Rasiya [part 75]

चतुर ,अपने गांव से शहर पढ़ने के लिए आ गया है। कस्तूरी को माता -पिता की सेवा के लिए ,उनकी देखरेख में गांव ही छोड़ आया है। आज पहली बार ,बस से कॉलेज जा रहा है ,उसी बस में ,आधुनिक वस्त्रों में ,कुछ लड़कियां चढ़ती हैं। तब एक लड़की ,चतुर से उसके पास जो खाली जगह थी ,उस पर बैठने की इजाज़त मांगती है। भला चतुर को क्या आपत्ति होगी ?उसने सहर्ष उसे बैठने के लिए कह दिया। मुस्कुराते हुए ,वह लड़की उसके करीब आकर बैठ गई , उसके कपड़ों से बहुत अच्छी भीनी -भीनी खुशबू आ रही थी।शायद कोई इत्र लगाया होगा , मन ही मन चतुर सोच रहा था , तिरछी निगाहों से उसे देख लेता। उसने गहरे नीले रंग की जींस पहनी हुई थी और सफेद शर्ट थी,जिसको उसने इस तरह से बांधा हुआ था, जिसके कारण उसका उदर और नाभी  स्पष्ट नजर आ रहे  थे । 

यह कैसा पहनावा है ? मन ही मन चतुर सोच रहा था , इसका आधा पेट तो दिख ही रहा है किंतु जो भी है अच्छा लग रहा है। तभी वह लड़की बोली - हाय ! मैं रुपाली हूँ और आप !

''चतुर भार्गव ''


नाइस नेम ! क्या आप पढ़ते हैं या जॉब करते हैं ?

स्नातक कर रहा हूँ। 

कौन सा कॉलिज ?

डी.एन. कॉलिज !

ओह ! मैं भी वहीं हूँ। चलो ,अब वहाँ तक हमारा अच्छा साथ रहेगा। क्या आप कुछ बोलते नहीं हैं ?

नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है, किन्तु कम ही बोलता हूँ ,अभी नया -नया ही इस शहर में आया हूँ ,किसी को जानता भी नहीं। 

ठीक है ,मैं सबसे तुम्हारा परिचय करा दूंगी। वैसे तुम्हारे साथ क्या कोई और भी है ?

नहीं ,मैं अकेला ही हूँ।  तुमने ऐसा क्यों पूछा ?

मैंने सोचा ,दोस्त वग़ैरहा !  किसी गांव से हो ?

हाँ , तुम्हें कैसे पता चला ?

बस अंदाजा लगाया ,कहकर वो हंसने लगी और बोली -इनमें मेरे साथ दो लड़कियाँ हैं। एक निशा ,दूसरी सपना !लो ,हमारा कॉलिज आ गया ,कहते हुए वो उठ खड़ी हुई, साथ ही चतुर भी उठा। 

बस से उतरने के पश्चात ,वह लड़की ऐसे हो गयी ,जैसे चतुर को जानती ही नहीं ,आज तू उससे बड़ी घुट -घुटकर बातें कर रही थी  ?कौन है ?वो !क्या उसे जानती है ?

नहीं यार ! कहाँ मैं और कहाँ वो !हमारा कोई मेल ही नहीं ,था ,कोई गांव का लंगूर !

गांव से आया है ,किन्तु देखने में तो उसका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली लग रहा था,और तू तो ,उससे  बड़ी हंस-हंसकर बतला रही थी। देखने में तो अच्छा -खासा है। 

हाँ ,इसलिए तो बात कर रही थी ? देखने में तो अच्छा है, किंतु पहनावे में, उसने बहुत ही सस्ते कपड़े पहने थे। उसके पहनावे को देखते ही मैं समझ गई थी, किसी गांव से आया है ,रुपाली इठलाते हुए बोली। 

तुझे उससे क्या लेना ?

हां ,मुझे तो कोई लेना-देना नहीं है , किंतु यदि इसका, थोड़ा पहनावा बदल दिया जाए तो यह अंकित को भी पछाड़ सकता है, उसमें बहुत ही ''एटीट्यूड'' है। पिछले साल भी मिस्टर कॉलेज बना था, इस साल भी उसमें अकड़ है कि वही सबसे हैंडसम है ,सारा दिन लड़कियों से 'फ़्लर्ट 'करता रहता है।  

तूने उस लड़के का क्या नाम बताया ?

