चतुर ज्यादा पैसे के लालच में ,नितिन फोटोग्राफर के चक्कर में आकर ,वह कार्य करने तो लगा था किंतु जब पुलिस का लफड़ा उसके सामने आया ,तो वह घबरा उठा और उसने वह कार्य न करने का निर्णय लिया और उस शहर से ही भाग खड़ा हुआ। कुछ महीनों या कुछ साल के लिए ,उस स्थान को ही छोड़कर आ गया और वह दूसरे शहर में जाकर नौकरी करने लगा किंतु उसका स्वभाव नहीं बदला था। वह अब महिलाओं के करीब रहना ज्यादा पसंद करता था। एक महिला दफ्तर में प्रवेश करती है, वह काफी समय से यहां नौकरी कर रही है , वह सीधे मैनेजर के कैबिन में जाती है ,किंतु जब बाहर आती है ,उसके चेहरे का रंग उतरा हुआ था। मैनेजर ने आज उसको, बहुत डाँ टा उसकी भी अपनी परेशानियां हैं , उसकी अपनी बेटी है, पति उसके साथ नहीं रहता है। अकेले ही सारा बाहर का और घर का कार्य करती है , ऐसे में कुछ गलती हो गई तो इस तरह उसे, सबके सामने नहीं डांटना चाहिए था।वहां पहले से ही ,तीन -चार लोग बैठे हुए थे। उसने एक बार भी ,श्रीमती दत्ता की बात सुनने का प्रयास भी नहीं किया।
दत्ता ! अपने केबिन में आकर रो रही थी, चतुर ने उसे देख लिया था, किंतु अभी वह कुछ कह नहीं सकता था, दोपहर के खाने के समय पर, चतुर भोजन लेकर उसी के समीप आकर बैठता है, मैसेज दत्ता जी ! आप खाने में क्या लाई हैं ? उससे चतुर जानबूझकर पूछता है,
आज मैं खाना ही लेकर नहीं आई क्योंकि मुझे घर से दफ्तर आने में देरी हो रही थी, तब भी मुझे डांट पड़ गई मुंह बनाते हुए श्रीमती दत्त बोली।
क्या बात कर रही हैंं ? हमारे रहते आप कैसे भूखी रह सकती हैं ? लीजिए !आप खाना खाईये !
नहीं ,मुझे भूख नहीं है,वो उदास स्वर में बोली।
अपनी नाराजगी भोजन पर नहीं निकालते। आप अकेली ही सारे कार्य करने वाली हैं, आपकी एक प्यारी सी बेटी है अगर आप इस तरह भूखी रहेगीं तो बीमार पड़ जाएंगीं , हो सकता है ,नौकरी भी छूट जाए,तब आपकी बेटी का क्या होगा ? बल्कि आपको तो हिम्मत से साहस से, आगे बढ़ना चाहिए और खूब भोजन करना चाहिए , कहते हुए उसने अपने टिफिन के, डब्बे उसके आगे कर दिए। मिसेज दत्ता को भूख तो बहुत जोरों की लग रही थी, किंतु मन को मार रही थी। चतुर के भावनात्मक पहलु के समझाने पर, वह समझ गई और तुरंत ही भोजन करने लगी।
जब पेट भर जाता है, तो मन को सुकून मिलता है, शांति होती है और मन में जो नकारात्मक विचार होते हैं ,वह भी धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं। यही बात, श्रीमती दत्ता के साथ भी हुई। उसका मन अब खुश था, पेट तृप्त था। तब वह बोली-आप ,कितने अच्छे हैं ? सभी का कितना ख्याल रखते हैं ? कहने को तो यहाँ सभी मेरी दोस्त हैं लेकिन किसी ने भी मुझे इस तरह से नहीं समझाया। आपने मेरी बेटी के प्रति मेरे उत्तरदायित्व स्मरण कराये। सच में ही ,उनके जाने के पश्चात ,अब वो मेरा और मैं उसका सहारा बन गयी हूँ।
अब आप बताइये !आपकी पत्नी कैसी है ? वह तो अपने को बड़ा ही, भाग्यशाली समझती होगी, कि मुझे ऐसा पति मिला। उसकी बात सुनकर चतुर जोर से हंसने लगा। आप इस तरह क्यों हंस रहे हैं ?
