रसिया ने जब पत्र खोला , तो देखा ,उसके पिता का पत्र था, पत्र उसके पिता ने ही लिखा था ,तभी उसे चाय के उबलने की आभास हुआ , उसके उस कमरे के साथ में कोई रसोई नहीं है ,उसी कमरे में ,स्लैब पर एक स्टोव रखा हुआ है ,जो वक़्त पर काम आ जाता है। वह फौरन स्टोव बंद करके चाय को प्याली में उड़ेलता है और इत्मीनान से पत्र पढ़ना आरम्भ कर देता है।
प्रिय चतुर !
खुश रहो !उम्मीद है ,तुम भी अच्छे और स्वस्थ होंगे , हम भी यहां कुशल से हैं , तुम्हें यह बताते हुए , मुझे हर्ष हो रहा है, मैं 'बाबा' बन गया हूं और तुम पिता ! तुम्हारे साथ -साथ मेरी भी तरक्की हो गयी। ['पिता के लिखे ये शब्द पढ़कर ,चतुर को हंसी आ गयी ,वह महसूस कर पा रह था कि उसके पिता भी इस पत्र को लिखते समय मुस्कुरा रहे होंगे।]तुम्हारी पत्नी कस्तूरी ने, एक पुत्र को जन्म दिया है। वह बिल्कुल तुम्हारे जैसा है।अब तुम्हारी माँ 'दादी 'बन गयी है किन्तु अब उसके पास मेरे लिए तनिक भी समय नहीं रहा है। सारा दिन तेरी बीवी और बेटे की तीमारदारी में लगी रहती है। तुम यहाँ की तनिक भी चिंता न करना तुम्हारी पत्नी और तुम्हारा बेटा दोनों स्वस्थ हैं। मैं उम्मीद करता हूं, तुम्हारी पढ़ाई अच्छे से चल रही होगी। मन लगाकर पढ़ना, हम सभी तुम्हें बहुत याद करते हैं , यहां की चिंता बिल्कुल मत करना। यहां सब ठीक है, हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। हो सके तो....... समय निकालकर कुछ दिनों के लिए आ जाना। तुम्हारा पिता -श्रीधर भार्गव !
पत्र पढ़कर चतुर भावुक हो गया, उसकी आँखों से प्रसन्नता के आंसू बह निकले किन्तु मन ही मन सोच रहा था ,ऐसे समय में मुझे, अपनी कस्तूरी के करीब होना चाहिए था। उसने मुझे मेरे जीवन की ,इतनी बड़ी ख़ुशी दी है किन्तु ये सब भी तो मैं उसी की ख़ुशी ,अपने बच्चों के भविष्य के लिए ही तो कर रहा हूँ ताकि उन्हें भी यहाँ लाकर, एक अच्छी ज़िंदगी दे सकूँ।
इंसान गांव से आकर शहर में कमाने तो आ जाता है किन्तु शहरी बनना इतना आसान भी नहीं है ,यदि पैसा न हो ,तो यहाँ भी लोग गांव से भी बदत्तर ज़िंदगी जी रहे हैं ,या फिर झूठ और फरेब की ज़िंदगी जी रहे हैं।जिनके पास गांव में जमीन है ,उन्हें तो अपनी जमीनों का सहारा है किन्तु जिनके पास जमीन ही नहीं है ,उनका यहाँ रहना मजबूरी बन जाता है। अब चतुर ने भी ,मन में यही सोचकर यह रास्ता अपना लिया है। ,कुछ दिनों की ही बात है ,कुछ पैसा अपने पास आ जायेगा या फिर कहीं अच्छी सी नौकरी लग जाएगी। तब मुझे इस तरह धोखाधड़ी से पैसे कमाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
चतुर यह जो भी कार्य कर रहा है, गलत तो है ही, किंतु यदि उसे जीना है और आगे बढ़ना है, किसी न किसी तरीके से आगे बढ़ने के लिए उसे सीढी तो लगानी ही होगी। वह माध्यम कोई भी हो सकता है। अब उसके हाथ में कुछ पैसे भी हैं , पत्र पाकर उसे प्रसन्नता हुई और उसने घर जाने का निर्णय ले लिया। महीनों हो गए अपनी पत्नी कस्तूरी को नहीं देखा और अब तो उसका बेटा भी है ,पहली बार उसे देखेगा !मन ही मन सोचकर उत्साहित हो रहा था।
