Rasiya [part 83]

गर्मियों के दिन चल रहे थे। गर्मी अपने शबाब पर थी ,ग्रामीण इलाकों में थोड़ी ठंडक का एहसास होता किन्तु शहरों में ,तो पत्थर के बने फर्श भी तपते महसूस होते, पानी डालने पर थोड़ी देर के लिए ठंडक महसूस होती उसके पश्चात वही हालत !पसीना सूखने का नाम नहीं ले रहा था। ऐसी गर्मी में ,जहां लोग दोपहर में तो अपने घरों में कैद रहते ,शाम के समय ,अपने घरों से बाहर निकलकर छतों पर पानी का छिड़काव करते हैं और पंखे और कूलर चलाते हैं।

 चतुर के कमरे में एक पंखा चल रहा था, वह भी ठीक से हवा नहीं दे रहा था। चतुर बार -बार उसका बटन घुमाकर  बार-बार उसकी रफ्तार बढ़ाने का प्रयास करता किंतु विफल हो जाता। मकान -मालिक अपने परिवार के साथ, आगे के हिस्से में रहता था। चतुर का कमरा पीछे की तरफ था। हो सकता है ,वह कमरा किराये के उद्देश्य से बनवाया हो या फिर नौकर के लिए ,जब कोई भी नहीं था ,तो चतुर को किराये पर दे दिया। उसके कमरे तक आने -जाने का रास्ता भी, अलग था। उसके परिवार से, या उन लोगों से उसका कोई, मतलब नहीं रह जाता था। मुख्य दरवाजा एक ही था। छत पर भी नहीं जा सकता था, क्योंकि छत पर जाने के लिए, सीढ़ियों से जाना होता और वह सीढ़ियां, घर के अंदर से जा रही थीं। जहां उसे जाने की अनुमति नहीं थी। 


गर्मी से हलकान हुआ चतुर सोचता है, कुछ देर पानी से ही ठंडक का एहसास ले लिया जाए। उस समय उसके कमरे में कोई आता ही भी नहीं था। न ही ,उसे कोई उम्मीद थी। वह अपने कमरे में बनियान और पायजामे में, ही घूम रहा था। उसके पश्चात ,उसने वह भी उतार दिया और नहाने के लिए , स्नानागार में घुस गया। 

रूपाली कई दिनों से चतुर का बदला हुआ व्यवहार देख रही थी और उसे चिंतित भी देख रही थी। न जाने, किस परेशानी में घुला जा रहा है ? आज छुट्टी है, उससे मिलकर आती हूं और पूछती हूं -उसे कोई नौकरी मिली या नहीं, नौकरी तो मैं भी, करना चाहती हूं। यही सोचकर वह, अपनी मम्मी से बोली -मैं अपने एक दोस्त के घर जा रही हूं ,आने में थोड़ा समय लग जाएगा। रूपाली  चतुर का घर पहले भी देख चुकी थी, इसलिए उसे घर ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई। उसने सीधे मुख्य द्वार खोला और घर के अंदर प्रवेश कर गई। अब तो वह जानती थी, कि चतुर घर पर ही मिलेगा। बाहर कोई उसे दिखलाई भी नहीं दिया , जो उससे पूछता- कि वह किससे मिलने आई है और क्यों आई है ?वह सीधे उसके कमरे की तरफ बढ़ चली   उसके कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोली -कोई है ,किंतु किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, चतुर तो गुसलख़ाने में था। तब वह दरवाजे को थोड़ा खोलती है, तो दरवाजा पहले से ही खुला हुआ था वह अंदर चली जाती है। तभी उसे स्नानागार से पानी के चलने की आवाज आती है ,वह समझ जाती है शायद ,चतुर नहा रहा है। 

वह उसकी प्रतीक्षा में बैठ जाती है कुछ देर पश्चात चतुर नहाकर जैसे ही ,बाहर निकलता है, रूपाली को देखकर हड़बड़ा जाता है , हालांकि उसने तोेलिया लपेटा हुआ था , फिर भी वह रुपाली से कहता है -तुम्हें आने से पहले बताना तो चाहिए था या दरवाजा खटखटा सकती थीं। 

मुस्कुराते हुए रूपाली बोली - मेरे आने की पहले से कोई योजना नहीं थी किंतु अचानक ही, मैंने आने का मन बना लिया बहुत दिन हुए ,तुमसे खुलकर कोई बात नहीं कर पाई थी। तुम भी मुझे कुछ परेशान से लग रहे थे। क्या कोई बात है ?

