दहेज नहीं तो शादी नहीं [2]

कृति के पिता के पैसे ने , आखिर उसने रंग दिखा ही  दिया। एक मध्यमवर्गीय परिवार था ,किंतु बेटा कामयाब था, उसको बेचने का उन्हें ,इससे बढ़िया उपाय कोई नहीं सूझा। अपने घर का स्तर भी बढ़ जाएगा, और बेटे की अच्छी कीमत भी लग जाएगी। पैसा होगा, तो समाज में हमारा नाम भी होगा।चार रिश्तेदारों के दिमाग़ में इज्जत बनेगी। 

किन्तु मैंने तो सुना है, उनकी बेटी ! किसी की सुनती नहीं है , उसके कई रिश्ते टूट चुके हैं। जिद्दी है ! उसे पैसे का घमंड है ! उसके जैसी लड़की क्या हमारे घर में निभ पाएगी ?


यह सब अमीरों के चोंचले हैं, अब ये सब अमीर के बच्चे नहीं करेंगे तो फिर क्या गरीब के बच्चे करेंगे ? उनके पास तो कोई चॉइस ही नहीं होती , अरे, बाप का पैसा है , नखरे दिखाना, अपनी शर्तों पर जीना ,यह तो अपने खून में लेकर आई है, पैदाइशी है। वो लक्ष्मी है , यहां भी आकर घर को भर देगी। थोड़ा बहुत नखरा करेगी तो झेल लेंगे। माना कि तुम्हारा बेटा !पढ़ा -लिखा , सफल है , है , किंतु चाहकर भी वह इतना पैसा वर्षों में कमा पाएगा। एक बार ' कुबेर का खजाना 'हाथ लग गया या उस ख़जाने का मुंह ही हमारे द्वार की तरफ खुल गया तब तो धन आता ही रहेगा। 

जब इतना पैसा होगा,तो हमें क्या उस लड़की से रोटी बनवानी है ? आजकल कौन किसी की सुनता है ? मान लो ! मध्यम वर्गीय परिवार से लड़की आ भी जाती है, तो क्या गारंटी है ?वह झगड़ा  नहीं करेगी। हर आदमी का अपना स्वभाव होता है। किस्मत अच्छी है, तो बिगड़ी हुई लड़की भी सुधर जाएगी , और किस्मत सही नहीं है, साथ नहीं दे रही है, तो सीधी गाय के भी सीं ग  निकल आएंगे। पैसे की कमी होगी और उसकी इच्छाएं पूरी नहीं होंगी, तो झगड़ा ही करेगी। घरों में झगड़े काम के लिए या फिर पैसे की तंगी के कारण होते हैं ,जब इच्छाएं पूरी नहीं होती और जब उसे सब कुछ पहले से ही मिल जाएगा तो वह क्यों झगड़ा करेगी ? द्वारिका प्रसाद जी ने अपनी पत्नी को समझाया-उनके परिवार से हमारा नाम जुड़ गया , तो हमारा भी सम्मान होगा। 

उनकी पत्नी के पास ,उनके तर्क का कोई जवाब नहीं था, बोली -जैसी तुम्हारी इच्छा हो ! करो !

अभी तो तुम मुंह बना रही हो, किंतु जब पाँच तोले का हार तुम्हारे गले में, लटकता दिखाई देगा तब तुम भी कुछ न कह सकोगी। जो आज तुम्हें बात बना कर जातीं  हैं, वही तुम्हें दीदी भी करके बोलेंगीं। 

अब इतना भी मत करो ! जो आपको करना है वह करिए !

जब द्वारिका प्रसाद जी ,कृति को देखने के लिए गये , कृति सुंदर तो थी, किंतु उसके व्यवहार से, उसकी लापरवाही झलक रही थी, उसके व्यवहार को देखकर लगता था जैसे उसे किसी की भी ,कोई परवाह नहीं है। ऐसे समय में ज्यादातर लड़कियां साड़ी या सूट पहन कर आती हैं किंतु उसने जींस -टॉप पहना हुआ था।

 पत्नी ने द्वारिका प्रसाद जी की तरफ देखा, मुस्कुराते हुए बोली  -देखा ,लड़की में तनिक भी बनावट नहीं है , जो है, सामने है। जींस पहनने में भी कोई बुरी नहीं है।  वह तो अपना-अपना देखने का नजरिया है। किंतु बिटिया ने हमसे कुछ नहीं छुपाया , या दिखाने के लिए सूट या साड़ी पहनकर नहीं आई , इसकी यह बात हमें बहुत पसंद आई। 

इससे एक बात तो पता चलती है, यदि आदमी निभाना चाहे, तो वह गलत चीज को भी सही रूप में देखने लगता है और यदि वह नहीं निभाना चाहता है, तो सही चीज में भी कुछ ना कुछ कमियां निकाल ही देता है। 

भाग -[४]

दुनिया में भान्ति - भान्ति के लोग हैं, भिन्न -भिन्न विचारधारा रखते हैं, अपनी सोच के आधार पर ही किसी को गलत और किसी को सही साबित करने लगते हैं, लेकिन हर जगह हर किसी का ,कहीं न कहीं कोई स्वार्थ जुड़ा ही होता है। श्वेता सुंदर ,सुशील और संस्कारी होने के पश्चात भी, उसमें कुछ कमी रह जाती थी और वह कमी थी, उसके पिता का, अच्छा बजट न होना। जब श्वेता को देखने के लिए वह लोग आते थे तो वह महसूस करती थी कि यह लोग अपने बेटे को बेचने के लिए निकले हैं, अब इसकी कितनी बोली लगती है ? यह तो लड़की के माता-पिता की जेब पर निर्भर करता है। उन्हें यह बात कहते हुए शर्मिंदगी भी महसूस नहीं होती। वैसे तो बच्चे माता-पिता का कहना नहीं मानेंगे, अपनी जिंदगी को अपने अनुसार जीना चाहते हैं। किंतु ऐसे मामलों में, माता-पिता की सोच के आधार पर ही, उनके पीछे-पीछे आज्ञाकारी बच्चे बनकर चल देते हैं। यहाँ पर आकर ,उनकी अपनी सोच समाप्त हो जाती है ,क्योंकि कहीं न कहीं वह भी चाहते हैं, कि उनकी अच्छी से अच्छी बोली लगे।

