Rasiya [part 100]

चतुर जब कस्तूरी को सब्जियों का थैला देकर जा रहा था ,तब कस्तूरी ने  चतुर को जाने से रोक दिया , इस तरह चतुर को, पीछे से किसी का रोकना अच्छा नहीं लगता ,तब वह कस्तूरी पर नाराज होता है और तब वह कस्तूरी से उसकी रोकने का कारण पूछता है।  तब उससे कस्तूरी कहती है -जब से मैं यहां आई हूं, तुमने मुझे एक बार भी बाहर नहीं घुमाया है, और न ही कहीं खरीददारी के लिए लेकर गए हैं, अब त्योहार भी आ रहे हैं, मुझे थोड़ी खरीदारी भी करनी है इसलिए मैं चाहती हूं आप मुझे बाजार लेकर जाएं। 

चतुर उसकी यह फरमाइश सुनकर परेशान हो उठा और सोचने लगा ,यदि मैं इसे बाहर लेकर गया तो , हो  सकता है कोई मेरी जानने वाली मिल जाए ,और साथ में इसे देखकर कोई पूछेगा -कि यह कौन है ?तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा ? मैंने तो यहां सभी से यह कह रखा है, कि मैं अभी कुंवारा हूं, मेरी अभी शादी ही नहीं हुई है और कोई महिला मिल गई और उसे देख कस्तूरी ने ही पूछ लिया -कि यह कौन है ?तब  मैं क्या जवाब दूंगा ?दोनों तरफ से ही फंसा। 

 तब वह कहता है -तुम मुझे, सामान की सूची बनाकर दे दो !


सूची तो मैंने पहले ही बना ली है किंतु आपको इन चीजों की जानकारी नहीं है, इसलिए मुझे भी ,साथ ही चलना होगा। कस्तूरी ने सूचि दिखलाई,  बहुत से सामान ऐसे थे जिनके विषय में वह नहीं जानता था। बैठकर सोचने लगा ,अब क्या किया जाए? तब सोचा , इतना बड़ा शहर है ,क्या सब लोग मेरे पीछे ही पड़े होंगे ? एक बार ले चलता हूं, यह सोचते हुए वह कस्तूरी से कहता है -तुम तैयार हो जाओ ! मैं तब तक अपने बॉस को सब्जी देकर आता हूं। कस्तूरी तैयार होने के लिए चली जाती है और चतुर मिसेज दत्ता को सब्जी देने के लिए चला जाता है। 

अरे तुम आ गए, आज तुमने बहुत समय लगा दिया। क्या कहीं रह गए थे ? मिसेज दत्ता ने चतुर को देखते ही पूछा। 

हां, शहर में बहुत बड़ी दुर्घटना हो गई हो गयी थी , जिसके कारण, बहुत भीड़ थी आना मुश्किल हो रहा था कहते हुए थैला रखता है और बाहर जाने लगता है। 

 क्या अभी कहीं जा रहे हैं ? मिसेज दत्ता  ने  पूछा। 

हां, मुझे एक आवश्यक कार्य है, वहीं  जा रहा हूं, आपको कुछ काम तो नहीं।

 नहीं, आप अपने काम के लिए जाइए। 

मिसेज खन्ना के इतना कहते ही, चतुर फुर्ती से अपने घर की ओर बढ़ गया जहां कस्तूरी पहले से तैयार होकर उसकी प्रतीक्षा में थी। आओ ,चलो ! जल्दी चलते हैं। क्यों ,इतनी जल्दी कर रहे हैं ? 

मुझे और भी अन्य काम हैं इसलिए शीघ्रता कर रहा हूं।साथ में बच्चे को न देख ,उसने कस्तूरी से पूछा - छोटू को कहां छोड़ दिया ?

 वह सो रहा है, मकान -मालकिन से कह दिया है , वह देखते रहेंगीं , यदि उठ जाता है तो उन्हें दूध की बोतल भी दे आई हूँ । 

ठीक है ,आओ चलो ! कहते हुए चतुर ने मोटरसाइकिल पर, कस्तूरी को बिठाया और बाजार  की तरफ अपनी मोटरसाइकिल दौड़ा दी। 

तुमने यह मोटरसाइकिल कब ली ? यह आज तक तो, मैंने देखी नहीं, न ही तुमने बताया।

 चतुर प्रसन्न होते वह बोला -यह मेरी मोटरसाइकिल नहीं है , यह तो किसी दोस्त की मांग कर लाया हूं ,सिर्फ तुम्हारे लिए , किंतु तुम्हें दिखला रहा हूं और इसकी सैर इसलिए कर रहा हूं कि भविष्य में ऐसी ही मोटरसाइकिल मुझे लेनी है बताओ तुम्हें इसकी सवारी कैसी लग रही है ?

