Rasiya [part 77]

चतुर अपने घर से ही अपने लिए, बहुत सारे कपड़े लेकर आया था किंतु उसकी कॉलेज की लड़की दोस्त ! को उसका पहनावा पसंद नहीं आ रहा था। वह उसको लेकर न जाने ,क्या सोच रही थी ? चतुर के न चाहते हुए भी , वह उसे कपड़ों की खरीददारी करवाती है। पहली बार उसने इतना खर्चा किया है , उसके लिए मन ही मन दुख हो रहा है , किंतु जब अपने आप को आईने में निहारा तो अच्छा लगा। वह मन ही मन विचारों से घिरा चुपचाप सड़क पर चल रहा था। 

क्या सोच रहे हो ?सड़क पर यूँ ही चलते हुए ,रुपाली ने पैर से एक छोटे पत्थर को ठोकर मारते हुए पूछा। 

कुछ नहीं,



मैंने ,तुम्हारा बहुत खर्चा करवा दिया न...... तुम्हारे पास, इतने पैसे तो हैं या नहीं। 

हां है, किंतु महीने भर का खर्च सोचकर ही पैसे लेकर आया था। ये बजट से बाहर का व्यय है। 

क्या बजट के चक्कर में पड़ रहे हो ? यही लाइफ तो जीने की है ,मजे करने की है, और तुम बुढों  की तरह अभी से ,सोच में ही पड़े हुए हो। जब हम लोग खर्चा करते हैं ,तो कमाने की भी सोचते हैं और कमाते किसलिए है ?खर्चा करने के लिए ,कुछ समझे !'ये दुनिया गोल है ,' कहते हुए ,जोर -जोर से हंसने लगी।   

ये बात तो पहले ही साबित हो चुकी है। तुमने क्या नई थ्योरी दी है ?मन ही मन चतुर ने सोचा- इसने क्या कमाया ? मेरे पैसों से ही, एक ड्रेस और ले ली। हो सकता है, यह ऐसे ही सबको कपड़े दिलवाने के बहाने से एक ड्रेस, अपने लिए भी ले लेती हो ! अपनी ही सोच पर मुस्कुराया क्योंकि अभी वह डरा हुआ था कि शहर में ,उसे गांव का समझकर ,कोई उसे बेवकूफ न बना ले। इसी कारण से ,विभिन्न प्रकार के विचार उसके मन में आते थे। 

 रूपाली ! तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं ?

क्यों क्या हुआ ?इतने दिनों बाद, पूछ रहे हो,आज तक तो नहीं पूछा।  

इतने दिनों से क्या मतलब है ? यह प्रश्न तो कभी भी पूछ सकते हैं। 

हां, पूछ सकते हैं, मैं पिताजी नहीं कहती, वह मेरे 'डैडी' हैं, बहुत बड़े व्यापारी हैं, उनका दूर-दूर तक कारोबार फैला हुआ है।

 फिर तो तुम पढ़ने के बाद क्या करोगी ? कोई अच्छी सी नौकरी देख लूंगी। नौकरी तो 10वीं 12वीं करके भी लग जाती है, किंतु मैंने इसलिए स्नातक करने का सोचा, मुझे अच्छे स्तर की नौकरी चाहिए। 

क्यों ?तुम तो अपने पापा के व्यापार में उनका हाथ बंटा सकती हो , तुम्हें नौकरी की क्या आवश्यकता है ?

अच्छा ,अब मैं चलती हूं, कहते हुए उसने एक ऑटो रोका और वह उसमें  बैठकर चली गई। 

चतुर की जेब में अब ₹50 ही पड़े थे, वह बस की प्रतीक्षा में खड़ा हो गया। मन ही मन हिसाब लगा रहा था, मेरे पास कितने पैसे हैं ? कल दुकानदार को भी देने हैं, वरना कपड़े भी नहीं मिलेंगे और ₹200 भी चले जाएंगे , रूपाली के सामने बेइज्जती होगी ,सो अलग !

