Balika vadhu [ 24]

प्रेम को अपनी बहन के पास आए हुए तीन दिन हो चुके थे लेकिन उसका व्यवहार उसके प्रति मधुर नहीं था। सरस्वती उसे तीन दिन से, मां के द्वारा भेजा हुआ खाना ही परोस रही थी। और जब प्रेम ने उससे कहा कि यह सही नहीं है। तब वह उससे कहती है-मैं तुम्हारा खर्चा वहन नहीं कर सकती हूं। तब उसे प्रेम ने बताया -कि पापा ने मुझे, खर्च के लिए पहले ही पैसे दिए हुए हैं तुम्हारे पैसे की कोई आवश्यकता नहीं है बस मैं तो अपनी बहन के साथ रहना चाहता था। दोनों को एक दूसरे का सहारा हो जाता। जब वह उसे बताता है-पापा ने पैसे दिए हैं , एकदम से खुश होकर बोलती है -यह बात तूने मुझे पहले क्यों नहीं बताई ?

तब प्रेम कहता है -उससे क्या हो जाता ? तब यह तुम्हारा स्वार्थी, व्यवहार तो मुझे नजर नहीं आता, जो अब दिख रहा है। मैं देख रहा हूं, न ही तुम्हें, मां माता-पिता की चिंता है और न ही मेरे आने की खुशी ! तुमने एक बार भी मुझसे मम्मी -पापा के विषय में जानना भी नहीं चाहा, कि वो कैसे हैं ?तुम्हें तो खुश होना चाहिए था, कि हम दोनों बहन -भाई साथ रहेंगे किंतु तुम नए-नए बहाने बनाकर, मुझे इस घर से बाहर कर देना चाहती हो। आज प्रेम को गुस्सा आ ही गया और उसने सरस्वती को बहुत कुछ सुना दिया। उसके क्रोधित होने पर सरस्वती को एहसास हुआ कि  कहीं तो , उसने अपने व्यवहार से बहुत बड़ी गलती कर दी है। 


तभी सरस्वती के फोन की घंटी बजती है, वह फोन देखकर, उसको बंद कर देती है। नहीं -नहीं, तुम अपना फोन उठा लो ! हम और हमारी बातें तुम्हारी जिंदगी में कोई महत्व नहीं रखते हैं। इसलिए तुम फोन उठा लो ! तुम्हारे लिए बाहरी लोग, बाहरी दोस्त ही महत्वपूर्ण हैं। अभी तक प्रेम यह नहीं जानता था, कि उसकी बहन के लिए किसी लड़के का फोन भी आ सकता है।जानना क्या था ?सोच भी नहीं सकता था।

  माता-पिता को अपना बच्चा, सीधा और सच्चा ही नजर आता है किंतु उसके जीवन में क्या चल रहा है ? या कुछ गलत भी हो सकता है, यह वह  सोचना  भी नहीं चाहता किंतु अब प्रेम को , सरस्वती के व्यवहार से थोड़ी शंका होने लगी थी। हो ना हो अवश्य ही इसकी  जिंदगी में, कोई ऐसा है ,जो हम लोगों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है , किंतु यह बात उसने अपने मन तक ही रखी। 

कुछ दिन तक घर में शांति रही , सरस्वती ने भी प्रेम से कुछ ज्यादा नहीं कहा। एक दिन प्रेम कॉलेज गया था। सरस्वती 8 :00 बजे घर से निकलती थी। प्रेम की 10:00 बजे क्लास होती थी और 4:00 तक वहीं  रहता था। किंतु आज वह 8:00 बजे ही कॉलेज के लिए निकल गया था।सरस्वती भी तैयार हो रही थी ,तब सरस्वती ने उससे कहा -यदि तुम मुझसे पहले आ जाओ ,तो चाबी बाहर जो पायदान है ,उसके नीचे रखकर जाउंगी ,ले लेना। 

ठीक है ,कहकर वो घर से बाहर निकल गया। अभी तक प्रेम का एक ही दोस्त बना था, वह उसके साथ अक्सर कॉलेज चला जाया करता था। आज अचानक ही , प्रेम को कुछ अच्छा नहीं लगा ,थोड़ा सर में भी दर्द हो रहा था ,लगता है, मेरी तबियत बिगड़ रही है ,मैं आज कॉलिज नही जा पाऊंगा। तू चला जा ! दवाई लेकर थोड़ा आराम करूंगा ,कहकर वह वापस घर लौट आया। घड़ी में समय देखा तो अभी 8:30 बजे थे सोचा-अभी दीदी घर से जा चुकी होगी, कोई दवाई लेकर आराम कर लूंगा इसलिए पहले वह दवाई लेने के लिए,दुकान पर गया। 

इस मोहल्ले में ,नए आये हो। 

जी....... 

कहाँ रहते हो ?

इसी गली का आख़िरी घर है ,आप मेरी बहुत छानबीन कर रहे हैं ,क्या यहाँ के प्रत्येक परिवार के लोगों को आप जानते हैं ?

