चौधरी अतर सिंह जी, दृष्टि को लेने उसकी ससुराल पहुंच जाते हैं। वहां उन्हें देखकर दृष्टि बहुत खुश होती है, अपनी बेटी की प्रसन्नता देखकर ,वे भी बहुत प्रसन्न होते हैं और बेटी से घर चलने के लिए कहते हैं। उनकी बेटी अपनी ससुराल में बहुत खुश है। यह देखकर उनका हृदय गदगद हो उठा, एक पिता को और क्या चाहिए ? अपने बच्चों की खुशियां ! यहां खुश रहकर भी, वह अपने मायके में जाने के लोभ को रोक न पाई। तब अचानक ही, उसकी सास ने कहा -क्या अपने पति सूरज को भी अपने साथ ले जाओगी ?जिसे वह अपना दोस्त समझती है। यही बात पूछने के लिए ,वह वापस अपने पिता के पास लौट आई है और पूछती है -क्या सूरज भी हमारे साथ चलेगा ?
अपनी बेटी की भोली बातें सुनकर अतर सिंह जी मुस्कुराते हैं और बोले -जैसी तुम्हारी इच्छा !अपने दोस्त से भी तो पूछ लो ! कि क्या वह भी हमारे साथ जाने के लिए तैयार है ?दृष्टि वापस लौट आई है और सूरज को ढूंढती है।
सूरज भी आ जायेगा ,पहले तुम अपने घर जाने की तैयारी तो कर लो ! अपने कपड़े रख लो !स्वयं तैयार हो जाओ !उसकी सास मधु ने सुझाव दिया।
हाँ ,ये ठीक है ,कहते हुए दृष्टि अपने कमरे में जाती है ,उसकी सास ,दृष्टि की सहायता के लिए ,पुष्पा को भेज देती है ,पुष्पा को ही दृष्टि को समझाने और उसकी देखरेख का उत्तरदायित्व सौंपा हुआ है। पुष्पा जब कुंवारी थी, तब इसी घर में कार्य करती थी। कुछ समय पश्चात, उसका रिश्ता तय हो गया और वह विवाह करके चली गई किंतु उसकी ससुराल उसे ज्यादा रास न आई, उसका पति उसे बहुत मारता -पिटता था इसीलिए वह वापस अपने घर आ गई, और यहां आकर फिर से, छत्रपाल सिंह जी के यहीं काम करने लगी, उन्होंने भी उसे, दृष्टि की देखभाल के लिए बुला लिया। अब वही दृष्टि की देखभाल करती है और अब उसके जाने में ,उसको तैयार करके भेजने का कार्य उसे सौंपकर मधु जी भोजन की तैयारी करने के लिए रसोईघर में चलीं गयीं।
सूरज, अपने दोस्तों के संग ,गांव के बड़े मैदान में खेल रहा था। तभी एक व्यक्ति ने आकर उसे बताया -सूरज एक बड़ी सी गाड़ी ,तुम्हारे घर की तरफ गयी है।
कौन आया है ?
मुझे क्या पता ? ये तो तुझे पता होना चाहिए ,तू यहाँ है।
ओय !कहीं तेरी ससुराल से तो कोई नहीं आ गया ,संदीप हँसते हुए बोला।
चल तू, गेंद फ़ेंक !मेरी ससुराल से कोई नहीं आने वाला ,हाथ घूमाते हुए सूरज लापरवाही से बोला।
कहीं ,ऐसा तो नहीं ,तेरी वाली को ले जाने के लिए, उसके घर से कोई आया हो।
तुझे कैसे पता ?
