Shaitani mann [part 8]

रात्रि में, मां का अचानक फोन आता है, एकांत स्थान में जाकर,नितिन  माँ से बातें करता है। इन्हें मेरी इतनी फिक्र क्यों रहती है ? क्या इनकी ममता या फिर इनका डर बार -बार मुझे आगाह करते रहते हैं ?पहले तो ,हालचाल पूछती हैं ,उसके पश्चात ,उनका उद्देश्य सामने आता है ,समझाना - बेटा ! अपना ख्याल रखना , ये दुनिया है ,इसमें अच्छे -बुरे सभी तरह के लोग मिलेंगे। कुछ अच्छी राह दिखाएंगे, तो कुछ बुरी राह दिखाएंगे। यह मानव प्रकृति है, कि वह अच्छी बातें कम सीखता और कम ही ध्यान देता है, और बुरी बातों की तरफ शीघ्र खिंचा चला आता है क्योंकि उनमें आकर्षण है , जो चीज, तुम्हें आकर्षित कर रही हैं यह आवश्यक तो नहीं कि वह अच्छी ही हों।  यह तुम्हारा अपना निर्णय होना चाहिए, कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है ? रास्ता हमें स्वयं चुनना होगा ? 


मां की बातें सुनकर नितिन को थोड़ा सुकून मिलता है, मन में शांति का एहसास होता है  किंतु दूसरे ही पल सोचता है ,हमें कौन सी राह चुननी है ? क्या इसके लिए हम स्वतंत्र हैं ? वह अपने को ऐसे महसूस कर रहा था ,जैसे -वह बीच में खड़ा है और एक बांह 'कार्तिक चौहान 'ने पकड़ी हुई है ,तो दूसरी माँ और उसके परिवार ने ,वह कभी दांये खिंचता है तो कभी बाएं !दोनों ही उसे अपने -अपने तरीके से अपनी ओर खींच रहे हैं किन्तु किसी का भी ध्यान उसकी दुखती बाजुओं पर नहीं है , कोई नहीं चाहता, कि वह स्वयं क्या चाहता है ? मेरी इच्छा ही अनिच्छा का प्रश्न ही नहीं है , हर कोई अपनी ओर खींचना चाहता है। 

जब वह कॉलेज के कुछ छात्रों को, दीवार फांदकर बाहर जाते देखता है ,तब वह सोचता है। क्या यह कॉलिज एक कैद है, नियम ,संयम से बनी हुई कैद ! क्यों ये लोग ,इससे पार उड़ना चाहते हैं ? क्यों इससे पार जाना चाहते हैं ? यहां सुकून का एहसास क्यों नहीं होता ? ये  दीवारें क्यों हैं ? क्योंकि ये दीवारें सीमाएं तय करती हैं और सीमाओं में कोई बंधना नहीं चाहता। अच्छी बातें आकर्षित तो करती हैं, कुछ पल के लिए शांति भी देते हैं ,लेकिन मन की बेचैनी उद्वेलित करती रहती हैं , यह हमारे वश में क्यों नहीं है ? यह भटकना चाहता है, अपनी एक नई राह, नई मंजिल चुनना चाहता है। उस भटकाव में, भी सुकून ढूंढना चाहता है। कहीं ऐसा ना हो, यहीं कहीं मंजिल मिल जाए।

 नियम और संयम में बंधकर तो देख लिया, क्या दीवार के उस पार सुकून है ? अपने हॉस्टल की बेंच पर बैठकर आंख मूंदे वह सवालों  और जवाबों से जूझ रहा था। मुझे क्यों इतना, उलझन का एहसास हो रहा है? मैं क्यों नहीं ?इस स्थान से भाग जाता , जैसे अन्य लोग भी भाग जाते हैं ? और भाग रहे हैं, यह मेरे संस्कार हैं  जो मुझे रोक रहे हैं। या मैं 'कूप मंडूक 'की तरह, उसमें ही लिप्त रहना चाहता हूं ,बाहर आने से डरता हूं। कहीं मेरा कोई अनिष्ट न हो जाए, क्या ये भी मेरी तरह ही सोचते होंगे ? सही -गलत की उलझन में फंसे रहते होंगे। मैं क्यों खुलकर नहीं जी पा रहा हूं , एक घुटन का एहसास होने लगा है। क्या है ,मेरी इच्छा ! मुझे क्या चाहिए ? मैं यहां पढ़ने आया था, पढ़ तो यह सब भी रहे हैं, किंतु मैं, क्यों इस जीवन का आनंद नहीं उठा पा रहा हूं ?

