आज अचानक रुपाली को ,अपने सामने ,अपने कमरे में देखकर ,चतुर आश्चर्यचकित हो गया।रुपाली ,इस तरह चतुर के कमरे में आते हुए ,न ही घबराई और चतुर को अपने सामने कम कपड़ों में देखकर ,न ही झिझकी और चतुर से साथ खाने के लिए भी कह दिया। मन ही मन चतुर सोच रहा था, एक खर्चा और बढ़ गया फिर बोला -कौन लेकर आएगा ? मैं ही ,लेने जाऊंगा।कहते हुए उसने, अपनी कमीज़ पहनी और बाहर निकल गया। इधर रूपाली उसके कमरे में घूम-घूमकर उसके कमरे को अच्छे से देख रही थी। वह पूरे अधिकार से उस कमरे में घूम रही थी, जैसे वह कमरा उसका अपना ही हो। उसमें कुछ किताबें रखी हुई थीं। कुछ चतुर के कपड़े थे, मन ही मन मुस्कुरा कर बोली-अपने चतुर साहब ! का ज्यादा खर्चा नहीं है पर जब हम दोनों मिलकर कमाएंगे, तो आगे दिक्कत नहीं आएगी। अपने सपनों को सजाते हुए वह कुर्सी पर बैठ गई और आंखें मूंदकर सुंदर सपनों में खो गई।
कुछ देर पर पश्चात आहट होने पर रूपाली ने अपनी आंखें खोल दीं और बोली -आ गए ,बड़ी देर लगा दी।
हां ,आ तो गया पर तुम्हारे कारण फिर से पसीने में हो गया,देखो !क्या हालत हो गयी।
क्यों ,मेरे ही कारण क्यों ? तुम भी तो अपने लिए भी तो ,कुछ लेकर आते।
हां ,यह बात भी है , कहते हुए ,उसने कोल्ड ड्रिंक की बोतल और समोसे निकालकर बाहर रख दिए।
वाह ! बहुत बढ़िया, खाने का मजा ही आ जाएगा।
चतुर बोला -अब यह गरमा -गरम समोसे मैं , इतनी गर्मी में नहीं खा पाउंगा, तुम खाना आरंभ करो !मैं एक और स्नान लेकर आता हूं।
कोई बात नहीं तुम, निश्चिंत होकर जाओ ! न ही मैं तुम्हें देखूंगी और न ही छेडूंगी ,शरारत भरे लहजे में अपनी भौंहे घुमाते हुए रूपाली बोली।
मुझे छेडोगी तो, नुकसान तुम्हारा ही होगा।
क्यों , मेरा क्या नुकसान होगा ? मैं इतने ये समोसे खा भी लूंगी ,इतने तुम नहाकर आओगे , वास्तव में ही, तुम्हारे कमरे में गर्मी बहुत है अच्छा हुआ, जो मैं ये हल्का टॉप पहन कर आई हूं।
पहनकर तो आई हो, किंतु इसे देखकर तो लग रहा है, पहना और न पहना बराबर हैं , मुस्कुराते हुए, चतुर बोला।
तुम लड़कों का क्या है ? गर्मी में बनियान पहनकर घूमने लग जाओगे, घर में कोई नहीं होगा ,तो पजामा भी उतार दोगे लेकिन हम लड़कियों को तो कपड़े पहनकर रहना पड़ता है, अब बारीक कपड़े भी पहन लिए तो उसमें भी तुम लोगों को दिक्कत है। समोसा खाते हुए, रूपाली बोली।
हां यह तो है, नहाते हुए चतुर ने जबाब दिया। तभी चुपके से रूपाली उठी और उसने, एक जग पानी भरा और चतुर के स्नानागार की जलियां में से, उस पर वह पानी फेंक दिया। चतुर तो पहले ही नहा रहा था, किंतु रूपाली की यह शरारत उसे अच्छी लगी और बोला -यदि मैंने तुम्हें भिगोया ,तब क्या होगा ?
