Rasiya [part 96]

अब तो अक्सर ,चतुर और मिसेज़ दत्ता ,आपस में बैठकर बातें करते रहते ,एक दूसरे से अपना सुख -दुःख बाँटने लगे। उस दिन से उन्हें बातचीत करते ,छह माह हो गए थे।बातों ही बातों में आज अचानक ही मिसेज दत्ता बोलीं -चतुर जी ! आप चाहे तो मेरे घर में एक कमरा खाली है,आप उसमें रह सकते हैं। 

मिसेज दत्ता की बात सुनकर, चतुर एकदम खुश हो गया और बोला- यह तो आपने बहुत अच्छी खबर सुनाई। मैं बहुत ही परेशान हो रहा था ,मकान -मालिक कई दिनों से घर खाली करने के लिए कह रहा था किन्तु मैं परेशान था ,इस अनजान शहर में ,कहाँ -कहाँ धक्के खाऊँगा ? मन ही मन वह सोच रहा था ,इस विश्वास को पाने के लिए ही, छह माह लग गए। प्रत्यक्ष बोला -हम दोनों एक साथ ही, एक ही कंपनी में नौकरी करते हैं तो एक साथ ही आ जाया करेंगे।एक दूसरे का साथ बना रहेगा।  मैं आपके काम में आपकी सहायता कर दिया करूंगा तो देरी भी नहीं होगी। 


हां, यह उचित रहेगा,मिसेज दत्ता ! एक  विधवा महिला हैं ,उनके पति को गए अभी चार -पांच साल ही हुए हैं ,उसके साथ एक बेटी है , दत्ता साहब !की बीमारी में बहुत पैसा लग गया। जो भी जमा -पूंजी थी ,लगभग समाप्त हो चुकी थी। ज्यादा उम्र भी नहीं है ,इसीलिए अब वो नौकरी करके अपना और अपनी बेटी का पालन -पोषण करने लगीं । जब माँ जिन्दा थी ,उन्होंने कहा भी था -'अभी तेरी उम्र ही क्या है ?दूसरा विवाह कर ले। '

किन्तु वो बोलीं - अब मेरे पास मेरी बेटी है ,इसके सहारे जी लूंगी। रिश्तेदार भी आये और दुःख जतलाकर चले गए। अकेली होने के बावजूद भी ,वह बहुत सतर्क रहीं ,न ही किसी से ज्यादा बातचीत करना और न ही किसी से इतना घुलना -मिलना किन्तु उसे ये नहीं मालूम था ,अब वो चतुर के मीठे जाल में फंसने जा रहीं हैं। उस दिन जो चतुर ने रोने के लिए कांधा क्या दिया ?अब उन्हें उस पर विश्वास हो चला है। उनके विचारों की शृंखला चतुर की आवाज से टूटी। 

तो मकान -मालकिन जी, मैं आपका घर देखने के लिए कब आ सकता हूं ?

जब आपका जी चाहे ! मोस्ट वेलकम ! मिसेज दत्ता  मुस्कुराते हुए बोलीं। 

मन ही मन चतुर भी प्रसन्न हो गया। ज्यादा जल्दबाजी करनी ठीक नहीं, मन ही मन सोचा और बोला - आपको ! एक किराएदार और एक सहयोगी जो मिल रहा है। छुट्टी वाले दिन मैं आपके घर, आ सकता हूं ,घर भी देख लूंगा और यदि पसंद आ गया तो शिफ्ट भी कर लूँगा। 

हां, यही  सही रहेगा। 

श्रीमती दत्ता में तो जैसे, नई जान भर गई थी, चतुर से बातचीत करके ताजगी सी आ जाती थी , शायद मन  का दर्द थोड़ा हल्का हो गया था, उन्हें किराएदार के रूप में एक सहयोगी जो मिल रहा था। 

क्या बात है ?श्रीमती दत्ता !आजकल बहुत ही प्रसन्न नजर आ रही हैं ।

नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है,बस चतुर सर ने मेरे घर में किरायेदार के रूप में आने का निर्णय कर लिया है। बेचारे ! बहुत अच्छे हैं ,उनका मकान -मालिक बहुत दिनों से उन्हें तंग कर रह था। मैं भी सोच रही थी ,इस बहाने किसी का साथ भी हो जायेगा और हम लोग साथ ही दफ्तर भी आ जाया करेंगे। 

वो तो ठीक है ,आपके पति भी नहीं हैं ,किसी जवान आदमी को इस तरह अपने घर में रखना ,क्या उचित रहेगा ? नलिनी चौधरी ने उन्हें आगाह करते हुए कहा। 

