Rasiya [part 94]

इस खबर के अखबार में छपते ही, पुलिस पर दबाव बन गया था। कुछ लोग ,जो इन्हीं अनजान लोगों के सताए हुए थे, किंतु सामने नहीं आ पा रहे थे इसीलिए वह उस लड़की के समर्थन में खड़े हुए ताकि इसी के बहाने से हमें भी न्याय मिल सके। लोगों ने मिलकर, नितिन का स्टूडियो तोड़ दिया था। पुलिस को नितिन और जतिन या कोई अन्य नाम नहीं मिला और न ही ,कोई सबूत ! किंतु फिर भी, पुलिस प्रयासरत  थी उन्हें भरोसा था एक न एक दिन अपराधी पकड़ा ही जाएगा। 

चतुर को गांव में रहते हुए ,लगभग एक सप्ताह हो गया उसके पिता को यह अजीब लगा , श्रीधर जी ने चतुर से पूछा-बेटा !सब ठीक है। 

हां, यह आप क्यों पूछ रहे हैं ?

क्योंकि तू जब से बाहर पढ़ने गया है ,तब से आज तक ,इतने दिनों तक यहां कभी नहीं रहा, पढ़ाई का बहाना करके चला ही जाता था। यहां तक की कस्तूरी के साथ भी, एक माह रहा। अपनी इतनी सुंदर पत्नी को देखकर भी, तेरे मन में पढ़ाई की लग्न थी। तेरे कई साथियों ने तो पढ़ाई ही छोड़ दी किन्तु तेरी लग्न देखकर हमने तुझे नहीं रोका।  क्या तेरी पढ़ाई ठीक चल रही है ? वहां तो सब ठीक है। 

हां सब ठीक है, वह तो मैं बच्चे के कारण सोच रहा था ,थोड़े दिन यहीं रुक जाता हूं।कस्तूरी भी शिकायत कर रही थी कि अबकी बार कम से कम कुछ दिन तो रुको !मेरी भी परीक्षाएं शुरू हो जाएंगीं , तो आना नहीं होगा, चतुर ने सफाई दी। अब चतुर को लग रहा था ,यदि वह यहां ज्यादा दिन रुकता है , तो कहीं घर वालों को मुझ पर शक न हो जाए।कि अबकि बार ऐसा क्या हुआ ?जो यह कॉलिज नहीं जा रहा। आज तो पिताजी ने ही पूछा है ,कल को दोस्त और गांववाले भी पूछने लगेंगे।  

एक सप्ताह तक उसने दाढ़ी नहीं बनाई थी, इतने दिनों मे उसकी दाढ़ी काफी बढ़ गई थी। तब वह , अपनी कॉलेज की अध्यापिका से मिलने की सोचता है और जब वह उनके घर जाता है तो वह उसे देखकर पहचान ही नहीं पाती।

 अरे !तुम कौन हो ?जो इस तरह अंदर चले आ रहे हो।

मैडम !आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं आपका प्रिय छात्र चतुर हूं। 

ओह , आओ बैठो! मैं तो तुम्हें बिल्कुल भी नहीं पहचान पाई, यह क्या हुलिया बना रखा है ?

दरअसल मैडम !मैं अपने गांव चला गया था, मेरी पत्नी को बेटा हुआ है, एक सप्ताह से वहीं पर हूं इसलिए आना नहीं हुआ। आज आया हूं तो सोचा- मैडम ! के लिए मिठाई लेकर चलता हूं।

 क्या? आश्चर्य से उन्होंने पूछा, क्या तुम शादीशुदा हो ?क्या ,उम्र होगी तुम्हारी 

जी,हमारे गांव में, शीघ्र ही विवाह  हो जाता है। यह खुलासा ! उसने पहली बार अपनी अध्यापिका के सामने किया था. जिसके कारण उन्हें लगे,सज्जन व्यक्ति है  या  किसी को भी,उस केस के विषय में जानकारी के पश्चात एहसास होता है तो कोई सोच भी नहीं पाएगा क्योंकि वह तो पहले से ही शादीशुदा है। मैं इस वर्ष चौबीस का हो गया हूँ। 

मैडम !के न पहचान पाने पर उसे इस बात की भी संतुष्टि हो गई , कि इस वेशभूषा में वह पहचाना  नहीं जायेगा । तब वह अपने किराए के मकान में जाता है और अपना सामान उठाकर मकान -मालिक का किराया देकर, वापस आना चाहता है।
 
