Rasiya [part 99]

एक दिन जब चतुर सब्जीमंडी से सब्जियां ले रहा था, तब उसने देखा ,एक सुंदर 30 से 35 के लगभग उम्र की एक महिला होगी। जो देखने में किसी बड़े घर की लग रही थी, उसके कपड़ों से, उसके रहन-सहन से बातचीत करने के तरीके से लग रहा था , कि वह किसी बड़े घर की महिला ही है।वह भी शायद सब्जी ही खरीदने आई थी।  सब्जी खरीदने के पश्चात ,जब वह थैला उठाने लगी ,थैला कुछ ज्यादा ही भारी हो गया था। इसी मौक़े की तलाश में, चतुर इतनी देर से बार -बार उसकी तरफ देख लेता था, तुरंत ही चतुर सब्जी के बहाने ,उसके करीब आया और बोला - आप यह क्या कर रही है ?

क्यों, क्या हुआ ? उस महिला ने थैला जमीन पर रखते हुए पूछा। 

इतना भारी थैला है ,क्या आपके साथ कोई नहीं है ?आपकी कमर में दर्द हो जाएगा।

 हां ,वह तो है , उसने भी तुरंत ही, वह थैला छोड़ दिया। 


चतुर ,समझ गया ये मजबूरी में ही तरकारी लेने यहाँ आई है ,क्या आपने कोई नौकर नहीं रखा हुआ है ? 

बहुत पहले नौकर रखा था लेकिन वह भाग गया, सब के सब कामचोर हैं। 

लाइए ! मैं आपका यह थैला उठाकर ले चलता हूं , कहां तक ले जाना है ?

अरे नहीं ,नहीं आप क्यों कष्ट कर रहे हैं ? मैं ले जाउंगी। 

इसमें कष्ट की क्या बात है ? इंसान ही इंसान के काम आता है। 

 बस थोड़ी ही दूर है ,इसे रिक्शे  में रखवा दो ! थैला उठाकर चतुर चलने लगा और वह महिला भी उसके पीछे-पीछे हो ली। 

वैसे आप कहां रहती हैं ? आपको कोई परेशानी न हो तो घर तक पहुंचा दूँ। 

नहीं ,नहीं यहीं पास ही गली में रहती हूं। 

भाई साहब !क्या करते हैं ? देखिए बुरा मत मानिएगा , क्या वह आपकी मदद नहीं करते ?

बुरा क्या मानना ? उन्हें तो अपने व्यापार के काम से ही  फुर्सत नहीं है , मुंह बनाते हुए ,उदास स्वर में वह बोली। 

क्या मैं आपको 'भाभी जी' कह सकता हूं।

उसने मुस्कुराते हुए हाँ में गर्दन हिलाई , देखने में आप इतनी, हसीन हैं , दिलक़श है, दिल करता है, आप पर एक शायरी लिख दूँ । 

क्या बात कर रहे हैं ? क्या आप शायर भी हैं ? 

शायर तो नहीं किंतु कभी-कभी इतना सुंदर रूप देखकर शायरी आ ही जाती है। 

यह बात सुनकर वह महिला अत्यंत प्रसन्न हुई। 

 क्या ,भाई साहब ने आपकी प्रशंसा में कभी दो -चार शब्द नहीं कहे! बल्कि इतनी खूबसूरती देखकर तो उन्हें  शायर  हो जाना चाहिए था। 

चतुर की बात सुनकर वह बहुत हंसने लगी और बोली - आप बड़े दिलचस्प आदमी हैं । कभी घर आइएगा अपनी  बीवी -बच्चों को भी साथ लेकर आइएगा। 

आप भी ,न...... क्या बात करती हैं, मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया ,क्या आपको मैं शादीशुदा लगता हूं ?अभी मेरी उम्र ही क्या है ? आपके सामने इतना यंग मैन खड़ा है , आपको शादीशुदा लग रहा है ,आज तक वो हसीन चेहरा कभी सामने नहीं आया जिसके हम होकर रह जाते ,जब सामने आते हैं तो...... गाड़ी पटरी से उतर चुकी होती है।  

वह जोर -जोर से हंसते हुए वो बोली -फिर यह सब्जियां किसके लिए ले जा रहे हैं ?

