Balika vadhu [8]

परिणीति, के एक लेख डालते ही, यह क्या हो गया ?लोगों ने बहुत टिप्पणी की और एक संस्था ''बचपन बचाओ ''के सदस्य एकदम सक्रिय हो उठे और उस गांव में जाने के लिए वहां पहुंच गए किन्तु मामले को बढ़ते देखकर ,इंस्पेक्टर मृदुल ने ,उन लोगों को ,वहीं रोक लिया और गांव में जाने ही नहीं दिया। तब वे लोग अपने तरीके से जानकारी जुटाना चाहते हैं ,और वहां के चायवाले से जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। किन्तु निराशा ही हाथ लगती है ,तब उनका सदस्य आकर बताता है -''आपस का गांव का मामला है ,एक दूसरे की बातें छुपाते ही होंगे। देखने में सीधा लग रहा है, पर है ,नहीं। 

कुछ पैसे देकर मान जाएगा , रहस्यमय तरीके से उसकी तरफ देखते हुए बोली। 

मुझे तो नहीं लगता, थाना भी नजदीक ही है। नजर बचाकर, हम में से एक गांव की तरफ निकल जाए बस वही सूचना ले आएगा । 




आखिर यह लोग समझते क्यों नहीं है ? इसमें हमारी क्या भलाई है ? यह बच्चे, देश का भविष्य हैं , इस तरह उनके बचपन को रोंदना सही नहीं है। हम तो इन लोगों के बच्चों के लिए ही तो सोच रहे हैं किंतु यह लोग समझना ही नहीं चाहते। 

सबसे बड़ी बात तो यह है, मुझे लगता है ,यहां कोई भी, मुंह खोलने वाला नहीं है  और वो इंस्पेक्टर उनका संरक्षक बना हुआ है। ऐसे समय में पुलिस हमारे साथ होती है किन्तु यहाँ मामला कुछ उल्टा है।  

चलो !शाम तक यह बात तो, पता चल ही जाएगी कि यहां कोई विवाह हो रहा है या नहीं। शाम तक तो हमें बैठना ही होगा।

 तब तक ,बहुत समय हो जाएगा, एक बार इंस्पेक्टर से बात करके देख लेते हैं, हमारे एक आदमी को ही गांव लेकर जाए और उस लड़की से मुलाकात करवा दे ,तो यह पता चल जाएगा कि यह विवाह लड़की की इच्छा से हो रहा है और उसकी उम्र कितनी है ? इतनी देर तक बैठने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। 

चलिए !मैं बात करके देखती हूं, थाने के बराबर में ही, एक टीन शेड पड़ा हुआ है, जिसके नीचे लोग बैठकर सुस्ता लेते हैं , या फिर बस की प्रतीक्षा करते हैं। वहीं पर कामिनी सिंह के अन्य साथी भी बैठे हुए हैं। कामिनी सिंह थाने के अंदर प्रवेश करते हुए, कहती है- इंस्पेक्टर साहब कहां है ? आज कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गए हैं।

 हवलदार राजेंद्र सिंह ने कामिनी सिंह को कुर्सी देते हुए कहा -साहब !अभी आ रहे हैं। मैं ही उनसे जाकर मिल लेती हूँ , आगे बढ़ते हुए वह बोली। 

आप रुकिए ! मैं उनसे पूछ कर आता हूं , कहते हुए वह अंदर गया। 

साहब ! उस संस्था की कामिनी सिंह जी आपसे मिलना चाहती हैं।

 हां उन्हें अंदर ले आओ ! इंस्पेक्टर मृदुल ने, सहजता से कहा। अब वह जानता है, कि उसे क्या कहना है ?

आईये ! कामिनी सिंह जी, कहते हुए कुर्सी पर बैठने का इशारा किया , और बोला-आप मुझे यह बताइए !कि आप क्या चाहती हैं ?

