चतुर, रूपाली का सीधापन कह सकते हैं या फिर उसका प्यार ! जिसमें वह धोखा खा गयी। चतुर उसका लाभ उठाकर ,उससे दूर नहीं भागा ,न ही ,अपना बचाव करने के लिए उसे कोई विशेष प्रयोजन की भी आवश्यकता नहीं पड़ी। बस ,दुखते दिल पर ,अपने मीठे शब्दों का लेप ही तो लगाना है। इसी कारण रुपाली को भी एहसास नहीं हुआ कि कोई उसकी भावनाओं से खेला गया है ,उसकी मासूमियत का लाभ भी उठा लिया और उसको पता ही नहीं चला। अचानक ,यह कला चतुर में कहाँ से आ गयी ?यह सब अचानक नहीं है ,यह कला तो उसके पास पहले से ही थी किन्तु उस समय किसी का अनिष्ट नहीं हुआ, इसलिए उसकी इस कला का किसी को आभास भी नहीं हुआ। शायद ,वह स्वयं भी न जानता हो। गांव में भी तो, उसने अपनी मनमर्ज़ी ही चलाई ,दसवीं का छात्र ,जो गांव से भाग आया उसने एक माह में ही कस्तूरी के अंदर अपने 'प्रेम की ज्वाला 'भर दी। अपने दोस्तों को भी ,उसने अपने मनमुताबिक़ चलाया ,चाहे फिर उन्हें लड़कियों का लालच ही क्यों न दिया हो ?चतुर के व्यवहार ,और उसकी बातों से किसी को भी आभास नहीं होता कि वो उनका, लाभ भी उठा रहा है।
ऐसा ही कुछ रुपाली के साथ भी हुआ ,उसने रुपाली की कोमल भावनाओं का लाभ भी उठा लिया और उससे हमदर्दी भी जतला रहा है। वह उसे दिखाना चाहता है कि वह उसके लिए कितना चिंतित है ?वह अपनी माँ के कारण विवश है वरना वह रुपाली से ही विवाह करता, क्या वह सच में ही, उसके लिए परेशान है ? हो सकता है, वह उसके लिए कुछ अच्छा ही सोच रहा हो। अभी तो रूपाली की भी मजबूरी है। इस बात को भी वह समझता है। अब तक तो उसे किसी पैसे वाले की बेटी समझ झिझका रहता था ,रुपाली ने भी ,एक खोल ओढ़ रखा था जिसमें वह अपने को एक मजबूत और पैसे वाली लड़की दिखती थी ,जैसे ही वह खोल उतरा ,उसकी कमज़ोरी सामने आई ,चतुर जैसे संस्कारी छात्र और देश के अच्छे और सभ्य नागरिक दिखनेवाले ''चतुर भार्गव ''ने ही सबसे पहले उसे दबोचा उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया।
अक्सर यही तो दुनिया का दस्तूर है, जब अपने से बेहतर कोई दिखता है, तो इंसान अपनी असलियत को अपने आप को छुपाए रखता है किंतु जैसे ही ,किसी की असलियत उसे पता चलती है या किसी की बेबसी उसे नजर आती है, तब उसका असली चेहरा निकलकर आता है। चतुर भी गांव से शहर में अनेक इच्छाएं आकांक्षाएं लेकर आया है ,किंतु शहर में रहना इतना सरल भी नहीं है ,जितना उसने समझा था। जिसमें कि वह सोच रहा था ,कि उसे अपने परिवार को भी लाना है।
ऐसी ही परिस्थितियों में ,एक दिन उसे, एक व्यक्ति मिलता है, नितिन ! जो स्वयं भी कम परिश्रम में ,अधिक से अधिक पैसे कमाने की योजना बनाता रहता है। उसे फोटोग्राफी का शौक़ है और उसी को वह अपना रोज़गार का माध्यम बनाता है। उसके कैमरे से न जाने कितने सुंदर और सजीव चित्र निकले हैं ?जिनमें उसे पुरुस्कार भी मिले हैं किन्तु इंसान के साथ एक चीज और लगी है ,उसकी महत्वाकांक्षाएं और उसका उदर !जी हाँ ,महत्वाकांक्षाएं कभी पूर्ण नहीं होतीं ,एक पूर्ण हो भी गयी तो दूसरी उभर आती है। इंसान के तन में उसके साथ ''पेट '' भी लगा है जो कभी भरता नहीं। उसको भरने के लिए भी इंसान ,कमाने का प्रयास करता है और कमाना उसे किस तरह से है ?यह उसकी सोच पर निर्भर करता है। ज़्यादातर कम उम्र लड़के अथवा लड़की कम परिश्रम में अधिक की चाहत रखते हैं। नितिन भी कुछ तरीका ही आदमी था, वह चाहता था कि उसका फोटोग्राफी का शौक भी बरकरार रहे और वही उसकी आमदनी का जरिया भी बन जाए।
