Rasiya [part 88]

 रुपाली ,जब विज्ञापन करने से इंकार कर देती है ,तब चतुर, उसे और समझाने का प्रयास करता है,तभी चतुर ने उसे रोका, और बोला -यहां आस-पास इस विज्ञापन को नहीं दिखलाया जाएगा। यह मेरी गारंटी रही। तुम्हें और तुम्हारे घरवालों पर कोई आंच नहीं आएगी। रूपाली का हृदय रो रहा था, किंतु उसे 2000 भी नजर आ रहे थे। जिधर भी जाओ ! शरीर का सौदा करने वाले ही मिल जाते हैं। तभी उसके मन ने उसे समझाया -चतुर के प्रेम के साथ भी ,वह सौदा ठीक से नहीं कर पाई, उसे पता ही नहीं था कि वह उससे विवाह कर पाएगा या नहीं। अपना सब कुछ सौंप कर , अब क्या अच्छा -बुरा देखना, उसकी आंखों में आंसू आ गए किंतु चतुर के व्यवहार से उसे लग नहीं रहा था कि उसने उससे धोखा खाया है। उसे लग रहा था ,वह उसके लिए चिंतित है, उसको कार्य दिलवाने के लिए परिश्रम कर रहा है। चतुर पर विश्वास करके, उसे फोटोग्राफर के सामने एक जोड़ी अंतरंग कपड़ों में आ गई जिसमें उसके कई फोटो चतुर के साथ भी थे उसके अंतरंग अंगों को, स्पर्श करते हुए। तुरंत ही उसे पैसे भी मिल  गए। रूपाली प्रसन्न तो नहीं थी, पैसों को मुट्ठी में, दबाकर चुपचाप बाहर आ गई। वह समझ नहीं पा रही थी ,इस  एक हफ्ते में उसके साथ क्या अच्छा हुआ है और क्या बुरा हुआ है ? चतुर को भी ,उसका अच्छा पारिश्रमिक मिला। 

यह कमाई का जरिया चतुर को बेहद पसंद आया,'' हींग लगे ना फिटकरी और रंग चोखा''उसे बस किसी भी जरूरतमंद, और महत्वाकांक्षी लड़की को, समझा बुझा कर लाना था। इस शहर ने उसे क्या से क्या बना दिया ? या उसकी असलियत अब ये शहर देख रहा है। इंसान गांव का हो या शहर का क्या फ़र्क पड़ता है ?किन्तु उसकी सोच कैसी है ?इससे बहुत फ़र्क पड़ता है। कहां कम आमदनी में ही वह ,अपने खर्चे पूर्ण कर लेता था और प्रसन्न में रहता था किंतु यहां, कमाई की लालसा उसके लिए बढ़ गई। अभी इसकी डिग्री भी पूरी नहीं हुई थी जिसके कारण वह कहीं अच्छे  से नौकरी कर सके, इसीलिए उसने यह कार्य चुना, जिसमें उसके लिए समय भी होगा और पैसा भी........ समय के साथ बातों में बहुत अच्छा पारंगत हो गया है।किसी भी लड़की की, किस तरह उसके सौंदर्य की प्रशंसा करनी है ,किस तरह उसको बहला -फुसलाकर काम करने के लिए प्रेरित करना है और यदि कोई एक बार काम कर लेता है तो फिर उसको, बहकाकर या धमकी से ,उसके फोटो का लाभ उठाने का प्रयास करते हुए ,उससे काम लेते थे। कुछ लड़कियां तो ख़ुशी -ख़ुशी मान जाती थीं बल्कि उनके कार्य में सहयोग भी करतीं थीं। 

समाज में कुछ ऐसे शरीफ़ लोग भी घूमते हैं ,जो दिखते कुछ हैं और होते कुछ हैं ,चतुर भी कुछ ऐसा ही हो गया था। उसकी बातों में मिश्री थी , शब्दों में चाशनी की मिठास !वो बातों में इतना पारंगत हो चुका था अब किसी भी कम उम्र लड़की को बहका लेना उसके'' बाएं हाथ का खेल ''बन गया था। लोगों से मिलता था ,उन पर अपनी छाप तो छोड़कर जाता ही था किन्तु उनसे भी बहुत कुछ ग्रहण कर लेता था। उसके शब्दों पर बहुत अच्छी पकड़ थी, जिससे भी मिलता था, उसके अंदाज़ और उसकी बोली के अधिकतर शब्द, उसके शब्दकोश में प्रवेश कर जाते थे।  जैसे -उनके बोलने का लहज़ा ,उनकी भाषा अथवा बोली !ये सब उसके बड़े काम आते थे। कोई पंजाबी कुड़ी दिखती तो उससे या पास बैठे व्यक्ति से ही,पंजाबी में बात करने लगता। किसी पढ़े -लिखे के सामने अंग्रेजी में बात करने लगता। उसका आकर्षक व्यक्तित्व और मीठी ज़बान उसके व्यापार को और चमका रहे थे। वह अब ''दिन दूनी और रात चौगुनी ''उन्नति कर रहा था। आजकल उसका सितारा विशेष रूप से चमक रहा था। 

