Sazishen [part 101]

कल्पना ने जब,पहली बार अपनी ससुराल में चांदनी को देखा तो, उसने घूंघट में ही ,तुषार की तरफ देखा जैसे पूछ रही हो ,तुमने मुझे ,इनके विषय में पहले क्यों नहीं बताया ?किन्तु अब उसे स्वयं भी ,'गृहप्रवेश' करना है , हो सकता है ,यह मेरे गृहप्रवेश में ही, मेरी प्रतियोगिता की तरह किसी प्रकार की अड़चन न डाल दें, किंतु 'गृहप्रवेश' करते समय उसके मन में अनेक प्रश्न, उभर कर आ रहे थे , तुषार इन्हें जानता था तो इ नके विषय में मुझे क्यों नहीं बताया ? कल्पना को अपनी मम्मी की बातें स्मारण हो आई, मम्मी का कथन था-' कि यह ही चंपा है,' तब मैंने उनकी बात को माना नहीं था, और स्वयं उनसे ही कहा था -'एक ही शक्ल के और लोग भी होते हैं ,यह आपका वहम होगा किंतु इसे देखकर तो लग रहा है ,यह हमारी चंपा ही है। 


''गृहप्रवेश ''के पश्चात ही, बातों की सच्चाई पता चलेगी। हो सकता है ,इनके कारण ही शायद , तुषार यहाँ न आता हो। देखने से तो हूबहू हमारी चम्पा जैसी ही लग रही है। जब कल्पना अपने कमरे में ,तुषार की प्रतीक्षा कर रही थी ,क्योंकि इस घर में वही है जो कल्पना के सवालों का जबाब दे सकता है। किन्तु बहुत देर  तक तुषार नहीं आया था ,और न जाने कब ,उसकी प्रतीक्षा करते -करते वह सो गयी ? सुबह जब उठी कल्पना ,तो तुषार अभी भी सो रहा था ,कल्पना पहले तो उसे उठाना चाह रही थी किन्तु मुझे क्या यहाँ काम करना है, और न ही दफ्तर जाना है यही सोचकर, तुषार के करीब आकर उसके गले लगकर फिर से सो गयी। 

जब उसकी आंख खुली, तो एक नौकरानी उसे उठा रही थी, मैडम उठिए ! आपको तैयार होना है, आपकी आज कुछ  रस्में अभी बाकि  हैं । कल्पना ने अपने आस -पास देखा,शायद तब तक तुषार वहां से उठकर जा चुका है ,तुषार ये कैसी आँख -मिचौली खेल रहा है ,जब मैं जाग रही थी तो आया नहीं और अब मुझसे पहले उठकर चला गया ,मुझे उठाया भी नहीं ,तब कल्पना ,उससे बोली -तुम कौन हो ?

जी, मेरा नाम रेवती है ,मैं यहाँ काम करती हूँ ,मेमसाहब !ने आपको उठाने के लिए भेजा है ,आपकी कुछ  रस्में  होगी आप तैयार हो जाइये !

हाँ ,उठ गयी किन्तु एक बात बताओ !ये तुषार कहाँ है ?

मुझे नहीं मालूम !मैं तो यहाँ, अभी आई हूँ। 

मतलब तुमने  इस घर में अभी काम करना आरम्भ किया। 

नहीं ,काम करते हुए तो मुझे दो साल हो गए किन्तु जब मैं घर में आई तब मैंने उन्हें नहीं देखा। 

ओह !अच्छा ये बताओ !जिन्होंने मेरा ''गृहप्रवेश 'के समय स्वागत किया, वो कौन हैं ?

वे तो चांदनी मैडम हैं ,इस घर की मालकिन !तभी वहां एक आदमी आया और बोला -तुम यहाँ क्या कर रही हो ?मैडम ने बुलाया है। 

आती हूँ ,कहते हुए वह जाने लगी ,तभी कल्पना ने उसे रोका और बोली -मुझे साड़ी बांधना नहीं आता ,कुछ देर बाद आकर मेरी सहायता कर देना। 

जी, कहकर वो वहाँ से चली तो गयी किन्तु आई नहीं ,कल्पना परेशान हो रही थी ,ये कैसी है ? कल्पना को  अत्यंत क्रोध आ रहा था किंतु रेवती तभी तो आती जब, चांदनी उसे आने देती , रेवती ने उससे कहा भी था -कि मुझे बहु रानी ने बुलाया है, मुझे उनकी सहायता करने जाना है ,उन्हें साड़ी बांधना नहीं आता। 

 किंतु चांदनी मुस्कुरााकर बोली -किसी लड़के को पटाना ,उससे विवाह करना तो आता है क्या उसकी मां ने साड़ी बांधना नहीं सिखाया ?तुम यहां अपने काम करती रहो !'' जैसा मैंने कहा है, वैसा ही करो !

