आई —“अब तुम्हारी बारी है…”तुम्हारी उँगलियाँ अनजाने में माउस पर गईं,क्लिक किया —फाइल खुल गई।पन्ने पर वही पुरानी कहानी थी — काव्या, आर्या, अंशुल, हवेली, कब्र…लेकिन अब एक नया सेक्शन जोड़ा गया था —“Part 43  – लेखक: अनाम ”

नीचे लिखा था —“यह भाग अपने आप लिखा जाएगा,जब ‘अंतिम पाठक’ इसे पढ़ेगा।”स्क्रीन झिलमिलाई।कमरे में हवा ठंडी हुई ,एक धीमा गूंजता स्वर उभरा —जैसे कोई पुरानी रिकॉर्डिंग बज रही हो।“हर कहानी का एक पाठक होता है,हर पाठक एक लेखक भी होता है और हर लेखक —किसी पुरानी कब्र का अगला नाम।”

''ब्लैक हिल हवेली, जो वर्षों पहले जल चुकी थी,अब'' डिजिटल संग्रह'' में पुनः निर्मित की जा रही थी।''विरासत संरक्षित परियोजना ''के तहत,AI इंजीनियर उसकी 3D Model बना रहे थे।इस टीम की मुखिया यानि हैड,'' रैना भट्टाचार्य,'' रात को देर तक काम कर रही थी।उसने अपने कंप्यूटर पर एक पुरानी फाइल देखी —“क़ब्र की चिट्ठियाँ.डॉक्स”वो मुस्कुराई,“लगता है, किसी लेखक का सैंपल टेक्स्ट डल गया।”उसने क्लिक किया —और अचानक, कंप्यूटर स्क्रीन पर नीला प्रकाश फैल गया।उसके सामने उसी हवेली की डिजिटल दीवारें बनने लगीं ,लेकिन यह मॉडल उसकी बनाई हुई नहीं थी।ये अपने आप बन रही थीं  —हर ईंट, हर दरवाज़ा, हर कब्र वैसा ही था, जैसा पुराने रिकॉर्ड में था।

वो चौंकी, “ये कोड तो मैंने लिखा ही नहीं!”स्क्रीन पर संदेश उभरा —“आपने नहीं लिखा, आपने सिर्फ़ पढ़ा।”फिर आवाज़ आई -“रैना…  तुम्हें ब्लैक हिल याद है ?”वो सिहर गई।

“कौन बोल रहा है?”“कहानी !जो हर बार नए रूप में लौटती है।कभी काग़ज़ पर, कभी आत्मा में,और अब — कोड में।”

रैना की उंगलियाँ काँपने लगीं।उसने ‘शटडाउन ’का बटन दबाया,पर सिस्टम बंद नहीं हुआ।इसके बदले  स्क्रीन पर वही प्रतीक उभरा —“K – A”

“काव्या-आर्या…”उसने फुसफुसाया,“क्या ये वही श्राप है?”

आवाज़ ने जवाब दिया,“श्राप नहीं, उत्तराधिकार !अब यह तुम्हारे कोड में जिएगा,तुम अंतिम पाठक हो, रैना।”

“नहीं! मैं सिर्फ़ इंजीनियर हूँ!”

“हर इंजीनियर, हर लेखक, हर पाठक —सब वही करते हैं:-सृजन।”

सर्वर की लाइट्स टिमटिमाने लगीं,मॉनिटर्स पर दर्जनों फाइलें खुलीं,हर फाइल में वही कहानी थी किन्तु  हर बार अलग लेखक का नाम था। 

“लेखिका -आर्या मल्होत्रा ”
“लेखिका -काव्या सान्याल ”
“लेखक -अंशुल मेहरा ”
“लेखिका -रैना भट्टाचार्या ”

