बहुत दिनों पश्चात चतुर अपने कॉलेज के लिए आया है, उसे नहीं मालूम था ,रूपाली, चतुर की कमी को इतना महसूस कर रही थी, कि वह उसे ढूंढते हुए, उसके घर तक पहुंच गई। वह उसकी आंखों में अपने लिए प्यार देखता है ,यह उसे अच्छा लगता है कि कोई लड़की उसके लिए इतनी परेशान और बेचैन है। रूपाली की चाहत देखकर, एक पल के लिए तो वह भूल भी जाता है कि वह एक शादीशुदा व्यक्ति है और अब तो पिता भी बनने वाला है। वह अपनी ही धुन में आगे बढ़ा जा रहा था तभी रूपाली ने उसका हाथ खींच कर ,उसे कुछ दिखाना चाहा। पहले तो वह समझ नहीं पाया किंतु, रूपाली ने दोबारा उसका हाथ पकड़कर खींचा और उससे कहा -रुको !
कहो !क्या कहना चाहती हो? मुझे यहां क्यों रोक रही हो ?
थोड़ा चुप भी रहोगे, देखो !सामने एक आंटी को देख रहे हो।
हां, क्यों इनमें क्या खास बात है ?
वह बहुत पैसे वाली पार्टी है।
तो........
अंकल बहुत कमाते हैं, किंतु आंटी को वह सुख नहीं दे पाते ,जो आंटी चाहती हैं।
तुम कहना क्या चाहती हो ?मैं कुछ समझा नहीं।
क्या तुम इतने नादान हो ? या न समझने का अभिनय कर रहे हो, रूपाली ने उसकी तरफ देखकर पूछा।
नहीं ,मैं तुम्हारी कोई भी बात...... नहीं समझ पा रहा हूं।
ये पैसे वाली पार्टी है ,जिनके पति रात -दिन कमाने में लगे रहते हैं , पत्नियों को शॉपिंग कराना ,उन्हें पति का सुख देना ,उनके साथ घूमना -फिरना, उनके पास समय ही नहीं होता, कि अपनी पत्नी को सब सुख -सुविधा तो दे देते हैं लेकिन समय नहीं दे पाते हैं। तब यह आंटी किसी और से उस प्यार को तलाशती हैं।
अब सही अर्थों में चतुर को रुपाली की बात समझ आई, वह कहने लगा -तुम यह सब कैसे जानती हो ?और मुझे क्यों बतला रही हो ?
क्योंकि यह हमारे, करीब ही रहती हैं ,सामने दिख गयीं तो दोस्त होने के नाते बता दिया।
ओह ! कह कर वह एकदम चुप हो गया। यह जानकारी उसे कोई विशेष नहीं लगी। चतुर मन ही मन सोच रहा था, अब बच्चे बड़े भी होंगे और उनके खर्च भी होंगे। मुझे अपने बच्चों को शहर में लाना है और शहर में ही उन्हें पढ़ाना भी है। उस ग्रामीण माहौल से मैं ,उन्हें बाहर निकाल कर लाऊंगा। कस्तूरी को भी तो मुझसे कुछ उम्मीदें होंगी। वह भी तो चाहती होगी ,मैं अपने पति के साथ और उसके पास रहूं। यही सब बातें सोचते हुए वह चल रहा था। हम लोगों की जैसी आमदनी है, वैसे ही हमारे खर्चे भी हैं। हम इतना व्यय ही नहीं करते। यहां पर बाहरी दिखावा और साज -सजावट बहुत ज्यादा है ,उसके आधार पर व्यय भी बहुत होता है। मुझे लगता है ,मुझे अब कोई कार्य कर लेना चाहिए ताकि परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ मैं अपने खर्चे भी स्वयं उठा सकूं। चतुर अपनी परेशानियों में, अपनी सोच से आगे बढ़ता जा रहा था।
रुपाली उसके साथ चल रही थी ,किन्तु चतुर का ध्यान तो कहीं और ही लगा था। तभी रूपाली की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया और बोली -क्या सोच रहे हो ?
