Balika vadhu [2]

एक आठ वर्ष की, कन्या' दृष्टि', उसका विवाह हो रहा है ,उसके विवाह में, उसी के गांव की एक अध्यापिका अपनी चचेरी बहन परिणीति को लेकर आती है। परिणीति एक पढ़ी-लिखी समझदार महिला है। वह शहर में नौकरी भी करती है। आज के समय में, जब वह देखती है कि एक आठ वर्ष की बच्ची का विवाह हो रहा है ,तो वह उसका विरोध करती है और उसकी  माता को समझाने का प्रयास करती है। तब परिणीति से,उस गांव की महिलाएं, तर्क कर बैठती हैं और उससे कहती हैं - कि लड़की तो' पराया धन' होती ही है। उसको, समय रहते ही ,उसी सांचे में ढल जाना चाहिए , वरना बहुत देर हो जाती है, बड़े होने पर फिर वह लड़की उस नए परिवार में , अपना ठीक से तालमेल नहीं बैठा पाती है। इसीलिए समय रहते ही लड़की को इस वातावरण में ढल जाना चाहिए जिस वातावरण में उसे रहना है। 


परिणीति मन ही मन सोचती है-आज के समय में, यह कैसे लोग हैं ? दुनिया पढ़- लिखकर, कितनी आगे बढ़ गई है, और यह लोग अभी उसी ''दकियानूसी , परिपटियों'' में लगे हुए हैं। तब वह उस महिला से पूछती है,जो उसी गांव की होकर ,उस विवाह में ,शामिल होने आई है।  अपने विषय में सोचना, आगे बढ़ना, पढ़ना क्या यह कोई बुरी बात है ?

 बुरी बात तो नहीं है, सभी अपनी इच्छा से ही जीना चाहते हैं, सभी आगे बढ़ना चाहते हैं किंतु इतनी परंपराएं बदली हैं  लेकिन विवाह की यह परंपरा आज तक नहीं बदली कि विवाह होकर, एक बेटी को पराये  घर ही, जाना होता है। जब उसे  पराए घर जाना ही है, तो फिर उसे वहीं  की आबोहवा का एहसास होना चाहिए, यहां की आबोहवा में पलेगी, माता-पिता की छत्रछाया में पलेगी, तो मजबूत नहीं हो पाएगी। पढ़- लिख  जाएगी, तो अपनी इच्छानुसार जीना चाहेगी और पढ़ -लिखकर भी क्या हो जायेगा ? तब भी उसे, बच्चे ही बनाने हैं, रोटियां ही सेकनी है, पढ़ने से पहले भी रोटी बनाएगी तो भी गोल ही बनेगी और पढ़ने के बाद रोटी बनाई तब भी उसका आकार गोल ही होगा बल्कि वह इतनी गोलाकार नहीं बन पाएगी जितनी वह अपने अनुभव से यह कार्य पूर्ण कर पाएगी। हमें ही देख लो ! हम भी कोई ज्यादा उम्र के नहीं थे जब हम इस गांव में बहू बनकर आए थे। अब यही गांव हमारा है अपने गांव की तो हमें स्मृति भी नहीं रही, क्योंकि उस समय की सभी सहेलियों के विवाह हो गए,तब और सब की देखा देखी हमारा  मन भी ,विवाह करने के लिए करने लगा। तब तो लगता था , कि हमारा भी विवाह हो जाए और हम भी अपनी ससुराल जाएं और यहां आकर हमने, सारा घर- परिवार, संभाल लिया।

तब परिणीति की दीदी, उसके हाथ मारती है, और उसे चुप रहने का इशारा करती है। परिणीति को अपनी दीदी पर भी क्रोध आ रहा था , एक शिक्षक का क्या कार्य होता है? लोगों को जागरूक करना, शिक्षा के प्रति, सही और गलत के प्रति , किंतु इन्होंने अपनी शिक्षा का कोई लाभ नहीं उठाया। यदि ये , इन लोगों के मन में' बाल विवाह' के प्रति, इस भावना को ही समाप्त नहीं कर सकीं , तो इनकी शिक्षा व्यर्थ है। इन्हें  समय रहते ही ,इनका विरोध करना चाहिए था और यह स्वयं इनकी बेटी के विवाह में शामिल होने आई हैं। देखने में तो यह लोग पढ़े-लिखे और सभ्य परिवार के लग रहे हैं किंतु यह इनकी, कार्य नीति मुझे कुछ समझ नहीं आई। जिस उम्र में इन्हें बेटी को पढ़ाना चाहिए था, उस उम्र में ये लोग उसका विवाह करा रहे हैं। आखिर यह लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं ? और स्वयं दीदी ,मुझे इस बात का विरोध करने से क्यों रोक रहीं हैं ? अपनी बहन के इशारा करने पर परिणीति ज्यादा तर्क -वितर्क में नहीं पड़ती है किंतु उसे तब भी ,उन गांव के लोगों के प्रति रोष रहता है, उन लोगों ने भी परिणीति के प्रति कोई आक्रोश नहीं जतलाया बल्कि सम्मान के साथ उन्हें विदा किया। 

