Sazishen [part 104]

तुषार अपनी मां [ सौतेली मां]को पसंद नहीं करता था,चांदनी, उसकी मां बनने लायक ही नहीं थी। उसकी उम्र और तुषार की उम्र में सिर्फ 8से 10 साल का अंतर था।  इसी बात से वह चिढ़ता था, इसी बात का उसे दुख था। क्या इसे विवाह करने के लिए मेरे पिता ही मिले थे। जो हो गया ,सो हो गया किंतु उसका व्यवहार भी तो सही नहीं है, तुषार को एक पल भी उसने ठीक से वहां रहने नहीं दिया। उसके व्यवहार के कारण ही तुषार यह घर छोड़कर चला गया था। अब विवाह के पश्चात कल्पना के कहने पर वह ,इस घर में आया था। अब उसका मन लग रहा है क्योंकि उसकी पत्नी, उसकी पत्नी की बहन और उसकी मां, उनके आने से उसे अच्छा महसूस हो रहा था। जब नीलिमा अपने घर वापस जाने के लिए कहती है ,तब कल्पना फिर माँ  को रोकते हुए कहती है -इतना बड़ा घर है ,आप यहां भी रह सकती हैं।बार -बार जाने की बातें क्यों करती हैं ? किंतु नीलिमा, अभी उसे इस बात के लिए रोक देती है और भविष्य मैं संभावना जताती है कि वह आ सकती है। 

वह चांदनी को ढूंढ रही थी ,किंतु चांदनी उसके सामने नहीं आई, क्योंकि नीलिमा की जहरबुझी  मुस्कान वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। अगले दिन तुषार और कल्पना 15 दिनों के लिए ,घूमने के लिए बाहर चले जाते हैं। कल्पना के विवाह के पश्चात से, शिवांगी अब शांत रहने लगी थी। उसके यहां आने का उद्देश्य ही समाप्त हो चुका था। 

एक -दो बार मिली मां ने उससे पूछा भी था -क्या कोई बात है ? तुम इतनी शांत क्यों हो ?

तब वो कहने लगी -अब दीदी ,अपने घर चली गई हैं , इस घर की अब संपूर्ण जिम्मेदारी मेरे ऊपर है, तो मेरा गंभीर होना स्वाभाविक है। उसकी यह बात सुनकर नीलिमा हंस दी और बोली -मेरी बड़ी -बूढी , अभी तेरी मां जिंदा है ,तुझे इतना गंभीर होने की आवश्यकता नहीं है ,पर यह तो बता ! तूने तो कहा था -कि एक लड़का है, वह कौन है ?कहां है ?उसे मुझसे  मिला ! मैं उससे बात करूंगी। मैं तो यही चाहती हूं ,कि दोनों बहनें ही, अपने घर -परिवार की हो जाएं और मैं अपनी जिम्मेदारियां से मुक्त होकर आराम से कभी तुम्हारे घर और तो कभी कल्पना के घर, ऐसे ही अपना समय गुजार दूंगी।

 शिवांगी मन ही मन सोच रही थी -मम्मा , कितनी खुले दिल की हैं , कितना सकारात्मक सोचती हैं ?