क्या आपको मुझे देखकर लगता है? कि मैं शादीशुदा हूं चतुर ने मुस्कुराते हुए उसकी आंखों में झांका।
नहीं ,लगता तो नहीं है , फिर भी मैंने अंदाजा लगाया।
आपका अंदाजा बिल्कुल गलत था, मां, मेरे लिए अभी कोई अच्छी सी लड़की ढूंढ रही है बिल्कुल आप जैसी ही हो, सुंदर, सरल, सुगढ़ , आप कितनी गुणवान हैं ? क्या मेरे लिए ऐसी लड़की ढूंढ देंगीं ? बिल्कुल अपने ही जैसी !
मैं तुम्हारे लिए कहां से लड़की ढूंढ कर लाऊंगी, वह तो तुम्हारी मां की अपनी पसंद होगी।
नहीं ,मेरी भी पसंद होगी मां की तो सिर्फ बाद में मोहर लगनी है, मैं जिस भी लड़की को कहूंगा मां, इनकार नहीं करेगी क्योंकि वह मुझसे बहुत प्यार करती है। बस कोई आपके जैसी ही मिल जाए। अपनी प्रशंसा सुनकर मिसेज दत्ता शर्मा गई।
अच्छा !यह बताइए !आप कहां रहते हैं ?
अकेले इंसान का क्या ठिकाना हो सकता है ? बस ऐसे ही किसी किराए के मकान में एक कोने में पड़े रहते हैं। घर परिवार कुछ है नहीं ,मन नहीं लगता किंतु लगाना पड़ता है। कम से कम आपको ,अपनी बेटी का तो सहारा है मुझे तो वह भी सहारा नहीं है ,कोई मुझसे प्यार के दो बोल दे ! बीच में मैं ,बीमार पड़ गया था, कोई पानी पूछने को भी नहीं था। तब मैं सोचता था -काश !कि मेरी आप जैसी सुगढ़ ,सुशील पत्नी होती, मेरी सेवा करती, मेरे साथ रहती।
अब आप मुझे कुछ ज्यादा ही चढ़ा रहे हैं,मुस्कुराकर झूठा गुस्सा दिखलाते हुए वो बोली।
खैर !कोई नहीं, जिसके नसीब में सुख नहीं होता, मिलता ही नहीं है। अकेला पड़ा रहता हूं, मन किया भोजन कर लेता हूं, नहीं मन करता है तो ऐसे ही सो जाता हूं। जब किसी को अपनी पसंद अपना दर्द बताओ !तो कोई विश्वास नहीं करता।
चतुर के बातें और उसके भाव सुनकर, दत्ता को उससे हमदर्दी हुई और बोली कभी-कभी हमारे घर भी आ जाया कीजिए। हम साथ में ही नौकरी करते हैं, एक दूसरे को जानते समझते भी हैं , कभी मन न लगे या अलग से भोजन करने का मन करे तो आ जाया कीजिए ,आपका ही घर है।
आप कह तो ठीक रही हैं, किंतु यह दुनिया समाज, इस तरह किसी महिला के घर जाना उचित नहीं लगता। चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ! न जाने कौन, इनके घर आ रहा है ?
यह तो आपने बिल्कुल सही कहा किंतु कभी- कभार आने में कोई बुराई भी नहीं है। मैं और मेरी बेटी ही तो रहते हैं, शहर में, कौन ,किसका होता है ?एक दूसरे का ही सहारा हो जाता है। मैं तो दिनभर नौकरी पर रहती हूं शाम को घर में जाती हूं। अपना करना, अपना खाना है, किसी से कोई ज्यादा मतलब नहीं है। मेरा मकान भी अपना है, जब पति मेरे बीमार थे ,उन्हें लग रहा था मैं नहीं बच पाऊंगा ,तब उन्होंने पहले ही वह मकान मेरे नाम कर दिया था इसलिए हर महीने किराए का सिर दर्द ही नहीं रहता है। यह बात स्मरण होते ही, तब मिसेज दत्ता कहती है -अरे मैं तो भूल ही गई। मेरे घर में एक कमरा खाली है। यदि आपको कोई परेशानी या दिक्कत न हो तो आप मेरे घर में आकर रह सकते हैं, हालांकि वह कमरा थोड़ा छोटा है बाकी आप देख लीजिएगा।