माता -पिता, बच्चे को पाल -पोषकर बड़ा करते हैं ,उनके भविष्य के सुनहरे सपने को लेकर ,रात -दिन एक कर देते हैं। वे परिश्रम क्यों करते हैं ? जानती हो ! मैं भी तो ,अपने परिवार से दूर ,यहाँ गांव में रहकर,कमा रही हूँ ,किसलिए ? अपने बच्चों की सुख -सुविधाओं के लिए ,ताकि मैं उन्हें वो सुख दे सकूँ ,जो शायद हमें न मिल सके। उनके सपनों की उड़ान में, किसी भी तरह का व्यवधान न हो। मैं अपने पति के संग अपने गृहस्थ जीवन में उनका सहयोग कर सकूँ ! हर माता -पिता का एक ही सपना होता है ,जो हम न कर सके,या हमें न मिल सका , वो हमारे बच्चों को मिले,हमारे बच्चे, हमसे ज्यादा उन्नति करें ।
सरस्वती के माता-पिता का भी यही सपना था, लड़की होने के बावजूद भी, वे उसे पढ़ाना चाहते थे ,उसे अपने ''पैरों पर खड़ा करना ''चाहते थे। ताकि वह अपनी ससुराल में जाकर भी सम्मान के साथ ''सिर उठाकर जी सके।'' हुआ भी ऐसा ही, उसने पढ़ाई भी की और नौकरी पर भी लग गई ,अब वे उसके विवाह की चिंता करने लगे और उसके लिए लड़का खोजने लगे। सब अच्छा हो रहा था। तब उन्होंने सोचा -उसके भाई को भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए , वह उससे छोटा था। उन्होंने उसे, उसकी बहन सरस्वती के पास भेज दिया किंतु सरस्वती उसे देखकर प्रसन्न नहीं हुई , बल्कि उसे अपने भाई पर क्रोध आया।
सामान्य दृष्टि से देखा जाए तो इतने दिनों पश्चात ,अपने भाई को देखकर उसे प्रसन्न होना चाहिए था बल्कि उसे अपने साथ रखकर ख़ुशी होती ,इस अनजान शहर में ,मेरे साथ मेरा भाई है। अपने पास रखना ,एक बहन का कर्त्तव्य भी बन जाता था किंतु उसने क्या किया ? वह अपने ही भाई से, उचित व्यवहार नहीं कर रही थी , बात-बात में उसे डपट देती थी और वह नहीं चाहती थी ,कि वह उसके साथ रहे इसीलिए उसने, प्रेम से स्पष्ट कह दिया -कि यदि तुझे यहां रहना है, तो अपने लिए कहीं और जगह देख ले! इसका क्या कारण हो सकता है ?
जैसा तुम बता रही हो, उसके आधार पर तो लगता है, वह अवश्य ही किसी लड़के से प्रेम करती है , हो सकता है - वह लड़का उसके साथ रहता है या उससे मिलने आता होगा ,और अब भाई के आने से उनके प्रेम में व्यवधान पड़ रहा था ,इसीलिए वह नहीं चाहती थी कि सरस्वती का भाई, उसके साथ रहे, परिणीति ने जवाब दिया।
तुम सही समझीं , नौकरी करने के पश्चात, हो सकता है, पढ़ते समय भी ,उसका उस लड़के से संपर्क रहा हो किंतु वह अब अपने ''पैरों पर खड़ी हो'' गई थी इसलिए उस रिश्ते को, साथ लेकर चल रही थी। अब तुम ही बताओ ! ऐसे समय में, एक बेटी का क्या फर्ज बनता है ?अक्सर घरवाले बड़े बच्चे की शिक्षा पर इसीलिए अधिक ध्यान देते है ,ताकि वह अच्छे से पढ़ -लिख जाये। तो छोटे बहन -भाईयों को स्वयं ही समझाने लगेगा ,उनके लिए एक रास्ता खुल जायेगा।
सरस्वती अब पढ़कर ,अपने परिवार से कटने लगी थी ,जबकि उसे उनका सहारा बनना चाहिए था। उससे क्या वे उसकी कमाई मांग रहे थे ? बस अपनी बेटी से एक उम्मीद लगा बैठे थे। अब उसे अपने वही रिश्ते, गलत नजर आ रहे थे। अपनी आजादी के विषय में सोचना ,अपनी एक अलग सोच रखना, गलत नहीं है किन्तु जिन्होंने तुम्हें पैदा किया ,इस दुनिया में लाये ,तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाया ,उनके प्रति भी तो उसका कुछ कर्त्तव्य बनता था या नहीं।
