जतिन को उस विवाह में एक अनजान व्यक्ति मिलता है, जो शीघ्र अति शीघ्र, उस बच्ची से मिलकर, अपने घर वापस लौट जाना चाहता है। जतिन का उद्देश्य भी तो उस होने वाली दुल्हन को देखना ही है ताकि वह हकीकत जान सके कि इस विवाह की सच्चाई क्या है ? तब उस व्यक्ति को एक अन्य अनजान व्यक्ति न जाने इस गांव का था , हां गांव का ही होगा, तभी तो वह वहां की गलियों से परिचित था। उसे व्यक्ति को,उस गली में जाने की सलाह देता है जिसके सामने दोनों खड़े थे। ताकि वह शीघ्र ही उस बच्ची के पास पहुंच सके। वह तो सुझाव देकर चला जाता है।
तब वह अनजान व्यक्ति कहता है -हाँ, यही ठीक रहेगा ,वरना ये लोग तो समय लगा देंगे,वह अनजान व्यक्ति उस गली में जाने के लिए मुड़ा ,अभी जतिन वहीं खड़ा था। तब उस व्यक्ति ने रूककर उससे पूछा -क्या आप भी मेरे साथ चलेंगे ?
जतिन अभी सोच ही रहा था ,क्या मुझे इसके साथ जाना चाहिए ?तब उसने नजर भरकर उस व्यक्ति को देखा। उसकी बड़ी -बड़ी आँखें थीं ,सर पर पगड़ी ,मखमल का कुर्ता और धोती ,जतिन सोच रहा था ,मुझे भी तो उस दुल्हन की ही तलाश है ,उसी की तस्वीरों के लिए ही तो इस भीड़ में शामिल हुआ हूँ। यही बेहतर रहेगा इस इंसान के साथ पहले जाकर अपना कार्य कर लेता हूँ। भीड़ में मौका मिले या न मिले। जतिन को इस तरह सोचते हुए देखकर उसने पूछा -क्या सोच रहे हैं ?आना है, तो आइये !वरना उस भीड़ में शामिल हो जाइये !कहते हुए उसके जबाब की प्रतीक्षा किये बगैर ही आगे बढ़ गया।
रुकिए !मुझे भी जाना है ,मैं आपके साथ ही चलता हूँ।
ठीक है ,आ जाइये !किन्तु आगे देखकर लग रहा है ,यहाँ थोड़ा अँधेरा है ,संभलकर चलना ,यहाँ कितनी भी तरक्की हो जाये किन्तु लाइट और सड़कों की हालत खराब ही रहती है कहकर हंस दिया। वैसे आप इसी गांव के हैं, या बाराती !उसने प्रश्न किया।
उसके इस प्रश्न से ,जतिन थोड़ा उलझन में पड़ गया ,अब इसे क्या जबाब दूँ ?यदि ये इसी गांव का हुआ तो कहेगा ,तुम्हें यहाँ पहले तो नहीं देखा ,यदि बाराती हुआ तो...... देर न करते हुए ,तभी जतिन बोला -बारात की तरफ से,वैसे मैं तो रिश्तेदारी में आया था उन्होंने कहा -चलो !तुम्हें दावत करवाते हैं और मैं आ गया।
बहुत सही कहा -और आप !
मैं भी ऐसे ही आया हूँ ,कहते हुए आगे बढ़ गया।
जैसे ही, वे लोग किसी अँधेरे स्थान में पहुंचे , तभी वह बोला -सम्भलकर चलिएगा। तभी जतिन को ऐसा लगा जैसे किसी ने, उसका मुंह जोरों से दबाया है। उस स्थान पर अंधेरा था। वह कुछ समझ नहीं पाया,और इससे पहले की कुछ करने का प्रयास करता उससे पहले ही , उसकी गर्दन पर किसी ने जोर से हाथ मारा और वह बेहोश हो गया।
दृष्टि का विवाह आराम से हो रहा था, कोई बाधा नहीं थी किंतु अभी भी वह लोग सतर्क थे। आज इस विवाह में, उस गांव की अध्यापिका सुनीता नहीं आई थी क्योंकि वह नहीं चाहती थी, कि अब इस विवाह में अब कोई भी बाधा आए और उसका नाम लिया जाए या उसे उन लोगों से मुंह छुपाना पड़े।
दृष्टि को समझा -बुझाकर फेरों के लिए बैठा दिया गया था। उसके लिए तो यह सब खेल लग रहा था।नए कपड़े पहनना ,हाथों में ढेर सारी चूड़ियां ,आभूषण ,मेहँदी ,सबकुछ बहुत अच्छा लग रहा था। जैसे भी पंडित जी या बड़े कह रहे थे ,वह कर रही थी। फेरों के पश्चात, दोनों बच्चे थके हुए थे, भोजन करके सो गए।
