Sazishen [part 102]

चांदनी कल्पना को बुलाने गई, उसका बुलाने का उद्देश्य, उसको नसीहत करना था। वह सोच रही थी -अभी तक वह तैयार नहीं हुई होंगी, तब मुझे उसे दो-चार बात सुनाने को मिल जाएंगीं किंतु उसका यह  अरमान पूरा नहीं हो पाया बल्कि वह आश्चर्यचकित रह गई जब उसने देखा, तुषार की पत्नी के रूप में और कोई नहीं, कल्पना ही है। वो 'कल्पना'जिसको उसने, उसके बचपन में खिलाया है। कल्पना को भी,उसे देखकर लग रहा था कि यह चांदनी भी और कोई नहीं हमारी चंपा ही है। किंतु जैसे ही वह उससे सवाल जवाब करती है बदले में उसे, उल्टा ही जवाब सुनने को मिलता है जिसकी चांदनी को उम्मीद नहीं थी। चांदनी फिर से हड़बड़ा गई, अब उसे लग रहा था उससे कितनी बड़ी गलती हो गई है ? मुझे ,रेवती को ही भेजना चाहिए था , किंतु यह भी अच्छा हुआ, यदि यह बाहर सभी लोगों से, मेरे विषय में बात करती या बताती तो वह उचित नहीं होता ,तब वह बोली -वह लड़का यहां रहता ही नहीं, तुम भी उसके साथ ही चली जाओगी। जब मैं तुम्हारे घर की नौकर थी, तब बात ,कुछ और थी किंतु अब मैं, इस घर की मालकिन हूं और इस नाते मैं तुम्हारी सास हूं इसलिए पहले ही समझाये  देती हूं , कुछ भी ऐसी हरकत न करना, वरना मैं तुम्हें इस घर में टिकने नहीं दूंगी। 

तैश में आकर चांदनी वो बोल गयी जो उसे नहीं बोलना चाहिए था। उसने स्वयं ही स्वीकार कर लिया कि वही चम्पा है। कल्पना को जो थोड़ी बहुत शंका थी ,वह पूर्णरूपेण स्पष्ट हो गई। ओह ! तो तुम्हारे तेवर बदल गए, यदि तुम मेरी सास बनकर रहना चाहती हो, तो मेरे किसी भी कार्य में दखलअंदाजी मत करना वरना मुझे तुम्हारी पोल खोलने में तनिक भी समय नहीं लगेगा। और रही बात, इस घर के मालकिन होने की, जितना हक तुम्हारा है, उतना ही मेरा भी है, मेरा पति इस घर का बेटा है। अब तक तो मैं यही सोच रही थी कि तुषार जैसा कहेगा, वैसा ही करूंगी किंतु अब, मैं कहीं जाने वाली नहीं हूं। अरे !जब उसका इतना बड़ा घर है, उसका परिवार है तो वह क्यों? किसी दूसरे के मकान पर धक्के खाएगा।

 यह बातें बाद की है, जहां तक मुझे लगता है, तुमने रेवती को जानबूझकर नहीं भेजा। कल्पना, चंपा के व्यवहार के कारण स्वयं भी सख्त हो गई , अभी तो वह यह भी नहीं जानती इसने नीलिमा के साथ क्या-क्या किया है ?यदि तुम अपनी भलाई चाहती हो ,हमारा बाहर के लोगों के सामने सास -बहु का अच्छा रिश्ता बना रहे  तो , मुझसे आइंदा इस तरह से बात कभी न करना। अब तो मुझे लगता है ,उस दिन ,,उस प्रतियोगिता में तुमने मुझे जानबूझकर हराया था और तुषार ने तुम्हारी इस गलती को सुधारने के लिए ही ,मुझे उस कम्पनी में नौकरी दिलवाई। अब तुम चलो !मैं अभी आती हूँ। अपने घर में हम तुम्हें दीदी कहते थे ,किन्तु अब सास का रिश्ता बन गया है। तुम्हें माँ के रूप में तो स्वीकार नहीं कर पाऊँगी इसीलिए तुम ही मुझे बता देना ,अपने लिए क्या कहलवाना चाहती हो ?

कल्पना की बातें सुनकर ,चम्पा बुरी तरह तिलमिला गयी और क्रोध में फनफनाते हुए सीढ़ियों से उतरने लगी ,तभी उसका पैर फिसला और वो गिर पड़ी। जिस जिसने भी देखा ,उस संभालने के लिए ,वही उठकर भागा। तब लंगड़ाते हुए पास ही रखी कुर्सी पर बैठी। जावेरी प्रसाद जी हॉल में बैठे हुए समाचार पत्रों की खबरों पर एक दृष्टि डाल रहे थे। चाय पीते हुए समाचार- पत्र पढ़ने की आदत जो बन गयी है ,वे शोर सुनकर बाहर आये और बोले -आपको क्या हुआ ?