क्या तुम जा रहे हो? मकान मालिक ने आश्चर्य से पूछा। 

जी मुझे जाना होगा , मेरी किसी दूसरे शहर में नौकरी लग गई है, अतः मैं आपकी बेटी को नहीं पढ़ा पाऊंगा , मेरी मजबूरी है। 

कोई बात नहीं, यहां तो बहुत से अध्यापक हैं, हमारी बेटी के लिए, तुम अपनी नौकरी थोड़ी छोड़ दोगे और ना ही हम तुम्हें इतने पैसे दे पाएंगे,जितने तुम्हें इस नौकरी से मिलेंगे।  कहते हुए वह हंसने लगे। चतुर ने आखिरी बार उनकी बेटी को देखा और उसे चॉकलेट दी। शुरुआत भी चॉकलेट से ही  की थी और उसने इस रिश्ते के विषय में सोचना भी चॉकलेट के साथ ही बंद कर दिया।

 अब मन ही मन चतुर ने सोच लिया था, कि वह अब ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिसके कारण, उसे'' यह चूहा बिल्ली की तरह,'' भाग दौड़ करनी पड़े। एक सुकून की जिंदगी जिएगा। कई दिनों से अखबार में कोई नौकरी के लिए जगह देख रहा था और जब वह जगह मिली भी तो कानपुर में थी और वह कानपुर के लिए रवाना हो गया। घर वालों को भी उसने यह नहीं बताया था कि वह कहां जा रहा है ? कानपुर के एक दफ्तर में, उसे कार्य मिला , कार्य उसे कुछ भी आता नहीं था किन्तु उसके व्यक्तित्व ,उसकी बातचीत ,रहने के ढंग को देखकर नौकरी पर रख लिया गया ,इसलिए उसको मैनेजर के नीचे कार्य सीखने के लिए रखा गया ।

 अध्यापिका से मिलने का उसका उद्देश्य यही था , ताकि वह उसे कुछ आवश्यक कार्य के लिए सूचित कर सकें। कॉलेज में उसका यह आखरी साल चल रहा था, नौकरी मिल जाने पर उसने अध्यापिका से बात की और उन्होंने, उसे जाने की इजाजत दे दी। उनके अनुसार, एक महीने पहले भी यदि वह तैयारी करता है तब भी पास हो जाएगा लेकिन इतनी अच्छी नौकरी शायद दोबारा नहीं  मिलेगी । सही तो कह रही थीं - 25 से 30000 की नौकरी, उस समय में बहुत मायने रखती थी जहां लोग 6से 7000 पर भी नौकरी करने  के लिए तैयार रहते थे। मन ही मन चतुर सोच रहा था यह शायद मेरा कोई पुण्य कर्म है, या फिर मेरे बेटे का भाग्य है जिसके कारण में सही राह पर जा रहा हूं और अब उसने  सोच लिया था अब ऐसा कोई भी गलत कार्य नहीं करेगा नितिन से भी कोई संबंध नहीं रखेगा। एक लालच के कारण न जाने क्या से क्या हो जाता ?उसके माता-पिता का विश्वास और उसका अपना सपना दोनों टूट जाते। उस पर शीघ्र से शीघ्र,जो अमीर होने का जो भूत सवार था , लगभग वह उतर चुका था। 

कानपुर की एक, बड़ी सी कंपनी में वह असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी पर नियुक्त था। वहां के लोगों से उसके संबंध अच्छे थे, विशेषकर महिला कर्मचारियों के साथ, वह उनका बेहद ख्याल रखता था, छोटी -बड़ी बात के लिए, उनके सहयोग के लिए तत्पर रहता था। सभी उसकी प्रशंसा करते थे, वह वहां के सभी कर्मचारियों में प्रसिद्ध हो गया था विशेषकर वहां की महिला कर्मचारियों में। कहते हैं न-'' चोर चोरी से जाए हेरा फेरी से न जाए। '' यही हाल चतुर का भी था। किसी भी महिला कर्मचारी से अकेले में वार्तालाप करता, तो उनके परिवार की, उनके विषय में जानकारी लेता। उनके दुख के लिए, चिंता व्यक्त करता, उनकी खुशी में शामिल होने का प्रयास करता। किसी भी महिला कर्मचारी के घर भी चला जाता, तो वे सहर्ष उसको, अपने घर बुलातीं। कुछ महीने तो वह वहां दबा -दबा सा छुपा -छुपा सा रहा किंतु धीरे-धीरे जैसे ही पुलिस का डर उससे दूर होता गया ,वह खुलकर सामने आने लगा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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