सामाजिक दृष्टि से देखा जाए,तो एक कुंवारी लड़की का इस तरह किसी भी लड़के से रिश्ता रखना गलत ही है, किन्तु मैं मानती हूँ -'ये उम्र ही ऐसी होती है ,कोई भी बहक सकता है।' ऐसे में क्या उस लड़की को अपने परिवार को इस तरह धोखा देना चाहिए या अपने रक्त के रिश्ते को क्या इस तरह भुलाया जा सकता है ? विवाह के पश्चात भी बेटियां ,अपने मायके वालों की परवाह करती हैं। उन्हें बार -बार फोन करके उनके हालचाल पूछती हैं। तब ऐसे नाजायज़ रिश्तों के कारण ,कैसे वे अपने सभी रिश्ते भुला देती हैं ? जो बेहद गलत है।
जब उसे , उसके माता-पिता ने इस काबिल बना दिया , तब उसका कर्तव्य बन जाता था कि वह अपने भाई के आगे बढ़ने में ,उसका सहयोग करती , उसे पढ़ाने में उसकी सहायता करती किंतु वह तो स्वार्थी हो गई थी, सिर्फ अपने विषय में ही सोच रही थी, या यह भी कह सकते हैं - कि वह ''प्रेम में अंधी हो गई थी।''इतने वर्षों का प्रेम ! भुला चंद मुलाकातों के प्रेम को ही सर्वोपरी मान बैठी थी । क्या उचित है, क्या अनुचित ? इसका फर्क ही भूल गई थी। तुमने देखा, वह कितनी स्वार्थी हो गई थी ?अपने प्रेमी के विषय में अपने माता-पिता से तब तक नहीं बताना चाहते थी , जब तक उसे उनके पैसों की आवश्यकता थी वरना उसे उनकी भी आवश्यकता नहीं थी। क्या उन्होंने उसे इसी दिन के लिए पाल-पोषकर बड़ा किया था, कि वह एक उम्र आने पर, उन्हें धोखा दे दे ! उनके विश्वास को ठेस पहुंचाएं।
वह अपनी बेटी के विषय में इस तरह की कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि वह शहर में रहकर क्या गुल खिला रही है किंतु उनकी पीठ पीछे कुछ तो हो रहा था। प्रेम जब भी आता, वह उससे कभी भी, छोटे भाई की तरह, प्यार से बात नहीं करती।
एक दिन प्रेम ,सरस्वती के व्यवहार से परेशां होकर,बोला -दीदी ! मैं जब से यहाँ आया हूं, मुझे लगता है ,तुझे मेरा आना अच्छा नहीं लगा, मुझे देखकर एक बार भी खुश नहीं हुई और मुझे अलग रहने के लिए कह रही है। क्या तुझे अपने परिवार वालों के साथ रहने, का मन नहीं करता? मुझे यहां रहते हुए तीन दिन हो गए।एक दिन भी तूने मुझे ढंग से, भोजन बनाकर नहीं खिलाया। तीन दिन से मुझे मां, के द्वारा बना कर भेजा हुआ भोजन ही दे रही है। इससे पहले तू क्या खाती थी ? क्या तब खाना नहीं बनाती थी ? हवा में जी रही थी।
देख! मेरा इतना वेतन नहीं है, जो मैं तेरा खर्चा भी उठा सकूं। मैं अपने आप ही ,न जाने कैसे गुजारा कर रही हूं ?
क्यों ? इतना कम भी नहीं है, कि एक या दो आदमी का खर्चा न उठा सके किंतु मैं तुम पर बोझ नहीं बनूँगा मुझे तो पापा ने पहले ही पैसे दे दिए हैं, कह रहे थे -अपनी बड़ी बहन पर, किसी तरह का बोझ मत डालना ! और जब उसे पैसों की जरूरत हो , तो दे देना !
क्या ,पापा ने मेरे लिए पैसे भिजवाए हैं ?
नहीं, उन्होंने मुझे पैसे दिए हैं ताकि मेरे ऊपर जो तुम्हारा खर्चा हो, उसे मैं दे सकूं।
प्रसन्न होते हुए सरस्वती बोली- यह बात तूने मुझे पहले क्यों नहीं बताई ?
सरस्वती का ऐसा कौन सा प्रेमी है ?जिसके कारण सरस्वती अपने खून के रिश्तों को भी समझ नहीं पा रही थी। आख़िर वह इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है ?चलिए आगे बढ़ते हैं।