मुँह बनाते हुए ,चांदनी बोली -सभी कार्य मुझे ही करने होते हैं ,अब नई बहु की कुछ रस्में होंगी ,उसे ही बुलाने गयी थी। 

तुम क्यों गयीं ?किसी भी नौकर को भेज सकती थीं। 

हाँ ,भेज तो सकती थी किन्तु मैंने सोचा था ,बहु का मुँह भी देख लूँगी और उसे तैयार होने के लिए भी कह दूंगी। आजकल के बच्चे सुनते ही किसकी हैं ?आपका बेटा तो पहले ही मुझे अपनी माँ नहीं मानता ,अब तो बहु भी आ गयी ,एक से भले दो !सोचा तो अच्छे के लिए ही था किन्तु बहु के कदम मेरे लिए....... कहते हुए रुक गयी। 

 क्योंकि कल्पना सीढ़ियों से उतरते हुए आ रही थी और बोली -आपको !क्या हुआ ? आपको अपना ख़्याल रखना चाहिए ,आप स्वयं क्यों आईं ?मुझे ही बुला लिया होता ,वो तो अच्छा है ,पापा जी आपके साथ हैं। पापा जी ! तुषार ,कहाँ गए हैं ? मैंने सुबह से, उन्हें नहीं देखा। 

बहु !यहीं कहीं होगा ,मैंने भी उसे नहीं देखा। 

तब चम्पा से बोली -अब तो आपको चोट लग गयी ,अब क्या कोई रस्म नहीं होगी ?आप चिंता मत कीजिये ,आप रेवती को बताती रहिये ,वो सब संभाल लेगी। यदि उससे भी नहीं होगा,तो मैं मम्मी को बुला लूँगी। 

नहीं -नहीं मुझे ज्यादा चोट भी नहीं आई है ,मैं देख लूंगी। 

नहीं आप अभी पापा से कह रहीं थीं न...... इसीलिए सोचा कहते हुए कल्पना आगे बढ़ गयी। 

तभी जावेरी प्रसाद जी बोले -वो तो आज ही शाम को आएँगीं  ,आज तुम दोनों की 'रिशेप्शन पार्टी ''जो है।

  पापा ! आप कितने अच्छे हैं ?वापस मुड़कर कल्पना ने जावेरी प्रसाद से कहा। 

यह बात सुनकर, चांदनी चिढ़ गई, और बोली -आपने मुझे इस विषय में कुछ भी नहीं बताया। 

इसमें आपको कुछ भी नहीं करना है ,बड़े सम्मान के साथ जावेरी प्रसाद जी चांदनी से बोले -जो भी करना है , होटल वालों को करना है ,उन्होंने सब, इंतजाम कर दिया है बस आपको तो तैयार होकर जाना है। 

धन्यवाद !आपका बहुत-बहुत शुक्रिया! यह सूचना आप मुझे अब दे रहे हैं। जो घर की मालकिन है ,उसे मालूम नहीं है और जिन लोगों से कल ही रिश्ता जुड़ा है, उन्हें मुझसे पहले मालूम हो गया। तब तक कल्पना तुषार को बगीचे में ढूंढते हुए, वापस आ गई थी और उसने उन दोनों की बातें सुन ली थी। तब वह मुस्कुराते हुए बोली -आजकल का यही रिवाज़ चल रहा है, आप और मैं इस घर के सदस्य हैं, हमें मालूम भी नहीं है और इससे बड़ी हद की बात क्या होगी ?मेरी शादी का रिसेप्शन है और मुझे ही मालूम नहीं है। न ही मेरे पति ने मुझे बताया और न ही आपके पति ने आपको बताया किंतु रिश्तेदारों और मेहमानों को मालूम है कहते हुए कल्पना हंसने लगी। 

कल्पना की हंसी, चांदनी को तीर की तरह चुभ रही थी, वह देख रही थी, वह जो भी बात कर रही है यह उसी की काट कर देती है। आगे इन दोनों की टक्कर, कैसे होती है ?क्या कल्पना अपना बदला ले पाएगी ? क्या तुषार को पता चल पाएगा कि शिवांगी, उससे प्रेम करती थी या नीलिमा और कल्पना जान पाएंगे कि शिवांगी जिस लड़के की बात कर रही थी ,वह और कोई नहीं तुषार ही था। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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