रुपाली के ,अचानक चतुर के कमरे में आ जाने से, चतुर थोड़ा ,परेशान सा हो उठा था ,उस एकांत कमरे में इस तरह असहज महसूस कर रहा था किन्तु जब रुपाली ही ,उससे हंसी -मज़ाक करने लगी तो उसकी झिझक समाप्त हो गयी। रुपाली तो ,उसे कुंवारा लड़का समझती थी किन्तु चतुर ने भी तो,उससे सच्चाई नहीं बताई ,शायद इसमें उसका स्वार्थ भी छुपा था। उसे लगता था ,यदि इसे या किसी भी लड़की को मेरे विवाहित होने का पता चला तो शायद, मुझे इतना महत्व न दें अथवा वह व्यंग्य का पात्र बने। अब जो भी ,उसके मन में रहा हो किन्तु उसने यह सच्चाई सबसे छुपाकर रखी।
धीरे -धीरे दोनों करीब आ गए ,कुछ वहां के वातावरण ने भी, उन्हें एक दूसरे के करीब आने में सहायता की। चतुर ने भीगे हुए रूपाली के तन को देखा, तो अपने को नियंत्रित न कर सका और इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती ,चतुर ने उसके उन वस्त्र को भी उसके तन से जुदा कर दिया जो उसके अंगों को छुपाने की नाक़ामयाब कोशिश में थे। रूपाली इस समय उसके सामने निर्वस्त्र, संकोच से खड़ी हुई थी उसने अपने हाथों द्वारा ही,अपने को छुपाने का प्रयत्न किया किन्तु चतुर की हरकतों का विरोध नहीं किया। इस कारण साहस और बढ़ गया , चतुर आगे बढ़ा और उसे अपने सीने से लगा लिया, उसका कसकर आलिंगन किया, जिसके कारण रूपाली कसमसा उठी। उसके मख़मली बदन पर हाथ फिराते हुए ,बोला -तुम कितनी खूबसूरत हो ?
मैंने आज तक इस नजर से तुम्हें कभी देखा ही नहीं था। मैं कितना मूर्ख था ? जो सुरा को छोड़ ,प्यासा भटक रहा था। आज पहचाना तो लगा ,यह यौवन मेरे लिए ही तो दहक रहा है। धड़कनें ! मेरे लिए ही धड़कती हैं। उसके अधरों को अपने अधरों से चूमते हुए,वह उसे अपने पलंग तक ले आया। वह उसके गले लग ,उसके प्रत्येक अंग -प्रत्यङ्गो को , चूमने लगा। रूपाली भी, अपने वश में नहीं थी, वह भी, चतुर से लिपट गई। किंतु तभी चतुर के मानस पटल पर एक विचार कौँधा , उसका दिमाग उसे सतर्क होने के लिए मजबूर कर रहा था किंतु उसकी भावनाएं उसके नियंत्रण से बाहर थीं। तब वह रूपाली से बोला - तुम मुझसे प्रेम करती हो, तुम मेरे लिए कुछ भी कर सकती हो और मैं तुम्हारे लिए...... दुनिया की हमें कोई परवाह नहीं है। और भी न जाने क्या-क्या कहते हुए , वह उसको मानसिक रूप से भी तैयार कर रहा था। रूपाली तो जैसे अपना आपा खो चुकी थी। कुछ देर तक उस कमरे में ,गहरी स्वांसों के उच्छवास ही सुनाई दे रहे थे। रुपाली की आहें ,उस ख़ामोशी को तोड़ जातीं। कुछ देर के लिए ,चतुर भी भूल चूका था कि वो एक शादीशुदा इंसान है। वैसे उसकी इंद्री उसे सतर्क रहने के लिए कह रही थी ,कि कहीं मकान -मालिक को किसी भी प्रकार का शक न हो जाए।
रूपाली के संपूर्ण यौवन का रसपान करने के पश्चात,वह तूफान थम गया। अब दोनों ही पसीने से लथपथ थे किन्तु दोनों के ही चेहरे पर एक सुकूनभरी मुस्कान थी। अब क्या शर्माना ? दोनों एक साथ ही, नहाने के लिए स्नानागार में घुस गए ,खूब देर तक पानी के नीचे एकदूसरे से लिपटे खड़े रहे। चतुर ,रुपाली के एक -एक अंग को महसूस कर रहा था। रुपाली के मन में और तन में फिर से एक सिहरन सी दौड़ उठी ,उसके यौवन से टपकती जल की बूंदों को दोनों ही ,अपने अधरों पर ले रहे थे,धीरे -धीरे स्वांसों की गति फिर से तीव्र हो उठी, इस जगह का अपना अलग ही आनंद था किन्तु अबकी बार चतुर और रुपाली में बाहर जो झिझक थी ,वह समाप्त हो चुकी थी। तृप्त होकर ,जब दोनों बाहर आये ,तो चतुर का चेहरा गंभीर हो चुका था जबकि रूपाली प्रसन्न थी। चतुर को गंभीर देखकर बोली -तुम्हारा इस तरह, अचानक मूड़ कैसे बदल गया ?
