Rasiya [part 74]

चतुर के विवाह को एक महीना हो गया था, उसके पश्चात वह अपने पिता श्रीधर जी से, आगे पढ़ने के लिए बड़े शहर में जाकर पढ़ने की इजाजत मांगता है। उनका कथन तो यही था -'' अपने ही गांव में रहकर, अपनी खेती संभालो !'' किंतु उसने जब उन्हें समझाया, तो उन्होंने उसे जाने से नहीं रोका। इधर रामप्यारी भी बड़ी परेशान हो रही थी ,अभी तो बेटे का विवाह हुआ है। घर में थोड़ी सी रौनक आई है ,दोनों बेटा -बहू चले जाएंगे, तो घर में मन नहीं लगेगा। वह इसी चिंता में परेशान थीं। 

परेशान होते हुए, रामप्यारी चतुर से बोली -बेटा ! नई-नई बहू है, कम उम्र है ,इसका भी ध्यान रखना पड़ेगा ! अभी ज्यादा कुछ जानती भी नहीं है इसलिए इसका ध्यान रखना।  

में ,इसका ध्यान क्यों रखूंगा ? इसका ख्याल रखने के लिए आप हैं , न........ 

जब मैं यहां रहूंगी ,तो इसका ख्याल कैसे रख सकती हूं ?



क्या मतलब ?

भई !तू अपनी बहू को, अपने साथ ले जाएगा और मैं यहां रहूंगी, तो उसका ख्याल कैसे रख सकती हूं ? इसीलिए तुझे समझा रही थी। 

मुझे समझाने की कोई आवश्यकता नहीं है, मैं वहां पढ़ने जा रहा हूं , वहां यह क्या करेगी ? अभी मुझे रहने सहने का ठिकाना ,कुछ मालूम नहीं है ,कहां रहना होगा, कैसे रहना होगा ? अभी यह आप लोगों के साथ ही रहेगी, आप लोगों की सेवा करेगी। 

चतुर के बड़े शहर में ,जाकर पढ़ने की बात सुनकर ,कस्तूरी भी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी किन्तु जब उसे पता चला ,वो यहीं रहने वाली है। चतुर के यह शब्द सुनकर, कस्तूरी को बहुत दुख हुआ मुँह बनाते हुए अपने कमरे में जाकर रोने लगी। वो भी तो शहर में जाकर रहने के मन ही मन सपने सजाने लगी थी।

 बहु के हाव -भाव देखकर ,रामप्यारी ने चतुर को  इशारा किया कि जाकर उसे समझाये। 

चतुर माँ के कहने पर, कस्तूरी को समझाया , जैसे तुम अपने माता-पिता के साथ रहती थीं , ये भी ,तुम्हारे ही माता-पिता हैं। तुम उनके साथ रहना, जब मैं नहीं होऊंगा तो तुम इनका ख्याल रखना। तुम्हारे भरोसे ही तो, शहर जाकर पढ़ने की सोच रहा हूँ। जब भी छुट्टी होगी, मैं तुमसे मिलने आया करूंगा , अपना ख्याल रखना और कस्तूरी को भरोसा दिलाया , जब उसकी नौकरी लग जाएगी और रहने का ठिकाना मिल जाएगा ,तब वह उसे अपने साथ लेकर जाएगा। अब एक अनजान जगह पर मैं स्वयं न जाने क्या करूंगा ? तुम मेरे साथ, कहां-कहां धक्के खाओगी ?

कस्तूरी इतनी जिद्दी भी नहीं थी और चतुर की बात को समझ कर, उसने गांव में ही ,रहने की हामी भर दी। 

मां ने चतुर के लिए बहुत सारे  पकवान , खाना,लड्डू, इत्यादि सामान बनाया था। जिस बड़े शहर में वह जा रहा था उसने आज तक नहीं देखा था। पहली बार किसी इतने बड़े, शहर में पढ़ने जा रहा था। पूछते -पाछते एक बड़े विश्वविद्यालय में पहुंचा और वहां अपना दाखिला कराया। रात बिताने के लिए किसी धर्मशाला में ठहर गया। जब वह धर्मशाला में आकर, और भोजन करके लेटा , तब उसे एहसास हुआ, मैं एक छोटे से गांव में रहता हूं। हम तो ''कूप मंडूक ''ही बने हुए हैं, बड़े-बड़े शहरों में लोग कैसे रह रहे हैं ? वहां रहने वाली ,महिलाओं -पुरुषों का रहन-सहन, उनके तौर तरीके देखकर , उसे अच्छी अनुभूति हुई। कि उसने शहर आने का गलत निर्णय नहीं लिया था । वह कल्पनाओं में खो गया , वह भी इसी शहर में रहकर उन्नति करेगा और अपनी कस्तूरी और अपने बच्चों को यहीं रहकर, उन्हें पढ़ाएगा। 

