नीलिमा ,अपनी बड़ी बेटी कल्पना का विवाह करके उसे अपनी ससुराल भेजती है,उसके जाने के पश्चात, नीलिमा उदास हो जाती है। अपने उसे सूने घर में वापस आती है ,जहां उसका बेटा अथर्व बैठा हुआ है। वह अथर्व के गले मिलकर खूब रोती है। उसे और अपने आपको समझाती है - बेटा !अब तो दीदी के बगैर ही, हमें यहां रहना होगा। हम माँ -बेटा ही अब मिलकर यहाँ रहेंगे। नीलिमा पूरे दिन की थकी हुई थी और वह सो गई।
कल्पना प्रसन्नता पूर्वक खुशी-खुशी अपने घर [ ससुराल ]पहुंचती है , वहां जाकर देखती हैं, घर में कोई रौनक नहीं है,जैसे शादी वाला घर होता है। वह तुषार की तरफ देखती है, तुषार उसकी भावनाओं को समझते हुए कहता है -मैं पहले ही कह रहा था, कि हमें यहां नहीं आना चाहिए किंतु तुम ही नहीं मानीं।
यार ! मैं ऐसा नहीं कह रही हूं, बल्कि मैं तो यह सोच रही हूं ,तुम इतना, बड़ा मकान छोड़कर, मकान नहीं विला छोड़-कर किराए पर रहते हो। लोग बाग ऐसे घर के लिए मरते हैं, इतना बड़ा घर पाने की चाहत में ही, पैसा कमाने के लिए,रात दिन एक करते हैं और तुम हो, कि इतना बड़ा मकान छोड़कर ,किराए के मकान में रह रहे हो।तुमने कभी इसके विषय में क्यों नहीं बताया ?
कोठी के अंदर जब गाड़ियां प्रवेश करती हैं,तभी कई सभी नौकर निकलकर घर से बाहर आते हैं , क्योंकि एक गाड़ी उनमें सजी हुई थी, जावेरी प्रसाद जी गाड़ी से उतरते हैं और नौकरों से कहते हैं -सामान,बाहर निकालो और अपनी मालकिन से कहो ! बहु -बेटा आए हैं ,उनका स्वागत करें ! उसके पश्चात, वे कल्पना और तुषार के पास आते हैं और कहते हैं -बेटा ! यह सब इतना अचानक हुआ है, घर की कोई सजावट नहीं हो पाई है ,न ही, घर में किसी को मालूम है किंतु तुम लोग चिंता मत करना कल को एक शानदार पार्टी होगी और उसमें सभी मेहमानों और रिश्तेदारों को बुलाया जाएगा और इस घर को दुल्हन की तरह सजाया जाएगा। लोगों को पता तो होना चाहिए कि 'जावेरी प्रसाद जी 'के बेटे का विवाह हुआ है। कहते हुए ,वह आगे बढ़ते हैं और तुषार और कल्पना से कहते हैं तुम लोग अभी, गाड़ी में ही बैठो या फिर बगीचे में ठहर लो ! तुम्हारे स्वागत की तैयारी की जाएगी, यह कहकर वह चले जाते हैं।
तुम व्यर्थ में ही, मुझे यहां ले आईं , वहां हम लोग अपने दो कमरे के मकान में आराम से रहते।
, तुम कुछ नहीं समझते हमेशा तैश में रहते हो, वहां वो आराम कहां होगा ?आराम तो यहां होगा, अब इस मकान को देखकर लग रहा है कि हां मैं किसी बड़े घर -परिवार की बहू हूँ , जोश में, कल्पना बोली। उसे मन ही मन बहुत प्रसन्नता हो रही थी, जाने अनजाने वह एक समृद्ध परिवार की बहू बन गई है।
तुषार थोड़ा परेशान लग रहा था ,किन्तु कल्पना के चेहरे की प्रसन्नता देखकर ,वह चुप था। जावेरी प्रसाद जी को गए हुए, बड़ी देर हो गयी किन्तु अभी तक उन्होंने हमें अंदर क्यों नहीं बुलाया ? इस बात से तुषार को झुंझलाहट हो रही थी किन्तु कल्पना को अच्छे अनुभव हो रहे थे। इससे आगे क्या होने वाला है ? यह वह नहीं जानती है। ऐसे समय में ,उसे अपनी मम्मा की बहुत याद आ रही है ,काश ! मैं उन्हें अपनी ससुराल दिखा पाती। उन्हें बता पाती तुषार कोई ऐरा -गेरा लड़का नहीं है।
तभी एक नौकर उन दोनों को बुलाने आता है ,''ग्रहप्रवेश ''के लिए आइये !
