Balika vadhu [1]

कुछ महिलाएं ढोलक की थाप पर,''लाड़ो ''गा रही हैं , और कुछ महिलाएं दृष्टि को हल्दी लगा रही हैं, दृष्टि नहीं जानती है,कि उसके साथ क्या हो रहा है ? जब दृष्टि को हल्दी लगाने के लिए पटरी पर बैठाया जाता है, तब वह मां से कहती है- नहीं, मैं यह नहीं लगवाऊंगी, मैं गंदी हो जाऊंगी, मुझे यह सब नहीं लगाना है,कहते हुए रोने लगती है।  

तब मां उसे समझाती है -नहीं ,इससे गंदे नहीं होते, तुम कितनी प्यारी और सुंदर हो, तुम्हें और सुंदर बनाने के लिए यह उबटन लगाया जा रहा है ,इससे तुम और भी खूबसूरत लगने लगोगी, कहते उसे बात को मनवाने के लिए ,स्वयं अपने हाथों पर लगाकर दिखाती है और कहती है - देखा !ये मैंने भी लगाया ,कुछ नहीं होता।  

क्या, सच में मैं सुंदर लगूंगी ?अपनी माँ की गोद में बैठते हुए पूछती है। 



और नहीं तो क्या ? यदि यह उबटन तुम लगवाओगी तो तुम्हें पहनने को नए-नए कपड़े मिलेंगे, खूब सारे जेवर मिलेंगे और हमारी राजकुमारी और सुंदर हो जाएगी। दृष्टि यह सुनकर, खुश हो जाती है और चुपचाप उस पटरे पर बैठकर अपने ऊपर हल्दी का उबटन लगवाते हुए देखती रहती है,हालाँकि उसका मन इस सबके लिए तैयार नहीं है किन्तु जब माँ ने समझाया है-  कि वो और सुंदर लगने लगेगी इसीलिए माँ की बात पर विश्वास करते हुए ,वो हल्दी लगवा रही है।  उसके पश्चात उसको नहलाया जाता है। महिलाएं गीत गा रही हैं लेकिन दृष्टि नहीं जानती क्यों गा रही हैं, किसके लिए गा रही हैं? किंतु उसे अच्छा लगता है और वह, खुश होकर नाचने लगती है, उसे देखकर सब महिलाएं हंसती हैं और आपस में कहती हैं -देखो ! यह कैसी दुल्हन है ?अपने ही विवाह में नाच रही है ?

दृष्टि की मां रोते हुए कहती है-इतने दिनों  के लिए ही ,इसे पाल-पोसकर बड़ा किया था, अब तो यह अपनी ससुराल चली जाएगी। बेटी का असली घर तो वही होता है।माता -पिता तो पैदा करके और पाल -पोसकर दूसरे की अमानत उसे सौंप देते हैं।  

यह बात दृष्टि सुनती है ,तो कहती है -क्यों ? मम्मी ! आप क्यों रो रहीं हैं ?क्या ,मैं यहां नहीं रहूंगी ? मैं कहां जा रही हूं ?

बेटा !बेटी का एक घर और होता है जिसे'' ससुराल'' कहते हैं , वह वहां जाती है और उसी घर को अपना लेती है। 

मैं अपनी मम्मी को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी, कहते हुए दृष्टि अपनी मां की गोद में घुस जाती है।जैसे उसने अपनी माँ के आँचल में, अपना सुरक्षा कवच ओढ़ लिया है।  

अभी बच्ची ही तो है,  तुम लोगों ने इसे आगे क्यों नहीं पढ़ाया ?एक आवाज उस वातावरण में गूंजती है। सभी की दृष्टि ,उस आवाज की तरफ घूम जाती है, क्योंकि वह स्वर दरवाजे के समीप ही उभरा था। एक महिला ने अभी उस घर में प्रवेश किया है। उसके पीछे ही, एक और महिला आती दिखलाई देती है, वह स्कूल की मास्टरनी है। तब अध्यापिका जी, उस महिला का परिचय देते हुए कहती हैं  -यह मेरी चचेरी बहन परिणीति है, यह आज ही शहर से आई है। मैं यहां दृष्टि के विवाह में शामिल होने के लिए आ रही थी, तो यह भी देखने के लिए आ गई।

