Shaitani mann [part 7]

आज नितिन के हॉस्टल के कमरे में ,एक नया सदस्य आया था, उसकी बातचीत करने का तरीका, और पहनावा बहुत ही अच्छा था ,श्वेत वस्त्रों में कहीं दाग़ नहीं ,किंतु उसकी सोच और उसका व्यवहारिक तरीका बिल्कुल भिन्न था पहनावे से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता था। जैसे किसी की 'कथनी और करनी में अंतर् होता है ''इसी तर्ज़ पर' कार्तिक चौहान ' भी था। मुंह में पान, माथे पर तिलक, किंतु कर्म बिल्कुल शैतानों वाले ! नितिन अपने साथ के रोहित चोपड़ाऔर सुमित सहगल से वैसे ही परेशान था, किंतु जब यह नया व्यक्ति आया था, उन दोनों के मन में उसके प्रति बड़ा ही सम्मान था बड़े आदर के साथ उसकी  आवभगत की  किंतु धीरे-धीरे कार्तिक चौहान की असलियत नितिन को पता चल गई। 


इस कॉलेज का बहुत पुराना -छात्र था, पढ़ा या नहीं पढ़ा यह तो नितिन नहीं जानता किंतु इतना अवश्य समझ गया है कि आजकल के नए छात्रों को, कॉलेज से ज्यादा ,वही शिक्षा देता है। उनकी होसलाअफजाई करता है ,किसी को पैसे की किल्ल्त है ,तो उन्हें पैसे कमाने का तरीका बतलाता है किन्तु वो तरीक़ा क्या है ?अभी नितिन नहीं जानता,शायद पहले उसे अपने समुदाय में शामिल करता है। जैसे  शराब पीना, सामिष भोजन करना, उसके समुदाय में शामिल होने की पहली शर्त हो। उन्हें सब सिखा दिया जाता है इसका सबूत स्वयं नितिन है क्योंकि नितिन को उसने कल रात्रि को ही, शराब और, मांसाहारी भोजन खिला दिया। इस सबमें नितिन उसके व्यवहार से ,या उसके विचारों से कितना प्रभावित हुआ ?यह तो स्वयं नितिन भी नहीं जानता  किन्तु इतना अवश्य जानता है कि यहाँ सभी कार्यों की ओर जबरदस्ती धकेला जाता है। 

उन सबके दबाव में आकर वह सब खा तो गया, किंतु अब उसे यही सोच -सोचकर अपने पर ग्लानी हो रही थी कि उसने क्यों उसके दबाव को सहन किया ,उसका विरोध क्यों नहीं किया ? नितिन,बार-बार पानी से कुल्ले  कर रहा था ताकि जो भी रात्रि में उसने खाया है और पिया है वह बाहर आ जाए। उसका ये दर्द ,उसकी आँखें सहन न कर सकीं और उनमें अश्रु बह चले ,किंतु जो रात्रि में उसके साथ हुआ,उसको झुठला न सका। खाया -पिया तो कब का हजम हो गया? गया वक्त कभी वापस नहीं आता,खाया भोजन भी मल ही बन जाता है। 

दूर शहरों से या गांव से छात्र यहां पढ़ने आते हैं किंतु न जाने ,कहां का वातावरण कैसा है ? हर कोई अपनी ही मस्ती में झूम रहा है। अपने घर -परिवार को छोड़कर, शिक्षा से दूर ,जीवन की लड़ाई लड़ने की तैयारी में है हालांकि उसका माध्यम शिक्षा ही है किंतु वह शिक्षा कितनी ग्रहण कर रहा है ?यह तो बस वही जानता है। अभी तक जब से वह कॉलेज में आया है तब से उसने ज्यादातर लड़कों को, कॉलेज के नियमों को ताक पर रखकर, कॉलेज की दीवार फांदकर भागते देखा है या फिर किसी सीनियर की, चापलूसी करते देखा है। 

क्यों ?ये सभी अपनी पहचान भूल गए हैं , क्यों ,अपने उद्देश्य से भटक रहे हैं ? अनेक प्रश्न नितिन के मन में आते हैं किंतु नितिन के मन में वे प्रश्न भी आए , जो कार्तिक चौहान उससे कह कर गया था, क्या, जिंदगी का उद्देश्य मौज -मस्ती करना ही है ? जिन चीजों को बुरा माना जाता है, क्या वही करना ,हमारी जिंदगी का उद्देश्य है ? या यही मौज -मस्ती है।  परिवार के लोग ,न जाने किस तरह से, उनकी इच्छाएं और उनके भविष्य के लिए, रात- दिन एक करके उन्हें पैसा दे रहे हैं और ये लोग ...... एक नई राह पर चल पड़े हैं। क्या उनसे कोई जबरदस्ती कर रहा है ? हां, उन्हें भटकाने का प्रयास तो किया जा रहा है किंतु वह कब तक भटकना चाहते हैं ?यह तो उन पर निर्भर करता है। 

कार्तिक चौहान क्या हस्ती है ? जब इसके पास पैसा नहीं है ,तो यह पैसा कमाना कैसे सीखाता है ?जब इसे पैसा कमाना आता है तो स्वयं क्यों नहीं अमीर हो गया ?या फिर हम लोग ही उसके माध्यम हैं।  आत्मनिर्भर होना तो अच्छी बात है। न जाने कितने विचार मन में आ जा रहे थे ? उसके अंदर एक द्वंद्व चल रहा था ,क्या सही है, क्या गलत है ? क्या घरवालों ने जो सीख दी है ? वह सही है , वे सीधी राह पर चलाना सिखला रहे हैं, या कदमों के ऊपर क़दम रखकर चलना सिखला रहे हैं। जो मेरे दादा ने किया ,पिता उनके पद्चिन्हों पर चले और अब मुझसे भी ऐसी ही उम्मीद करते हैं। अपनी तो कोई पहचान ही नहीं रही हैं , अपना कोई रास्ता या मंज़िल भी नहीं है, बस जो रास्ता है ,उसको दोहराना है।

या फिर ''कार्तिक चौहान'' का कथन सही है -हमें अपनी राह स्वयं चुननी है , अपनी एक अलग पहचान बनानी है ,तो कार्तिक चौहान के बताये रास्ते पर क्यों चलना है ?क्या इसके लिए गलत राह चुनना ही सही होगा ? कोई उचित मार्ग भी तो हो सकता है। उसका यह कथन तो सही है -कि जब मौज- मस्ती की उम्र है। इस उम्र में हम आगे बढ़ना चाहते हैं, इस उम्र में पढ़ाई करते-करते, अपने जीवन के कुछ सुनहरे पल खो देते हैं। किंतु ज्ञान अर्जन करने की और शिक्षा की भी तो यही उम्र है, तब कैसे निर्णय होगा ? हमें किस राह पर जाना है ? कॉलेज के हॉस्टल की बेंच पर बैठा हुआ, नितिन सोच रहा था, तभी उसने देखा कुछ लड़के, इस तरह दीवार फांदकर बाहर जाने का प्रयास कर रहे हैं। क्या यह सब उचित है ? इन दीवारों के पर भी एक नई दुनिया है , जहां इन्हें, आनंद आता है किंतु मैं तो, उसका भी लाभ नहीं उठा पाया। क्यों मैं हर चीज को उचित अनुचित के तराजू में तोेलता रहता हूं ? क्यों, मैं इस चक्रव्यूह से बाहर नहीं आ पाता  ? या निकालना ही नहीं चाहता। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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