रैना घबरा गयी ,इतनी रात्रि में ,उसके सिस्टम पर ये सब क्या हो रहा है ?उसने दहशत में स्क्रीन को बंद किया, तभी एक आवाज़ फुसफुसाई —“कहानी बंद नहीं होती,बस लेखक बदलता है…”घबराकर रैना अपनी कुर्सी से उठकर दौड़ने लगी।वो कम्प्यूटर लैब से बाहर निकलकर गलियारे में पहुंची किन्तु वहां भी  हर स्क्रीन झिलमिला रही थी,हर डिवाइस में वही शब्द उभर रहे थे —''क़ब्र की चिट्ठिया.डॉक्स'' खुल रहा है …

भविष्य की यह डिजिटल दुनिया ,अब उसी आत्मा के जाल में फँस चुकी थी जो पहले स्याही और कागज़ में थी।भागते हुए ,रैना पार्किंग तक पहुँची,उसकी कार की स्क्रीन अपने आप चालू हो गयी ।GPS ने बोलना आरम्भ  किया —“गंतव्य ,ब्लैक हिल ”उसने झटके से गाड़ी की चाबी निकाली ,इससे पहले की वो चाबी का उपयोग करती, इंजन अपने आप चालू हो गया।

रेडियो पर वही पुरानी रेकॉर्डिंग चली —“हर अंत एक नई चिट्ठी है…”वो चीखी, “बस करो!!”लेकिन स्टीयरिंग अपने आप घूमने लगा।कार ने खुद रास्ता पकड़ा —ब्लैक हिल की ओर पहाड़ों की ढलान पर रात थी,बारिश की हल्की फुहारें गिर रही थीं।आसमान में बिजली चमकी,और पुरानी हवेली का मलबा रोशन हो गया।'ब्लैक हिल ''के करीब जाते ही गाड़ी अपने आप रुक गयी ,रैना गाड़ी से उतरी —उसके पैर मिटटी में धँस गए ,वो जोर से  चिल्लाई, “कौन है ,यहाँ?”

हवा से जवाब आया,“वो जो हमेशा रहती है,एक कहानी।”

अचानक, ज़मीन से रोशनी फूटी।एक पुराना बक्सा निकला —वही लौह-पेटी जिस पर खुदा था: ''वाच-सत्ता''रैना ने झुककर उसे उठाया और खोलकर देखा ,अंदर से एक फाइल निकली —कागज़ की नहीं,बल्कि काँच की टैबलेट,जिसमें शब्द खुदे थे —“आख़िरी चिट्ठी।”

स्क्रीन अपने आप ऑन हुई —उस पर लिखा था:“जिसने यह पढ़ लिया,वही कहानी का हिस्सा बन गया।”घबराकर रैना पीछे हटी,“नहीं! मैं कहानी नहीं हूँ!”लेकिन उसके चारों ओर हवा घूमने लगी,नीली लपटें उठीं। हवेली के मलबे से परछाइयाँ निकलीं —काव्या, आर्या, विराज़ ,अंशुल…और अब रैना।सबकी आँखें चमक रही थीं।

काव्या बोली,“हम सब पढ़ चुके हैं,अब तुमने पढ़ा है।”

आर्या ने कहा,“अब आख़िरी शब्द तुम्हारे हैं।”

रैना काँपते हुए पूछा -“क्या… मैं इसे खत्म कर सकती हूँ?”

'वाच-सत्ता' ने उत्तर दिया —“केवल वही कहानी खत्म कर सकता है,जो अपनी जगह कब्र में छोड़ दे।”

रैना ने चारों ओर देखा —मिट्टी, राख, हवा, और शब्द,फिर उसने धीरे से कहा,-“तो ठीक है… अगर यही तरीका है,तो मैं आख़िरी लेखक बनूँगी।”उसने टैबलेट उठाया,स्क्रीन पर उँगली चलाई —और टाइप किया:“कब्र से चिट्ठियाँ अब सदा के लिए मौन हो चुकी है।”एक पल को सब थम गया,हवा रुक गई,लपटें बुझ गईं।

काव्या मुस्कुराई और बोली -“अब कहानी ,शांत हो गई। ”

आर्या ने आँखें बंद कीं -“अंततःअब हमें मुक्ति मिलेगी। ”



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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