Rasiya [part 79]

चांदपुर गांव का एक दृश्य, जहां छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे हैं। गांव के अन्य लोग ,अपने -अपने कार्यों में व्यस्त हैं, चांदपुर गांव में प्रवेश करने के लिए एक, लंबी दूरी को पार करना होता है। जहाँ कोई रिक्शा भी नहीं जाता। कुछ दूरी के लिए एक बैलगाड़ी मिल गयी थी। उसके पश्चात ,हमारे चतुर साहब ने ''पदयात्रा ''ही की। गांव में प्रवेश करते ही कुछ बच्चे गुल्ली -डंडा खेल रहे थे। तभी बच्चों ने देखा, जींस और अच्छे कपड़ों में, एक व्यक्ति उधर ही चल रहा है। बच्चे उत्सुकता वश उसे देखने लगे, उस व्यक्ति के कंधे पर एक थैला था , और हाथ में एक सूटकेस भी था। वह व्यक्ति उस गांव की तरफ ही बढ़ रहा था। आपस में बच्चे एक दूसरे से पूछने लगे -यह कौन है ? चतुर को, बाहर गए हुए अभी 6 महीने हुए हैं, जिन बच्चों ने चतुर को पहले देखा है ,वह पहचानने का प्रयत्न कर रहे हैं। 

देखने से तो चतुर भैया लग रहे हैं, किंतु वह तो इस तरह के कपड़े नहीं पहनते , एक लड़के ने अंदाजा लगाया। 

हो सकता है ,उसका कोई हमशक्ल हो, कहते हुए उसका छोटा दोस्त हंसने लगा। बच्चे बेपरवाह से इधर-उधर दौड़ रहे थे। चतुर उनके करीब आया , तभी वह लड़का बोला -जो पहले से ही अंदाजा लगा रहा था , क्या आप चतुर भैया हैं ?

हां ,हां ,मैं ही हूं ,

देखा ! अपने दोस्त पर रौब मारते हुए बोला -चतुर भैया ही हैं , मैंने  ठीक पहचाना !

चतुर उसकी बात सुनकर मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया, आज बहुत दिनों पश्चात, वह कस्तूरी से मिलेगा, अपने माता-पिता से मिलेगा। न जाने कैसे रह रहे होंगे? जैसे-जैसे घर करीब आता जा रहा था, उसकी प्रसन्नता उसके चेहरे पर नजर आ रही थी। घर जाते समय राह ,में मयंक भी मिल गया। चतुर उसको और वह चतुर को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और दोनों एक दूसरे के गले भी मिले चतुर ने पूछा -और क्या चल रहा है ? 

मैं अपने हाल तो बाद में बताऊंगा , पहले तू बता ! तू कितना बदल गया है ? तू तो शहर जाकर बिल्कुल शहरी हो गया है और तूने यह जींस कब से पहननी आरंभ की ?

बस वहां लोगों को पहनते हुए देखा ,तो एक बार इच्छा हुई  कि हमें भी जींस पहनने में तो कोई बुराई नहीं है पहनकर देखा तो अच्छा लगा। 

हां, यार ! वाकई तू बहुत अच्छा लग रहा है, अब तू देखने पर लगता ही नहीं, हमारा वही पहले वाला चतुर है। अब तो सारा दिन घर में तेरे ही चर्चे होते रहते हैं , हमें तेरा उदाहरण दिया जाता है। उसने विवाह भी कर लिया और अब पढ़ने गया है। वैसे ये बता ! इतने तंग कपड़ों में ,परेशानी नहीं होती कहकर हंसने लगा। 

ऐसा कुछ भी नहीं है , अच्छा बता ! तेरे लिए भी कोई लड़की ढूंढी जा रही है या नहीं। 

हां, उसी की तैयारी चल रही है। 

आगे कुछ करने का इरादा है या नहीं। 

हां, मैं तो प्राइवेट ही पढ़ लूंगा ,वहां रहने का, खर्चा कौन देगा ?और घर के कार्य कौन करेगा ?

