रूपाली की मेहनत सफल हुई , चतुर कॉलेज में 'मिस्टर किंग' बन गया था। चतुर की सादगी ,उसका सभी सवालों का स्पष्ट जबाब देना। व्यवहार में कोई बनावट नहीं ,वो जैसा है ,उसने अपने को ऐसे ही,प्रस्तुत किया। जो वहां के निर्णायकों का मन मोह गया। हालाँकि रुपाली ने उसके साथ बहुत परिश्रम किया किन्तु एन मौक़े पर ,वह जैसा था ऐसा ही बनकर सामने प्रस्तुत हुआ, इसीलिए चतुर को ''मिस्टर किंग ''के लिए चुन लिया गया। अंकित! जो बड़े विश्वास से यह सोच रहा था कि अब की बार भी वह ही जीतेगा। उसने द्वितीय स्थान प्राप्त किया।इसमें भी उसे अपनी बेइज्जती महसूस हो रही थी और जब चतुर प्रथम आया तब रूपाली ने खूब जोर-जोर से तालियां बजाईं , ऐसा लग रहा था, जैसे वह जानबूझकर अंकित को चिढ़ा रही है। यह देखकर चतुर को कुछ एहसास तो हुआ कि शायद यह अंकित के साथ ,इस तरह से व्यवहार कर रही है, जैसे उससे बदला ले रही हो। तब वह , रूपाली से पूछता है -क्या तुम दोनों के मध्य कुछ हुआ था ?
तुम किसकी बात कर रहे हो ? रूपाली ने प्रश्न किया।
मैं तुम्हारी और अंकित की बात कर रहा हूं.
नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं है,
फिर केेसा है ? उस समय तुम जैसा तुम व्यवहार कर रही थीं , उसे देखकर तो नहीं लगता, तुम्हें उसकी हार में और मेरी जीत से अत्यंत प्रसन्नता हुई। तुम्हारे लिए तो हम दोनों ही एक जैसे हैं,एक ही कॉलिज के छात्र है किन्तु ऐसा लग रहा था जैसे- तुम उसे चिढ़ाना चाहती थीं , कुछ बात तो अवश्य है, उसकी तरफ देखते हुए चतुर ने पूछा।
चतुर के प्रश्न से रूपाली थोड़ा गंभीर हो गई, और बोली -मैं जब पहली बार इस कॉलेज में आई थी , मैंने अंकित को देखा अंकित मुझे अच्छा लगा।उसका रहन -सहन,उसका वो अंदाज ,मुझे सब पसंद आया।
हाँ ,मैंने उसे देखा ,अच्छा लड़का है ,किसी की कोई बात तुम्हें अच्छी लगती है ,तो इसमें बुराई क्या है ?
यही तो....... मैं उससे मन ही मन प्रेम करने लगी थी , एक दिन मैंने अपनी भावनाएं उसके सामने व्यक्त भी कीं। मेरी बातें सुनकर उस समय तो वह चुप हो गया कोई जवाब नहीं दिया किंतु जब वह अपने दोस्तों के संग था, तब उसने, उनके सामने मेरी खूब बेइज्जती की और मेरा मज़ाक बनाया। मेरी औकात मुझे समझा रहा था ,उसने ऐसे दर्शाया जैसे, उस जैसे लड़के के सामने मेरी खड़े होने की भी औकात नहीं है।
तो इसीलिए तुमने, उसकी बेइज्जती करने के लिए मुझे चुना,मुझे माध्यम बनाया ,चतुर ने पूछा ।
मैं उसके गुरुर को तोड़ना चाहती थी, वह अपने से बेहतर किसी को समझता ही नहीं था , उसे लगता है, उसके पैसे और उसके व्यक्तित्व के कारण, उसके पीछे लड़कियां मंडराती रहती हैं। उससे अपमानित होकर मैं कई दिनों तक कॉलिज नहीं आई ,तब मैंने अपने आपको समझाया ,मैं इस तरह हार नहीं सकती।'' तुम किसी से प्यार करो ! यह जरूरी तो नहीं कि वह भी तुम्हें चाहे !''किन्तु यहीं ज़िन्दगी समाप्त तो नहीं हो जाती इसलिए मैंने फिर से कॉलिज आना आरम्भ किया। तब मुझे पता चला ,न जाने कितनी लड़कियों की इसने ज़िंदगी बर्बाद की है ? चरित्र का वह कतई भी ठीक नहीं है।
तुम उससे नाराज हो ,इसलिए तुम्हें ऐसा लगता है वरना तुम्हें भी तो उससे प्यार हो गया था।
नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है, मैंने उसे बहुत करीब से देखा है, अब तो तुम्हें भी आए हुए 6 महीने हो गए हैं , क्या तुमने नहीं देखा !