 बाज़ार में ,सामान बेचने का कार्य भी उसने ले लिया था हालाँकि पढ़ाई के लिए, उसके पास समय कम ही रहता, किन्तु अब उसे पढ़ाई की भी इतनी चिंता नहीं थी। उसे स्नातक की डिग्री ही चाहिए ,व्यवहारिक ज्ञान तो न जाने कहाँ से आ रहा था ?उसे देखकर कोई कह नहीं सकता ,ये लड़का किसी गांव से है। उसने कभी किसी को अपना सही परिचय नहीं दिया। डिग्री के लिए भी उसने अपनी अध्यापिका पर हाथ जो रखा हुआ था ,जो उसे प्रश्न भी बताएगी और डिग्री भी दिलवाएगी। उसके लिए उस अध्यापिका को प्रसन्न करना था। वह सामान बेचने के लिए बाहर जाता तो वहां से कुछ न कुछ  उपहार लेकर आता। महिलाओं के प्रति उसका अनुभव इतना तो बढ़ गया था कि वह व्यवहार और बातचीत से समझ जाता था कि उसको कैसे प्रसन्न किया जा सकता है ?  

एक दिन रुपाली रो रही थी ,और वह चतुर से बोली -यदि तुम्हारी मां मान जाती है, तब क्या तुम मुझसे विवाह कर लोगे ?

तुमने क्यों विवाह की रट लगा रखी है ?अब तो तुम खूब कमाने लगी हो, तुम चाहो तो ,इससे भी ज्यादा कमा सकती हो, विवाह करके इतना सब कुछ नहीं मिल पाएगा। अरे जिंदगी इसी का नाम है, ''खाओ -पियो मजे करो ! क्यों विवाह के चक्कर में पड़ती हो ? मैं जानता हूं ,वह नहीं मानेंगीं ,उनके कारण ही तो मैं भाग कर यहां आया था , वह किसी की भी नहीं सुनती हैं , इसलिए मुझे अपनी जिंदगी जीनी थी तो यहाँ चला आया। मन ही मन अपनी मां से क्षमा याचना भी कर ली, कि मैंने  आपका बहाना लेकर, इसको बहकाया है। 

घर पहुंचकर ,चतुर ने देखा उसके दरवाज़े पर एक चिट्ठी खोंसी हुई है ,उसने दरवाजा खोलने से पहले उस चिट्ठी को निकाला और दरवाजा खोलकर अंदर गया। कमरे में बहुत गर्मी हो रही थी ,उसने पहले पंखा चलाया और उस चिट्ठी को मेज पर रखकर ,मुँह धोने चला गया। मन ही मन सोच रहा था ,न जाने किसका पत्र होगा ?बाहर आकर दुबारा पत्र देखने के लिए आगे बढ़ा ,तभी चाय पीने की इच्छा हुई ,चाय बनाने के लिए स्टोव जलाया और चाय चढ़ाकर फिर से पत्र खोलने लगा ,न जाने किसका पत्र होगा ? 

तभी बाहर किसी के आने की आहट उसे महसूस हुई, वह बाहर आया, देखा !तो मकान -मालिक हैं  वह उसी से ही मिलने आए थे। 

जी ,कहिए ! मैं जानता हूं ,मुझे आपका किराया देना है किंतु आज नहीं दे पाऊंगा। 

मकान मालिक मुस्कुराते हुए बोला-नहीं जी ,मैं किराए के लिए नहीं आया हूं ,मैं तो अपनी बेटी के ट्यूशन को पूछने के लिए आया हूं।

 ओह ! हां ,मैं भूल गया था ,अभी आकर बताता हूं, मुझे आधा घंटे का समय दीजिए ,कहकर चाय पीने के लिए अंदर आ गया। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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