ख़्वाब -
ख़्वाबों में अक्सर वो आने लगी।
देख हमें अपनी ओर, इठलाने लगी।
कभी झटकती, जुल्फ़ों को ,
कभी लहराती ,आँचल को ,
सीने पर जैसे तीर चलाने लगी।
नैनो की कटार, चमकाने लगी।
बिजली सी ,हम पर गिराने लगी।
एक दूजे में हम सिमटे थे ,
बरसात में हम जोभीगे थे।
कड़कती बिजली सी, हम पर पड़ी।
आँख खुली जब,सामने वामा थी खड़ी।
ख़्वाब जो टूटा ,हकीक़त में आ गए।
वो ख्वाब ही था ,यही सोच घबरा गए।
चाहत -
चाहत थी, उसकी !
बिन देखे भी ,रह न पाएं।
देख लेते ,तो जान गवांए।
पलकों को मुंद ,
उसकी तस्वीर सीने से लगाए।
चाहत में उसके, दीदार कैसे पाएं ?
घड़ी -
घड़ी ये कैसी आई ?
प्रभु ने की,मुझ पर रहनुमाई !
आज उसने बुलाया है ,
उपहार ले हम ,उसके लिए ,
सज -धज पत्नी संग चल दिए।
भावनाएं ,हिलोरे ले रही थीं।
उसकी खिलती सूरत......
आँखों में चमक रही थी।
जन्मदिन की उसके दी हमने बधाई !
उसने भी ,दिल से रीत निभाई।
आँखों से हमें, झंकझोर डाला।
हरकतें देख ,उसकी ,
मुँह पर ,जैसे पड़ा ताला।
धोखा -
अजी !क्या आप सुन रहे हैं ?
पड़ोस में जो महिला आई थी।
तिवारी के संग भाग गयी।
दोनों का चक्कर चल रहा था।
दोनों को कुछ नहीं सूझ रहा था।
धोखा दे ,तिवारिन को ,
केेसा गज़ब कर गयी ?
तिवारिन का घर तोड़ गयी।
मन ही मन हम कुम्हला गए थे।
सपने देखे थे ,हमने
हमारे ही दिल पर बरछी चला गयी।
उम्मीद थी ,हमारी ,
ग़ैर के संग भाग गयी।
न ही हाथ मिलाया ,न बातें की ,
मन के किसी कोने को बर्बाद कर गयी।
अजी !क्या बतलायें ?
जैसे आई थी ,वैसी चली गयी।
हमारे जज़्बातों से खेल ,धोखा कर गयी।