यह क्या नई मुसीबत आ गई ? चांदनी सोच रही थी, कि सब कुछ अच्छे से चल रहा था। तुषार भी ,यहां नहीं रहता है ,उसकी जिंदगी अच्छे से और मजे में कट रही थी ,किंतु यह अचानक कल्पना से, उसका विवाह होना और नीलिमा का उसके घर पर आना। यह सब उस मात्र संयोग नहीं लग रहा है। वह सोच रही थी- अवश्य ही, इसमें नीलिमा की कोई चाल भी हो सकती है। आखिर वह यहां क्यों आई है ? मन ही मन सोच कर परेशान हो रही थी , मुझे उससे बदला लेना था ,लेकिन मुझे लगता है कि वह यहाँ मुझसे बदला लेने आई है, किंतु मैं उसे कामयाब नहीं होने दूंगी पहले तो उसने मेरे घर का पता लगाया। वह उस दिन को स्मरण कर रही थी जिस दिन नीलिमा उसकी गाड़ी का पीछा कर रही थी और अब, उसने अपनी लड़की को ही ,मेरे घर मेरे सौतेले बेटे की बहु बनाकर यहाँ भेज दिया किंतु इसे कैसे पता चला होगा ?कि तुषार 'जावेरी जी ''का बेटा है। अवश्य ही, उसकी कोई चाल होगी, लेकिन कल्पना की बातों से तो नहीं लगता कि वह कुछ भी जानती है किंतु अब लड़की बड़ी हो गई है किस तरह से ज़िरहबाजी कर रही थी। इसने तो उन बचपन की यादों को सोचकर भी, मेरा सम्मान नहीं किया।आज भी मुझे अपने घर की वही नौकरानी समझ रही है।
यही सोच -सोचकर वह परेशान हो रही थी तभी उसके कमरे में कल्पना ने प्रवेश किया और बोली-दीदी ! बताओ कौन सी साड़ी पहन रही हो और मैं क्या पहनू ?
उसकी शक्ल देखते ही, चांदनी चिढ़ गई और बोली -पहली बात तो अब मैं तुम्हारी दीदी नहीं ,रही बात पहनने की ,वो तुम्हारा तुम जानो, मैं कुछ नहीं जानती, और इस तरह से ,मेरे कमरे में कभी आने की आवश्यकता नहीं है। बिना पूछे ,अंदर मत चली आना।
कल्पना को, इस तरह चांदनी का जवाब देना ,अच्छा नहीं लगा। वह तो सुबह की नोंकझोंंक को बातचीत से सुलझा लेना चाहती थी किंतु लगता है ,चांदनी इस रिश्ते को किसी भी रुप में स्वीकारना ही नहीं चाहती है वह चुपचाप उठी और अपने कमरे में आ गई। चांदनी के मिलने से उसे प्रसन्न होना चाहिए था क्योंकि दोनों ही पहले से एक -दूसरे को जानती हैं ,किन्तु आते ही उनकी इस नोकझोंक ने ,उस रिश्ते में कड़वाहट भर दी। दुःखी होते हुए ,अपनी मम्मी नीलिमा को फोन लगा दिया, नीलिमा ने अपनी बेटी की समस्या पल भर में हल कर दी। नीलिमा ने अपने ससुर से, तैयार होने के लिए, ब्यूटी पार्लर वाली को घर पर ही बुलवा लिया और साथ में ही ,उसे कुछ लहंगे के डिजाइन, लेकर बुलाया और वह तैयार होने लगी।
अभी तक कल्पना ने , चांदनी के विषय में नीलिमा से कोई भी बात नहीं की थी इसी कारण से नीलिमा परेशान थी, वह सोच रही थी -पता नहीं ,चांदनी उसके साथ कैसा व्यवहार कर रही होगी ?किंतु अभी तक बेटी ने , चांदनी के विषय में उससे ऐसी कोई भी बात नहीं कहीं और न ही उसने बताया -कि चांदनी ही चंपा है।
नीलिमा परेशान हो रही थी , तभी उसकी बेटी शिवांगी आ गई और दोनों मां -बेटी शाम को कल्पना के यहाँ कार्यक्रम में जाने की तैयारी में जुट गईं , अभी तक माँ -बेटी दोनों ही कल्पना को नहीं मिली और कल्पना यह भी नहीं जानती थी ,कि शिवांगी आ चुकी है और शिवांगी को उसके विवाह के विषय में पता भी चल चुका है। ऐसे समय में चांदनी भी ,उन लोगों के सामने जाने से कतरा रही थी। उसे लग रहा था कहीं नीलिमा कुछ ऐसी बात न कह दे कि उसके दोस्तों में उसकी हंसी हो। मंच पर दूल्हा -दुल्हन आ चुके थे और सभी बड़े आशीर्वाद और कुछ उपहार उन्हें दे रहे थे। नीलिमा भी अपनी बेटी शिवांगी के साथ मंच पर गई शिवांगी को देखते ही नीलिमा प्रसन्न हो उठी और उठकर, शिवांगी के गले लगी और शिवांगी का परिचय तुषार से कराया तुषार उसे देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ और बोला -तुमने तो मुझे चौका ही दिया। क्या कल्पना तुम्हारी बहन है ?
