दमयंती ,हरिराम को उसकी गलती का एहसास कराने के लिए कमरे में बुलाती है और उसे समझाने का प्रयास करती है कि शिखा के सामने ऐसी कोई भी बात न की जाये ताकि उसके मन में अनेक प्रश्न उठ खड़े हों। वो तो अच्छा है , गांव में भी, हम लोगों का ज्यादा आना-जाना ही नहीं है वरना चार मुंह होते और चार बातें, उसे सुनने को मिलतीं तो उसके मन में, परेशानी उठ खड़ी होती।
ठाकुर खानदान का एक रुआब है, इसीलिए हर किसी का साहस नहीं होता , जो इस ' हवेली की चौखट' को लाँघ जाए।
मुझे एक बात पूछनी थी ,क्या अब ऐसा नहीं हो सकता ? जिसे शिखा पसंद करें, उसी से उसका विवाह कर दिया जाए और अन्य बेटों के लिए , बहुएं ढूंढ ली जाएं।
तुम क्या चाहती हो ?ठाकुर खानदान बिखर जाए, धन -संपत्ति के लिए झगड़ा हो, अभी हम लोग इसलिए इकट्ठा है कि तुम हमारे साथ हो, यदि तुम भी बँट जाती तो यह परिवार भी बंट जाता। इस परिवार के लिए एक ही लड़की बहुत है, इससे हमारे परिवार की एकता बनी रहेगी ,कहते हुए उसने दमयंती को अपने ऊपर झुका लिया।
ये क्या कर रहे हैं ? जानते भी हैं ,अब घर में अब बहु आ गई है।
तो क्या हुआ ? क्या हम तुमसे प्रेम करना छोड़ देंगे,जब वो हमें इस तरह देखेगी तभी तो उसे भी, हमारे बच्चों से प्रेम होगा ,उन्हें अपनाएगी।
अपने को छुड़ाते हुए दमयंती ने कहा -पहले मेरी बातों का जबाब दीजिये ,यदि शिखा, इस बात को स्वीकार न करें तो.....
तो क्या? तुमने भी तो सब स्वीकार किया, हरिराम की बात सुनकर दमयंती एकदम से ख़ामोश हो गई और मन ही मन सोचने लगी- इस सबके लिए मुझे' ज्वाला' के प्रेम के कारण मजबूर होना पड़ा।उसे भी तो कोई आपत्ति नहीं थी। अब सोचती हूं,' ज्वाला' में मैंने ऐसा क्या देख लिया था? कि मैं उसके लिए पागल हो गई थी कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थी किंतु मुझे लगता है, शिखा की ऐसी कोई मजबूरी नहीं है, वह क्यों ऐसे अनैतिक रिश्तों में बँधेगी या बँधना चाहेगी ?
तुम उसे मानसिक रूप से इस चीज के लिए तैयार करती रहो ! धीरे-धीरे वह सब समझने लगेगी, हरिराम ने दमयंती से कहा। बुग्गी में भी जब झोंटे [भैंस का बच्चा ]को पहली बार बांधते हैं ,तब वो भी भागता है ,बंधन में बंधना नहीं चाहता। तब उसे मार से तो कभी प्यार से ,कभी जबरन बांधना पड़ता है ,तब जाकर उसे , उस बुग्गी को खेंचने लायक बनाया जाता है।
यह आप कैसे उदाहरण दे रहें हैं ?शिखा एक लड़की है ,किसी जानवर का बच्चा नहीं ,इंसान भी है ,उसमें सोचने समझने की क्षमता भी है।
मुस्कुराकर हरिराम बोले -फिर तो और भी अच्छा है ,अपने लाभ की बात सोचेगी और समझदारी से इस परिवार को अपनाएगी,उसे इस घर का ,धन -सम्पत्ति का लालच दोगी तो सब समझ जाएगी।
क्या, आपको मेरे विषय में भी ऐसा लगता है ?अचानक दमयंती ने पूछा।
हरिराम एकदम शांत हो गया ,शायद सोच रहा था ,इसे क्या जबाब दूँ ,या फिर इस सवाल से कैसे बाहर निकला जाये ?
बोलिये !शांत क्यों हैं ?
नहीं ,तुम ऐसी नहीं हो ,किन्तु लालच तो तुम्हारे अंदर भी था ,अपने 'ज्वाला' के प्रेम को पाने का ,जिसने तुमसे ये सब करवाया। हम तुम्हारे प्यार की क़द्र करते हैं ,तुमने किस तरह से इस परिवार को और हम सबको संभाला ?अब बहुत देर हो चुकी है ,मुझे लगता है ,अब तुम्हारे सभी सवालों के जबाब मिल गए हों अब और मत तरसाओ !कहते हुए दमयंती को अपने आग़ोश में ले लिया।
हरिराम से मिलकर जब वो आई तो शिखा को अपनी प्रतीक्षा करते पाया।दमयंती को देखते ही शिखा बोली -मैं कितनी देर से आपकी प्रतीक्षा कर रही थी ?और आप न जाने कहाँ चली गयीं थीं ?