रास्ते में परिणीति अपनी दीदी यानी कि उस स्कूल के अध्यापिका सुनीता से पूछती है -आपको इन लोगों को समझाना चाहिए था और आप स्वयं उनकी बेटी के विवाह में शामिल होने के लिए आईं  हैं। मुझे यह बात कुछ समझ नहीं आई। देखने में तो यह लोग पढ़े-लिखे लग रहे हैं फिर वह अपनी  बेटी के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं ? क्या यह उनकी सौतेली बेटी है ?

नहीं, यह उनकी अपनी बेटी है, किंतु यह लोग डरे हुए हैं , इसके बड़े होने के परिणाम से....... 

मैं कुछ समझी नहीं, बड़े होने का परिणाम से आपका क्या तात्पर्य है ?

मैं इन लोगों की कहानी जानती हूं, बहुत कुछ तो नहीं जानती, किंतु इतना अवश्य समझती हूं कि यह लोग खुले विचारों के व्यक्ति हैं, पढ़े- लिखे हैं, किंतु उनके परिवार में, और इस गांव में कुछ ऐसे किस्से हुए हैं, जिनके कारण इन लोगों ने अपनी सोच बदल दी है या यूं कहिये !ये अपनी सोच बदलने पर मजबूर हो गए हैं।

ऐसी क्या बातें हुई है जो यह लोग अब कानून को भी नहीं, समझ रहे हैं ,क्या आप नहीं जानती हैं?'' बाल विवाह ''करना कानून अपराध है। 

 यह बात तो.....   ये  लोग भी जानते हैं किंतु अब किसी कानून को भी नहीं मानते और कुछ लोगों  ने मिलकर तय किया है या यू कहें,  पंचायत ने मिलकर यह तय किया है कि इस गांव की सभी लड़कियों का विवाह कम उम्र में ही करवा देंगे। लगभग 15 वर्ष की उम्र तक लड़कियों का विवाह करवा देते हैं। इनके लिए,यह कोई प्रथा नहीं है, न ही, कोई रीति- रिवाज है ,बस यह इनकी  मजबूरी बन गई है या आजकल के बदलते समाज को देखकर, इन्होंने स्वयं बदलने का निर्णय लिया है।

कैसी मजबूरी? मैं कुछ समझी नहीं, परिणीति ने पूछा। 

तुम क्यों इन पचड़ों में पड़ती हो ? आज के समय में कोई भी नादान नहीं है और किसको अपने बच्चों को किस तरह से उसकी परवरिश देनी है ? यह उसके मां-बाप पर ही, छोड़ देते हैं। 

यह कोई घरेलू मुद्दा नहीं है, यह एक सामाजिक मुद्दा है, यह प्रथा ग़लत है, इसीलिए तो उस समय भी'' बाल विवाह'' का विरोध किया गया था और ये गांव की औरतें क्या जाने ? तुमने देखा, मुझसे , वो महिला किस तरह से तर्क कर रही थी ?

इन्हें गांव की औरतें समझ लेना गलत है, भावनाएं और समझ यह भी रखती हैं , हां यह कह सकते हैं कि यह बाहरी दुनिया से, थोड़ा अलग हैं किंतु सही -गलत की परख रखती हैं। हमें यदि शिक्षा का अनुभव है, तो इन्हें जिंदगी के अनुभव हैं।

परिणीति और अध्यापिका सुनीता के तर्क- वितर्क में आपको कौन सही लग रहा है ? और क्या यह ''बाल विवाह'' गलत है या सही इसमें आप अपनी समीक्षा दीजिए ,इतने पढ़ -लिखने के पश्चात भी क्या वे लोग अपनी बेटी दृष्टि के साथ सही कर रहे हैं ?या नहीं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post