कैसे क्या पता ?मेरी वाली भी तो गयी हुई है। माँ कह रही थी -अब दो साल बाद आएगी।
क्या बात कर रहा है ?देख !अभी मैं जा रहा हूँ ,मेरी बारी प्रदीप ले लेगा। नहीं तो, जब भी आऊंगा ,मुझे मेरी चाल मिलनी चाहिए ,कहकर उसने बल्ला प्रदीप को दिया और चला गया। प्रदीप पीछे से चिल्लाकर ,बोला -दौड़कर जा ! कहीं वो चली गयी तो....... न जाने कब मिले ? दृष्टि तैयार होकर ,सूरज की प्रतीक्षा कर रही थी।
चलिए !भोजन कर लीजिये !छत्रपाल जी बोले।
जी नहीं ,हमने नाश्ता कर लिया अब भूख नहीं है ,अब तो बेटी को विदा कीजिये !इतनी देर से ''रजत '' चुपचाप बैठा हुआ उनकी बातें सुन रहा था। तब वह बोला -पापा ! मैं दृष्टि को देखकर आता हूं, तैयार हुई है ,कि नहीं।
हां हां देख आओ ! रजत के अंदर जाते ही ,अतरसिंह जी,छत्रपाल जी से बोले -आपका बहुत -बहुत धन्यवाद !
वो किसलिए ?
विवाह के समय हमारी परेशानी को समझने के लिए ,वरना ऐसे समय में हम बड़ी मुसीबत में पड़ जाते।
नहीं जी ,इसमें धन्यवाद की भी कोई बात नहीं ,रिश्ते और रिश्तेदार होते ही किसलिए हैं ?जो एक -दूसरे को समझे !और एक -दूसरे के काम आयें । यदि आप उस समय परेशानी में थे ,तो हम भी तो परेशानी में आ सकते थे। हमारा सूरज भी तो अभी नाबालिग है। यदि वहां ऐसा कुछ होता ,उसका असर यहाँ भी होता।
किन्तु ऐसे समय में आपने ,उस स्थिति को समझा और कच्चे रास्ते से बारात लेकर आ गए किसी को ''कानों -कान खबर'' भी नहीं हुई ,यह भी वहुत बड़ा सहयोग है।
अच्छा ये बताइये ! जिस व्यक्ति को पकड़ा था ,आपको कैसे पता चला ?कि ये कोई जासूस है।
अजी ! ऐसे समय में ,हमें कहाँ ध्यान रहता ?वो तो भला हो !इंस्पेक्टर साहब !का ,जो उन्होंने हमें इशारा किया और उसको वहां से हटवा दिया गया ,वरना उसने तो अपने फोन में ,बहुत सारे सुबूत इकट्ठा कर लिए थे।रातों -रात आपके गांव में पहुंचा दिया गया। यदि हमारे गांव में उसे कोई ढूंढने भी आता तो, नहीं मिलता।
अजी !ये सलाह तो हमें ,हमारे पिताजी ने दी थी ,इसको ,इस गांव से ही हटवा दो ! रातभर हमारी ट्यूबवेल की कोठरी में बंद रहा और हमारे गांव से तीन गांव आगे ,उसे ट्रैक्टर से ,कच्चे रस्ते पर छुड़वा दिया। ठीक -ठाक तो पहुंच गया होगा।
इंस्पेक्टर साहब !तो बता रहे थे ,सही -सलामत पहुंच गया।
चलो !काम भी हो गया,कुछ हानि भी नहीं हुई।
रजत ,का घर के अंदर जाने का उद्देश्य, उस घर को देखना भी था, जिस घर में उसकी बहन रह रही थी। यह सब बातें उसकी मम्मी ने ही उसे बताई थीं , कि वह देखकर आए ,उसकी बहन जहां रहती है वह कमरा कौन सा है और वह घर कैसा है ? आदमी, घर में अंदर तो जाते नहीं है , तो इसलिए उसे यह कार्य उसकी मम्मी ने सौंपा था। रजत 15 साल का, स्वस्थ, लंबा, गंभीर लड़का था। मां का कहना मानता था, बड़ों की बातों को समझता था ,उनकी बातें ध्यान से सुनता था। जब वह अंदर गया, वहां घर के आंगन में ही, कुर्सियां रखी हुई थीं। उन पर उसकी बहन तैयार हुई बैठी थी। उसे देखते ही ,रजत बोला - तैयार हो गई।
हां, मैं तो तैयार हो गई तब उसने इधर-उधर देखा -तो उसे सूरज की दादी दिखलाई दी, और बोली -अभी वो नहीं आए हैं।
अपनी बहन के मुंह से यह सुनकर, रजत को हंसी आ गई।