Balika vadhu [21]

आज अचानक ही, सुनीता परिणीति माथुर से मिलने उसके घर पहुंच गई। कहने को तो ,परिणीति उसकी चचेरी बहन है, इसी रिश्ते से वह सुनीता से मिलने उसके गांव आई थी किंतु उसी के कारण सुनीता को, चौधरी अतर सिंह की सवालिया नजरों का सामना करना पड़ा। गांव वालों को भी ,सुनीता पर क्रोध आया किंतु सुनीता का पिछला व्यवहार देखकर उन्होंने उससे कुछ नहीं कहा। इसमें उसकी भी क्या गलती है ?यह कार्य तो उसकी, चचेरी बहन ने किया है, किंतु आज सुनीता, परिणीति से मिलने गई है अचानक उसे देखकर परिणीति चौंक गई ,क्योंकि अक्सर जब भी परिणीति ने सुनीता को बुलाया है तो वह कोई नाकोई बहाना बनाकर आने से इनकार कर देती थी किंतु आज बिन बुलाए ही आ गई ,उसे लगा -अवश्य ही कोई बात हुई है। 

आज अचानक ,इस तरह यहां ,कैसे ? परिणीति ने सुनीता से प्रश्न किया। 

क्यों, क्या अपनी बहन से मिलने नहीं आ सकती ?



आ तो सकती है, किंतु मैंने तुझे कई बार बुलाया था, तब तो तू नहीं आई थी  उसके आने के  उद्देश्य को सोचते हुए ,परिणीति ने ताना मारा।  

तूने ,जब कांड ही ऐसा किया है, जिसके कारण मुझे मजबूरी में आना ही पड़ा अपने आने के उद्देश्य को अधिक रह्स्य्मयी न बनाकर सुनीता ने अपनी बात कही।  

हां ,अब आई न......  सही मुद्दे पर, अब बता, मैंने कौन सा कांड किया है ?कुछ भी न समझते हुए परिणीति ने पूछा। 

तूने जो वह लेख लिखा है ,वह क्या किसी बम से कम है। 

देखो !मैंने जो कुछ भी लिखा, वह सब सही था। 

हां, मैं जानती हूं। तू ''सत्यवादी हरिश्चंद्र ''बनी हुई है, किंतु तुझे यह तो सोचना चाहिए था कि उस गांव में मेरी बहन भी  रहती है, उसका क्या होगा ?

क्यों ,क्या उन लोगों ने तुझसे कुछ कहा है,रसोई में कॉफी बनाते हुए परिणीति ने वहीँ से पूछा। 

कहा तो कुछ भी नहीं है, किंतु उनकी नजरों का सामना करते हुए ,अब मुझे डर सा लगता है। 

ऐसा कुछ भी नहीं होगा, तू बेफिक्र होकर रहना कहते हुए कॉफी का मग सुनीता के सामने कर दिया।  

मग हाथ में लेते हुए ,सुनीता बोली -कैसे ,बेफ़िक्र रह सकती हूं ? क्या तू नहीं जानती है ?कि तेरे लेख के कारण'' बचपन बचाओ ''संस्था के लोग, गांव में प्रवेश करना चाहते थे।उन्होंने गांव के बाहर ही हंगामा कर दिया था ,वह तो इंस्पेक्टर साहब ने उन्हें रोक दिया। हालांकि उन्होंने बाहर रहकर भी, बहुत हरकतें की हैं इसीलिए कहती हूं -'कि जब तक संपूर्ण जानकारी न हो, तुम्हें ऐसा कुछ भी कार्य नहीं करना चाहिए। जिससे  किसी को लाभ न हो ,तो हानी भी न हो। 

  तुम्हारी, यह बात मैं पहले भी सुन चुकी हूं।कुछ नया हो तो बताओ ! 

अब नया क्या होगा ?अभी तो वही बातें गले में अटकी हुई हैं। तूने सुना ,तेरे सुनने का लाभ क्या हुआ ? क्या तू जानती है ? उस गांव में सब पढ़े-लिखे लोग हैं ,वहां की बच्चियाँ भी पढ़ती थीं, इसीलिए आज मैं उस गांव में अध्यापिका बनकर वहां रह रही हूं क्योंकि वहां की बच्चियाँ आज भी  पढ़ती हैं और उनके माता-पिता पढ़ाते भी हैं और जिनकी बेटियाँ, पढ़ने में होशियार होती थी ,उन्हें पढ़ने के लिए बाहर भी भेजते थे। 

