Rasiya [part 97]

चाय पीते हुए चतुर दत्ता से बोला -मुझे कुछ दिन के लिए अपने घर जाना होगा। 

क्यों क्या हुआ ? वहां सब ठीक तो है। 

ठीक ही तो नहीं है, मां की तबीयत खराब है, सारा दिन मेरे विषय में सोचती रहती हैं ,मेरे लिए लड़की ढूंढती हैं ,ताकि मेरा घर बस जाये और उनकी चिंता समाप्त हो।  अब मैं भी क्या करूं ? यहां नौकरी करूं या मां की सेवा करूं ?

क्या, तुम्हारे पिता नहीं है ? 


पिता हैं , इसीलिए तो छोड़ा हुआ है, वरना अपने साथ ही ले आता। 

और आपके परिवार में कितने लोग हैं ?

बताया तो था, मैं अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हूं। 

ओह ,हाँ ! याद नहीं रहा , वहाँ कब जा रहे हैं ?

 कल ही निकल जाऊंगा।

 दफ्तर में किसी से कुछ कहना है। 

नहीं, मैंने पहले ही छुट्टी की अर्जी दे दी थी। मुझे अपना फोन नंबर दे दीजिए यदि कोई असुविधा होगी या कोई बात होगी तो मैं आपसे फोन पर बात कर सकता हूं। 

हां ,यह सही रहेगा, कहते हुए, मिसेज दत्ता  ने एक कागज पर, पेन से अपना फोन नंबर लिखकर चतुर को दे दिया, जो अपनी बीमार मां को देखने के लिए, जा रहा था। 

घर पहुंचने पर ,दूसरे बेटे होने की ख़ुशी में ,वही ढोल बजाए गए, दोस्तों ने दावतें उड़ाईं , अबकी बार चतुर ने , अपने पिता को बता दिया था- वह अब कानपुर में नौकरी कर रहा है।

 यह सुनकर उन्हें आश्चर्य होता है और पूछते हैं- तू तो पढ़ने के लिए, किसी दूसरे शहर में गया था वहां कैसे पहुंच गया ?

नौकरी का एक अच्छा ऑफर मिला था, मेरी कॉलेज वालों से बात हो गई थी, आखिरी साल था , इसलिए मैं नौकरी पर चला गया डिग्री तो मुझे मिल ही जाएगी। पेपर देकर आ गया। 

जो तुझे सही लगे, करो ! किंतु हमें एक बात कहनी है, अब हम चाहते हैं तू अब अपने, बच्चों को अपने साथ लेकर चला जा !बहु ,इतने वर्षों से गांव में रह रही है ,अब उसे तेरे साथ की आवश्यकता है। अपने पति के साथ रहना ,वो भी तो चाहती होगी। 

मैं उससे बात करूंगा ,उसने मुझसे आज तक ऐसी कोई भी इच्छा नहीं जतलाई ,न ही कुछ कहा।  

यदि वो कुछ कहती नहीं ,तो इसका मतलब, हम भी आंख मूंदकर बैठ जाएँ ,ये उसकी अच्छाई है। 

यह आप क्या कह रहे हैं ? परेशान होते हुए चतुर ने पूछा -शहर में इतना बड़ा खर्च ,में कैसे उठा पाऊंगा ?

हम जो भी कह रहे हैं ,बहुत सोच समझकर कह रहे हैं। क्यों ?तू तो कह रहा था -''अच्छी नौकरी लगी है, जब से तेरा विवाह हुआ है , तब से वह यहां गांव में ही पड़ी है ,यह  तो यह सोचो !कि वह स्वभाव से अच्छी है इसलिए उसने कुछ नहीं कहा , वरना आजकल  इस तरह अकेले पति को कभी नहीं छोड़ती हैं तुझे अपने बच्चों को साथ में रखने में क्या दिक्कत है ? यहां से अनाज ,दालें, और जरूरत की कुछ चीजें ले जाना। बस वहां रहने का और बच्चों का खर्चा होगा, छोटा भी अब 3 साल का हो गया है ,उसका दाखिला भी तो कराना है।