घर के बड़ों को जो भी कार्य करने थे ,वह कर रहे थे। प्रातः काल के समय, तारों की छांव में, दृष्टि को विदा किया जा रहा था। जब वह गाड़ी में बैठ गई तो उसके घरवालों ने एक सुकून की सांस ली। लड़की के विदा होते ही, फटाफट वहां से सभी, सामान हटा दिए गए साफ-सफाई अच्छे से कर दी गई।
जब जतिन की आंख खुली, तो एक खिड़की से, उसके चेहरे पर सूर्यदेव अपने प्रकाश से हौले -हौले उसके चेहरे को स्पर्श कर रहे थे। जतिन ने जैसे ही अपनी आँखें खोलीं ,एकदम से उसे सब स्मरण हो आया ,वह फुर्ती से उठ खड़ा हुआ ,मैं यहाँ कैसे आया ?उसने खिड़की से बाहर झाँका। मन ही मन में सोच रहा था -यह मेरे साथ किसने किया ? उस जगह पर तो मैं किसी को जानता भी नहीं था और न ही, कोई मुझे जानता था। मैं इस समय कहां पर हूं ? उसे खिड़की से बाहर झांक कर देख रहा था -' दूर-दूर तक खेत नजर आ रहे थे। यह कौन सी जगह है ? उसने अपना फोन ढूंढने का प्रयास किया किंतु उसे फोन नहीं मिला। वह समझ गया, कि अवश्य ही मुझे किसी ने पहचान लिया था कि मेरे इस विवाह में शामिल होने का उद्देश्य कुछ और ही है। उसने बहुत देर तक दरवाजा खटखटाया किंतु कोई भी उसकी आवाज सुनने वाला नहीं था। उसे वह सब एक स्वप्न लग रहा था, जैसे वह किसी गांव में गया और वहां विवाह में शामिल भी हुआ और अचानक इस जगह कैसे पहुंच गया ?
अब तो कामिनी जी से कोई संपर्क भी नहीं कर सकता। किसी को अपनी सहायता के लिए भी नहीं बुला सकता। बहुत देर तक दरवाजा पीटता रहा। वहां एक मटके में पानी था। उसका गला सूख रहा था उसने थोड़ा पानी पिया और किसी की प्रतीक्षा करने लगा कि कोई तो आए जो उसे, इस जगह से छुड़ाएं किंतु बहुत देर हो जाने पर भी उसे कोई उस तरफ आता नजर नहीं आया।
अब उसका धैर्य जवाब दे चुका था, इसलिए उसने, उस स्थान से निकलने के लिए ,फिर से प्रयास किया। एक खिड़की थी, वह भी बहुत ऊंची थी और सामने लगी खिड़की में,लोहे की मोटे -मोटे सरिये लगे थे। इस तरह, इस जगह किसने यह कमरा बनवाया होगा? कैमरा है या किसी का मकान ! मैं यह भी नहीं जानता।किसी का घर होता तो कोई तो दिखलाई देता ?अब उसे भूख भी लग रही थी, सूर्य देव की रोशनी तीव्र होती जा रही थी उसने अंदाजा लगाया कम से कम 10 या 12 तो बज गए होंगे। उसने सामने वाली खिड़की को उखाड़ने का प्रयास भी किया किंतु सफल न हो सका। वहां पर कुछ भी ऐसा साधन नहीं था, जिससे वह, उसे खिड़की या दरवाजे को खोल सके। इस समय वह अपने को विवश पा रहा था।
कामिनी, ने सुबह उठकर, जतिन को फोन लगाया किंतु उसका फोन ही नहीं लग रहा था, स्विच ऑफ बता रहा था। आखिर यह लड़का कहां रह गया ? पता तो चले कहां है ? तब उसने सरोजिनी को और अपने अन्य साथियों को भी फोन किया और उनसे पूछा -क्या उनकी जतिन से कोई बात हुई ?
नहीं, जब हम उसे,उस गांव के पास छोड़ कर आए थे, तब से हमारा उससे कोई संपर्क नहीं रहा ,न ही कोई फोन किया। अब तो दोपहर का 1:00 बज गया। अब तक तो उसे ,कहीं भी हो, आ जाना चाहिए था या हमें फोन करके सूचित करना चाहिए था आखिर वह कहां पहुंच गया ? कामिनी जी को चिंता होने लगी।आखिर जतिन कहाँ रह गया ?क्या कामिनी जी की चिंता सही है ?आगे बढ़ते हैं।