मुझे यहाँ दुकान खोले हुए , तीस वर्ष हो गए हैं। मैं इस गली में ही नहीं ,आस -पास के लोगों को भी अच्छे से जानता हूँ क्योंकि आस -पास दवाइयों की कोई दुकान नहीं है, यह बात उसने बड़े गर्व से कही। 

अच्छी बात है ,आपके लोगों से अच्छे संबंध हैं ,आपने सही पहचाना !मैं यहाँ पढ़ाई करने आया हूँ ,यहाँ मेरी दीदी रहती हैं  ,उनके घर ही रुका हूँ।

किराये पर हैं ,क्योंकि वो घर तो मल्होत्रा जी का है ,आजकल घर को किराये पर देकर,अपने बेटे के पास रहने गए हैं। मैंने ही तो वो मकान उन्हें बताया था, मुस्कुराकर बोला -कमाने के लिए दो -चार जगह ''हाथ -पांव मारने ही पड़ते हैं। कभी -कभी लोगों की सहायता भी हो जाती है और मेरा पैसा बन जाता है।   

हाँ ,मल्होत्रा जी का ही घर है। तब उन्होंने प्रेम की तरफ देखाऔर उसे दवाई का लिफाफा थमाते हुए ,पैसे बता दिए। प्रेम ने ,उन्हें पैसे दिए और दुकान से बाहर आ गया। 

जब वह घर पहुंचा ,तो उसे चाबी तलाशनी नहीं पड़ी ,दरवाजा पहले से ही खुला हुआ था ,किन्तु अंदर से बंद था। मन में विचार आया ,क्या दीदी आज दफ्तर नहीं गयी ?सुबह मेरे सामने तो तैयार हो रही थी ,क्या उसकी तबियत भी तो, नहीं बिगड़ गयी ,तभी अंदर से किसी के हंसने की आवाज उसे सुनाई दी। कौन हो सकता है ?हो सकता है ,कोई दोस्त हो !यह सोचकर उसने दरवाजा खटखटाया किन्तु दरवाजा नहीं खुला। कुछ देर पश्चात जब दरवाजा खुला ,तो सामने सरस्वती घरेलू वस्त्रों में खड़ी मुस्कुरा रही थी ,जैसे ही दोनों की नजरें एक -दूसरे से टकराईं ,तो वह एकदम गंभीर हो गयी और छुपाते हुए भी उसके मन की घबराहट उसके चेहरे और शब्दों में आ ही गयी ,कांपते स्वर में बोली -तुम ! इतनी जल्दी कैसे आ गए ?

थोड़ी तबियत ठीक नहीं है ,कहते हुए अंदर आ गया। उसने देखा ,एक लड़का वहां पहले से ही बैठा हुआ था। प्रेम ने देखा ,ये लड़का ऐसे बैठा हुआ था जैसे अपने घर में हो। उसने कपड़े भी वही पहने हुए थे जो उस कमरे में, पहले से ही टंगे हुए थे और जिनके विषय में प्रेम ,सरस्वती से बार -बार पूछ रहा था।  सरस्वती एकदम शांत हो थी ,थोड़ी  हड़बड़ाई हुई थी। प्रेम ने ,सरस्वती की तरफ देखकर, उससे पूछा -यह कौन है ?

अब वह इंसान भी उठ खड़ा हुआ जो बहुत ही अनोेपचारिकता के साथ , सरस्वती से हंस -हंसकर बातें कर रहा था। वह इस तरह से बैठा था, जैसे कोई घर में बैठा रहता है। प्रेम ने अपनी बहन की तरफ देखा -वह सरस्वती भी, साधारण वस्त्रों  में ही बैठी थी। उसने कोई जबाब नहीं दिया। 

वहां का वातावरण देखकर ,प्रेम को जो भी लग रहा था ,वो अच्छा नहीं था किन्तु आँखों देखी, झुठलाया भी तो नहीं जा सकता। आपने जबाब नहीं दिया ,थोड़े सख़्त लहज़े में प्रेम ने पूछा -आप आज ,अपने दफ्तर नहीं गयीं। 

बातों को बदलने का प्रयास करते हुए ,सरस्वती बोली -अरे ! तुम इतनी जल्दी आ गए, तुम तो कॉलेज गए थे। 

यह बात आप मुझसे पहले भी पूछ चुकी हो ,कोई जबाब नहीं सूझ रहा। हाँ , जैसे तुम भी सुबह जाने के लिए तैयार हो रहीं थीं और मुझे अब यहां मिली हो। हां ,मैं भी गया तो था एक नजर उसने ,उस अनजान आदमी की  देखते हुए किंतु तबीयत ठीक नहीं लग रही इसलिए वापस आ गया। एक बार फिर  उसने इशारा  किया -कि यह कौन है ? 

यह व्यक्ति क्या वही  है ?जो सरस्वती को बार -बार फोन करता है। क्या यही उसका प्रेमी है ?क्या सरस्वती यह बात स्वीकार कर लेगी या फिर बहाने बनाएगी। आइये आगे बढ़ते हैं -'बालिका वधु 'के साथ। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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