वो तो आप ठीक कह रहीं हैं ,किन्तु सर ऐसे नहीं है ,आप और हम भी उनको एक वर्ष से देख रहे हैं ,आज तक तो ऐसा कुछ भी गलत नहीं लगा। 

नलिनी चौधरी ने मिसेज दत्ता की बात सुनी तो चुप हो गयीं ,वो मन ही मन सोच रहीं थीं -कि इन्हे कैसे बताऊं ? ऐसे लोग मौक़े की तलाश में रहते हैं। इस व्यक्ति ने पहले तो मुझपर ही हाथ रखा था किन्तु मुझसे इसे कोई ऐसा कारण नहीं मिला जो मैं रोऊँ और ये मुझे रोने के लिए अपना कांधा दे सके। न जाने क्यों ?नलिनी चौधरी को चतुर की मीठी बातों पर विश्वास नहीं होता ,उसे लगता ,जैसा ये दिखता है ,ये ऐसा नहीं है। किन्तु मिसेज दत्ता भी तो पढ़ी -लिखी हैं ,अपना भला -बुरा समझती हैं। मुझे इनके बीच में ज्यादा नहीं बोलना चाहिए। 

चतुर छुट्टी वाले दिन , श्रीमती दत्ता के घर उनका किराए का कमरा देखने जाता है ,वह कमरा उसे पसंद तो नहीं आता है, किंतु फिर भी हां कर देता है। रात्रि का भोजन वही करके अपने घर वापस आता है।  मन ही मन सोच रहा था ,इस कमरे से मुख्य कमरे में जाने में मुझे थोड़ा समय तो लगेगा किंतु हो सकता है यह मकान ही मेरा हो जाए. अपनी ही सोच पर मुस्कुरा दिया। अगले दिन जब वह दफ्तर गया, तब उसके लिए एक फोन आया। उसके लिए खुशखबरी थी, यह फोन उसके पिता का था। जब उन्होंने उसे बतलाया, कि वह दूसरे बेटे का बाप बन गया है। प्रसन्नता से उसने, सारे दफ्तर में लड्डू बटवाए। लोगों ने जब उसका कारण पूछा तो उसने बताया -मैंने मिसेज दत्ता का कमरा किराए पर जो लिया है इसीलिए मिठाई बांट रहा हूं किंतु किसी को यह आभास नहीं होने दिया कि वह दो बच्चों का बाप बन गया है  क्योंकि वह अभी तक तो इन नारियों के बीच में कुंवारा बना घूम रहा था। 

अगले दिन वह मिसेज दत्ता के घर पर अपना सामान ले आता है ,उससे पहले ही मिसेज दत्ता ने उसके लिए गद्दा और तख़्त का इंतजाम करा देती हैं। उस पर लेटकर ,चतुर सोच रहा था ,इस कमरे को पाने के लिए मुझे कितना परिश्रम करना पड़ा ? वाह !री नारी अपने को दृढ़ और मजबूत कहती है, किन्तु उसे बहलाने के लिए मासूमियत और थोड़ी सी झूठी हमदर्दी की आवश्यकता होती है। अब देखो !कैसे अपना जाल फैलाता हूँ। इस कमरे से उसके बेडरूम तक जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। अभी वो यही सब सोच रहा था,तभी मिसेज दत्ता अपनी बेटी के साथ आकर खड़ी हो जाती है ,हाथ में चाय की ट्रे थी ,उस ट्रे को मेज पर रखते हुए बोली -कमरा कैसा लगा आपको ! ये मेरी बेटी है ,सुनयना ! ये पूछ रही थी -'मम्मी ! हमारे घर में कौन आया है ?तब मैंने सोचा ,आपको चाय भी दे आती हूँ और आपसे इसका परिचय भी करा देती हूँ। 

चाय प्याली में करते हुए बोली -सुनयना ,बेटा !ये चतुर अंकल हैं ,और ये हमारी प्यारी सी गुड़िया सुनयना !

चतुर ने उठकर उसको हैलो !करते हुए हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया ,दत्ता की छह साल की बेटी ने शरमाते हुए ,हाथ आगे बढ़ाया ,तब चतुर ने उसके हाथ में एक चॉकलेट रखते हुए पूछा -क्या तुम्हें चॉकलेट पसंद है ?उसने हाँ में गर्दन हिलाई और अपनी मम्मी की तरफ देखने लगी। 

ले लो !और बाहर जाकर खेलो !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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