मैं अभी आती हूँ ,कहते हुए तुरंत ही अंदर चली गयी और वहां अपने आपको आईने में निहारा ,यह देखने के लिए कहीं कुछ उसे दिख न जाये। बालों को संवारती है ,अपने आपको आईने में निहारती है और संतुष्ट होकर बाहर आ जाती है। रामदीन !!आज खाने में क्या बना रहे हो ? वह जानबूझकर शिखा से नजरें चुरा रही थी।
क्या आप अभी भी व्यस्त हैं ?तो मैं चलती हूँ।
नहीं, तुम बैठो ! ये काम भी तो जरूरी हैं।सभी लोग भोजन के लिए आते होंगे ,तुम्हें भोजन में क्या पसंद है ?रामदीन से कह देना ,वो तुम्हारी पसंद का कुछ अच्छा सा बना देगा।
नहीं ,मुझे इसकी आवश्यकता नहीं ,जब मेरी इच्छा होगी ,मैं अपने लिए स्वयं बनाकर खा सकती हूँ।
ये तो और भी अच्छी बात है ,इसी तरह तुम्हें घर के अन्य सदस्यों के शौक और खानपीन के विषय में जानकारी होनी चाहिए।
क्यों ?
फिर से वही प्रश्न ,तुम भी इस घर की सदस्य हो ,इस घर के लोगों ने तुम्हें अपना लिया है ,तब तुम इस घर के लोगों को क्यों नहीं अपना लेतीं ?
मैं इस घर में रहती हूँ ,'तेजस की बेवा' के रूप में ,इसी अधिकार से यहां आई थी ,किन्तु अब आप उस रिश्ते को बदलना चाहती हैं ,मैं कैसे आपके किसी भी बेटे को अपना लूँ ,जिसने मेरे साथ रात्रि में यह हरक़त की, ये तो धोखा हुआ ,मुझे क्या मालूम ?एक था या दो ! इस तरह तो ये न जाने कितनी लड़कियों को अपना शिकार बना चुके होंगे ?
तुम क्या समझती हो ? जवान खून है ,अब तक मेरे जबाब की प्रतीक्षा में बैठे हैं ,अगर मैं इन्हें थोड़ी भी ढ़ील दे दूँ ,तो क्या ये तुम्हें छोड़ेंगे ? इतने महीनों से तुम सुरक्षित थीं ,क्या तुम्हें देखकर, इनके रक़्त में उबाल नहीं आता होगा ?इसीलिए ज़्यादातर बाहर रहते हैं। पैसे वालों के लिए ,लड़कियों की कमी नहीं है किन्तु एक ख़ानदानी लड़की जो'' लालची न होकर भी लालची हो'' ऐसी लड़की का ये सम्मान करते हैं ,उसके इशारों पर भी चलने को तैयार हैं।
यह बात सुनकर शिखा को मन ही मन अपने आप पर गर्व भी होता है ,मुस्कुराती है किन्तु एक बात समझ में नहीं आई ,''लालची न होकर भी लालची हो ''इसका क्या अर्थ हुआ ?शिखा ने पूछा।
'लालची' होना ,मतलब पैसे की लालची और दूसरा' लालच' अपने परिवार का मान -सम्मान ,अपने परिवार की खुशहाली के विषय में सोचने का लालच !उसमें स्वहित छुपा नहीं होता। अब तुम ही अपने को देख लो !यदि तुम्हें पैसे का लालच होता ,तब तुम हमारे चारों लड़कों में से एक लड़के को चुनतीं और आराम का जीवन बसर कर सकतीं थीं। जबकि तुम्हारे सामने हमने स्वयं ये प्रस्ताव रखा ,इसके लिए तुम्हारे घरवाले भी तैयार थे किन्तु तुम लालची नहीं हो, अपने दिल की सुनती हो और जब तुम अपने दिल की सुन रहीं थीं ,तभी पुनीत ने महसूस किया ,[उनका इशारा उसी अनजान लड़के की तरफ ही था जिसका नाम शिखा के सिवा घर में कोई नहीं जानता और शिखा उसे महसूस कर रही थी ]शिखा की आँखों में झांकते हुए दमयंती ने पूछा -क्या मैं झूठ बोल रही हूँ ?
क्या दमयंती के सवालों का जबाब शिखा के पास था ? क्या वो इस सच्चाई को स्वीकार करेगी ?चलिए आगे बढ़ते हैं।