हम तो  दयालु प्रकृति के व्यक्ति हैं ,एक हमारी पड़ोसन हैं , बेचारी बुजुर्ग हैं, वह सब्जी लेने  नहीं आ सकती हैं,  बस उनके लिए ही, सोचा- बेचारी की सहायता हो जाएगी। 

जैसे आप मेरी सहायता कर रहे हैं ,कहते हुए फिर से हंसने लगी। 

आप ,मुस्कुराती हुई कितनी अच्छी लगती हैं ? जैसे बादलों में दामिनी चमक रही हो। वैसे आपने हमको आने का  निमंत्रण दे दिया ,अच्छा !किन्तु आपने अपना मकान नंबर तो बताया ही नहीं,कभी दर्शनों की अभिलाषा हुई ,तो कैसे आएंगे ?

 हां, याद कर लीजिए गली नंबर 3 में मकान नंबर 18 है ,हमारा !किसी से भी पूछ लीजियेगा ,अग्रवाल जी का मकान कहाँ है ?हमारे घर ही पहुंचा देगा। 

 ठीक है ,कभी समय मिला तो आऊंगा और आपको भी कष्ट दूंगा।

 मुझे कष्ट किस लिए? अब क्या मुझसे बदले में थैला उठवाएंगे कहते हुए वो हंसने लगी। 

थैला , आप क्यों उठाएंगी ?हम क्या मर गए हैं ?एक समय की चाय तो पिलाएंगी न.......  कहते हुए चतुर ने उसकी आँखों में झाँका और मुस्कुराया। 

हां ,हां अवश्य आइएगा, कहते हुए उसने रिक्शा वाले का किराया तय किया और रिक्शे में उस महिला का थैला रख दिया। बड़े ही प्रसन्न मुद्रा में बैठ, वो चली गयी किन्तु बार -बार पीछे देख मुस्कुरा देती ,चतुर भी तब तक सड़क के किनारे खड़ा रहा जब तक उसकी रिक्शा आँखों से ओझल नहीं हो गयी। उसके जाते ही चतुर ,फ़टाफ़ट घर की ओर रवाना हो गया। कस्तूरी को सब्जियों का थैला पकड़ाकर जाने ही वाला था ,तभी कस्तूरी ने उसे रोका। चतुर को पीछे से इस तरह किसी का टोकना गलत लगता था ,उसे विश्वास था-'' ,किसी कार्य के लिए जाते समय ,यदि किसी ने पीछे से टोक दिया तो बनता कार्य भी नहीं बनेगा '',उसका यह विश्वास यूँ ही नहीं बना था। इस बात को उसने कई बार आजमाया भी है। वह नाराज होते हुए कस्तूरी से बोला -तुमसे कितनी बार कहा है ? जाते समय पीछे से मत टोका करो ! अब वह घर के अंदर आया और बोला -बताओ !क्यों रोका ?

चतुर के डांटने से कस्तूरी खिसिया सी गयी और चुप हो गयी। अंदर जाकर गिलास में पानी लेकर आई और चतुर को दिया ,उसका चेहरा देखकर चतुर को अपनी गलती का एहसास हुआ। मन ही मन सोच रहा था ,मैं भी क्या  करूं ?मैं चाहकर भी इसे समय नहीं दे पाता। तब वह अपने शब्दों में मिठास लेकर बोला -अब तुमने रोका है तो अवश्य हीकोई महत्वपूर्ण कार्य है ,मेरा भी काम इतना है ,मैं भी थक जाता हूँ ,दफ्तर में काम करना ,और फिर बॉस के भी कार्य करने पड़ते हैं।

 कस्तूरी को उस पर तरस आ गया और बोली - मैं तो पहले ही आपसे कुछ नहीं कहती किन्तु अब त्यौहार आ रहे हैं  इसलिए कहना पड़ रहा है ,नवरात्रि आ रही है ,उसके पश्चात ''करवा चौथ ''आएगी इसलिए मुझे थोड़ी खरीददारी करनी थी। 

तुम  क्या चाहती हो ?मैं तुम्हें पैसे दे दूँ और तुम लुटकर आ जाओ !या इस अनजान शहर में ही कहीं गुम हो जाओ !

नहीं ,मुझे पैसे देने की आवश्यकता नहीं है ,बस तुम्हें मुझे साथ लेकर चलना है ,जबसे मैं यहाँ आई हूँ ,तुम, मुझे, अपने साथ कहीं भी घुमाने के लिए नहीं ले गए  ,अब मुझे थोड़ी खरीदारी करनी है ,इसी बहाने घूमना भी हो जायेगा ,मुझे अपने साथ ही ले चलो !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post