आईये ! आईये ! आपका स्वागत है ! कहते हुए उन्होंने, पहले से ही, जो आसान जमीन पर  बिछाया हुआ था उसकी तरफ इशारा किया। 

परिणीति बोली- आपका धन्यवाद ! किंतु  आप लोग ,जिस लड़की का विवाह कर रहे हैं वह तो अभी उम्र में बहुत छोटी है। अपनी माँ की गोद  में बैठी,दृष्टि की तरफ देखते हुए ,परिणीति कहती है - आजकल'' बाल विवाह'' कहां होते हैं? और समझदार माता-पिता तो बाल विवाह के लिए, स्वयं ही इनकार कर देते हैं, फिर आप तो माँ हैं ? आप इतनी छोटी सी बच्ची का विवाह कैसे करा रही हैं ? अभी इसकी क्या उम्र होगी ?

आठवें वर्ष में चल रही है,देवयानी अपनी बेटी की तरफ देखते हुए बोली। 

देखिए ,मैडम जी ! यह शहरी बातें, हमें मत समझाइए ! हमारे यहां छोटी बच्चियों का ही विवाह होता है। लड़की बड़ी भी हो जाए तो तब भी, उसे पराये घर ही जाना पड़ता है। यदि  इसकी जड़ें  यहां जम जाएगीं , तो इसे यहाँ की आबोहवा लगेगी ,यहाँ के वातावरण में पलकर, उस घर में, अपनी जगह ठीक से नहीं बना  पाएगी। उस घर को ठीक से,नहीं अपना पाएगी। जब इसे, अगले घर ही जाना है तो क्यों न, वहीं रहकर, उन लोगों को, उनके रीति-रिवाजों को, पहले ही ,अपना ले। जो'' महिला संगीत'' में आई हुई महिलाएं थीं उनमें से एक महिला बोली। 

मैं मानती हूं, कि  लड़की को  पराये घर ही जाना होता है, किंतु आप यह भी तो सोचिए! कि अभी इसकी उम्र ही क्या है ? तभी वह अपनी बहन की तरफ देख कर कहती है -दीदी !आप तो इस गांव में, अध्यापिका के पद पर, नियुक्त हुई हैं , एक अध्यापिका का कर्तव्य पढाना ही नहीं, बल्कि उस स्थान पर जो बुराइयां फैल रही हैं  या अंधविश्वास फैल रहा है उनको भी, समाप्त करना और लोगों को जागरूक करना भी एक अध्यापिका का कार्य होता है। अब आप लोग बताइए ! इस लड़की ने कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की , जब यह वहां चली जाएगी तो ससुराल में तो, इसको कोई पढ़ाएगा नहीं ,इसको एक नौकर बना कर रख देंगे घर के कार्य करवाएंगे। जो बच्ची अपने मां-बाप की गोद में प्यार से पलनी  चाहिए, वह कैसे किसी के दूसरे घर में जाकर उसका घर संभाल लेंगी ?जिसको अभी स्वयं की ही देखभाल की आवश्यकता है।  

यह बातें आप हमें मत समझाइए ! हम सभी जानते हैं , जागरूक होना अच्छी बात है लेकिन इस पढ़ाई - लिखाई के बहुत नुकसान भी तो हैं।

 क्या नुकसान है? उसकी बात को बीच में काटते हुए परिणीति उत्तेजित होते हुए बोली। 

एक बार पढ़ -लिख जाएगी तो वह अपनी मन  की सोचने लगेगी, अपनी इच्छा से जीना चाहेगी, आगे भी पढ़ना चाहेगी और आगे पढ़ने के लिए उसे फिर शहर में जाने की इच्छा होगी। आजकल शहर की लड़कियों का चाल -चलन तो देखा ही है। 

अपने मन से रहना ,अपने तरीके से जीना या अपनी इच्छानुसार कार्य करना, यह क्या कोई बुरी बात है ? परिणीति ने पूछा।

अब आप लोग ही अपनी समीक्षा द्वारा समझाइए ! उनके तर्क वितर्क में कौन सही है ? खाने को तो सभी कहते हैं कि'' बाल विवाह ''गलत है,बुरा है हर चीज के दो पहलू हैं -सकारात्मक और नकारात्मक भी। यहां पर परिणीति सही है या फिर गांव की महिलाओं की सोच ! चलिए आगे बढ़ते हैं -''बालिका वधु'' के साथ 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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