जब वह कॉलेज में गया था तो...... वहां लड़के और लड़की एक साथ ही, पढ़ते थे। यह बात उसने सुनी तो थी किंतु आज देख भी लिया। कहने को तो कस्तूरी भी शहर में ही रहती है, पर आज पता चला , शहर और कस्बे में कितना अंतर होता है ? यदि कस्तूरी यहां आ गई, तो उसकी भी आंखें चकाचौंध हो जाएगीं । कस्तूरी की यादों को याद करके, और सुंदर भविष्य के सपने देखते हुए ,वह चैन  की नींद सो गया। किंतु वह नहीं जानता कि यह शहर, बहुत परीक्षाएं भी लेता है , कुछ लोग इसमें रहकर ढल जाते हैं, कुछ लोगों का स्तर बढ़ जाता है तो कुछ गिर जाते हैं किंतु शहर में रहने का लालच छोड़ नहीं पाते हैं। इसका आकर्षण ही ऐसा है, अनेक परेशानियां अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ,इंसान शहर में की ओर ही भागता है। 

अब रसिया की, एक नई यात्रा शुरू होने वाली है , रसिया भविष्य के सुंदर सपने लेकर शहर में आ गया है। यह शहर उसे क्या से क्या बना देता है ? क्या वह उस शहर में अपने को ढाल पाता है , या  वह हताश होकर, शहर से वापस अपने गांव चला जाता है. या फिर वह अपने सपने पूरे करने के लिए , अपने बच्चों को लेकर शहर में आता है या नहीं। यह तो अब समय ही बताएगा। 

आज कॉलेज में पहला दिन है, कल ही उसने फॉर्म भरा था , आज भी उसे बुलाया है ,वह तैयार हो रहा है उसने अपने अच्छे से अच्छे कपड़े निकाले हैं। ख़ामोश ! भविष्य को संजोये ,वह अपने जीवन का सफ़र आरम्भ करता है। धर्मशाला से,उसने कॉलिज जाने के लिए बस पकड़ी ,बस का टिकट लेकर वह ख़ामोशी से बस में बैठ गया। सुबह के समय ,बस में बहुत भीड़ थी। कुछ अपने काम पर जाने वाले लोग थे तो कुछ ,कॉलिज जाने वाले थे। तभी उस भीड़ में एक लड़कियों का झुण्ड भी ,आकर शामिल हो गया ,जो जगह की तलाश में इधर -उधर नजरें दौड़ा रहीं थीं। उनका पहनावा देखकर ही ,चतुर आश्चर्य से भर गया। अभी तक उसने लड़कियों को ,सलवार -सूट में ही देखा था किन्तु आज जो ये बस में चढ़ी हैं ,उन्होंने जींस और टॉप पहना हुआ था। एक लड़की ने स्कर्ट पहनी थी ,एक -दो ने सूट भी पहना था तो उस सूट में बाजू ही नहीं थी। 

वह कल्पना करने लगा मेरी कस्तूरी यदि ऐसे वस्त्र पहने तो....... कितनी अच्छी लगेगी ?इनकी भी छुट्टी कर देगी। 

तभी उसके कानों में एक स्वर उभरा- एक्सक्यूज मी ! चतुर तो अपने विचारों में ही खोया हुआ था, उसका ध्यान उसकी बातों पर नहीं गया तभी दोबारा वह शब्द उभरा -एक्सक्यूज मी !

चतुर के पास की जगह खाली थी, एक लड़की उससे  बार-बार पूछ रही थी , कि क्या वो उस स्थान पर बैठ जाये ?चतुर ने उसकी तरफ देखा , चतुर को अंग्रेजी का ज्ञान तो था, किंतु कभी अंग्रेजी बोली नहीं थी। 

जी....... चतुर ने उसकी तरफ देखते हुए कहा। 

क्या मैं यहां बैठ सकती हूं ?

यस -यस, हां जी आइये !

आईये !चतुर की इस यात्रा में, शामिल हो जाइए ! यह चतुर का एक रूप था, किंतु समय के साथ-साथ चतुर कैसे रसिया बन गया ? यह जानने के लिए उसके साथ इस सफ़र में चलते हैं -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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