प्रातः काल ही ,परिणीति के फोन की घंटी घनघना उठी। आज सुबह-सुबह ही किसका फोन आ गया ? उसने घड़ी में समय देखा ,सुबह के छह बज रहे थे। न ही खुद सोते हैं ,न ही सोने देते हैं। यह सोचते हुए, उसने फोन उठाया और उसमें सुनीता का नाम देखकर, थोड़ा मुस्कुराई , अलसाते हुए बोली -हेलो ! आज सुबह-सुबह कैसे फोन किया ?
फोन की बच्ची, तू तो आराम से सो रही है और यहाँ हमारी नींद उड़ गयी है। तूने यह क्या कर दिया ?
कुछ भी न समझते हुए, परिणीति ने पूछा- मैंने क्या किया ?
इतना बड़ा कांड करके मुझसे पूछ रही है, कि मैंने क्या किया ? तूने यह कार्य करने से पहले ,एक बार भी नहीं सोचा कि इसका परिणाम क्या हो सकता है ?
तभी जैसे परिणीति की आंखें खुली, और उसके मन में विचार आया, हो ना हो ,यह उस लेख के विषय में बात कर रही है , क्या हो गया ?पहले लापरवाही से बोली।
तू वहां आराम से सो रही है , और यहां मेरी नींद हराम हो गई है। चौधरी साहब ने सुबह-सुबह,अपने आदमी भेजकर, मुझसे पूछवाया था कि तुम्हारी बहन कहां है ? वह तो मैंने कह दिया कि अपने घर गई है, वह यहां नहीं है।
तब क्या परेशानी है ? क्या वे लोग ,तुझे धमका रहे थे ?
मुझे धमका नहीं रहे थे, किंतु तू तो वहां चली गई और मेरी मुसीबतें बढ़ा गई , उनके सभी प्रश्नों के जवाब मुझे ही देने पड़ रहे हैं। मैंने सुना है ,तूने कोई लेख लिखा है। उसके कारण, उन लोगों की भी, मुसीबतें बढ़ गई हैं , आज उनकी बेटी का विवाह है , तुझे क्या जरूरत पड़ी थी ? तुझसे मैंने पहले ही मना किया था किंतु तू नहीं मानी। तुझे तो समाज -सुधारक बनने का जुनून सवार था। तूने यह भी नहीं सोचा ,कि उसका कितने लोगों पर असर होगा ? चौधरी साहब के पास इंस्पेक्टर साहब का फोन आया था - यह मामला अगर तूल पकड़ गया तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी। तभी तो कहते हैं अर्ध ज्ञान भी हानिकारक होता है।
इसमें ज्ञान कैसा लेना? मुझे स्पष्ट नजर आ रहा था कि उनकी कम उम्र की बेटी जो मात्र 8 साल की बच्ची का विवाह हो रहा था ,जिसका मैंने विरोध जतलाया किंतु तू तो जैसे उनके'' रंग में ही रंग गई है ''लेकिन मैं तो चुप नहीं बैठ सकती थी न...... इसीलिए मैंने यह कदम उठाया तूने देखा नहीं, वह इंस्पेक्टर भी उनका खरीदा हुआ आदमी है। उसने मेरी रिपोर्ट नहीं लिखी। जब उसने मेरी रिपोर्ट नहीं लिखी तो मैंने यह बात दुनिया को बतलाने में ही भलाई समझी।
तूने कुछ भी सही नहीं किया है, तूने सारा मामला बिगाड़ दिया है। बस यही सोच रही हूं उनकी बेटी का विवाह सही -सलामत ठीक से हो जाए ,उसमें कोई अड़चन न आए वरना मुझे यहां से भी नौकरी छोड़ कर जाना पड़ जाएगा।
क्या तू उन लोगों से इतना डरती है , तू एक सरकारी मुलाजिम है, वह तेरा कुछ नहीं , बिगाड़ पाएंगे।
अब तक ही, उन्होंने कौन सा कष्ट दिया था किंतु तेरे कारण मुझे ,उनके सवालों के जवाब देने पड़ रहे हैं।मैं अकेली चौधरी साहब की ही नहीं ,वरन सम्पूर्ण गांव के कोप का भाजन बन जाउंगी।
मेरी एक बात समझ में नहीं आ रही, मैं जानती हूं ,मैंने जो कुछ भी किया, वह सही किया किंतु तू क्यों परेशान है ? क्या यह तेरी नजर में सही हो रहा था। तुझे उस बच्ची को उसका 'विवाह 'होने से नहीं बचाना चाहिए था।
तेरी तरह मैं भी कोई न कोई कदम उठा सकती थी, मैं इस गांव में 2 वर्ष से रह रही हूं , बहुत सारी जानकारी तो नहीं है किंतु इतना जानती हूं कि यह लोग अच्छे हैं। अपनी बहू- बेटियों के लिए अच्छा ही सोच कर कुछ कदम उठाया है। मैंने सुना है ,यह गांव पहले ऐसा नहीं था, तूने संपूर्ण जानकारी नहीं ली। कम से कम, इतने पढ़े-लिखे होने के बावजूद ,वो लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं ? उसकी सही से जानकारी तो लेनी चाहिए थी और सीधे इंस्पेक्टर के पास पहुंच गई उनकी रिपोर्ट कराने के लिए......