नहीं ,कोई बात नहीं है ,तुम्हें ऐसा क्यों लगा ?

तुम्हारे व्यवहार से....... 

चतुर ने उसकी बात का कोई जबाब नहीं दिया। बनियान पहनते हुए , चतुर बोला -आज बहुत गर्मी है इसलिए मैंने सोचा -नहा लेता हूं,थोड़ी ठंडक का एहसास तो होगा।  इस कमरे में घुटन सी हो रही थी। अब थोड़ा सुकून मिला है।  तुम्हें जो भी पूछना था, कल भी तो पूछ सकती थीं ,यहाँ आने का कष्ट क्यों किया ?

क्यों ,मैंने यहाँ आकर क्या बुरा कर दिया ? मुंह बनाते हुए रूपाली बोली,उसको चतुर का इस तरह कहना बुरा लगा।  

नहीं ,बुरा तो नहीं किया, किंतु मैं यहां पर अकेला रहता हूं , मकान -मालिक क्या सोचेंगे ? किसी ने तुम्हें यहां आते हुए देखा तो अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। 

यह शहर है, यहां किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता है ,तुम अपने घर में क्या कर रहे हो ,क्या नहीं ? कोई दख़लअंदाजी  नहीं करता। 

अच्छा !वह तो ठीक है ,पर तुम यह बताओ !तुम यहाँ किसलिए आई हो ?

अब तुमसे क्या बताऊं ?गंभीर होते हुए रुपाली बोली -तुमसे यही पूछना था कि तुम्हें  कोई नौकरी मिली या नहीं मिली। 

इस बात से तुम्हें क्या मतलब है ? तुम मेरे लिए इतनी क्यों परेशान हो ?

मैं तुम्हारे लिए परेशान नहीं हूं ,मैं अपने लिए परेशान हूं। मैंने  तुमसे कहा था -कि मुझे भी नौकरी करनी है तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिले तो मुझे भी सहयोग कर देना लेकिन तुम मेरी बात सुनते ही नहीं हो और न ही ,मेरी बातों पर ध्यान देते हो रूपाली शिकायत भरे लहजें से बोली। 

जब मुझे नौकरी मिलेगी तो मैं तुम्हारे लिए भी नौकरी ढूंढ दूंगा। एक -दो जगह जहां नौकरी मिलती हैं , उन्हें पूरा समय चाहिए और पैसे भी कम दे रहे हैं। चतुर ने रूपाली की तरफ देखते हुए कहा। उसने रूपाली की तरफ ध्यान से देखा, उसे देखता तो प्रतिदिन है किंतु आज उसका ध्यान उसके कपड़ों पर गया शायद ,गर्मी के कारण उसने महीन और पारदर्शी कपड़े पहने हुए हैं , जिनके कारण, उसके अंग -प्रत्यंग स्पष्ट नजर आ रहे थे। उसकी तरफ से अपना ध्यान हटाकर वह बोला - क्या पियोगी ? 

जो तुम पिला दो ! मुस्कुराते हुए रूपाली ने जवाब दिया और हां कुछ खाने के लिए भी मंगवा लेना ,वैसे मैं खा कर आई हूं क्योंकि मैं जानती हूं , तुम खाना बनाते नहीं हो ,बाहर से मंगवाकर या जाकर खाते हो। कायदे से तो मुझे तुम्हारे लिए भोजन लेकर आना चाहिए था किंतु जल्दबाजी में आई हूं इसलिए तुम्हारे साथ ही भोजन भी कर लूंगी। 

क्यों ,अपने घर से खाकर नहीं आईं ?चतुर ने चिढ़ते हुए पूछा। 

भोजन तो करके आई हूँ ,किन्तु तुम्हारे साथ भी खाना है ,इठलाते हुए रुपाली बोली -तुम अपने मेहमानों से क्या इसी तरह पूछते हो ?अपने घर से खाकर क्यों नहीं आये ?

अच्छा !ये बताओ ! किस कारण से आई हो ?चलिए पता करते हैं -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post