अक्सर आप लोगों ने यह गाना सुना होगा -''सजना है ,मुझे सजना के लिए !''
विवाह के समय ,एक लड़की को ' सजना' के लिए ही, सजाया जाता है। श्रृंगार के जब सभी साधन, उसके 'सजना के लिए 'हैं, उसके सुहाग के नाम के हैं -बिंदी, लिपस्टिक, बिछुआ ,पायल ,सिंदूर ,चूड़ियाँ सभी चीज 'सजना 'के लिए है किंतु वह सजती स्वयं है, अपने सजना के लिए ! दुल्हन बन उसके घर में आ जाती है।उस घर को अपना लेती है। उसका वह श्रृंगार ,उसका सजना -संवरना, उसका परिवार और सजना तक ही सीमित रह जाता है और वह भूल जाती है कि मुझे सजना है। किस लिए सजेगी और क्यों सजना है ? यह परिवार तो उसका अपना है। पहले उसकी इच्छाएं ,ज़रूरतें सब पूरी हो जाएं , तब अपने विषय में भी सोचेगी।
तब वर्ष में एक बार आता है ''करवा चौथ'' जिसमें वह सजती है ,संवरती है। वह भी क्या सजना के लिए, नही...... वर्ष में एक दिन, उसको अपने लिए मिलता है, जिसमें वह अपने लिए सोचने लगती है -मुझे अपने लिए साड़ी लेनी है ,मुझे अपने लिए बिछुए लेने हैं ,मुझे नई चूड़ियां लेनी हैं ,पुराने होते रिश्ते में और ज़िंदगी से बोझिल से होते रिश्ते में,एक ताजगी का एहसास होता है। ये उसके सजना के ही, तो दिए श्रृंगार है। जिनसे सजकर वह अपने को भाग्यशाली समझती है। तब वह अपने लिए कब सजेगी,अपने लिए कब सोचेगी ? सारा जीवन तो उसने दूसरों के लिए व्यतीत कर दिया। यदि उससे यह प्रश्न पूछा जाए, तो वह कहेगी -ये भी तो मेरे अपने हैं। मेरा सजना -संवरना क्या ? मेरा परिवार खुश रहे, मेरा पति व मेरे अपने मेरे साथ रहें । बस जिंदगी में और क्या चाहिए? इसीलिए,' करवा चौथ 'पर अब कुछ महिलाएं सजती हैं - अपने लिए, अपने लिए एक दिन निकालती है ,एक दिन नहीं ,कई दिन निकल जाते हैं। जब वह अपनी मनपसंद की साड़ी लेती है ,कारण तो सजना ही है किंतु जो भी करती है अपनी इच्छा से करना चाहती है अपनी खुशी के लिए करना चाहती है।
हो सकता है ,यह रीति -रिवाज बड़े बुजुर्गों ने इसीलिए बनाए हों, ताकि इस घर को चलाने वाली नींव एक दिन अपने लिए भी सोच ले ,अपने लिए सजे। 'व्रत 'तो पति के नाम का रहता है, किंतु मन में खुशी, चाहत सजना- संवरना वह अपनी जिंदगी के कई वर्ष पीछे चली जाती है। प्रसन्न होती है ,मेहंदी से अपने हाथों में बेल -बूँटे सजा लेती है। जो हाथ बहुत दिनों से बर्तन मांजते , कपड़े धोते शायद थोड़े, सख्त हो गए हैं। फिर से वह उन दिनों को जीती है,उन हाथों में मेंहदी खिला लेती है। इसमें यदि उसके पति का साथ हों तो उसकी खुशियां भी शामिल हो जाए तो ''सोने पर सुहागा।''
किंतु कई बार देखा गया है, और इस पर वीडियो भी बनी हैं ,बनती रहती हैं। पत्नी ,पति से सामान के लिए 10से 20 हज़ार या 50000 तक रुपए मांगती है, और उस पर एहसान दिखाती है कि मैं तो तुम्हारे लिए ही, यह सब कर रही हूं। तुम्हारी बढ़ती उम्र के लिए, ही सज रही हूं. तुम्हारे नाम का ही व्रत रख रही हूँ । इस रीति- रिवाज को लोगों ने पैसे से तौलना आरम्भ कर दिया। यह तो प्यार का सौदा है, जिसमें पति-पत्नी अपने बीते दिनों को जी लेते हैं। हां ,यह बात अवश्य है ,पत्नी चाहती है कि पति उसे कोई उपहार दे लेकिन यह तो तभी संभव है जब उसकी कमाई भी उतनी हो। पहले महिलाएं क्या व्रत नहीं रखती थी ? बिना महंगे सूट और महंगी साड़ी पहने बिना क्या उनका व्रत पूर्ण नहीं होता था ? मुख्य उद्देश्य तो, दोनों का एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव और प्रेम का एहसास कराना ही है। कुछ पुरुष भी इस बात को समझते हैं, तब कुछ लोग तो स्वयं भी अपनी पत्नी के लिए 'करवा चौथ 'का व्रत रखने लगे। उनका कथन यही है -'कि क्या पत्नी का ही कर्त्तव्य है कि वही '' करवा चौथ'' का व्रत रखें या सभी नियम उसी के लिए बने हैं यह बहुत अच्छी बात है कि कोई इस तरह से सोचता है , उनकी भावनाओं को समझता है।
उसके लिए तो सबसे सफल ''करवा चौथ ''यही है ,उनकी भावनाओं की क़द्र करने वाला ,उनके दिल की बात समझने वाला पति मिला तो उसका जीवन और व्रत दोनों ही सफल हुए। यदि परस्पर प्रेम हो, तो जरूरी नहीं कि महंगे सामान पहनकर ही ,उस त्यौहार को मनाया जा सकता है, पहले महिलाएं कम पैसों में ही या मायके से सामान आता था या फिर ससुराल से आता था उसी श्रृंगार के सामान को पहनकर , खुश हो जाती थीं किन्तु बढ़ती उम्र के साथ उनका यह शौक या इच्छा लगभग क्षीण पड़ने लगती है। तब उन्हें सजना होगा ,अपने लिए ,धूमिल पड़ते रिश्तों में ताज़गी लाने के लिए ,अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को ,जो आजकल के रीति -रिवाज़ों के प्रति लगभग उदासीन हो गयी है ,हर चीज को पैसे से तौलती है उनको इस रिश्ते की अहमियत को दर्शाने के लिए ,उम्र के एक पड़ाव पर आ जाने पर सजना होगा उसे, 'सजना 'ही नहीं ,अपने लिए भी.......