दृष्टि तैयार होकर ,सूरज की प्रतीक्षा कर रही थी ,जाने का समय हो गया था किन्तु अभी तक सूरज, घर नहीं पहुंचा था। तभी हांफते हुए ,पसीने से लथपथ सूरज वहां पहुंच गया, वह मुख्य दरवाजे से अंदर न आकर , दूसरे छोटे दरवाजे से अंदर आया था। दृष्टि को इस तरह तैयार होते देखकर, बोला - तू जा रही है।
हां ,मैं जा रही हूं, आंखें घूमाते हुए दृष्टि बोली -पापा ! मुझे लेने आए हैं, तो मुझे जाना ही होगा।
फिर कब आएगी ?
पता नहीं, होंठ बिचकाते हुए, दृष्टि बोली - तुम भी मेरे साथ चलो !
मैं तुम्हारे साथ कैसे जा सकता हूं ? वह तो तुम्हारा अपना घर है।
मैं भी तो तुम्हारे घर रही हूं ,न....... तुम भी कुछ दिन, मेरे घर रह जाना ,तुम्हें अपना गांव दिखाउंगी ,अपनी सहेलियों से मिलवाउंगी ,वहां हम खूब मजे करेंगे ,सूरज को अपने साथ ले जाने के लिए,दृष्टि उसे लालच दे रही थी।
तभी सूरज की दादी उनकी बातें सुनते हुए, रसोई घर से बाहर आई और बोलीं -यह तुम्हारे घर जाकर नहीं रह सकता , इसे क्या घर जमाई बनना है ?तुम अपने घर जाकर,अपनी सास की तरह ,घर के काम सीखना और पढ़ना, समझी !
मुंह बनाते हुए ,दृष्टि बोली -मैं भी तो, इतने दिन इसके घर रही हूं , यह भी मेरे घर, कुछ दिन रह जाएंगे। वह जानती थी -अगर वह सूरज के लिए कुछ भी गलत बोली तो दादी, का गुस्सा उस पर टूट पड़ेगा इसलिए संभल -संभलकर बोल रही थी।
वह तुम्हारा अपना घर है, और जब तुम विवाह करके यहां आ जाती हो तो, यह घर भी तुम्हारा हो जाएगा किंतु सूरज का तो यही घर है, यह यहीं रहेगा।
मेरे दो घर हैं।
हाँ ,वो मम्मी का घर भी तुम्हारा !और ये सूरज जो तुम्हारा पति है ,इसका घर भी तुम्हारा।
यह सुनकर,दृष्टि बहुत प्रसन्न हुई ,तभी उसे सूरज के साथ न जाने का एहसास उस क्षणभर की प्रसन्नता को समाप्त कर गया ,तब सूरज की तरफ देखकर धीमे स्वर में बोली -देख लेना ,कल को मुझसे मत कहना कि तुमने मुझे अपने घर नहीं बुलाया, मैं तो बुला रही हूं , तुम्हें आना है ,तो आ जाओ !