 अभी एक लड़का पसंद आया था, लड़की के पिता से बातचीत भी हुई और उसके पिता ने, न अपना लड़का दिखाया  और न ही, श्वेता को देखा और बोला -पहले हम आपस में मिल लेते हैं। श्वेता के पिता को आश्चर्य हो रहा था ,यह कैसे हैं ,ये मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं ? अक्सर ऐसा होता हुआ आया था, पहले यह लोग,लड़का देखने जाते थे, उसके पश्चात वह लोग आते थे ,तब लेन-देन की बात होती थी किंतु यह बिल्कुल ही अलग थे। इन्होंने लड़की देखने की बात भी नहीं की, और न ही अपने बेटे को दिखाया। अनेक विचारों से उलझे हुए दीनानाथ जी, उनकी बताई जगह पर पहुंचे -थोड़ी सी औपचारिकता के पश्चात वो सीधे मुद्दे पर आ गए और बोले -तुम कितना खर्च कर सकते हो ? 

यह बातें सुन -सुनकर दीनानाथ जी पक चुके थे। तब वह बोले -पैसा मुझे ही देना है ,मैं आपको सारा पैसा दे दूंगा, और विवाह के सभी इंतजाम, आप स्वयं कर लीजिएगा। हम सिर्फ विवाह में शामिल होने आ जाएंगे। दीनानाथ जी ने उन्हें, 25 लाख नगद रुपया देने की बात कह दी। 

इतनी रकम सुनकर, वो सहर्ष तैयार हो गए और बोले -अब आप लड़का देखने आ सकते हैं। 

घर में सभी इसी प्रतीक्षा में थे ,कि न जाने दीनानाथ जी क्या समाचार लेकर आएंगे। घर आकर जब उन्होंने अपने परिवार को बताया -कि पच्चीस लाख पर बात सम्भल गयी है।

 उनकी पत्नी बोली -सभी उन्हें  दे देंगे तो हम क्या करेंगे ?

हम तो सीधे तैयार होकर विवाह में शामिल होने के लिए जायेंगे। 

ये कैसे हो सकता है ?लड़की के लिए गहने हैं ,कपड़े हैं ,उसके लिए क्या उनसे कहेंगे ?कि इन पैसों से हमें ये सामान भी खरीदना है। आपने न ही कुछ सोचा ,न ही हिसाब लगाया ,सब कैसे होगा ?अच्छा ये बताइये !वो स्वयं क्या करते हैं ?

अब कुछ नहीं करते ,सेवानिवृत्त हैं। 

 उनका घर कैसा है ?कितना बड़ा है ?

वो तो किराये पर रहते हैं ,अपना कोई घर नहीं है इसीलिए तो उन्होंने रिश्तेदार के घर पर मिलने के लिए हमें बुलाया था। 

यह सुनते ही ,उनकी पत्नी ने माथा पीट लिया और पूछा -उनकी अपनी कितनी बेटियां हैं ?

बस, दो बेटे ही हैं। 

स्वयं तो जीवन में एक मकान तक नहीं बना पाया ,और बच्चे थोड़ा पढ़ क्या गए ? उन्हें बेचने निकला है। आपने एक बार भी नहीं सोचा -अपनी बेटी का, आप जिस इंसान के साथ विवाह करने जा रहे हैं ,वह एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करता है ,कल को यदि नौकरी नहीं रहती है ,तो उसके पास अपना कहने को एक घर भी नहीं है।जब वो आज पैसे माँग रहा है तो कल को क्या गारंटी वह और पैसे नहीं माँगेंगा ?

कुछ दिनों पश्चात ,उसके रिश्तेदार का फोन आया ,यह बताने के लिए ,कि आप लड़का देखने आ सकते हैं। तब बातों ही बातों में ,बात निकली तो पता चला -कि उनकी अपने रिश्तेदार से बातचीत में यह तय हुआ था कि पच्चीस तो वो अपने मुँह से ही बोल रहा है। कम से कम दस लाख के गहने बनवाएगा ,कपड़े वगैरह जो भी होगा ,वो स्वयं ही संभाल लेगा। यह सुनकर दीनानाथ जी के'' पैरों तले जमीन खिसक गई।'' वो तो कुछ और ही सोचे बैठे थे। अब उन्हें लग रहा था, कि जो मेरी पत्नी ने कहा था, वह सही था। इतना सब तो मैंने सोचा ही नहीं था। खैर जो भी होगा ,देखा जाएगा। यह सोचकर वह चले गए, वहां जाकर देखा, मकान मालिक के घर पर ही उन्हें नाश्ता कराया गया। दीनानाथ जी सब चीज देख-दाखकर अपने घर आ गए और उन्हें कोई जवाब नहीं दिया ,क्योंकि वो सोच रहे थे -जिस लड़के के बल पर, मैं इतना खर्चा उठाने के लिए तैयार हूँ । वह लड़का ही नहीं जंच रहा था, क्या इस किराये के मकान में मेरी बेटी आकर रहेगी ?यही सब  सोचकर उन्होंने रिश्ते से इंकार कर दिया।  


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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