ऐसे में उसकी मुलाकात, चतुर से होती है , चतुर भी ऐसे ही किसी काम की तलाश में था , जिससे कम समय में अधिक से अधिक आमदनी हो। शहर में आकर उसके खर्च भी बढ़ गए थे। तब उसे नितिन आमदनी के नए-नए सुझाव और योजना बतलाता है। तब उन्होंने निर्णय किया , लड़कियों के एक से एक अच्छी तस्वीरें खींची जाएँ , कुछ तस्वीरें ऐसी आकर्षक हों , जो कोई भी खरीदने के लिए, तैयार हो जाए। तभी उन्हें एक व्यक्ति ने, इश्तिहार बनाने का सुझाव दिया। उसकी कोई विज्ञापन कंपनी नहीं थी, किंतु उसने यह मौका उन्हें दिया जिसमें, नितिन और चतुर को अच्छा पैसे कमाने का जरिया नजर आया। इसी योजना के तहत, वह सर्वप्रथम रूपाली से ही बातचीत करना बेहतर समझता है क्योंकि उसे भी पैसे की आवश्यकता है। पैसे की आज के समय में किसको आवश्यकता नहीं होती ? वह स्वयं पैसे के लिए भटक रहा है ताकि वह कुछ पैसा कमाए और अपनी कस्तूरी को शहर में लेकर आए।
रूपाली भी इसी सोच के कारण परेशान है, क्योंकि उनकी आवश्यक आवश्यकता तो पूर्ण हो जाती हैं , किंतु अतिरिक्त आवश्यकताओं के लिए हाथ खींच कर चलना पड़ता है। सबकी अपनी -अपनी परेशानियाँ और अपनी -अपनी स्थिति होती हैं। कुछ सोच की भी कमी होती है, कुछ लोग कमी में ही गुजारा कर लेते हैं किंतु कुछ लोगों को आगे बढ़ना होता है , उसके लिए फिर वह चाहे किसी भी हद तक चले जाते हैं। ऐसे ही चतुर और रूपाली भी हैं हालांकि अब रूपाली, चतुर के व्यवहार से थोड़ा आहत है किंतु उसे लगता है ,इसमें उसकी कोई गलती नहीं है , वह अपनी परेशानियों में इतना उलझ कर रह गई है कि वह समझ ही नहीं पा रही है कि क्या सही है और क्या गलत है ? क्या चतुर उसके साथ है , या उसकी परेशानियों का लाभ उठा रहा है। सही -गलत का निर्णय नहीं कर पा रही है।
चतुर उसके लिए एक कार्य लेकर आता है जो उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं आया , किंतु उसे पैसे का लालच भी देता है, और यह बात उसे पर ही छोड़ देता है कि उसे यह कार्य करना है या नहीं यह उसका अपना निर्णय होगा। ताकि कल को, रूपाली को यह न लगे, कि चतुर ने उसका गलत लाभ उठाया। वह जानता था, रुपाली जैसी दिखाती है ,वैसी नहीं है , और उसकी इस परेशानी का वह लाभ उठाना भी चाहता है। जब रूपाली , विज्ञापन करने से इनकार कर देती है।
लड़कियां कितना भी पढ़ -लिख लें ?किंतु अपनी भावनाओं से मात खा जाती हैं,उनकी होशियारी धरी की धरी रह जाती हैं ,जब किसी चतुर जैसे चालाक व्यक्ति के चंगुल में फंसती हैं और जब उस व्यक्ति को उसकी कोई कमजोरी हाथ लग जाये ,तो उस चक्रव्यूह से उसका निकलना कठिन हो जाता है। उसका ''सुरक्षा कवच ''उसका अपना ही घर है और वही कमजोर पड़ जाये तो बाहरी तूफानों को ज़िंदगी में या घर में घुसने में देर नहीं लगती।