चतुर ,जिंदगी में आगे बढ़ना चाहता है और उसके तहत वह न जाने क्या-क्या योजनाएं बनाता रहता है ? किंतु उसकी संपूर्ण योजनाओं पर, उसके पिता ने ''पानी फेर दिया।' जब उन्होंने उससे कहा -'कि वह अपने बच्चों को ,अपने साथ लेकर जाए। उसे अपने परिवार से ऐसी उम्मीद नहीं थी किंतु माता -पिता भी अपनी जिम्मेदारी पूर्ण करके, उसके बसते घर को देखना चाहते थे। जब उन्हें पता चला ,कि वह बाहर ही रहकर नौकरी पर भी लग गया है, तब उन्होंने सोचा -अब उसे अपने परिवार को अपने साथ ले जाना चाहिए। चतुर उन्हें समझाने का प्रयास करता है कि यहां पर मां का और आपका कौन ख्याल रखेगा ?
किंतु उन्होंने स्पष्ट रूप से उससे कहा- क्या हमारा पहले भी कस्तूरी ही ख्याल रखती थी, हम पहले भी तो जी रहे थे, और आगे भी जी लेंगे बल्कि हमारा कार्य भी कम हो जाएगा। दोनों पति -पत्नी का काम ही कितना होगा ?हम अभी इतने बूढ़े भी नहीं हुए ,जो किसी पर निर्भर रहें। अपने बच्चों को अब तुम संभालो ! यह तुम्हारी जिम्मेदारी है, श्रीधर जी ने स्पष्ट कहा।
श्रीधर जी !शायद ,अभी भी चतुर को अपने बच्चों को साथ ले जाने के लिए नही कहते ,किन्तु एक दिन उन्होंने उसके दोस्तों को ही कहते सुना -इतने दिनों तक बीवी के बगैर कैसे रहता होगा ? मुझे तो लगता है ,शहर में उसने कोई और रख रखी है ,''यहाँ घरवाली ,वहां बाहरवाली !''कस्तूरी भाभी को गर्भवती बनाकर चला जाता है। ये शब्द जब से श्रीधर जी के कानों में पड़े थे ,तब ही उन्होंने सोच लिया था अबकी बार चतुर आएगा तो उसके बच्चों को उसके साथ भेज देंगे। अभी तो ,ऐसा उसके दोस्त सोच रहे हैं ,कल को गांव वाले भी सोचने लगेंगे। हो सकता है ,बहू पर भी इसका असर हो ! अपने परिवार के साथ रहेगा, वही बेहतर है।
मजबूरी में पिता के कहने पर चतुर अपने बच्चों और पत्नी को कानपुर ले आया और जिस मकान में वह पहले से रह रहा था, उसी के पीछे एक मकान लेकर, उन्हें रहने दिया। उसने कस्तूरी को समझाया -कि मेरा कार्य देर रात्रि तक होता है इसलिए वह, मेरी प्रतीक्षा न किया करें ,बल्कि बच्चों को भोजन कराके और स्वयं भोजन करके समय पर सो जाए। कुछ दिन रात्रि के भोजन पर, कस्तूरी ने उसकी प्रतिक्षा भी की किंतु दो छोटे बच्चों के साथ वह वैसे ही थकी रहती थी, कब तक प्रतीक्षा करती ? यह तो प्रतिदिन का कार्य हो गया यही सोचकर उसने, अपनी दिनचर्या को बदला ,वह चाहती थी -''चतुर हमें शहर में लेकर आया है हम मिलकर साथ रहकर भोजन करें , किंतु ऐसा नहीं हो पाया।
चतुर को तो श्रीमती दत्ता के यहां भी तो अपनी हाजिरी देनी होती थी बल्कि वह उनके कार्य में हाथ बंटाने लगा इसमें उसका ही लाभ था, जब वह मिसेज दत्ता के लिए सब्जी लेकर आता , तो साथ में अपने परिवार के लिए भी सब्जी लेकर आता और एक थैला पहले ही उन्हें दे आता। उसने अपनी पत्नी और बच्चे से कहा -कोई यदि पूछता है, कि तुम्हारे पति का क्या नाम है ? वह कहां नौकरी करते हैं? कुछ भी ऐसी जानकारी चाहिए ,तो उनसे कुछ भी नहीं बताना है।
कस्तूरी को शक तो हुआ और बोली -आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ?