मकान -मालिक से उसने जो भी कुछ कहा था, इन पलों में वह भूल गया और अपने घर जाने की तैयारी करने लगा। तभी उसे स्मरण हो आया। एक दिन उसने मकान मालिक की लड़की को देखा था, वह कोई ना कोई बहाना ढूंढ रहा था ताकि वह उससे बात कर सके और उसके करीब आ सके। तब एक जब वह पढ़ रही थी ,तो उससे कुछ प्रश्न पूछने लगा ,जिनमें एक -दो का जबाब देकर बाकि के जबाब न दे सकी ,तभी चतुर को बहाना मिल गया और उसने उसके पिता को बतलाया। आपकी बेटी पढ़ने में बहुत कमजोर है।
चतुर की बात सुनकर मकान मालिक एकदम चुप हो गए, और बोले -इसका ट्यूशन तो लगाया था , न जाने वहां क्या करने जाती है ?पढ़ाई पर ध्यान ही नहीं है।
उन्होंने अपनी बेटी को बुलाया और बोले -देखो ,भैया !क्या कह रहे हैं ? तुम पढ़ाई पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती हो।
पापा मैं पढ़ती तो हूं, किंतु पता नहीं,मेरे अध्यापक ही मुझे ठीक से नहीं समझा पाते हैं उनका पढ़ाया समझ में ही नहीं आता।
तब उन्होंने चतुर की तरफ देखा और बोल -क्या तुम मेरी बेटी को पढ़ा सकते हो ?
चतुर तो यही चाहता था , वह बोला -आप चिंता मत कीजिए ,मैं इसे पढ़ा दूंगा।
मकान- मालिक कुछ सोचने लगे , चतुर ने सोचा, शायद यह पढ़ाने शुल्क के विषय में सोच रहे होंगे।
तब वह बोला -आप चिंता मत कीजिए आपसे, पढ़ने की कोई फीस नहीं लूंगा, ऐसे ही पढ़ा दिया करूंगा।
नहीं ,मुझे चिंता नहीं है, यह तो अच्छा ही होगा। बेटी को बाहर जाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी घर में ही उसकी पढ़ाई हो जाएगी शुल्क की बात नहीं है, शुल्क तो जो हम वहां देते थे ,तुम्हें दे दिया करेंगे या फिर किराए में कट जाएगा। आज यही, बात स्मरण करने के लिए वह बाहर आए थे किंतु पिता का , पत्र पढ़ने की खुशी में वह आगे कुछ उनसे बात कर ही नहीं पाया। कायदे से वह ,उनसे चाय के लिए भी पूछ सकता था, किंतु उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया क्योंकि वह उस पत्र को एकांत में सुकून से पढ़ना चाहता था और उनके सामने वह पत्र पढ़ भी नहीं पाएगा।
पत्र पढ़ने के पश्चात उसे स्मरण ही नहीं रहा, कि उसे मकान मालिक से मिलना है। उसने अपना सामान और अपने सभी कपड़े थैले में भर लिए थे। तब उसने सोचा -मुझे कस्तूरी के लिए और अपने बच्चे के लिए भी, कुछ सामान लेकर जाना चाहिए। यह सोचकर वह अपने कमरे से बाहर आया, और तभी उसे मकान मालिक की बातों का भी स्मरण हो आया। वह बाहर ही कुर्सी पर बैठे हुए थे, चतुर को देखते ही बोले -तुमने ट्यूशन के विषय में क्या सोचा ?
ट्यूशन तो मैं ,पढ़ा ही दिया करूंगा किन्तु अभी तो मैं समय नहीं दे पाऊंगा, मैं अपने गांव जा रहा हूं मेरे पिता का पत्र आया था मुझे किसी आवश्यक कार्य से गांव जाना होगा। फिलहाल अभी मैं बाजार जा रहा हूं। चतुर ने कभी भी, मकान मालिक को अपने गांव का नाम और कुछ छोटी-छोटी ऐसी बातें हैं, जो उन्हें नहीं बतानी चाहिए थी क्योंकि वह जैसा कार्य कर रहा था। उसके लिए अपनी सच्चाई छुपाना आवश्यक था।