वे मुझ पर नाराज होगीं। 

होगी तो तब, जब तुम वहां उसके सामने जाओगी , कह देना , काम में भूल गई थी या मैडम ने काम दे दिया था ,कोई भी बहाना बना देना तुम बहाने बनाना तो अच्छे से जानती हो।  

रेवती मन ही मन सोच रही थी, शीघ्र सास -बहू के झगड़े होंगे। सास भी तो सास जैसी नहीं लग रही। कुछ देर कल्पना ने रेवती की प्रतीक्षा की और फिर वह स्वयं ही ,तैयार होने लगी। वह तैयार होकर बैठ गई किंतु चांदनी मन ही मन सोच रही थी आज, मेरे पति और उसके बेटे की पसंद पता चल जाएगा उनकी कैसी पसंद थी ,जब वह चार लोगों में उनकी बेइज्जती करावेगी। यह बात सोचकर वह ,मन ही मन खुश हो रही थी और कुछ देर पश्चात उसने सोचा -उसे देखकर आती हूँ और कि उसे बुला लाती हूं। 

जैसे ही चांदनी में कमरे में प्रवेश किया ,उसने देखा कल्पना तैयार बैठी है, उसकी पीठ दरवाजे की तरफ थी तब वह बोली -तुम तैयार हो गईं , तो नाश्ता कर लो !उसके पश्चात, कंगना खिलाने की रस्म होगी और तब तुम्हारी मुंह दिखाई की रस्म होगी, कल्पना ने जैसे ही पलट कर देखा, सामने चंपा ही नजर मिली , एकदम से बोली -अरे चंपा तुम ! यहां काम करने लगीं। तुमने हमें बताया भी नहीं कल्पना को देखकर, चंपा की हालत खराब हो गई , उसे उम्मीद भी नहीं थी कि कल्पना, जिस लड़की को उसने बचपन में खिलाया है, वो इस तरह आज उसके सामने होगी ,वो भी उसके सौतेले बेटे की पत्नी बनकर......  वह इस तरह आज उस कोठी में होगी , उसके लिए आश्चर्य की बात थी और कल्पना तो उसे चांदनी की समझे हुई थी किंतु उसे इस तरह सामने देखकर ,उससे चम्पा की तरह ही व्यवहार किया। अचानक ही, उसने अपना रवैया बदल दिया और जैसा उसने सोचा था वही हुआ।

 कल्पना को पहचान कर बोली -तुम यहां कैसे ?

जब तुम यहां हो सकती हो, तो मैं क्यों नहीं ? तुम इतनी दूर यहां मुंबई में कैसे आ गईं  और किसी को पता भी नहीं, तुम्हारे घरवालों को भी नहीं ,मैंने तो सुना था तुमने किसी बूढ़े से शादी कर ली है। अब तुम जावेरी प्रसाद जी के यहां नौकरी करती हो। 

क्या तुम क्या बोल रही हो? मैं उनके यहां नौकरी क्यों करूंगी ? मैं इस घर की मालकिन हूं एकदम से चंपा तैस में आ गई, और बोली -मैं इस घर की मालकिन हूं , मैंने तुम्हें तो नहीं देखा किंतु तुमने तो मुझे देखा था जब मैं तुम्हारा स्वागत कर रही थी। मेरा नाम चांदनी है, चंपा नहीं। 

कल्पना भी कहां झुकने वाले थी ? बोली- नौकर ,नौकर ही रहता है ,अच्छे कपड़े पहन लेने से ,उसकी आदतें तो नहीं बदल जातीं ,वह मालिक नहीं बन जाता। तुम अपना कार्य भूली नहीं हो, यह बात तुमने इसी बात से साबित कर दी, रेवती को मुझे बुलाने नहीं भेजा बल्कि तुम स्वयं मुझे बुलाने आई हो अपना पुराना काम इतनी जल्दी कौन भूलता है ? कहते हुए कल्पना मुस्कुराने लगी। क्या यह बात तुषार को मालूम है ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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