Rasiya [part 80]

जब से चतुर गांव में आया है, कुछ अजीब ही हो रहा है ,पहले तो मयंक कहता है -कि कोई खुशखबरी है किंतु घर आकर देखता है तो ऐसा कुछ भी नहीं लगता है। माँ ही कार्य कर रही है , कस्तूरी कहीं भी दिखलाई नहीं दे रही थी। न जाने, कस्तूरी को क्या हो गया है ? उसका पति आया है और वह अपने कमरे से बाहर निकलकर ही नहीं आई। चाय देना तो दूर, पानी के लिए भी नहीं पूछा। वह मां से पूछना चाहता है ,कि आखिर कस्तूरी कहां है ?

किंतु मां ने जवाब ही कुछ ऐसा दिया, अब तो उसे शत -प्रतिशत विश्वास हो गया था, सास -बहू में अवश्य ही, कोई अनबन  हुई है। 


वह यह सब सोच ही रहा था ,तभी रामप्यारी बोली -तू जा ,कस्तूरी से मिल ले ! तब तक मैं तेरे लिए ,चाय बनाकर लाती हूं। वह मन ही मन सोचकर घबरा रहा था ,कहीं कस्तूरी ने यहां सास -बहू के झगड़े तो आरंभ नहीं कर दिए, जो माँ इस तरह से व्यवहार कर रही है , कस्तूरी ! क्या किसी बात पर नाराज है ?सोचते हुए उसने अपना थैला और सूटकेस उठाया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चला। जैसे ही, उसने कमरे में प्रवेश किया। वहां सब कुछ शांत था, और कस्तूरी करवट लिए हुए ,पलंग पर लेटी थी। अब तो वह मन ही मन घबरा गया ,अवश्य ही ,घर में कुछ न कुछ तो बात हुई है  और यह लेटी हुई क्यों है ? यदि सो भी रही है ,तो यह समय सोने का नहीं है,अवश्य ही यह बिमार है।  चतुर ने अपना सूटकेस रखा, और थोड़ी सी आहट की, जिससे कस्तूरी को एहसास हो जाए कि वहां कोई है। कमरे में कौन आ गया ?यह जानने के लिए,जैसे ही कस्तूरी में करवट बदली। 

चतुर, अवाक्  रह गया , उसने देखा, कस्तूरी पर तो और रंग आ गया है , दिन ब दिन अपने ही सौंदर्य को मात देती जा रही है ,इसे देखकर तो नहीं लगता ,यह बीमार है। अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए बोला - मैडम ! आराम फ़रमा  रही हैं। मन ही मन सोच रहा था, खा -खाकर पहले से मोटी हो गई है।

 कस्तूरी ने जब चतुर को देखा ,तो बोली -अरे ! आप आ गए ,मुझे किसी ने बताया नहीं , अरे आप ! तो बिल्कुल बदल गए ? कितने अच्छे लग रहे हो ? 

तुम यह बात सब बातें  छोड़ो ! उसके मन में कस्तूरी के प्रति थोड़ा क्रोध था। वह सोच रहा था, कि कस्तूरी यहां अकेली क्यों लेटी है ? वहां मम्मी अकेले काम कर रही हैं। मुँह बनाते हुए बोला -कोई तभी तो बताता जब उसे मालूम होता कि मैं आ रहा हूं , मेरा अचानक ही आने का प्रोग्राम बन गया, किंतु यहां मैं देख रहा हूं, मेरी मां अकेली कार्य में व्यस्त है, इस उम्र में भी कार्य कर रही है और तुम यहां आराम फरमा रही हो। क्या जमाना आ गया है? उसने कस्तूरी को व्यंग से देखा। 

आपकी मम्मी ने ही आराम करने के लिए कहा था , सुबह से मैं ,वहीं थी। 

भला ,मम्मी क्यों आराम करने के लिए कहेंगीं ? तुम क्या बीमार हो ?

