Rasiya [part 91]

आखिर श्रीधर जी के यहां पोता हुआ है,जो चतुर भार्गव और कस्तूरी के प्यार की पहली निशानी है। चतुर के आ जाने पर, सभी दोस्तों की इच्छा थी , इस खुशी में कुछ अलग ही अनुभव किया जाए। और तब उससे अंग्रेजी दारू की दावत मांगते हैं। चतुर ने भी ,उनकी सभी मांगें  पूरी की, करता भी क्यों न..... , बचपन के दोस्त हैं, एक साथ पढ़े हैं, खुशी में शामिल होना स्वाभाविक है। आज तो दारू की पार्टी हो रही थी, चतुर के बेटा जो हुआ है उसके अन्य दोस्तों का भी विवाह,तय  हो गया है और किसी का रिश्ता हो गया है। मयंक भी अभी पढ़ रहा है, वह अभी विवाह नहीं करना चाहता ,सभी दोस्त मस्ती में झूम रहे हैं। गाने बज रहे हैं ,तभी सुनील बोला -यार !तू अपनी पत्नी के बिना ,इतने दिनों तक कैसे अकेला रह लेता होगा। क्या उसकी याद नहीं सताती?

क्यों ,नहीं सताती ,बहुत सताती है ?

तभी मयंक बोला -इसको किस चीज की कमी है, वहां तो कॉलेज में बहुत लड़कियां मिलती होगी, कोई ना कोई भाभी की कमी पूरी कर ही देगी। 

मयंक की बात सुनकर सभी हंसने लगे, चिराग बोला -तू सही कह रहा है, वरना बिना पत्नी के इतने दिन कैसे रहा जाता होगा ? बता न !कोई न कोई मित्र तो तुझे मिली ही होगी, दोस्त बनी होगी या नहीं तेरी तो. पर्सनैलिटी भी बहुत अच्छी है ,सब नशे में झूम रहे थे। 

तभी चतुर बोला - कस्तूरी तो अपनी है, ही, कोई दूसरी भी मिल जाए तो उसमें क्या बुराई है ?

 देखा मैं कह रहा था न.... अपना चतुर इतना सीधा भी नहीं, जितना तुम लोग समझते हो। और बता कोई लड़की ऐसी मिली जिसने तेरी रातें हसीन की है ,उससे हमें भी मिलवा देना। 

कई आई और और कई चली गईं , किंतु कोई भी कस्तूरी की जगह नहीं ले पाएगी।

 वह तो हम जानते हैं ,तू भाभी को प्यार करता है। वैसे यह बता ! तू आजकल कर क्या रहा है? बहुत खर्च कर रहा है ,घरवालों के लिए भी सामान लाया है तेरी मम्मी बता रही थी -कि उनका चतुर! बहुत सारा सामान लेकर आया है बच्चे और पत्नी के लिए अपनी मम्मी -पापा के लिए तू वहां पढ़ रहा है या कमाई कर रहा है। 

कमाई भी हो जाती है, थोड़ा बहुत कमा लेता हूं ,अपना खर्चा तो निकाल ही लेता हूं, काम ही कुछ ऐसा है, मजे के मजे और आमदनी की आमदनी ! नशे में ,चतुर कुछ का कुछ बोले जा रहा था। 

ऐसा तू  क्या कर रहा है ?हमें भी तो बता !

तभी दरवाजे पर, श्रीधर जी खड़े दिखलाइ दिए  और बोले -चतुर चलो ! बहुत देर हो गई, अब आराम करो !

जी अभी आया, कहकर चतुर और उसके दोस्त धीरे-धीरे उठ खड़े हुए। 

तभी तन्मय  बोला -बात अभी पूरी नहीं हुई है यह क्या करता है पता तो लगाना ही होगा।

सभी को थोड़ी-थोड़ी शराब चढ़ गई थी, मस्ती में झूमते हुए, और न जाने क्या-क्या कहते हुए जा रहे थे ? अगले दिन जब चतुर सो कर उठा तो उसे दरवाजे पर तन्मय खड़ा हुआ दिखाई दिया। सभी ने, लगभग पहली बार ही यह शराब पी थी और सिर में हल्का दर्द था, चतुर ने अनेक काम किये , किंतु कभी नशा नहीं किया, कल बेटा होने की ख़ुशी में ,नशा भी करके देख लिया ,जिसके कारण उसके सिर में दर्द था। सुबह-सुबह तन्मय को अपने द्वार पर खड़ा देखकर, चौंक गया और बोला - तू यहां क्या कर रहा है ,क्या रात भर सोया नहीं ? जब से ही यहां खड़ा है कहते हुए,नशे के कारण सिर में दर्द होने पर भी हंसने का प्रयास करने लगा। 

 तन्मय  गंभीर होते हुए, बोला - क्या तेरी शराब उतर गई ?