कुछ विशेष नहीं ,सोच रहा हूं -अब मुझे अपने खर्चों के लिए, अपने माता-पिता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए मुझे अवश्य ही कोई न कोई कार्य करना होगा।
क्यों, क्या तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें खर्चा देने से इनकार कर दिया, रूपाली ने सशंकित स्वर में पूछा।
नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है , हमारी संपत्ति बहुत है लेकिन अचल संपत्ति है। चल नहीं ,हमें कभी आभास ही नहीं हुआ क्योंकि हम, साधारण लोग हैं ,साधारण तरीके से रहते हैं , ज्यादा इच्छाएं भी नहीं है, इसलिए ज्यादा खर्च भी नहीं करते हैं , किंतु अब लगता है ,कि अब मुझे इतना आत्मनिर्भर तो होना चाहिए कि मैं अपने रहने -सहने का खर्चा स्वयं वहन, सकूं।
यह तो तुमने सही सोचा, क्या कोई नौकरी करोगे ?
देखता हूं ,क्या मिलता है ? अभी हमारी डिग्री तो पूरी नहीं है किंतु जितनी भी डिग्री हमारे पास है ,उसके आधार पर देखना पड़ेगा कि हमें किस तरह की नौकरी मिलती है ?
मैं भी तुम्हारे साथ हूं,रुपाली ही जबाब दिया।
तुम मेरे साथ नौकरी में क्या करोगी ?अब रुपाली के हावभाव से वह समझने लगा था कि रुपाली उसकी ओर आकर्षित हो रही है।
मैंने, बहुत दिनों से ,तुमसे एक सच्चाई छुपा रखी थी, आज मैं तुम्हें वह बात ,बता देना चाहती हूं।
कैसी सच्चाई ? तुमने मुझसे क्या छुपाया है ?
तब तक दोनों कॉलेज के अंदर प्रवेश कर जाते हैं, और रूपाली कहती है-मेरी क्लास का समय हो गया है अब चलती हूं ,बाद में बताऊंगी। चतुर के मन में एक शंका पैदा करके चली गई। वह सोच रहा था -आखिर इसकी ऐसी क्या सच्चाई है ?इसकी अपनी सच्चाई है या उन आंटी की तरह कोई और सच्चाई बताने वाली है।
चतुर कुछ दिनों से नौकरी ढूंढ रहा है , वह चाहता है कि कॉलेज के बाकी बचे समय में ,वह नौकरी कर सके किंतु नौकरी के लिए सभी को, पूरा समय चाहिए। सभी को सात से आठ घंटे की ड्यूटी चाहिए , और पैसे भी कम मिल रहे थे। उसे लग रहा था ,कि मेरी तो दोगुनी मेहनत हो जाएगी, और हाथ में पैसे भी कम ही आएंगे। वह कोई ऐसी नौकरी चाहता था, जिसमें समय कम के साथ-साथ उसे पैसे अच्छे मिले। वह उतने ही समय में उससे अच्छा कार्य ले लें और उसका वेतन भी अच्छा ही हो।
चतुर नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था,तभी उससे एक लड़का टकराया, वे दोनों आपस में बातचीत करने लगे -बातचीत करते-करते उसे पता चला कि वह लड़का संकल्प है ,वह फोटोग्राफी करता है। कुछ लोग उसे विज्ञापन देते हैं, वह विज्ञापन भी बनाता है , और तस्वीरें भी खींचता है।
उसने सलाह दी ,तुम किसी भी कंपनी का या जो भी कोई, विज्ञापन देना चाहता है ,वह दे सकता है। एक विज्ञापन पर उसे कम से कम ₹2000 मिल जाएंगे। चतुर को यह सुझाव पसंद आया, यदि वह 5 से 6 विज्ञापन भी, उसके लिए लेकर आता है और उससे अधिक भी , उसकी अच्छी आमदनी हो जाएगी और ज्यादा परिश्रम की आवश्यकता भी नहीं होगी किंतु विज्ञापन देगा ,कौन ? उसने यह सब हिसाब लगा तो लिया। लेकिन विज्ञापन कहां से लाएगा ? अनेक विचार उसके मन में आ जा रहे थे, बस में भी वह ,रूपाली से मिला तो था किंतु अधिक बात नहीं कर पाया। वह अपनी ही धुन में, परेशानियों में उलझा हुआ था। रूपाली भी मन ही मन सोच रही थी -आखिर यह किन उलझनों में उलझा हुआ है ?