तब मधु हंसते हुए , कमरे से बाहर आई और बोली-यह तुम्हारे घर तुम्हें लेने के लिए आएगा, तुम इसकी पत्नी हो, और यह अपनी पत्नी को लेने आएगा। तब तक तुम अपने घर में रहकर अच्छे से पढ़ाई करना , ज्यादा बाहर मत घूमना , अपने मम्मी -पापा का ख्याल रखना ! और जब यह तुम्हें लेने आएगा तो तुम्हें फोन कर देगा।
तभी सूरज को एक उपाय सूझा और बोला -यह सही रहेगा , मैं तुम्हें रोज फोन किया करूंगा।
ठीक है, अब मैं चलती हूं, मेरे पापा, मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं , कहते हुए ,रजत से बोली -भैया चलो ! उसका सामान उसकी गाड़ी में रखवा दिया गया था। घर पहुंच कर दृष्टि अपनी मां से लिपटकर खूब रोयी। घर आने की खुशी में, उसने वहां खाना भी नहीं खाया था। देवयानी ने भी उसके लिए, उसकी पसंद का खाना बनवाया था।
इंस्पेक्टर साहब ! हम उस लड़की से मिलना चाहते हैं, जिसका विवाह हुआ था , कामिनी ने इंस्पेक्टर मृदुल को फोन किया। इंस्पेक्टर मृदुल मन ही मन सोच रहा था-न जाने, वह कौन सी घड़ी थी? जब यह हमारे थाने में आई थी. तब से मेरे पीछे पड़ी है।
क्यों, उसका तो विवाह हो गया होगा ? अपनी ससुराल में होगी, आपने तो देखा ही था।
ठीक है ,कहते हुए कामिनी ने फोन रख दिया। सरोजिनी से बोली -अब किया भी क्या जा सकता है ?जतिन को जहाँ बंधक बनाया ,वह स्थान उसे मालूम नहीं है ,हम आसपास के सभी गांव में घूमकर आये हैं ,जहाँ उसके बंधक होने की उम्मीद हो सकती थी किन्तु हमें कोई भी ऐसी जगह नहीं मिली। आस -पास के लोगों से भी पूछा किन्तु किसी को भी इस बात की जानकारी नहीं है। न ही ,किसी ने जतिन को कहीं बंद कमरे में देखा। उनके विरुद्ध कोई सबूत तो हैं नहीं ,अब हम क्या कर सकते हैं ?उन्होने सब कुछ बड़ी ही सफाई से किया है।
एक बार उसका पता लगाओ !जिसने वो लेख लिखा था ,कहीं उसने ही तो, कुछ गलत नहीं देख लिया हो या फिर लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए यह लेख लिखा हो।
नहीं ,इतना बड़ा झूठ, तो कोई नहीं लिखेगा। उसने उस लेख में सम्पूर्ण गांव को ही निशाना बनाया है।
तुम कुछ भी नहीं जानते ,आजकल लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ,या फिर एक लाइक या टिप्पणी पाने के लिए ,क्या -क्या उल -जलूल हरकत नहीं कर गुजरते ? यह लेख किसी परिणीति माथुर ने लिखा है, जरा उससे मिलकर पता तो लगाओ ! कि उसने यह जो भी कुछ लिखा है, वह सच है या झूठ !
एक दिन अचानक ही सुनीता परिणीति के घर पहुंच गई, और बोली -तूने यह क्या कर दिया ?
क्यों ,मैंने क्या किया है ?
तुझे क्या आवश्यकता थी ? उस गांव के विषय में कुछ भी लिखने की।
मेरे सामने गांव में गलत हो रहा था, एक छोटी बच्ची का विवाह हो रहा था। यह गलत होते मैं, कैसे देख सकती थी ?तुमने मुझे वहां भी बोलने नहीं दिया।
कम से कम तुझे मुझसे बात तो करनी चाहिए थी, पूरी जानकारी तो ले लेती।
मैंने तुमसे कई बार पूछा था, किंतु तुम बात को टालमटोल कर गई थीं।
हां तो क्या बताती ? संपूर्ण जानकारी तो मुझे भी नहीं थी और अधूरी जानकारी से, हानी होनी निश्चित है। इसीलिए तो कह रही थी-पहले जानकारी होनी चाहिए तब उसके विषय में, लिखना चाहिए।
इसमें जानकारी क्या करनी है ? मुझे स्पष्ट रूप से नजर आ रहा था, कि एक छोटी बच्ची का विवाह हो रहा है और उसके घर वाले उसका विवाह करा रहे हैं।
तभी तो कहती हूं -संपूर्ण जानकारी होना आवश्यक है , आज मैं उन लोगों से , नज़रे मिलाकर भी, बात नहीं कर सकती क्योंकि इस बात की जानकारी उन्हें हो गई है, कि यह कार्य तुम्हारा ही है।
क्या उन्होंने मेरे कारण तुम्हें उस गांव से बाहर निकाल दिया ?
नहीं, गांव से तो नहीं निकाला है किंतु मैं तुम्हें समझाने आई हूं , इस बात को आगे न बढ़ाना।
मैंने तो सिर्फ लेख लिखा है।
किन्तु तुम्हारे लेख ने क्या -क्या गुल खिला दिए ?क्या तुम यह नहीं जानतीं ?