कुछ नहीं, इसी गंभीरता से चतुर ने जवाब दिया,मैं पहले ही कह रहा था- तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था।
उसके बदले स्वभाव को एकदम से रूपाली समझ नहीं पाई, सोच रही थी ,अभी तक तो यह खूब मस्ती कर रहा था ,अचानक इसे क्या हो गया ?
हमने यह जो भी किया है ,बहुत गलत है, समाज की दृष्टि में भी, और हम दोनों ने तो गलत किया ही है।
यह सब तुम अब सोच रहे हो, तुम्हें पहले सोचना चाहिए था , जब तुम मुझे निर्वस्त्र कर रहे थे।
तुम्हें भी तो ,मुझे रोकना चाहिए था ,नहीं ,चतुर यह गलत है किन्तु तुम तो मेरा सहयोग करती रहीं , गलत में भी साथ देती रहीं।
तो क्या हो गया? हम तो दूसरे से प्रेम करते हैं ,हम विवाह कर लेंगे रुपाली लापरवाही से बोली।
नहीं ,मैं यह भी नहीं कर सकता, मैं बहुत विवश हूं , चेहरे को लटकाते हुए चतुर बोला -मैं जानता हूं ,तुम मुझसे प्रेम करती हो इसीलिए मैंने तुमसे दूरी बनाकर रखी थी किंतु तुम यहां चली आईं और मैं अपने को संभाल न सका। मुझे अपने ऊपर बहुत ग्लानि महसूस हो रही है , मैंने तुम्हारे साथ ये सब क्या कर दिया ? मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। तुम तो मेरे घर मेहमान बन कर आई थीं और मैंने तुम्हारे साथ क्या किया ? नहीं ,नहीं यह बहुत गलत हो गया। अभी थोड़ी देर पहले जो आनंद रूपाली ने उठाया, चतुर के शब्दों से, वह बहुत आहत हुई और वह भी गंभीर होकर बोली -तुम मुझसे प्रेम करते हो, और मैं तुमसे प्रेम करती हूं। अगर यह हम दोनों के बीच यह हो भी गया तो, इसमें क्या बुराई है ?
तुम समझती नहीं हो, अगर तुम्हें मेरे कमरे से निकलते ,बाहर जाते , समय मकान -मालिक ने देख लिया , तो वह तो मुझे चरित्रहीन समझेंगे, उनकी दृष्टि में ,मैं गिर जाऊंगा , हो सकता है ,अपने मकान से भी निकाल दें।
तुम व्यर्थ में ही, कुछ ज्यादा सोच रहे हो , ऐसा कुछ भी नहीं होगा, रूपाली ने उसे समझाने का प्रयास किया।
कनखियों से चतुर ने रुपाली की तरफ देखा,और बोला -मैं तुम्हें कैसे समझाऊं ? कल को तुम्हारे घर वालों को तुम्हारी मम्मी को कुछ पता चल गया तो....... तुम क्या जवाब दोगी ?
कुछ देर पहले तो ,चतुर रुपाली के साथ ' प्रेम लीला 'में मस्त था ,अब अचानक वो ,इस तरह की बातें क्यों करने लगा ?आखिर वह क्या चाहता है ?आइये !जानने के लिए आगे बढ़ते हैं -रसिया !के साथ