देखा ,मैं सही थी, वह इंस्पेक्टर उनका चमचा है , उसने जाकर संपूर्ण बातें उन्हें बतलाई होगीं।
अब तू मेरी मुसीबत और मत बढ़ा जो लिखा है, उसको डिलीट कर दे ! हम सबके लिए यही ठीक होगा, और जिन लोगों को तेरे लेख से आघात पहुंचा है, उनसे माफी मांग ले।
नहीं, इतनी बड़ी गलतफहमी में मत रहना , मैंने जो भी किया है ,सही किया है , मैं कोई माफी-वाफी मांगने वाली नहीं हूं। अभी वह इतना कह ही रही थी तभी एकदम से फोन कट गया। हेलो ! हेलो ! शायद फोन कट गया, मन में बुदबुदाई। रसोई में चाय रखने के लिए गई, अभी उसे और सोना था, किंतु सुनीता के फोन के कारण उसे उठना पड़ा। ऐसी क्या आफत आ गई होगी, जो उसे इतनी सुबह फोन करना पड़ा , कहीं वह लोग उसे तंग तो नहीं कर रहे हैं। मन में अनेक विचार आ रहे थे, सोच रही थी -चौधरी के बहुत सारे लठैत , सुनीता को घेरे हुए खड़े हैं और सुनीता, उनके सामने गिड़गिड़ा रही है। अपनी ही सोच पर उसे हंसी आ गई, यह सब तो फिल्मों में होता है, इतनी दादागिरी तो अब कोई नहीं करेगा वरना उसे फोन करने का समय भी नहीं मिलताा।
अपनी चाय लेकर रसोई से बाहर आई, उसके उठने की आहट सुनकर उसके पति वीरेंद्र भी, अपने शयन कक्ष से उठकर बाहर आए। आज इतनी सुबह उठ गईं , क्या बात है ?
चाय का घूंट भरते हुए, परिणीति सोच रही थी ,अब मैं वीरेंद्र को क्या जवाब दूं ? बताना तो होगा ही, तब वह वीरेंद्र के लिए भी चाय रखने चली जाती है दोनों साथ में ही ,बैठकर चाय पीते हैं, तब परिणीति वीरेंद्र से बताती है -' मैंने आपको सुनीता के गांव वाला किस्सा सुनाया था , न.... और इंस्पेक्टर ने मेरी रिपोर्ट नहीं लिखी थी , मुझे बहुत क्रोध आ रहा था। तब मैंने उस पर एक लेख लिखकर, इंटरनेट पर डाल दिया , जिसके परिणाम स्वरूप, शायद चौधरी को परेशानी हो रही होगी और उन्होंने सुनीता से शिकायत की होगी। क्या उस पर किसी तरह का दबाव बना रहे होंगे इसलिए सुनीता का फोन मेरे पास आया था।
यह तुमने क्या कर दिया ? वीरेंद्र परेशान और चिंतित होते हुए बोला- तुमने उसकी मुसीबतें बढ़ा दीं , अरे इस तरह का कदम उठाने से पहले कम से कम एक बार उससे पूछ तो लेतीं , वह तो इंकार ही कर रही थी किंतु मैंने सोचा ,यह , यहां रहकर इन लोगों के जैसी ही हो गई है इसलिए मैंने स्वयं यह कदम उठाया इसमें मुझे कुछ भी गलत नहीं लगा। लोगों को पता तो होना चाहिए कि यह कुप्रथा आज भी, समाज में व्याप्त है।
सुनीता, उस गांव में दो साल से रह रही है ,यदि उसे गलत लगता तो, वो भी तो उन्हें समझा सकती थी ,वो एक शिक्षिका है ,हो सकता है ,उन लोगों को अपनी बात समझाने का कोई अन्य तरीका अपना रही हो। माता -पिता अपने बच्चे को जानते हैं ,और वे यह भी जानते हैं कि उन्हें किस तरह से अपनी बात मनवानी है। और सभ के तरीक़े अलग होते हैं।