तब न जाने ,अचानक कल्पना को क्या सूझा ?उसने घूंघट निकाल लिया ,अब तुम ये क्या कर रही हो ?मैं इस घर की बहु हूँ ,बहु की तरह ही ,घर में प्रवेश करूंगी,कहते हुए आगे बढ़ती है ,किन्तु जैसे ही मुख्य द्वार की तरफ देखती है तो ठिठक जाती है और उसके मानस पटल में अपने प्रश्न कौंधने लगते हैं। ये तो चंपा है ,या फिर वही चांदनी !जिसने मुझे प्रतियोगिता से बाहर कर दिया था। इसका तुषार से क्या संबंध है ? क्या मम्मा ये सब बातें जानती हैं ? चंपा के चेहरे से नहीं लग रहा था कि वह इस लोगों के आने से प्रसन्न है इसीलिए वह बेमन से उनका स्वागत तो करती है किन्तु कल्पना का चेहरा नहीं देखती।
कल्पना को तुषार का कमरा दिखला दिया जाता है , कल्पना ,तुषार का कमरा देखकर वह हैरत में पड़ जाती है। इतना बड़ा और भव्य कमरा था , उसमें सुविधाओं के सभी साधन थे। मन ही मन कल्पना ने सोच लिया था अब तो यही रहना है , किराए पर कहीं नहीं जाना है। अभी तक तुषार नहीं आया था, शायद बाहर ही किसी कार्य से रह गया था। कल्पना चलचित्रों की भाँति , किसी अलग ही दुनिया में पहुंच गई थी किंतु तुषार से पूछना होगा, यह चांदनी देवी कौन है ? देखने से तो हमारी चंपा ही लग रही है , हो सकता है ,उसकी हमशक्ल हो, किंतु लगता है, हमारे आने से प्रसन्न नहीं थी। तभी तो उसने मेरा घूंघट भी नहीं उठाया, यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि घुंघट के अंदर कौन है ? खैर कोई बात नहीं, धीरे-धीरे सब, समझ जाएगी, यदि यह चंपा ही हुई तो....... और यदि चांदनी हुई, तो इसके षडयंत्रों से बचना होगा, मन ही मन सोच कर कल्पना मुस्कुरा दी। हालांकि इस विवाह में कोई मेहमान वगैरह नहीं आए थे किंतु घर में ही, आठ -दस नौकर थे , परिवार के सदस्यों में कल्पना को मिलाकर कुल चार सदस्य थे। कल्पना बहुत देर से, तुषार की प्रतीक्षा कर रही थी किंतु न जाने तुषार कहां रह गया ?
पापा !आपने यह सही नहीं किया, तुषार नाराज होते हुए, जावेरी प्रसाद जी से बोला।
क्या सही नहीं किया ? अरे वह इस घर की बहू है, उसे जानना चाहिए कि तुम इस घर के बेटे हो , और उसका इस घर पर उतना ही अधिकार है जितना कि तुम्हारा !
किंतु जब वह पूछेगी ,कि यह कौन है ? [ उसने चंपा की तरफ इशारा किया]क्या जवाब दूंगा ?
कह देना, तुम्हारी मां है।
क्या बकवास है ?
आज नहीं तो कल, वह हमारे रिश्ते को जान ही जाएगी, इसलिए सच्चाई छुपाने से कोई लाभ नहीं है। जितना उसे छुपाओगे उतना ही रहस्य बनता चला जाएगा, और रिश्ते उलझते चले जाएंगे। 'जिंदगी को उलझन बनाओगे तो उलझनें बढ़ती जाएंगीं , समय रहते सुलझाने में ही, लाभ है। '' अब तुम जाओ ! वह तुम्हारी प्रतीक्षा में होगी।
वैसे हमारे आने से वह [ उसका इशारा चंपा की तरफ ही था ]खुश नहीं है।
तुम्हें उसकी खुशी देखनी है या अपनी खुशी देखनी है, जब इतने बड़े मकान का कोई अकेला मलिक होगा, और उसके दो अधिकारी और आ जाएंगे तो उसे कैसे खुशी मिल सकती है ? यह तो सामान्य सी बात है, आज तो जावेरी प्रसाद जी जैसे, मूड में थे,आज तो जैसे , तुषार की हर समस्या का हल उनके पास था। तुषार उनकी बातों को सुनकर, थोड़ा आश्वस्त हुआ, वह सोच रहा था -पापा ठीक ही कह रहे हैं,हमें अपनी जिंदगी के विषय में सोचना है अपनी खुशियों के बारे में सोचना है , सोचते हुए वह अपने कमरे की तरह बढ़ चला।