 बहुत अच्छी !

तुम चिंता ना करो ऐसी बढ़िया मोटरसाइकिल लूंगा ! और तब तुम्हें सैर पर ले जाया करूंगा। 

आज उसे कस्तूरी के साथ ,इस तरह बाजार भी जाना अच्छा लग रहा था ,एक पल के लिए वह भूल गया था, कि यहां उसके साथ कुछ भी हो सकता है। जिस भी, दुकान पर ले जाने के लिए कस्तूरी ने कहा, ले गया। कस्तूरी के लिए भी साड़ी और कुछ सामान लिया। बाजार में घूमते हुए लगभग दो-तीन घंटे हो गए थे अब कस्तूरी को अपने बेटे की चिंता सताने लगी थी तब वह बोली -अब हमें शीघ्र ही घर चलना चाहिए वरना छोटू उठ गया तो उन्हें परेशान कर देगा। कस्तूरी को घर छोड़कर वह अपने दोस्त की मोटरसाइकिल वापस करता है और मिसेज दत्ता के घर पहुंचता है, वहां पहुंचकर देखता है मिसेज दत्ता तो सर पर पट्टी बांधे हुए, लेटी हुई थीं। चतुर को देखकर बैठने का प्रयास किया।

 मिसेज दत्ता की हालत देखकर ,बोला -लेटी रहिये !चतुर ने उसे देखते ही, परेशान होने का अभिनय किया , क्या हुआ आपको ! कहते हुए उसके माथे पर हाथ रखता है और कहता है- बुखार तो नहीं है। 

बदन में थोड़ी हरारत सी है, सर में भी दर्द है, मिसेज दत्ता चतुर से कहती है।

ओह ! डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा।

नहीं ,उसकी कोई आवश्यकता नहीं है, आराम करूंगी , थोड़ी देर में ठीक हो जाऊंगी किंतु आज मुझसे  खाना नहीं बन पाएगा। 

कोई बात नहीं ,आप ठीक हो जाइए, खाना तो रोज ही खाते हैं, आज चतुर वैसे भी खाना नहीं खा  पाता क्योंकि आज तो वह कस्तूरी के साथ बाजार घूमने गया था और वही दोनों ने साथ में भोजन भी किया था। किंतु मिसेज दत्ता को वह दिखला रहा था कि वह उनके लिए भूखा भी रह सकता है अब  धीरे-धीरे, उनकी  परेशानी बढ़ रही थी ,कुछ देर बाद सर्दी लगने लगी और बुखार चढ़ गया। 

चतुर बाजार गया वहां से दवाई लेकर आया और मिसेज दत्ता की बेटी के लिए कुछ फल और भोजन भी लेकर आया, वो  बुखार में भी देख रही थीं , कि यह, कितनी तल्लीनता से सभी कार्य कर रहा है। डॉक्टर ने चतुर को बताया था -कि माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखने से बुखार शीघ्र उतर जाएगा। उसने ऐसा ही किया। इस काम में उसे, लगभग 12:00 बज गए थे। बुखार उतर जाने के पश्चात, मिसेज दत्ता को नींद आ गई , चतुर भी वही पास में ही सो गया। न जाने रात्रि में किस चीज की आवश्यकता पड़ जाए ? लालच  और चालबाजी अपनी जगह किंतु ऐसे समय में किसी का साथ देना, उसके साथ खड़े होना, उसकी बीमारी में उसकी सहायता करना, यह बातें मन को छू जाती हैं। यही मिसेज दत्ता के साथ भी हुआ। उन्होंने चतुर को   इस तरह अपनी बेटी का ख्याल रखते हुए, और उनका स्वयं का ख्याल रखते हुए देखा। उनका हृदय भावुक हो उठा, अब उन्हें एहसास हो रहा था , कि घर में एक मर्द का होना आवश्यक है। बेटी को उसके पापा की जरूरत है। इस बीमारी के कारण, मिसेज दत्ता का हृदय परिवर्तन हुआ, और मैं सोचने लगी-जिंदगी कितनी बड़ी है , कब तक अकेले संघर्ष करती रहूंगी ?आइये ! आगे बढ़ते हैं-''रसिया'' के साथ

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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