Binbyahi maa [part 1]

हेेलो ! हाँजी रामफल जी बोल रहे हैं - बिटिया का विवाह है ,मिठाई और खाना आपको ही बनाना है। 

कब है ?विवाह !

अभी उसके विवाह को पंद्रह दिन हैं इसीलिए आपको हमने पहले ही बतला दिया ताकि आप अपनी व्यस्तता न जतला सको। 

जी ,आ जाऊंगा ,आपके बेटे के विवाह मैं भी तो मैंने ही खाना बनाया था। 

हां ,हां सभी, मेहमान आपकी प्रशंसा कर रहे थे इसलिए अब बेटी के विवाह में भी ,आपको ही ,खाने का सम्पूर्ण कार्यभार सौंप रहे हैं ,इसीलिए आपको फोन किया।  



ठीक है ,जी मैं अपना एक आदमी भेज दूंगा जो आपको सामान लिखवा देगा। 

ठीक है ,कहते हुए, त्रिभुवन जी ने, अपनी पत्नी से कहा -देखो ! मिठाई वाला और खाने का इंतजाम तो हो गया। अब किसी टेंट वाले को फोन करता हूं। 

वे  टेंट के लिए ,टेंट वाले को फोन लगा ही रहे थेा, तभी उनका बेटा आ गया और बोला -पापा यह सब किन परेशानियों में पड़ रहे हैं ?इससे परेशानी ही बढ़ती है। अब कोई भी इस तरह से नहीं करता है, सीधे होटल करिए ! वे सब अपने आप इंतजाम कर देते हैं या उनसे मिलवा देते हैं। आपको  जैसा खाना बनवाना है जैसा कार्य करवाना है या जैसा सजावट करवानी है। वह स्वयं आकर आपसे बातचीत कर लेंगे और सब तय हो जाता है। 

होटल का तो बहुत खर्चा आ जाएगा, हां, थोड़ा ज्यादा तो आएगा लेकिन आपको इस तरह परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। अब हलवाई है आपका ,कभी सब्जी मंगवाएगा कभी मसाले मंगवाएगा। छोटा-मोटा काम बताता ही रहता है अब यहां लोगों को कितना समय है ? जो बार-बार जाकर सामान लेकर आएं। अब मैंने उससे तो बात कर ही ली है ,अब इंकार भी तो नहीं कर सकता। 

ठीक है ,उसकी बात होटल वाले से भी करा दीजिएगा, हो सकता है ,वहीं पर सारा इंतजाम हो जाए। 

वैसे मेरी इच्छा तो यही हो रही है कि इतना डबल खर्चा क्यों किया जाए ?जब अपने पास भी इतनी जमीन है इस पर टेंट लगवा देते हैं और काम भी हो जाएगा ,तुम्हारे विवाह में भी यहीं सब इंतजाम किया था। 

आपकी जैसी इच्छा , कहकर सार्थक अपने कार्य  मैं व्यस्त हो गया।

क्या ?आपके  पापा नहीं माने ! सार्थक की पत्नी पूजा ने उसके समीप आकर पूछा। 

मेरा कार्य उन्हें उचित सलाह देना था , वह माने या न माने यह उन पर निर्भर करता है। 

तुम बताओ !कोमल कैसी है ?तुम दोनों ननद -भावज ने कुछ खरीददारी की या नहीं। 

पता नहीं ,अचानक आपकी बहन की तबियत कुछ बिगड़ी सी लग रही है। मैंने कहा भी था ,डॉक्टर के दिखाने के लिए चलते हैं ,कहने लगी -चूरन खाउंगी ,तो ठीक हो जाउंगी।

 तब तुम लोग खरीददारी के लिए कब निकलोगे ?अपने लिए नीले  रंग की साड़ी अवश्य लेना ,तुम्हारे गोरे रंग पर नीला रंग बहुत फबता है। दुनिया कोमल को देखेगी और मैं तुम्हें,कहते हुए ,सार्थक ने मुस्कुराकर पूजा की तरफ देखा। 

चलो !जी ,आपको तो हमेशा मजाक ही सूझता है। 

लो !कर लो बात !मैंने ऐसा कौन सा मजाक कर दिया ? सही तो कह रहा हूँ,ये मज़ाक नहीं है ,श्रीमती जी ! 

भाग २ -

हैलो ,रोहित !कैसे हो ?