तुषार से शिवांगी भी ,मजाक करते हुए बोली- अच्छा विदेश में मैं ,और भारत में मेरी बहन ! यहाँ साली बना लिया ,कहकर हंसने लगी हालांकि यह उसने अपने मन की सच्चाई कही थी, किंतु उस बात को मजाक में ले गई। तब कल्पना और नीलिमा को पता चला शिवांगी और तुषार एक दोनों ही एक दूसरे को जानते हैं, और साथ में पढे भी हैं, तुषार, शिवांगी से सीनियर था, अक्सर शिवांगी को उसकी सहायता की आवश्यकता पड़ जाती थी। विदेश में उसे ,वही अपना सा लगता था।
नीलिमा की नजरें किसी और को भी ढूंढ रही थी और वह थी चांदनी ! बाहरी दिखावे के तौर पर तो नीलिमा हंसी -खुशी से सब कर रही थी किंतु इस घर में उसकी एक दुश्मन रहती है, जिसने उसकी जिंदगी को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सब ने मिलकर खाना खाया तब नीलिमा ने कल्पना से पूछा -तुम खुश तो हो !
मम्मी !मैं आपसे एक बात बताना चाहती हूं, रहस्यमय तरीके से कल्पना नीलिमा से बोली।
हां हां मुझे कोई परेशानी नहीं है, मैं बहुत खुश हूं।
तुम्हारी सास कैसी है ?
उसी के विषय में तो मैं आपसे बात करना चाहती थी, क्या आप जानती हैं ? उस दिन प्रतियोगिता में जो चांदनी थी आज वह तुषार की मां है और वह चांदनी और कोई नहीं ,हमारी चंपा ही है।
यह बात तुम मुझे क्यों बता रही हो? मैं तो बहुत पहले से जानती हूं ,नीलिमा ने उसके रहस्य को हंसते हुए ,जैसे -हवा में उछाल दिया, किंतु कल्पना के लिए यह और भी रोमांचक हो गया तभी वह बोली -आपको कैसे पता चला ? मैंने तो उसी दिन तुमसे कहा था कि यह चांदनी नहीं, चंपा है, किंतु उस दिन ,तुमने मेरी बात नहीं मानी, जब नीलिमा की दृष्टि किसी पर पड़ जाती है और उसको पहचान जाती है ,तो वह उसे भूलती नहीं,
कहीं आपने यह रिश्ता जानबूझकर तो नहीं किया, कल्पना ने शंका जतलाते हुए कहा।
नीलिमा मुस्कुरा दी और बोली -अब हम चलते हैं, तुम्हारी बहन बहुत दिनों के पश्चात घर आई है उससे भी बातें करनी है।
क्या ?मम्मा ! आप मुझे छोड़ कर फिर से जा रहे हो ! इतना बड़ा घर है ,आप यही क्यों नहीं रह जातीं ?
वह समय भी आएगा, आज तो मिसेज खन्ना के लिए भी एक सबक हो गया होगा। उसकी हालत देखते ही बन रही थी जब उसने नीलिमा को मंच पर चढ़कर जाते देखा और जब तुषार,नीलिमा को सास होने के नाते उसके पैर छू रहा था। तब नीलिमा ने मिसेज खन्ना की तरफ मुस्कुराकर देखा ,जिस कारण वो उसे देखती रह गयी।
मिसेज खन्ना ,मन ही मन सोच रही थीं -ये किसी उद्देश्य से ही यहाँ आई है ?चांदनी भी इससे चिढ़ती थी किन्तु आज इसने अपनी बेटी को ,इसी घर की बहु बना दिया। इस समय नीलिमा उसे रहस्य्मयी सी लग रही थी। मन तो किया था ,इस पार्टी को छोड़कर चली जाऊँ किन्तु इस तरह जाने से जावेरी प्रसाद जी को बुरा लगेगा ,उनसे तो पहले से हमारे संबंध अच्छे रहे हैं किन्तु नीलिमा का इस तरह यहाँ आना किसी रहस्य की ओर इंगित कर रहा है।