आखिर मां क्यों डर रही है बार-बार मुझे क्यों समझाती है ? क्या अब भी मैं ,मां का पल्लू पकड़ कर ही आगे बढूंगा ,क्या वह पल्लू मेरा सहायक है ,मुझे प्रोत्साहित करता है, या फिर मेरी सीमाएं तय करता है ? मैं जिंदा हूं, मेरा भी वजूद है, तो क्या मां के आंचल के नीचे मेरा वजूद मुझे दिखलाई नहीं दे रहा। घर वालों की परेशानियां दिखलाई देती हैं, जिनके लिए मैं पढ़ रहा हूं, मैं अपने लिए जी रहा हूं या फिर परिवार वालों के लिए उनकी इच्छाओं के लिए उनके मान के लिए, तब इस सब में,मैं कहां हूं ? 

बहुत देर वह तक शून्य में, तकता रहा, उस अंधकार में, शून्य भी न जाने कहां लुप्त हो गया ? रह गई तो बस आसपास चंद  आवाज़ें वो भी , स्पष्ट नहीं हैं। वह उस स्थान से उठता है और अपने कमरे की ओर प्रस्थान करता है। कहां गया था ? एक प्रश्न उसके कानों में, प्रविष्ट हुआ ?उसने आवाज की दिशा में अपनी दृष्टि घुमाई। 

कहीं नहीं, मम्मी का फोन था , तब सुमित तो रोहित को इस तरह कमरे में देखकर, उसे हैरत हुई और पूछा -आज तुम लोग दीवार के उस पार नहीं गए। 

जाना तो चाहते हैं, किंतु वहां जाने के लिए पैसा चाहिए , जो ना इसके पास है ,न ही मेरे पास, उस  दुनिया की रंगीनियां मुफ्त में ही नहीं मिलती, इनको पाने के लिए भी मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है , तब जाकर उनका आनंद उठा पाते हैं। 

वैसे एक बात पूछूं !

वहां जाना ही क्यों है ? क्या वहां सुकून और आनंद का एहसास होता है। 

नहीं रे....... सुकून और आनंद नहीं मिलता, बल्कि वहां जाकर अपने आप को भूल जाते हैं। मन  का जो  खालीपन है, उसको भरने जाते हैं किंतु [जेब की तरफ इशारा करते हुए ]रिक्त होकर आ जाते हैं और अधिक सूनापन, दूर-दूर तक अंधकार कोई अपना या साथी नजर नहीं आता, हम जी रहे हैं। हम अपनी मनमर्जियां के लिए बदनाम हैं किंतु कैसी मनमर्जी ? किसी ने हमारी मनमर्जी जाननी ही नहीं चाही , किसी की जिंदगी में हमारा कोई महत्व नहीं है, हम किसी के लिए कोई मायने ही नहीं रखते तभी तो घर वालों ने हमें यहां भेज दिया है। अपनों से दूर....... अपने इस खोखले मन में, हंसी का आवरण ओढ़े, खुशियां तलाशते रहते हैं। 

यार ! सीने पर हाथ मारते हुए, इस दिल में जो एक खालीपन है , उसको भरना चाहते हैं लेकिन यह भी फ्री में नहीं मिलता , तब हमारी सहायता कार्तिक चौहान ही करता है। 

वैसे वह क्या काम करता है ?

हमें नहीं मालूम ! रोहित बोला। 

 समय के साथ-साथ सब पता चल जाएगा कहते हुए , सुमित मुस्कुराते हुए बोला -अब देर रात हो गई है, चलो !अब सो जाते हैं। शुभ रात्रि !

शुभ रात्रि ! वही विचारों का बवंडर फिर से नितिन के इर्द -गिर्द मंडराने लगता है, यह परिवार से दूर रहकर भी खुश नहीं है। बाहरी दुनिया की रंगीनियाँ भी, उनके हृदय के सूनेपन को न भर सकीं, फिर खुशी कहां है ? किस में है ? कार्तिक चौहान ऐसा क्या कार्य करता है ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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