चतुर दिनभर व्यस्त रहता और रात्रि में अपनी कस्तूरी को स्मरण करता ,उसकी फोटो से बातें करता , कस्तूरी तुम कितनी अच्छी ,सीधी हो ? मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं। अपने माता-पिता को मैं, तुम्हारे पास तुम्हारे विश्वास के साथ ही, छोड़ कर आया हूं। तुम जानती हो ,तुम्हारे चतुर ने, शहरों जैसे कपड़े लिए हैं, जब तुम मुझे देखोगी तो पहचान भी नहीं पाओगी। सोचोगी , अरे !यह कौन ''लाटसाहब ''आ गया। मन ही मन सोच कर, उसके पेट में गुदगुदी सी उठने लगी , कि जब मेरी कस्तूरी मुझे देखेगी , तो कितनी खुश होगी ? सभी दोस्तों से मिलने जाऊंगा। अपने गांव की यादों को सोच कर सीने से लगाकर, सो गया। 

सुबह उठते ही ,उसे उन कपड़ों का स्मरण हो आया, तब उसने अपने पास रखे पैसे देखे , उनमें से ₹3000 निकालकर उसने अलग रख लिए , समय के साथ चलना होगा , तो थोड़ा बदलना भी होगा। रूपाली ने चतुर से इतनी बातें की, किंतु कभी भी, चतुर ने उसे यह नहीं बताया -कि वह एक शादीशुदा व्यक्ति है ,उसे लगता ,उसके शादीशुदा होने की सोचकर ,रुपाली जो उसको इतना महत्व देती है ,तब उसे पूछेगी  भी नहीं हो सकता है ,उसके शादीशुदा होने पर जो लड़कियां अब उससे बात करती हैँ ,हो सकता है ,वह हंसी का पात्र बन जाये। रुपाली के साथ के प्रलोभन के कारण भी उसने ,उसे कुछ नहीं बताया। 

 रूपाली ने भी ,कभी नहीं पूछा, क्योंकि उसे लग रहा था, अभी वह पढ़ ही रहा है। आरंभ में तो उसका उद्देश्य, चतुर को बहला फुसलाकर, पैसे ऐंठना ही था किंतु धीरे-धीरे वह उसकी ओर आकर्षित हो रही थी। अब वह उसे, इंग्लिश बोलना भी सिखाने लगी थी। चतुर में बहुत अधिक दिलचस्पी दिखला रही थी। आते-जाते तो दोनों का साथ रहता ही, कॉलेज में भी वे ,एक दूसरे से बात करने के लिए समय निकाल ही लेते हैं। 

शोभित !बहुत दिनों से चतुर और रुपाली की बढ़ती हुई ,नजदीकियां देख रहा था। एक दिन शोभित ने चतुर से पूछ ही लिया-भई ! यह सब क्या चल रहा है ?

क्या चल रहा है? चतुर ने अनजान बनते हुए पूछा। 

मैंने तुझसे पहले ही कहा था, इन शहर की लड़कियों से दूर रहना। 

क्यों ,इसमें क्या बुराई है ? चतुर का तो बात करने का टोन ही बदल गया था। उसे रूपाली का उसके नजदीक आना , उससे बातें करना , उसमें ,उसे कोई बुराई नजर नहीं आई , क्योंकि अभी चतुर की नजर में भी कोई खोट नहीं था। 

मैंने तुझसे पहले ही कहा था, इन शहर के लोगों के चक्कर में मत पड़ना। 

हम लोग गांव से आए हैं, शहर में किसी को नहीं जानते हैं, यहां का रहन-सहन यहां के लोगों का तौर तरीका भी हमें मालूम नहीं है ,जब यहां रहना ही है, तो इन लोगों से संपर्क बनाने में भी क्या बुराई है ? चतुर ने शोभित को समझाना चाहा किंतु शोभित को लग रहा था , वह गलत दिशा में जा रहा है। 

कॉलेज में ,एक बहुत बड़े  कार्यक्रम की तैयारी चल रही थीं , कॉलेज की तरफ से, कॉलेज के किंग और क्वीन चुने जाने थे इसीलिए रूपाली ने भी ,इस प्रतियोगिता के लिए चतुर को तैयार किया। चतुर के लिए सब कुछ नया था और यह सब करने में उसे बड़ा ही आनंद आ रहा था। उसका भोलापन उसका, सीधा होना बातों को स्पष्ट कहना, कुछ लोगों के लिए ,आकर्षण का केंद्र बन गया था। उसकी हरकतों से, उसकी बातचीत से किसी को कोई चालबाजी नजर नहीं आती  थी । 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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