ऐसा मुझे तो नहीं लगता। 

वही तो तुम्हें बताने जा रही हूं। क्या तुम जानती हो ?आज से 5 साल पहले, एक पिता ने आत्महत्या की थी। 

परिणीति !अपने कार्य करते हुए  बोली -क्यों ? खेती-बाड़ी में कोई परेशानी हुई होगी या बैंक का कर्ज नहीं दिया गया होगा। कई बार यही कहानी सुनने में आई है ,समाचार -पत्रों में भी ये पढ़ने को मिला है कि क़र्ज़ के कारण किसान ने आत्महत्या की।  

नहीं, उसकी आत्महत्या का ये कारण नहीं था। उसके पास बहुत सारी जमीन है, ट्रैक्टर है ,फसल भी अच्छी होती थी, किंतु उसका घर बर्बाद हो गया। 

क्यों, ऐसा क्या हुआ ?बाहर आकर परिणीति ने पूछा। 

वही तो तुझे बताने जा रही हूं, जानती है, उसने अपनी बेटी को, पढ़ने के लिए बाहर भेजा था। वह शहर में रहकर पढ़ रही थी। गांव में आठवीं तक का ही स्कूल था, उसे आठवीं तक पढ़ाया उसके पश्चात, उसे शहर में लड़कियों के हॉस्टल में डाल दिया। उसकी बेटी पढ़ने में होशियार थी, एक बेटा है , वह खेती-बाड़ी संभालता था। रामखिलावन किसान के जीवन का यही उद्देश्य था कि उसकी बेटी पढ़ -लिख जाए और किसी अच्छे घर परिवार की बहू बने। बेटा भी पढ़ रहा था,और पिता के साथ उनके कार्यों में हाथ बंटाता था। 

 सब कुछ अच्छे से चल रहा था, पिता गांव से बेटी के लिए खर्चा भेज देता था। जब बेटी कॉलेज जाने लगी  तो रामखिलावन अत्यंत प्रसन्न हुआ। वह बेटी, सब गांव की लड़कियों के लिए एक मिसाल बन गई थी गांव के लोगों में तो जैसे होड़ लगी थी। हर इंसान यह चाहता था कि उसके बच्चे पढ़ -लिखकर किसी काबिल हो जाएं । इंदिरा गाँधी का ,सरोजिनी नायडू ,रानी लक्ष्मी बाई ,किरण बेदी ,जैसी महिलाओं के उदाहरण दिए जाते। बच्चे माता-पिता का नाम रोशन करें , ऐसा नहीं कि लड़के नहीं पढ़ रहे थे , लड़कों को भी उचित शिक्षा दी जा रही थी जो जितना ज्यादा पढ़ सकता था, उसे पढ़ाया जा रहा था। 

वह सब तो ठीक है, किंतु रामखिलावन ने आत्महत्या क्यों की ?

वही तो बताने जा रही हूं -अचानक से ही रामखिलावन की बेटी सरस्वती के खर्चे  बढ़ गए।  रामखिलावन ने, अपनी बेटी से इसका कारण पूछा, उसने बताया -कॉलेज की फीस ज्यादा होती है, हॉस्टल में रहने का खर्चा भी ज्यादा होता है। बड़े शहर में रह रही हूं, यह कोई कम बड़ी बात नहीं है।

 लगभग दो वर्ष पश्चात ,सरस्वती ने बताया कि उसकी नौकरी लग गई है ,अब उसे उनके पैसों की कोई आवश्यकता नहीं है।  माता-पिता अत्यंत ही प्रसन्न हुए , संपूर्ण गांव में मिठाई बाँटी गई थी। दोनों पति-पत्नी अब अपनी बेटी के लिए ,लड़का ढूंढने में जुट गए। 

एक दिन उसका भाई,उसका पता ढूंढते हुए , उसके पास पहुंचा क्योंकि वह भी शहर में रहकर, अपनी बाकी की पढ़ाई पूरी करना चाहता था।पहले वह जहाँ रह रही थी ,वहां से उसने अपने रहने का स्थान बदल दिया था किन्तु बातों ही बातों में उन्होंने उससे उसके घर का पता ले ही लिया था। सरस्वती को लगा ,ये लोग आएंगे तो नहीं ,पता मालूम होने से क्या हो जायेगा ? 

आखिर सरस्वती अपने माता -पिता को अपने घर क पता देने से क्यों हिचकिचा रही थी  ?वह क्यों नहीं चाहती थी ?कि वह कहाँ रह रही है ?इस बात का उसके घरवालों को पता चले। रामखिलावन की आत्महत्या का क्या कारण था ?जानने के लिए आइये !आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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