ओह !तुम हो !तुम्हारे बगैर कैसा हो सकता हूँ ?तुम्हारे बगैर अब एक -एक पल काटना भी, युगों के बराबर लगता है। मैं तो उस समय की प्रतीक्षा में हूं, कब तुम मेरे आंगन में आओगी और छन छन की आवाज से मेरे घर को, गुंजा दोगी। 

ज्यादा ,रोमांटिक होने की आवश्यकता नहीं ,देखो !मुझे पायल वगैरह  पहननी पसंद नहीं है, और वह जो छन छन की आवाज होती है न...... वह तो बिल्कुल भी पसंद नहीं है ,कहीं भी चले जाओ ! पता चल जाता है कि बहू !कहां घूम रही है ? कोई प्राइवेसी ही नहीं है, मैं मानती हूं कि श्रृंगार का एक साधन है किंतु यह भी मानती हूं। यह एक तरीके का बंधन भी है , पहले जमाने में ऐसा होता होगा कि बहू पर नजर रखने के लिए उन्हें पायल पहना देते होंगे बहू भी खुश और घरवाले भी खुश ! जहां भी जाएगी, छन छन की आवाज से उन्हें पता चलता रहेगा कि बहू कहां घूम रही है ? 

यार !तुम्हारा भी,अपना अलग ही तर्क है ? लड़कियां तो श्रृंगार के लिए मरी जाती हैं, और तुम हो कि नए-नए तर्क देती हो। चूड़ियों से भी तो, यही  होता है. चूड़ियां भी तो छन -छन की आवाज करती हैं, खनकती रहती हैं। 

हां इसीलिए तो अब कुछ महिलाएं कड़े पहनने लगी हैं,विशेषरूप से जो ,नौकरी करती हैं। तुम मेरे लिए सोने के कड़े बनवा देना जिसमें हीरे जड़े हों  कहते हुए कोमल हंसने लगी और तुम बताओ,मिस्टर !तुम्हारी क्या तैयारी चल रही है ? 

मुझे शेरवानी और सूट पहनना है , इसलिए उसका नाप दर्जी को देकर आया हूं। अब तुम बताओ! तुम किस रंग का लहंगा सिलवा रही हो।

 वह तो ससुराल से आता है न...... तुम्हें अपनी शेरवानी से मैच करता लहंगा लेकर आना है।  

अच्छा !हमारी तरफ से आएगा, और  संपूर्ण शृंगार  का सामान भी....... 

और क्या ? बच्चू ! इतनी आसानी से छूटने वाले नहीं हो ,कहते हुए कोमल हंसने लगी। 

तभी कोमल को उल्टी जैसा महसूस हुआ, मैं अभी आती हूं कहते हुए वह बाथरूम की तरफ दौड़ पड़ी।

 कुछ देर पश्चात ,जब वापस आई तो रोहित ने पूछा-तुम्हें क्या हुआ था ? 

पता नहीं, कल -परसों से ऐसे ही जी मिचला रहा है ,सोचती हूं -डॉक्टर के जाऊँ , हो सकता है ,खाने का  कोई साइड इफेक्ट हो गया हो। 

ज्यादा तबियत बिगड़े तो रुकना नहीं, डॉक्टर को तुरंत ही दिखाना रोहित ने समझाया। 

हाँ -हाँ ,अब तो दिखाना ही होगा ,आखिर अपने सजन से मिलने जो जाना है। सजना है ,मुझे सजना के लिए ,कहते हुए बोली -मेरी पार्लर वाली से ''अपॉइंटमेंट'' है ,वहां भी जाना है। अच्छा ,कल फोन करती हूँ ,कहते हुए कोमल फोन रख देती है। 

रोहित परिवार से जुड़ा ,एक सामाजिक प्राणी है और सभी रीति -रिवाज़ों को मानता  है,छुपकर कुछ भी गलत करेगा तो , उसकी पोल न खुले इसीलिए झूठ का दामन थाम लेगा। कोमल ! एक पढ़ी -लिखी आजाद ख्यालों वाली लड़की है। वह जो भी करती है और कहती है ,बिंदास कह देती है और  जो करती है ,यदि वह गलती भी हुई ,तो उस गलती को स्वीकार करने में विश्वास और हिम्मत रखती है। उसकी सोच ,रोहित से अलग है किन्तु फिर भी ,विरोधी विचार होते हुए भी ,दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो जाता हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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