नहीं सर में हल्का दर्द है, क्यों तूने नहीं पी थी ? तू तो भला -चंगा लग रहा है ,चतुर ने जानना चाहा। 

हां ,मैंने एक दो घूंट लिए थे ,तुम्हारी तरह पागल नहीं हुआ था।

ये पागलपन नहीं ,बाप बनने  ख़ुशी थी ,जो मैंने अपने दोस्तों के संग बाँटी। तू इतनी सुबह-सुबह यहां कैसे? चतुर ने प्रश्न किया। 

मैं ,अपने एक सवाल का जवाब मांगने आया हूं। 

कौन सा सवाल और कैसा जवाब ! खींझते हुए चतुर बोला। 

परेशान होने की जरूरत नहीं है, बस मैं यह जानना चाहता हूं। तू शहर में कुछ गलत कार्य तो नहीं कर रहा।

तू यह क्या कह रहा है? भला, मैं क्यों गलत कार्य करने लगा किंतु तू ,मुझसे  यह सब क्यों पूछ रहा है ?

क्योंकि कल रात तू ही कह रहा था -''कि जिंदगी में न जाने कितनी आई और कितनी चली गई ?''इस बात का क्या अर्थ हुआ ?

तन्मय की बात सुनकर, चतुर जैसे आंखें खुल गई, और नशे का असर  नजर आया। बोला - चुप कर !यह सब क्या बोल रहा है ? तू यह सब यहां पूछने क्यों आया है ?चल !बाहर चलकर बातें करते हैं।  हो सकता है, मैंने नशे में कुछ कह दिया हो। वह बात सच्ची थोड़े ही होगी। 

नशे में ही तो इंसान सच्चाई बोलता है, इसीलिए तो पूछने आया हूं , तू वहां पढ़ने गया है ,पैसे की जरूरत किसे नहीं होती ?इसीलिए मैंने सोचा ,पूछ लूँ ,तू किसी गलत कार्य में तो नहीं ,पड़ गया क्योंकि मैं तेरा दोस्त हूं,और मैं नहीं चाहता, तू किसी गलत काम में पड़े।

 अच्छा, चल !मैं तुझसे  शाम को आकर मिलता हूं। कहकर चतुर ने उसे अपने घर की गली के बाहर से  ही रवाना कर दिया। मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है , न जाने यह कहां से आ टपका ? तभी मन ही मन सोचने लगा-''यह शराब तो बहुत बुरी है '', न जाने, मैं नशे में क्या-क्या कह गया ? इतना नशा भी नहीं किया था अपने मन को समझाया। किंतु जो भी हो गया या हो सकता था वह बहुत गलत हो सकता था। अब मुझे इस  बात का ध्यान रखना होगा। तभी वह सोचता है -मैंने  नितिन को कुछ भी नहीं बताया, हो सकता है, वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा हो। तभी अपने कपड़ों में से, उसका फोन नंबर ढूंढने लगा, जो उसके कार्ड पर छपा हुआ था, शीघ्र ही कार्ड मिल गया किंतु यहां गांव में तो कोई टेलीफोन है ही नहीं, मुझे, शहर ही  जाना होगा। उससे मैं बिना मिले ही चला आया था।  

दोपहर को नहा कर, खाना खाकर थोड़ा आराम करके, और अपने बच्चे  के साथ खेल कर, चतुर नितिन से बात करने के लिए घर से निकलता है। उसके यहां तो फोन है किंतु चतुर के यहां फोन नहीं है, तब वह कैसे उससे संपर्क करेगा ? यही सोचकर वह, शहर जा रहा है। शहर में भी ,एक दो जगह टेलीफोन लग चुके हैं। आते समय उसने देखा था। यही सोच कर वह जा रहा था। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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