 कोई बात नहीं व्यक्तिगत परीक्षा ही दे लेना। कम से कम स्नातक तो हो ही जाएगा ? मुझसे कोई मदद चाहिए तो ,बताना। 

तुझे क्या ?कोई खुशखबरी मिल गई। 

कैसी ?खुशखबरी !तू मुझे बता रहा है या मुझसे पूछ रहा है। 

मैं तो यही सोच रहा था , तू खुशखबरी सुनकर ही आया होगा। 

मैं कुछ समझा नहीं, चतुर ने परेशान होते हुए पूछा

घर पहुंचकर,सब समझ जाएगा। 

ठीक है ,वहीं  जा रहा हूं , कहते हुए चतुर द्रुतगति से, घर की ओर प्रस्थान करने लगा ,मन ही मन सोच रहा था -''ऐसी क्या खुशखबरी हो सकती है? पहले भी एक बार आया था तब तो किसी ने मुझसे  कुछ नहीं बताया था। इस बीच इन चार महीनों  में ऐसा क्या हो गया होगा ? घर के सामने खड़ा हुआ ,अपने घर को देख रहा था। वही पुताई और रंग- रोगन है, जैसा मैं छोड़ कर गया था। घर की दुबारी में प्रवेश करता है। सामने ही रामप्यारी उसे बैठी दिख गई, जो न जाने किस कार्य में व्यस्त थी ? उसकी पीठ दुबारी की तरफ थी ,इसी कारण से चतुर को नहीं देख सकी। घर वालों से मिलने के खुशी में, पहले वह चुप रहकर देखना चाहता था कि वह लोग क्या कर रहे हैं ? कस्तूरी तो कहीं भी नजर नहीं आ रही, कहीं अपने मायके तो नहीं चली गई। मम्मी ,न जाने ,क्या कर रही हैं ? ओहो !मैंने  एक गलती कर दी ! शायद पिताजी ! घर पर नहीं है मुझे वहीं उनसे मिलते हुए आना चाहिए था। जब बहुत देर तक, किसी को उसके आने की आहट भी नहीं मिली और उसे मां के अलावा कोई और दिखाई नहीं दिया तो वह अपने छुपे स्थान से बाहर आया।

 आते ही जैसे उसने अपना सूटकेस रखा, रामप्यारी ने पलटकर देखा-कौन है ? उसने  घूरते हुए पूछा। 

अच्छा, मुझसे ही ठिठौली  कर रही हो, क्या मुझे नहीं पहचानतीं , कहते हुए उसने अपनी मां के पैर छुए। 

तू चतुर है, तू कितना बदल गया है ? पहचान में ही नहीं आ रहा और तूने यह क्या पहना है ? मां उससे पूछ रही थी किंतु चतुर की निगाहें, इधर-उधर कस्तूरी को तलाश रही थीं। 

मुस्कुराते हुए बोला -जींस है। 

तू तो ,शहरी हो गया कहते हुए ,रामप्यारी हंसने लगी। तूने अपना पहनावा ही बदल दिया, कस्तूरी ने उसे उलाहना दिया। यह कितनी तंग दिख रही है , तू इसमें सांस कैसे लेता होगा ?

 मां की बात सुनकर चतुर भी  हंसने लगा। सीधे-सीधे कस्तूरी को न पूछकर, बोला -क्या आज मुझे पानी भी नहीं मिलेगा ?

हां ,हां लाती हूं ,

क्यों तुम क्यों काम कर रही हो ? क्या घर में कोई और नहीं है ?

है न, कस्तूरी है, किंतु वह आराम कर रही है। 

क्यों ,उसे कुछ हुआ है ,क्या ?

रामप्यारी मुंह लटकाते हुए बोली -अब तुझे क्या बताऊं  ? तू ही जाकर उससे पूछ ले !

क्यों , क्या कोई झगड़ा हुआ है ? या कुछ और बात है। तब चतुर सोचने लगा -मुझे तो मयंक ने कहा था ,कोई  खुशखबरी है किंतु यहां का वातावरण देखकर तो नहीं लगता जैसे कोई खुशखबरी हो। मैं इतनी देर से यहां बैठा हुआ ,बातचीत कर रहा हूं और कस्तूरी को तो जैसे आभास ही नहीं हुआ और न ही ,मेरे लिए पानी लेकर आई है। कहीं बीमार तो नहीं हो गई या फिर सास -बहू में कोई झगड़ा हो गया हो। अनेक विचार चतुर को तंग करने लगे। 

आखिर चतुर के परिवार में ऐसा क्या हो गया है ? जो सब शांत हैं , इस समय कस्तूरी भी अपने कमरे में है। रामप्यारी का चेहरा भी लटका हुआ है। क्या सास बहू के झगड़े हैं चल रहे हैं ? या फिर कोई और ही बात है। चलिए मिलते हैं ,अगले भाग में-रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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