काश ! कि हमारी सोच भी ऐसी हो, तो हमें जिंदगी में किसी भी तरह की परेशानी न हो।किन्तु हमारी मम्मा ने तो बहुत ही परेशानियां देखी हैं। मैंने तुषार से प्रेम किया ,इसमें किसी की गलती नहीं है ,न ही तुषार की और न ही कल्पना दीदी की ,गलती तो मेरी है ,मैंने कभी उससे ,अपने प्रेम का इज़हार किया ही नहीं। अपने दर्द के साथ मैं इसी तरह जी लूंगी। शिवांगी नोेकरी की तलाश में इधर -उधर भटकने लगी। चांदनी के विषय में कल्पना और नीलिमा ही जानती थी। रिसेप्शन पर पार्टी में भी, वह लोग न हीं आपस में उनकी भेंट  हुई इसलिए शिवांगी चांदनी के विषय में कुछ भी नहीं जानती  थी  कि  चांदनी कौन है, क्या करती है ? और न ही नीलिमा और कल्पना को उसे चांदनी के विषय में बताने का कोई ऐसा अवसर मिला कि उसके विषय में बात होती। कल्पना अपने हनीमून से आ गई थी और दोनों ही पति- पत्नी उसी घर में रहकर अपनी नौकरी पर जाने लगे थे। अक्सर उन दोनों में कभी कोई बात होती तो आपस में ही सुलझा लेते हालांकि तुषार तो अभी चाहता था कि हमें किराए के मकान पर चले जाना चाहिए लेकिन कल्पना जाने के लिए तैयार नहीं थी। वह हमेशा जावेरी  प्रसाद जी का वास्ता देकर उसे रोक लेती थी, इस उम्र में पापा अकेले रह जाएंगे। इन्हें छोड़कर अलग कहां जाना है ? यदि आपकी चांदनी से नहीं बनती है. तो आप उस नजर अंदाज कर दीजिए लेकिन उसके लिए अपने पिता को तो नहीं छोड़ा जा सकता , यह कहकर उसे समझ लेती थी।

 शिवांगी का अचानक से न जाने क्यों, व्यवहार बदलने लगा। न जाने क्यों आजकल खोई-खोई सी रहती है। 

मम्मा ! मैंने तो उससे पहले भी कहा था कि जहां मैं नौकरी करती हूं, वही तुझे काम दिलवा दूंगी क्या आप जानती हैं ?वह तुषार के पापा की कंपनी है। मैं भी कितनी बुद्धू हूं ,उस कंपनी में नौकरी करती थी और एक बार भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि  यह कंपनी किसकी है ? किंतु तुषार ने मुझे इसके विषय में एक बार भी नहीं बताया था। मम्मा ! ऐसा करिए, जो लड़का वह बताती थी, उसी  लड़के से बात कीजिए उसका भी साथ में मिल जाएगा, खुश रहने लगेगी हंसते हुए कल्पना बोली। 

अरे!!! हां ,याद आया, एक दिन ,एक- दो बार मैंने उससे बात की लेकिन बात इधर-उधर हो गई मजाक में चली गई फिर ध्यान ही नहीं रहा कह रही थी- दीदी !के जाने के पश्चात परिवार की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है, हंसते हुए बोली- देखो! कितना बड़ा परिवार है? एक मैं हूं और उसका भाई है और वह स्वयं है, और वह अभी से कितनी दादी अम्मा हो गई है, न जाने कहां खोई रहती है ? किंतु मुझे उसका स्वभाव कुछ दिनों से बदला हुआ सा लग रहा है। 

मम्मा ! आप उससे बात कीजिए ताकि पता तो चलेगा,वह  क्या सोच रही है ? जिस दिन वह यहां आई थी उस दिन बहुत खुश थी किंतु जब तुम्हारे रिसेप्शन में गए, उसके पश्चात , वहां से आकर न जाने क्यों उसने गंभीरता ओढ़ ली ?

मैं तुषार से बात करूं? वे उसके दोस्त भी हैं, वह उससे उसके दोस्त के विषय में पूछ लेंगे और रिश्ते में,उसके जीजा भी है। कुछ तो पता चले। 

अच्छा यह बता ! तेरी सास का व्यवहार तेरे प्रति कैसा है ? 

आप उसकी फिक्र मत कीजिए ! वह सास- बहू के झगड़ा करना चाहती है,गलतफहमी फैलाना चाहती है किंतु मैं वही या तो काट कर देती  हूं या बात को दबा देती हूं। ज्यादा परेशान करेगी, तब देखेंगे ,क्योंकि अभी तक तो तुषार मेरे साथ हैं इसलिए मैं सब संभाल लेती हूं। वह नाराज होते रहते हैं। कि हमें यहां नहीं रहना चाहिए था। किंतु मम्मा ! आप ही बताइए! इतना अच्छा मकान छोड़कर कौन जाता है ?

 जब तक संभाल सकती हो , संभालती रहो ! वरना मुझे बुला लेना। क्रोध में दांत पीसते हुए नीलिमा बोली। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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