Rasiya [part 86]

चतुर,अचानक ही बदल गया और वह अपने व्यवहार  के लिए ,अपने को ही दोषी कह रहा था। जब रुपाली उसे समझाती है कि ये गलती तुम्हारी ही नहीं ,मेरी तरफ से भी हुई है। तब वह उससे पूछता है -यदि किसी को हमारे संबंध के विषय में पता चला तो क्या होगा ?तुम अपने घवालों को क्या जबाब दोगी ?

कह दूंगी ,हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और विवाह भी करना चाहते हैं। 

वही तो नहीं हो सकता, कहते हुए चतुर धम्म से पृथ्वी पर बैठ गया। 

 तुम यह क्या कह रहे हो ? क्यों नहीं हो सकता ?


 बस नहीं हो सकता, मेरी मां बहुत ही पुराने ख्यालों की हैं ,मैं अक्सर उन्हें समझाने का प्रयास करता रहता हूं किंतु वह मेरा विवाह वही करेंगी  जहां उनकी इच्छा होगी। किसी गांव की लड़की को ही अपने घर की बहु बनाएंगी। शहरी लड़कियां उन्हें पसंद नहीं। हमारे यहां ''लव मैरिज ''नहीं चलती। 

अब तो रूपाली भी घबरा गई और बोली- अब मैं क्या करूं ? 

वही तो मैं कह रहा था -तुम्हें यहां नहीं होना चाहिए था। आज जो नहीं होना चाहिए था ,वही हो गया। रूपाली भी इस वक्त गंभीर हो गई थी ,अब उसे लग रहा था शायद ,वास्तव में ही ,बहुत बड़ी गलती हो गई है।

 रूपाली के  उतरे हुए, चेहरे को देखकर चतुर बोला - वैसे ,तुम यहां किस लिए आई थीं ?जो बात वह चाहता था ,वही हो गया ,इससे पहले कि रुपाली ,चतुर को उसकी करतूत के  लिए उसे दोषी ठहराती ,उससे पहले ही ,चतुर ने अपने बचाव का बहाना सोच लिया था। वो उसे एहसास करा देना चाहता था ,उससे बहुत बड़ी गलती हो गयी है ,जिसका दोषी वो अकेला ही नहीं ,वो दोनों हैं। 

मैं भी एक नौकरी करना चाहती थी, मैंने सोचा था, शायद तुम्हारे माध्यम से, कैसे भी ,किसी तरह से मुझे भी एक नौकरी मिल जाए।

ठीक है ,मैं आज बहुत ही परेशां हूँ ,मैंने आज जो भी गलती की है , तुम्हारे लिए कुछ भी करके अपने उस  पाप को कम तो कर सकूंगा,यही मेरी गलती का प्रायश्चित होगा ,कहते हुए ,मुँह लटकाकर बैठ गया। 

तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ?यदि ये गलती है ,तो हम दोनों ही बराबर गुनहगार हैं।अच्छा !अब मैं चलती हूँ ,चलते समय रुपाली की आँखों में आंसू थे। उसे कितनी बड़ी गलतफ़हमी हो गयी थी और वो अपनी ज़िंदगी की कितनी बड़ी गलती कर बैठी ? जो हो गया ,उसे लौटाया तो नहीं जा सकता। ये केेसा क्षणिक आनंद था ?जो बाद में दुःख दे गया। वैसे गलती चतुर की भी तो नहीं है ,बेचारा !पहले से ही,आत्मग्लानि में घुला जा रहा है , कितना परेशान था ?उसने मेरे लिए जितना सोचा ,उतना तो मैं भी नहीं सोच सकी।   

एक सप्ताह पश्चात ,चतुर ,रुपाली को मिला किन्तु आज रुपाली के व्यवहार में वो ताज़गी नहीं थी वो उत्साह नहीं था ,चतुर को देख उसकी नजरें झुक गयीं। चतुर ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा -क्या मुझसे नाराज़ हो ?

नहीं तो..... 

क्या तुम रोई थी ?

नहीं !

झूठी !!!तुम्हारी आँखें तो कह रहीं हैं ,सच में ,मैं तुम्हारा दोषी हूँ ,पहले एकदम से गंभीर हो गया किन्तु रुपाली कुछ नहीं बोली ,तब वह बोला  -ये भी नहीं पूछोगी ,कि चतुर कैसे हो ?इतने दिनों से कहाँ थे ? क्या कर रहे थे ?क्या तुम्हें मेरी याद भी नहीं आई ? चतुर उसे टटोलकर देख रहा था। 

सूनी नजरों से ,रुपाली ने चतुर की तरफ देखा और बोली -कैसे हो ?