कस्तूरी के इस तरह प्रश्न पूछने पर पहले तो चतुर को क्रोध आया, फिर बोला- तुम शहर के कायदे नहीं जानती हो, इतने वर्षों से गांव में ही तो पड़ी थी। अब शहर ले आया हूं तो शहर के तौर तरीके भी समझ लो ! किसी को भी, अपनी कोई जानकारी नहीं देनी है। कस्तूरी को तो चतुर पर अंधविश्वास था, इसलिए उसने ज्यादा तर्क नहीं किया ,वह जैसा कह रहा था , उसने वैसे ही'' बात गांठ बांध ली।''मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ ,अपने बच्चों और तुम्हारे लिए ही तो कर रहा हूँ। इस कारण से चतुर को ज्यादा परेशानी भी नहीं उठानी पड़ी।
चतुर , एक दिन परेशानी में, उलझा हुआ था क्योंकि अब कस्तूरी रात्रि में उसे अपने पास आने के लिए कहने लगी थी। यहां मिसेज दत्ता को वह क्या जवाब देता ? क्या कहे, कि मैं रात्रि में कहां जा रहा हूं ? इन समस्याओं से परेशान हो वह छत पर गया और उसने देखा ,यह तो वही दीवार है , जिस घर में मेरी पत्नी और बच्चे रहते हैं। तुरंत ही उसके मन में एक योजना आ गई जब तक मिसेज दत्ता जगी रहतीं , वह उसी घर में रहता और फिर सीढ़ियों के माध्यम से, दीवार पार करके, अपने घर में चला जाता। ये तो बहुत ही अच्छा हो गया , उसने तो अपने परिवार समीप चाहा था किन्तु अब तो घर जाने का रास्ता भी मिल गया।
एक दो बार तो चुपचाप चला गया था किंतु एक दिन कस्तूरी ने उसे इस तरह दीवार से आते हुए देख लिया। और पूछा -आप यहां इस तरह से क्यों आए हैं? तब उसने बताया ,कि यहां पर मेरी बॉस रहती है , उसके कुछ कार्य करने होते हैं, इसलिए मजबूरी में यहां रहना पड़ता है और जब वह सो जाती है ,तब मैं यहां आता हूं।
जब से चतुर शहर में आया है, तब से उसकी दुनिया झूठ पर बसी थी, झूठ बोलना, गलत सोचना , उसे स्वयं ही नहीं पता, कि वह कैसा होता जा रहा है ? वह तो जीवन में उन्नति और तरक्की के लिए इस शहर में आया है। किंतु कब वह झूठ बोलने में पारंगत हो गया ? उसे पता ही नहीं चला। वह जो भी कर रहा था, अपने परिवार के लिए अपने बच्चों के लिए ही कर रहा था किंतु वह कितना दलदल में घुस गया है? यह भी नहीं समझ पाया। अब तो जैसे झूठ बोलना, किसी को धोखा देना उसकी आदत में शामिल हो गया है। हां यह बात अवश्य है कि अब उसे दोगुनी मेहनत पड़ गई है। मिसेज दत्ता से झूठ बोलता है ,घर से बाहर जाना और अपने बेटे का दाखिला करवाना और अन्य कई घरेलू कार्य थे , जो वह करता था क्योंकि उसे कस्तूरी पर विश्वास नहीं था कि वह शहर में, ठीक से कोई भी कार्य कर पाएगी।उसका उद्देश्य बस यही था कि शहर में ,रहना और अपने बच्चों अच्छा जीवन देना ,उसके लिए न जाने वह कितना गिरेगा ?