कस्तूरी, नजरों को झुकाते हुए और चेहरे को लटकाकर गंभीर हो गई और बोली -जब से आप गए हैं, तब से भूख -प्यास ही नहीं लगती ,जी मिचलाया सा रहता है और यह बीमारी तभी लग गई थी। 

 चतुर मन ही मन सोच रहा था, देखने तो मैं तो अच्छी खासी तंदुरुस्त लग रही है ,फिर भी पूछा -डॉक्टर को दिखाया ,क्या कह रहा है ? यह बीमारी अभी और चलेगी, दवाइयां चल रही हैं। 

तुम कब से बीमार हो ?तुमने मुझे एक बार भी, चिट्ठी लिखकर नहीं बताया। कम से कम मुझे पता तो होना चाहिए। 

अब आपको ,क्या बताती ? ऐसे में आप परेशान हो जाते,आपकी पढ़ाई का हर्ज़ा होता।  

पहले से तुम मुझे मोटी लग रही हो, चतुर में शंका जाहिर की। वह कैसी दवाईयां दे रहा है ? यह दवाइयों  का ही कोई ''साइड इफेक्ट ''तो नहीं। कौन से डॉक्टर को दिखाया ?

वह सब तो मैं नहीं जानती, मम्मी ही ले जाती हैं, मन ही मन चतुर सोच रहा था -'मम्मी न जाने किस डॉक्टर को दिखा रही हैं ? और इसे क्या बीमारी है ? उसका पता करना होगा। 

अभी वह कस्तूरी से यही बातें कर रहा था तभी राम प्यारी चाय लेकर ऊपर ही आ जाती है। अपनी मां को देखकर चतुर कहता है -आप यहां चाय लेकर क्यों आईं ? मैं स्वयं ही नीचे आ जाता। अब आ ही गई हैं  तो बैठिए ! और मुझे बताइए ! इसे क्या बीमारी है? किस डॉक्टर को दिखा रही हैं ? उसने इसे आराम करने के लिए क्यों कहा है ?क्या कोई गंभीर बीमारी है ? 

अब तो बेटा ! यह आराम ही करेगी , इस उम्र में सारा काम मुझे ही करना होगा। रामप्यारी जी ने कस्तूरी की तरफ देखते हुए कहा , जब वह कह रही थीं  तो कस्तूरी ने अपनी नज़रें नीची कर लीं  थी। डॉक्टरनी  ने तो यही कहा है -इसे अभी थोड़ा आराम की आवश्यकता है , काम करेगी किंतु थोड़ा-थोड़ा !

वैसे इसे बीमारी क्या है ? चतुर चिंतित होते हुए बोला -चेहरे से देखकर तो नहीं लगता है ,यह बीमार है। 

हां ,इसे पेट की बीमारी है, रामप्यारी ने मुस्कुराते हुए अपने मुंह पर अपनी धोती का पल्ला रख लिया ताकि चतुर को उनके मुस्कुराने का आभास न हो। 

हां, वही मैं देख रहा हूं , इसका पेट भी थोड़ा बढ़ गया है। आपने किसी ठीक सी डॉक्टरनी को दिखाया है वरना मैं इसे शहर ले जाकर, किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाता हूं। 

नहीं ,नहीं यहां की डॉक्टरनी ही सब संभाल लेगी , शहर में जाने की आवश्यकता नहीं है। पेट तो बढ़ेगा ही अभी तो और बढ़ेगा, कस्तूरी को हंसी आ रही थी और वह कमरे से बाहर निकल गई। 

क्यों ,ऐसी क्या बीमारी हुई है ? अब तुझे क्या बतलाऊं? बेटा ! बीमारी इसे नहीं ,मुझे हुई है , मुझे दादी बनने की चाहत जो है, और यह मुझे दादी बनाने जा रही है। 

अच्छा !चाय पीते हुए वह कुछ सोचने लगा, और तभी एकदम से उठ खड़ा हुआ और बोला - क्या ?

हां बेटा ! मुझे दादी बनने की बीमारी हुई है , और यह सब कस्तूरी के कारण ही संभव हो सकेगा , अभी तीसरा महीना ही चल रहा है, डॉक्टरनी ने कहा है -अभी मुझे दादी बनने में 6 महीने और लगेंगे। अब तो सास -बहू की हंसी रोके नहीं रुक रही थी और चतुर कुछ कह नहीं पा रहा था। चाय पीते हुए मुस्कुरा दिया, मन ही मन सोचने लगा -ये सास -बहू एक साथ रहकर बहुत चालाक हो गई हैं , मुझ जैसे पढ़े-लिखे को चला दिया , जब से मेरी ''टांग खींच रही थीं। '' मयंक की बातों का अर्थ अब समझ आया। मन ही मन प्रसन्न हो रहा था ,मैं भी पिता बनने वाला हूं। मन किया, कस्तूरी को गोद में उठा ले किंतु मां के सामने, ऐसी कुछ भी हरकत वह नहीं कर सकता था। 

आइये !चतुर और कस्तूरी की इस नई ख़ुशी में शामिल होते हैं और आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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