बस इतना सा ही...... मैं तुम्हारे लिए इतने दिनों से काम ढूंढ़ रहा था ,काम मुझे मिले या न मिले किन्तु तुम्हें तो काम मिलना चाहिए। अच्छा !बताओ !तुम कोई विज्ञापन करोगी ?उसकी आँखों में झाँकते हुए चतुर ने पूछा। 

यानी कि ' मॉडलिंग '! वह तो मैंने कभी नहीं की। 

जो कार्य पहले कभी नहीं किया , उसे अब करके देख लो ! अच्छे पैसे मिलेंगे। वैसे मैंने तो सुना था तुम्हारे पिता, बहुत बड़े व्यापारी हैं कुछ स्मरण करते हुए बोला -शायद ,तुमने ही बताया था।  

गंभीर होते हुए रूपाली बोली -यह सब कहना पड़ता है, ताकि किसी की कुदृष्टि, हमारी कमी के कारण ,हम पर न पड़े, वरना यहां गिद्ध की तरह नोचने वाले भी बहुत हैं। उसके लिए ये शब्द कहते ही चतुर को लगा ,'मैं भी तो एक गिद्ध ही निकला। मुझे पैसों की बहुत आवश्यकता है, घर के खर्च के लिए भी और अपने लिए भी, मैं पढ़ाई रात को कर लिया करूंगी और दिन में काम कर लिया करूंगी, ठीक है ,मैं तुम्हारे लिए जो भी बन सकता है ,करूंगा। मैं तुम्हारे लिए रात- दिन एक कर दूंगा,किन्तु उस दिन की बात के लिए ,मैं बहुत-बहुत शर्मिंदा हूं मुझे यह सब नहीं करना चाहिए था। मैं भी तो एक गिद्ध ही निकला।

 नहीं ,इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है हम दोनों ही भावुक हो गए थे। यही तो चतुर चाहता था कि वह स्वयं ही स्वीकार करें कि यह सब दोनों की सहमति से हुआ है। उसने, कई बार सुना है और पढ़ा भी है कि  लड़कियां अक्सर इस विषय को लेकर गंभीर हो जाती हैं, जो कि वह नहीं चाहता था। '' सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। '' वरना जीवन दुभर हो जाता। उसे सहायता की आवश्यकता है मन ही मन चतुर ने सोच लिया था ,वह उसकी सहायता अवश्य करेगा। जब वह उससे इतना खुल ही गई है, आगे के लिए भी उसने, अपना रास्ता बना लिया था। अपनी गलती को स्वयं ही स्वीकार करना और आंख मिलने पर शर्मिंदगी  महसूस करना उसके पश्चात, लड़की उसे कुछ नहीं कहेगी। यह चतुर का पहला अनुभव था, जो बहुत ही सफल रहा। 

रूपाली और चतुर दोनों प्रतिदिन की तरह मिलते ,कॉलेज जाते, चतुर ने मॉडलिंग के लिए, जब उस लड़की को बुलाया, यह, विज्ञापन अंतरंग वस्त्रो का था , यह देखकर, रूपाली घबरा गई और बोली -मैं यह विज्ञापन नहीं कर पाऊंगी।

 क्या बात करती हो ?मैंने तो कितनी मुश्किल से तुम्हारे लिए इसको मनाया है , इस विज्ञापन के लिए तो न जाने, कितनी लड़कियां आ रही हैं ,किन्तु मैंने तुम्हारा नाम सुझाया। इसमें करना ही क्या है? एक फोटोग्राफर के सामने , इन दो कपड़ों में ही तो, खड़े होना है और तुम मेरे सामने तो.......  कह कर वह चुप हो गया। फिर उसे समझाते हुए बोला -कुछ देर की ही तो बात है ,इसके लिए तुम्हें ₹2000 मिल जाएंगे। 

क्या इतनी देर के लिए मुझे ₹2000 मिलेंगे ? किंतु उस विज्ञापन को न जाने कौन-कौन देखेगा ? नहीं ,यह  मैं नहीं कर पाऊंगी ,वह जाने के लिए तैयार हो गई ,कोई दफ्तर में काम हो तो बताना। 

हाँ ,वहां पर भी काम है ,किन्तु पांच या छह हजार ही दे रहे हैं ,वो भी पूरा महीना काम करके ,अब देख लो !तुम्हें किसमें लाभ नजर आता है ? यह कार्य तो दो -एक घंटे का है और दो हज़ार हाथ में। काम तुम्हें ही करना है ,मुझे नहीं ,तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं है। सोच -समझकर जबाब देना। 

रूपाली दुविधा में पड़ गई है,एक तरफ अच्छे पैसे नजर आ रहे हैं ,दूसरी तरफ उसे काम पसंद नहीं आ रहा। अब ऐसे में वो चतुर को क्या जबाब दे ?या ये कोई चतुर की ही चाल तो नहीं ,चलिए आगे बढ़ते हैं ,अपनी समीक्षाओं द्वारा आगे बढ़ने में सहायता कीजिये। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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