मैं इन चीजों पर ध्यान ही नहीं देता, मेरा उद्देश्य तो यहां आकर पढ़ने का था किसी को नीचा दिखाने का नहीं। अब मुझे अपने परिवार से मिले हुए, बहुत दिन हो गए। अबकी छुट्टियों में मुझे गांव जाना होगा।
क्या मैं भी तुम्हारे साथ, तुम्हारे गांव चल सकती हूं ?
नहीं, मुझे किसी अनजान लड़की के साथ, इस तरह गांव में देखकर , वहां के लोगों को अच्छा नहीं लगेगा। तुम लोगों का जैसा रहन -सहन है , लड़के -लड़कियों में आपस में बातचीत होती है , हमारे गांव में, इसे अच्छा नहीं माना जाता।
तब तुम पढ़े किसलिए हो ? यही बात तो तुम्हें समझानी है, आजकल लड़के -लड़की में कोई भेद नहीं है, सब समान रूप से रहते हैं।अचानक रुपाली चतुर को लड़के -लड़की के भेदभाव के विषय में भाषण देने लगी। वह चाहती थी ,चतुर भी उसे अपने साथ ले जाये और वह उसके परिवार से मिले।
यहाँ ,यह बात कहाँ से आ गयी ?मैं लड़के -लड़की का भेद नहीं बतला रहा हूं, बल्कि मैं यह कह रहा हूं, वहां के और यहां के रहन-सहन में बहुत अंतर है, वहां के लोगों की सोच बिल्कुल अलग है। वहां लड़कियों को छोटा नहीं समझते, बराबर का ही मानते हैं ,सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, किंतु दोनों के मध्य एक दायरा रहता है। उसे कोई पार नहीं करता, वहां बड़ों के प्रति मान- सम्मान की भावना होती है, उनके प्रति आदर होता है , उनसे तर्क़ नहीं किया जाता।
यही बातें तो हैं, जो मुझे चतुर की ओर खींचती हैं, मन ही मन रूपाली सोच रही थी। कभी तो मैं इससे अपने दिल की बात कहूंगी,कितने अच्छे तरीके से समझाता है ?तब वह बोली -शहर में तुम्हारे जैसा इंसान मिलना मुश्किल है ,जैसी सोच तुम रखते हो ,हर किसी की ऐसी सोच नहीं होती।
नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है , अपने तरीके से सब की सोच अच्छी ही होती है। एक बेहतर सोच लेकर, सभी आगे बढ़ते हैं ,किंतु कई बार ऐसा होता है , परिस्थितियाँ और पैसा ! इंसान की सोच को बदलने पर मजबूर कर देते हैं, अब तुम अंकित की ही बात ले लो ! हालांकि वह प्रभावशाली व्यक्तित्व का इंसान है ,एक साधारण छात्र है। उसके व्यक्तित्व का प्रभावशाली होना 'कुदरत की देन है ,यह अच्छी बात है उसके पास पैसा है किंतु उसके पिता की कमाई का पैसा है। उसने नहीं कमाया। उसके इर्द -गिर्द घूमते लड़के -लड़कियों का झुण्ड ,उसे विशिष्ट होने का एहसास कराता है। जिसके कारण उसके अंदर अहंकार पनपने लगता है। धीरे-धीरे उसे स्वयं भी , एहसास होने लगता है कि हां मैं कोई विशेष व्यक्ति हूं ,तभी ये लोग ,मुझे इतना महत्व दे रहे हैं। यह अहंकार किसके कारण आया ?उसके मित्र कहलाने वाले लड़के -लड़कियों के कारण ! यदि वो अमीर है ,उसके पिता द्वारा कमाये गए धन के कारण ,वह हम जैसा ही तो है। जैसा वो है ,वैसे ही हम भी हैं। तुम लोगों ने ही, उसे विशिष्ट होने का अधिकार दे दिया। वरना हम सब छात्र एक जैसे ही तो हैं। उसके उस व्यवहार के , कहीं हद तक हम भी दोषी हैं।