चतुर भार्गव ! ओह........  मैंने  तो उससे यह भी नहीं पूछा कि वह कौन से बैच में है ? खैर ! बस में तो मिलेगा ही , वैसे मैंने सुना है, गांव के लोग सीधे होने के साथ-साथ पैसे वाले भी होते हैं। क्यों न, उसका थोड़ा खर्चा करवा लिया जाए ?कहते हुए ,रुपाली ने निशा और सपना की तरफ आँख मारी। 

तू, क्या करने की सोच रही है ?

वही जो किसी भी अनजान व्यक्ति से, हम करवाते हैं। 

वह हमारे ही कॉलेज में है ,उसे हमारी शैतानियों का पता चला तो छोड़गा नहीं। 

कोई बात नहीं, उसे दूसरे तरीके से धीरे-धीरे हलाल करेंगे, कहकर तीनों हंसने लगीं। 

कॉलेज में पहुंचकर, चतुर ने किसी लड़के से अपना कमरा पूछा और अपने कमरे में चला गया। वहां किसी को जानता भी नहीं था , तभी उसके करीब एक लड़का आया , और बोला -न्यू ऐडमिशन !चतुर ने हां में गर्दन हिलाई। मेरा नाम शोभित है , और तुम्हारा !

''चतुर भार्गव '' अच्छा नाम है, किंतु मैं तुम्हें चतुर कहूं तो चलेगा। 

चलेगा नहीं दौड़ेगा , दोनों हंसने लगे। तभी प्रोफेसर कक्षा में आए और नए विद्यार्थियों का पुराने विद्यार्थियों से परिचय कराया। शोभित उसकी पास ही बैठा था। धीरे-धीरे दोनों में बातचीत हुई, तो पता चला वह भी, किसी गांव से यहां पढ़ने आया है और हॉस्टल में रहता है। 

शहर के बच्चों की ,एक अलग ही 'मनोदृष्टि ' है, वह अपने को हमसे ज्यादा बेहतर ,होशियार समझते हैं। शोभित ने चतुर को बताया। 

समझने दो ! हम भी तो, अपने से बेहतर किसी को नहीं समझते , इनमें दम ही कितना है ? फूंक मारो तो उड़ जाए , उसके इतना कहने पर शोभित खूब हंसा। जैसे -चतुर के आने से ,उसको आत्मबल मिला, उसे अपने जैसा ,एक साथी जो मिल गया था। कोई चाहत नहीं थी ,किंतु वह, देख रहा था इतनी लड़कियां इधर-उधर घूम रही हैं। सबने  एक से एक कपड़े पहने हैं ,कोई भी सूट में नहीं है ,ऐसा लग रहा है ,जैसे यह कॉलिज नहीं फैशन का बाजार हो। 

चतुर जब कॉलिज की केंटीन में बैठा, दोपहर का भोजन कर रहा था। तब उसने देखा, कुछ लड़कियां तो सिगरेट भी पी रही थीं  , यह देखकर वह आश्चर्य चकित रह गया। आदमी तो पीते ही हैं, और उन्हें हम समझाते भी हैं कि ''''धूम्रपान निषेध है , किंतु यहां तो...... ऐसा लगता है ,ये लड़कियां ही, धूम्रपान में भी हम मर्दों का रिकॉर्ड तोड़ेंगीं,चतुर ने शोभित से कहा। 

 इनके माता-पिता भी कैसे हैं ? जो उन्हें इतना भी नहीं पता कि उनका बच्चा, क्या हरकतें कर रहा है या कर रही है ?

रूपाली अक्सर, चतुर को बस  में मिल जाती, वह अपने रहन-सहन अपने तौर तरीके से उसको प्रभावित करना चाहती थी। चतुर प्रभावित भी हुआ , एक दिन रूपाली बोली -क्या तुम्हारे पास कुछ पैसे हैं ?

क्यों ,पैसे क्यों चाहिए ?

अरे बाबा ! कुछ बात है, अब मैं अपने गांव से दूर, बिना पैसे के तो पढ़ने नहीं आया होंगा। 

एक दिन मेरे साथ चलना,

कहां जाना है ? तुम प्रश्न बहुत पूछते हो , कभी बिन कहीं भी मेरे साथ चल सकते हो या नहीं ! रूपाली ने पूछा। 

ठीक है ,जैसी तुम्हारी इच्छा !

आखिर रूपाली उस पैसों के विषय में क्यों पूछ रही थी ? क्या उसने अपनी सखियों को जो वायदा किया था, उसे मूर्ख बनाना चाहती थी , चतुर उसके झांसे में आ जाएगा , आखिर वः उसे कहां ले जाना चाहती है। चलते हैं ,चतुर की इस नई यात्रा पर-गांव के सीधे लड़के से, वह कैसे 'रसिया 'बना ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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