 यह तो चतुर ने सोचा ही नहीं था, ऐसा भी हो सकता है। उनकी बात भी सही है, कस्तूरी जब से विवाह करके आई है तब से यही गांव में है, उसने तो शहर देखा ही नहीं ,अब उस पर दो तो बच्चों की जिम्मेदारी हैं। हो सकता है, पिताजी ने कुछ ऐसा देखा हो ! उन्हें लग रहा हो कि अब कस्तूरी को मेरे साथ जाना चाहिए या उसने ही माँ से या पिताजी से कुछ कहा हो। 

उसे सोचते हुए देखकर श्रीधर जी बोले -बहु ,बहुत अच्छी है, किंतु हमें भी तो सोचना चाहिए , तू कैसे बिना बहू के रह लेता है आजकल के बच्चे तो अपनी पत्नी को एक पल भी नहीं छोड़ते। तू अकेला, खाना -पीना ,कपड़े न जाने कैसे करता होगा ? इसलिए सोचा -बहू तेरे साथ चली जाएगी तो तेरी थोड़ी परेशानी कम हो जाएगी।

 मन ही मन चतुर सोच रहा था-परेशानी कम कहां होगी ?परेशानी तो बढ़ जाएगी। वह यह सब कैसे करेगा ? अभी उसने एक किराए पर मकान लिया है वहां भी नहीं ले जा सकता और कमरा भी छोटा है। कहीं और ही कुछ जुगाड़ लगाना होगा। सोचकर तो वह एक सप्ताह के लिए ही गया था, किंतु तीसरे दिन वापस आ गया। 

उसे देखकर मिसेज दत्ता बोलीं - क्या ?आपकी मम्मी की तबीयत अब ठीक है। 

हां ,वह तो ठीक हैं , कहते हुए वह बाहर निकल गया वह छुट्टियां खत्म होने से पहले शीघ्र अति शीघ्र कोई किराए पर मकान देखकर, कस्तूरी और बच्चों को वहां बसा देना चाहता था। ऐसी जगह ढूंढ रहा था, जहां वह बच्चों पर भी ध्यान रख सके, और यहां भी रहे। सारा दिन धक्के खाने के पश्चात,उसे मिसेज दत्ता के घर के पीछे ही एक मकान मिल गया। यह बहुत अच्छा हुआ ,अब वह अपने घर भी चला जायेगा और यहां भी रहेगा। 

मिसेज दत्ता उसको देखकर परेशान होते हुए बोलीं  -क्या आप किसी परेशानी में हैं ?मुझे बताइये !शायद मैं आपकी कोई सहायता कर सकूँ। 

नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,मेरे एक मित्र हैं ,उनका परिवार उनके साथ रहने आ रहा है इसीलिए उनके लिए एक किराये का मकान ढूंढने में सारा दिन निकल गया। 

मिसेज दत्ता को लगा ,यह आदमी बहुत ही अच्छा है ,जो सभी की परेशानियों में साथ खड़ा रहता है, उनकी सहायता करता है। इस कारण उनका  विश्वास चतुर पर और अधिक बढ़ गया। कहीं न कहीं उसकी ओर आकर्षण महसूस कर रही थीं । चतुर के लिए ,खाना बनाया ,हालाँकि भोजन किराये में तय नहीं किया था किन्तु दत्ता स्वतः ही चतुर के भोजन का ध्यान रखने लगीं। जब उनसे उनके मन ने ही प्रश्न किया कि यह सब क्यों ?तब उन्होंने उत्तर भी दिया ,'इंसानियत के नाते ''

अगले दिन प्रातः ही ,चतुर अपने घर के लिए निकल गया ,घर पहुंचकर सोचा ,एक बार पिता से फिर पूछकर देख लेता हूँ ,कस्तूरी यहीं रहे फिर सोचा -अब तो बड़ा तीन बरस का हो गया है ,उसकी पढ़ाई भी है। यही सोचकर शांत रहा, फिर भी उसने अपने पिता से कहा -अब आपका और मां का ख्याल कौन रखेगा ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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