हम एक बार उस लड़की से मिलना चाहते हैं, उसकी उम्र और उससे बातचीत करके पता चल जाएगा कि यहां कोई भी गलत कार्य तो नहीं हो रहा है।

 गलत कार्य तो हो ही नहीं रहा है, हमारे रहते तो, कोई गलत कार्य हो ही नहीं सकता किंतु इस गांव के लोग ऐसे हैं कि वह कानून को भी नहीं मानते, वहां पर' पंचायत का कानून 'चलता है। लेकिन आप यह सोचिए ! जिस चीज की जानकारी हमें नहीं है, उस महिला को कैसे हुई ? या कोई भी ,कुछ भी लिख देगा और आप लोग सक्रिय हो जाएंगे यह तो उचित नहीं है। 

उसके लेख से पढ़कर लग रहा था, कि उसने कुछ भी गलत नहीं लिखा है। बस वह हम लोगों को जागरूक करना चाहती थी। जिसमें आपका भी उल्लेख है, क्योंकि आपने उनकी रिपोर्ट  जो नहीं लिखी। यह कार्य तो आप कर सकते थे न...... या उसके लिए भी आपको गांव वालों ने रोका था। एक गहरी नजर इंस्पेक्टर के चेहरे पर डालते हुए कामिनी सिंह ने पूछा। 

आपको जैसा लगे, वैसा समझिए ! यदि मैं आपको समझाना चाहूंगा और आपको समझना नहीं है तो समझ ही नहीं सकेंगी , इसलिए समझाना व्यर्थ है। अब आप, मुझसे मिलने क्यों आई हैं, मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं ?

हम चाहते हैं, कि एक बार उस लड़की से मिल लें। हमारा संशय  दूर हो जाएगा और हम लोग चले जाएंगे। वैसे इतनी बड़ी बात, कोई ऐसे नहीं लिख देता।

इंस्पेक्टर कुछ देर तक सोचता रहा और फिर अचानक उठ खड़ा हुआ और बोला -आप में से कौन मेरे साथ चलना चाहेगा ? कहते हुए वह फुर्ती से आगे बढ़ गया क्योंकि मैं नहीं चाहता कि यहां पर किसी भी प्रकार का उत्पात मचे गांव वाले पहले से ही, शहर के लोगों से कटे से रहते हैं। इस तरह की कुछ भी दुर्घटना हुई तो उनका कानून से भी विश्वास उठ जाएगा। इंस्पेक्टर मृदुल अपनी मोटरसाइकिल निकालता है। 

तब तक कामिनी सिंह अपने लोगों के करीब आकर पूछती है, हम लोगों में से किसको वहां जाना चाहिए ? 

मैडम! आप ही चली जाइए ! एक महिला ,महिला से बात कर सकती है। 

मेरे साथ यह सरोजिनी भी चल सकती है, सरोजिनी चलकर, आगे आती है तभी इंस्पेक्टर को मोटरसाइकिल पर देखकर, कहती है -यह इंस्पेक्टर भी कम नहीं है। जीप नहीं निकाली मोटरसाइकिल से लेकर जा रहा है। 

मुझे तो लगता है, यह भी मिला हुआ है और यह सब जानता है।

वही हम भी सोच रहे हैं, सभी एक साथ बोले। 

कहीं ना कहीं तो आग लगी है, तभी तो धुआँ दिखलाई दे रहा है। अच्छा ,अभी मैं चलती हूं, आकर  खबर सुनाती हूं। 

शहर की सड़क से वह गांव अत्यंत अंदर था, यदि आदमी  पैदल जाए तो कम से कम उसे गांव पहुंचने में आधा घंटा लग जाएगा, हां, यदि किसी वाहन से जाता है, तो 15:20 मिनट में पहुंच जाएगा।

जब वे लोग गांव के लिए निकले, और गांव के करीब पहुंचे , लोग उन्हें  देख रहे थे , गांव में यह खबर तो पहले ही फैल चुकी थी कि किसी '' बचपन बचाओ'' संस्था के लोग आए हुए हैं और वह इस विवाह के खिलाफ कार्यवाही करना चाहते हैं । जब वे लोग गांव के अंदर पहुंचे , तो उन्हें ऐसे देख रहे थे, जैसे चिड़ियाघर में, जानवर को देखते हैं। धीरे-धीरे ,जैसे-जैसे वह लोग गांव के अंदर गए अच्छी  हवेलियाँ  और मकान नजर आने लगे। इंस्पेक्टर साहब ! इस गांव को देखने से तो लगता है ,कि ये  लोग ज्यादा पिछड़े हुए नहीं हैं।

 वह तो मैं , आपसे पहले ही कह रहा था, कि यह लोग पढ़े -लिखे हैं, नौकरी भी करते हैं , भला यह क्यों ? अपनी बच्चियों का भविष्य अंधकारमय  होने देंगे। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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