नहीं ,प्रयास भी मत करना ,वरना जहाँ हो वहीं बंद कर दूंगी।
अच्छा ! मैं तो ड़र गया ,चुपचाप नहाने का उपक्रम करने लगा। तभी वह चुपचाप बाहर आया और उसने अपने, बाथरूम से ही, जो मग में पानी भरकर लाया था ,वो रुपाली के ऊपर उड़ेल दिया , जिसके कारण वह बुरी तरह भीग गई। उसे आभास ही नहीं हुआ ,कि उसके पीछे चतुर आ गया है।
यह तुमने क्या किया ?मुंह बनाते हुए गुस्से से रूपाली बोली।
क्यों ? तुमने मेरे ऊपर पानी नहीं उड़ेला था, हां मैं मानती हूं ,मैंने पानी उड़ेला था किंतु तुम तो नहा रहे थे। मुझे वापस अपने घर भी जाना है और देखो ! मैं सारी भीग गई।
चतुर ने उसकी तरफ देखा, सच में ही, उसके कपड़े उसके बदन से चिपक गए थे। बोला -तुम्हारे कपड़े भी बारीक हैं और गर्मी में शीघ्र सूख जाएंगे परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, आओ बैठो ! थोड़ा सा खा लेते हैं किंतु एक दूसरे की शरारत, दोनों के अंदर कुछ हलचल पैदा कर गई। चतुर कनखियों से, रूपाली को देख लेता , रूपाली बार-बार अपने उस तन से चिपके हुए वस्त्र को शरीर से अलग करके सुखाने का प्रयास कर रही थी। तब अचानक न जाने चतुर को क्या हुआ ? वह फिर से, एक जग पानी ले आया और रूपाली के ऊपर उड़ेल दिया।
यह तुम क्या कर रहे हो ? कुछ नहीं, सौंदर्य के दर्शन कर रहा हूं। तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो ?मैं ने आज तक तुम्हें, ध्यान से देखा ही नहीं। कहते हुए ,उसके करीब पहुंच गया , और उसे अपने सीने से लगा लिया। दोनों की धड़कनें स्पष्ट एक दूसरे को सुनाई दे रही थीं , मैं तुम्हारी नजरों में अपने लिए प्यार देख सकता हूं. किंतु मैंने नजरअंदाज किया।
क्या तुमने सच में , मेरे प्यार को महसूस किया।
अक्सर करता हूं, किंतु कुछ कह नहीं पाता।
फिर तुमने मुझसे कुछ कहा, क्यों नहीं ? उससे लिपटते हुए , रूपाली बोली। भीगे होने के पश्चात भी ,दोनों के बदन सुलग रहे थे। चतुर उस पंखे को फिर से, तेज करने की एक नाकाम कोशिश कर रहा था। उसने अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। उस समय वह दोनों उस कमरे में अकेले थे। जो वस्त्र, इतनी देर से, चतुर की आंखों में चुभ रहे थे , वह भी उसने उतार दिया। उसके सामने रूपाली निर्वस्त्र खडी थी। कस्तूरी से मिले हुए भी ,उसे बहुत, दिन हो चुके थे। डॉक्टर के कहने के आधार पर, आरंभ के 3 महीने में, हम दोनों को आपस में बातचीत नहीं करनी थी ,इसीलिए, अबकी बार उसने कस्तूरी को छुआ भी नहीं था। वह उसके बच्चे की मां जो बनने वाली थी। इतने दिनों की दूरी और रूपाली का यौवन, उसे रूपाली की तरफ खींच रहा था।
वह तो मन ही मन पहले से ही चतुर को चाहती थी, और उसे लगता था कि चतुर, कुंवारा है और अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात ,वह दोनों विवाह कर लेंगे हालांकि इससे पहले ,दोनों में से किसी ने भी, एक दूसरे से कोई वायदा नहीं किया था किंतु जब मन किसी को अपना मान लेता है तो उस पर, अंधा होकर विश्वास भी कर लेता है , उसमें उसे कोई बुराई नजर नहीं आती। यही सब रूपाली के साथ भी हो रहा था। उसे चतुर में अच्छाइयां ही अच्छाइयां नजर आती थीं। अभी तक उसका व्यवहार भी ऐसा ही रहा कि उसमें बुराई ढूंढ भी नहीं सकते थे किंतु अचानक परिवार से दूरी, और रूपाली का एकांत में, खुले मन से उसका मिलना , चतुर को नियंत्रित न कर सका।